Sunday, April 12, 2009

१३ धर्म, कुरबानी अर जोस रो सुमेळ - बैसाखी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १३//२००९

बैसाखी पर खास लेख

धर्म, कुरबानी अर जोस रो सुमेळ - बैसाखी


रूपसिहं राजपुरी रो जलम 15 अगस्त, 1954 नै संगरिया तहसील रै गांव मोरजंड सिक्खांन में होयो। राजस्थानी में साहित रचणवाळा देस रा पै'ला सरदार। देस-विदेस में हास्य-कवि रै रूप मांय चावो नाम। सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड अर हांगकांग रै मंचां पर राजस्थानी कविता पाठ। आधा दरजन पोथ्यां रा लिखारा। शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अध्यापक। रावतसर में बसै। राजस्थानी मान्यता आंदोलन सूं सरू सूं ई जु़डाव। दूरदर्शन अर रेडियो सूं प्रसारण।

-रूपसिंह राजपुरी

तरादै राजस्थान सूं पंजाब री सींव लागै। पंजाब री नदियां रो जळ राजस्थान रै मरुथळ री तिरस बुझावै। पंजाब रो दिखणादो पासो राजस्थानी री बागड़ी बोली बोलै। बठै राजस्थानी रीत-रिवाज सरजीवण। राजस्थान रो भी कुछ हिस्सो पंजाबी भाषी। अठै फगत पंजाब रा त्यूंहार ई नीं मनाइजै, रोटी-बेटी रो सम्बंध पण जुड़ियोड़ो। रगत अर रिस्तेदारियां रो आळ-जंजाळ भी बिछ्योड़ो। बठै गणगौर अर तीज मनाइज्यै तो अठै लोहड़ी अर बैसाखी री रुणक भी सांतरी। बठला आस्थावान सालासर, रुणेचै अर गोगामे़डी री जातरा कर'र निहाल हुवै तो अठला सरधालु श्री अमृतसर रै पवितर सरोवर में स्नान कर'र हरमंदिर साहब में माथो टेक खुद नै बड़भागी मानै।
बैसाखी सिक्ख धर्म में खालसा पंथ री थरपणा रो त्यूंहार। हाड़ी री फसल काट-काढ'र घरां ल्याण री खुसी रो पण उच्छब। पैलां बैसाखी तांईं फसल साम्भ ली जांवती। पण अबार तो बैसाखी तांईं फसलां हरी खड़ी रैवै। इणी दिन आसाम में 'बीहू' अर केरल में 'ओणम' रै नांव सूं आपरी परापरी मुजब ओ त्यूंहार मनाइजै। बठै ईं दिन नूंवो अन्न मीठो कर'र पकाणो, खाणो अर बांटणो सुभ मानीजै। गन्नै रै रस में चावळ री खीर ओणम रो खास खाजो। पंजाब रो किरसो तू़डी-नीरो साम्भ, साहूकार रो हिसाब चूकता कर'र निरवाळो हुय'र किलकारियां मारतो, बकरा बुलांवतो-बुल्ला छांगतो, सज-धज'र हाथ में खूंडो लेय'र किलोळां करतो बैसाखी रै मेळै जावै। फसल बेच'र बच्योड़ा च्यार पइसा खुल्लै दिल सूं खाण-पीण पर खर्च करै। कुस्ती दंगल देखै। खुसी मनावै।
ईं दिन 1699 ई. नै श्री आनन्दपुर साहब री पहाड़ी ठोड़ श्री केसगढ़ साहब में 33 बरस रा भरपूर जवान गुरु गोविंदसिंहजी महाराज औरंगजेब बादशाह रै जुलम रा टाकरा करण सारू एक भारी दीवान सजायो। बठै जबरो इकट्ठ हुयो। देस भर सूं साध-संगत पूग्योड़ी ही। चाणचकै गुरुजी नंगी तलवार हाथ में लेय'र मंच पर पधार्या। खालसा फौज बणाण सारू एक मरदाना सिर री मांग राखी। लाहौर रै भाई दयाराम खत्री खुद नै पेस करयो। गुरुजी बां नै तम्बू में लेयग्या अर खून सूं रंगी तलवार लेय'र पाछा मंच पर आया अर एक और सिर मांग्यो तो दिल्ली सूं पधारयोड़ा धर्मदास जाट हाजर हुया। इणी भांत भाई हिम्मत झींवर जगन्नाथपुरी-उड़ीसा, मोहकमचंद छींपा द्वारकाजी-गुजरात अर साहबचंद नाई बीदर-आंध्रप्रदेस खुद नै अरपण करया। थोड़ी देर पछै बां पांचां नै 'पंज-प्यारा' रा सिक्ख सरूप बख्स'र साध-संगत रै साम्ही ल्याया। बां रै नांव रै सागै सिंघ सबद लगाया अर शेर जिसी आत्मा बणा दीनी। बां नै खुद रै कर-कमलां सूं अमृत तैयार कर'र छकायो। फेर बां सूं खुद अमृत-पान करयो-
वाहु-वाहु गोविंदसिंह आपे गुर चेला
अर जाति-पांति रो भेद मिटायो अर फुरमाण करयो -
'मानुस की जात सभै एकै पहचानबो।'
विद्वान भाई गुरदासजी फरमायो-
'पीवो पाहुल खण्डे धार होये जन्म सुहेला।
गुर संगत कीनी खालसा मन मुखी दुहेला'

खालसा यानी खालस परमात्मा नै मानण आळो, कर्मकाण्ड अर अंधविश्वास सूं अळगो रैवणियो। खालसा रो जलम-दिन है- बैसाखी। ईं खातर धर्म, त्याग, कुरबानी अर जोस रो सुमेळ है- बैसाखी। बैसाखी आळै दिन रै सागै जुड़ियोड़ी है जलियांवाला बाग री घटना। 19 अप्रेल, 1919 री बात। अमृतसर रै जलियांवाला बाग में अंग्रेजी पुलिस निरदोस भारतवासियां नै गोळियां सूं भूंद'र आजादी आंदोलण नै गिंदोळण री चाल चाली। पण ईं घटना सूं देसभर में रोस अर जोस री लहर चाल पड़ी। ईं गोळीकाण्ड सूं ई वीर ऊधमसिंह अर भगतसिंह जेड़ा क्रान्तिकारी अमर शहादत रा जाम पीग्या अर सूत्योड़ा भारतवासियां नै झिंझोड़ग्या। बैसाखी आळै दिन भगतसिंह, राजगुरु अर सुखदेव री समाधि हुसैनीवाला पर भारी मेळो भरै। बैसाखी धार्मिक, सांस्कृतिक अर सामाजिक त्यूंहार है। त्यूंहार आपणी विरासत हुवै। आं नै सम्प्रदाय अनै धर्म विसेस सागै नीं जोड़ना चाहिजै। त्यूंहार तो त्यूंहार है, बस, मनावणा चाहिजै।

आज रो औखांणो

मेळां रा निंवता नी दीरीजै।

मेलों के न्योते नहीं मिलते।

मेलों की जानकारी तो सबको रहती है। दुख उठाकर भी लोग वहाँ उत्साह से पहुँचते हैं।

3 comments:

  1. राम-राम सा. आपणी भाषा आप लगोलग बांच रैया हो. आप सब गुणी जनां रो प्यार म्हानै दुगुनै उत्साह सूं काम करण रो बळ प्रदान करै. ओ स्तम्भ आज आपरा एक सौ लेख पूरा कर रेयो है. आपसूं अर्ज है कै आप- आपरा बेसी सूं बेसी विचार म्हारे तक पूगता करो. ओ स्तम्भ आपणी मायड़ भाषा राजस्थानी नै साचो मान दिरावन सारू चाल रैयै आन्दोलन रो हिस्सों है. भास्कर अखबार अर खास कर राणा जी रो जितरो प्यार अर आशीर्वाद मिल्यो बो भुलायो नी जाय सकै. मूल रूप सूं मध्यप्रदेश रा वासी अर राजस्थानी सूं इतरो हेत! लखदाद है राणाजी नै.... राजस्थानी साथै मौसी- भानजे रो रिस्तो बतावता बै घणो गुमेज करै...

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  2. सोनी साहब,

    सादर..

    आपणी भाषा नियमित रूप से पढता हूं. बहुत ही सुंदर प्रयास है.
    सुशांत की शादी में आपके आने का समाचार हमें नहीं था. बिल्‍कुल आप लोगों से मिलने की हार्दिक इच्‍छा है. बस कुछ संयोग से ही
    मुलाकात नहीं हो पाई. परलीका का इलाका तो अपने लिए नया और सम्‍मानीय है और संभवत: जल्‍द ही वहां होंगे.

    कांकड़ का प्रयास अच्‍छा लगा, आभारी हूं .. यह सब तो आप लोगों से ही सीखा है.
    आप मार्ग‍ निर्देशन करते रहे ...

    आशा है परीक्षा वगैरह से निपट कर आराम की मुद्रा में होंगे ..

    शेष कुशल
    आपका ही
    पृथ्‍वी
    http://kankad.wordpress.com/

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  3. Bhai,
    Sh Roopsingh,
    Satsriakal,
    Bhaiji tharo baisakhi per ghano hi paviter or manpsand lekh vanchiyo,Mahrye dil mai besakhi ro josh bher geyo hai.mayer bhasha re isa likhara nai mahro salam.
    NARESH MEHAN

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