विश्व पुस्तक दिवस पर खास
वि. सं. 1978 में जनमे मनफूलाराम उस जमाने में चार तक पढ़ाई कर पटवारी बने, मगर नौकरी रास नहीं आई तो किसानी करने लगे। उन्होंने पहली किताब कौनसी व कब पढ़ी, ये तो उन्हें याद नहीं पर जब से होश संभाला उनका पढ़ना बदस्तूर जारी है। शुरू में उन्होंने धार्मिक किताबों का अध्ययन किया। रामायण, महाभारत, गीता और शिवपुराण जैसे ग्रंथों को कई-कई बार भी पढ़ा। ज्योतिष में रूचि होने के कारण लोग-बाग जब पंचांग संबंधी कोई बात पूछने आते तो लगे हाथों पढ़ी जा रही किताब का कुछ अंश उनको भी सुना देते। स्कूल लायब्रेरी से भी लाकर किताबें पढ़ते। जिसमें राजनीति, नैतिक शिक्षा से लेकर ज्ञान-विज्ञान तक सभी प्रकार की किताबें होतीं। स्थानीय बाजारों में उनकी रूचि की किताबें उपलब्ध नहीं रहीं और दूर-दराज जाने का अवसर ही न मिला। और कुछ न मिला तो बच्चों से पाठ्यपुस्तकें ही मांग-मांग कर पढ़ लेते। मगर जैसे ही गांव में साहित्यिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा तो मानो उन्हें अपना खोया हुआ खजाना मिल गया।
खुद बू़ढे होते जा रहे हैं मगर किताबों को पढ़ने की भूख दिन-दिन जवान। उन्होंने आज ही कमेलश्वर का 'कितने पाकिस्तान' शुरू किया है। राजस्थानी और हिन्दी की कई सौ किताबें पढ़ी हैं। किन-किन का जिक्र किया जाए, वे तो सभी किताबों को अनमोल बताते हैं। उनका मानना है कि साहित्य तो सही राह दिखाता है और आदमी को इंसान बनाता है। बिज्जी की 'बातां री फुलवाड़ी' के सारे भाग, मुंशी प्रेमचंद समग्र, यशपाल का 'झूठा-सच' राही मासूम रजा का 'आधा गांव' सहित जो भी सुलभ हुआ पढ़ डाला। सुबह चाय के बाद खाना खाने तक पढ़ना अब उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा है। दोपहर को आराम के बाद शाम तक भी वे पढ़ते देखे जाते हैं। आजकल उनको बोलने में परेशानी होती है। फिर भी वे बताते हैं- 'किताब सदां सूं आछी लागै, अबी जी करै जाणै सारै दिन पढ़ूं पण बैठ्यो कोनी रैइजै। फेर ई मन कोनी मानै। किताब तो आदमी नै फिल्टर करै। बीं री बुराइयां नै रोक गे माणस बणावै अर भोत भांतगो ग्यान बधै जिको न्यारो। किताबां मेरी खुराक है। आ मिलबो करै तो मैं क्यांगै ई सारै कोनी। पैली थारै बरगां कनै ऊं जागे लियांवतो। अब तो ऐ टाबरिया ल्यागे द्यै जिसी बांचल्यां।' वे अपनी दस वर्षीय पोती की ओर इसारा कर बताते हैं।
ताज्जुब तो यह है कि किताब के प्रति इतना मोह रखने वाले मनफूलाराम रेडियो व टीवी के बिलकुल भी शौकीन नहीं। उनका मानना है कि किताब में जो आंनद है वह अन्यत्र दुर्लभ है। स्थानीय साहित्यकारों के पास उन्हें किताबें सहज सुलभ हो जाती हैं और वे उन्हें पढ़ते ही लौटा देते हैं।
सत्तासी की उम्र में भी बरकरार
किताब का जुनून
किताबां मेरी खुराक है। आ मिलबो करै तो मैं क्यांगै ई सारै कोनी।
-विनोद स्वामी
किताब का जुनून
किताबां मेरी खुराक है। आ मिलबो करै तो मैं क्यांगै ई सारै कोनी।
-विनोद स्वामी
किताबें वक्त को उंगली पकड़ कर, सीढ़ियां चढ़ना सिखाती हैं।
सच तो ये है हर सदी में पीढ़ियों को, पीढ़ियां पढ़ना सिखाती हैं।।
सच तो ये है हर सदी में पीढ़ियों को, पीढ़ियां पढ़ना सिखाती हैं।।
परलीका के बुजुर्ग मनफूलाराम जाट को देखकर राजेश चढ्ढा की ये पंक्तियां बरबस ही स्मरण हो आती हैं। दुनियाभर में विश्व पुस्तक दिवस मनाया जा रहा है और परलीका में ८७ वर्षीय बुजुर्ग मनफूलाराम इस सब से बेखबर अपनी धुन में कमलेश्वर का चर्चित उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' पढ़ने में लीन हैं। जीवन का संध्याकाल है।
हाथ-पैरों में सत नहीं रहा। जुबान लड़खड़ाती है, मगर आंखें और कान अब भी पूरी तरह सजग। पड़ोसी बताते हैं, मनफूलाराम ने अपने जीवन में फुरसत का हर पल किताबों के साथ गुजारा है। उनको अकेले बैठे देख हर कोई यही सोचता होगा कि यह बू़ढा इस उम्र में आखिर कौनसी परीक्षा की तैयारी कर रहा है। मगर यह बू़ढा तो साहित्य की दुनियां में गोते लगाता खुद को पूरी दुनियां से जोड़े है।वि. सं. 1978 में जनमे मनफूलाराम उस जमाने में चार तक पढ़ाई कर पटवारी बने, मगर नौकरी रास नहीं आई तो किसानी करने लगे। उन्होंने पहली किताब कौनसी व कब पढ़ी, ये तो उन्हें याद नहीं पर जब से होश संभाला उनका पढ़ना बदस्तूर जारी है। शुरू में उन्होंने धार्मिक किताबों का अध्ययन किया। रामायण, महाभारत, गीता और शिवपुराण जैसे ग्रंथों को कई-कई बार भी पढ़ा। ज्योतिष में रूचि होने के कारण लोग-बाग जब पंचांग संबंधी कोई बात पूछने आते तो लगे हाथों पढ़ी जा रही किताब का कुछ अंश उनको भी सुना देते। स्कूल लायब्रेरी से भी लाकर किताबें पढ़ते। जिसमें राजनीति, नैतिक शिक्षा से लेकर ज्ञान-विज्ञान तक सभी प्रकार की किताबें होतीं। स्थानीय बाजारों में उनकी रूचि की किताबें उपलब्ध नहीं रहीं और दूर-दराज जाने का अवसर ही न मिला। और कुछ न मिला तो बच्चों से पाठ्यपुस्तकें ही मांग-मांग कर पढ़ लेते। मगर जैसे ही गांव में साहित्यिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा तो मानो उन्हें अपना खोया हुआ खजाना मिल गया।
खुद बू़ढे होते जा रहे हैं मगर किताबों को पढ़ने की भूख दिन-दिन जवान। उन्होंने आज ही कमेलश्वर का 'कितने पाकिस्तान' शुरू किया है। राजस्थानी और हिन्दी की कई सौ किताबें पढ़ी हैं। किन-किन का जिक्र किया जाए, वे तो सभी किताबों को अनमोल बताते हैं। उनका मानना है कि साहित्य तो सही राह दिखाता है और आदमी को इंसान बनाता है। बिज्जी की 'बातां री फुलवाड़ी' के सारे भाग, मुंशी प्रेमचंद समग्र, यशपाल का 'झूठा-सच' राही मासूम रजा का 'आधा गांव' सहित जो भी सुलभ हुआ पढ़ डाला। सुबह चाय के बाद खाना खाने तक पढ़ना अब उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा है। दोपहर को आराम के बाद शाम तक भी वे पढ़ते देखे जाते हैं। आजकल उनको बोलने में परेशानी होती है। फिर भी वे बताते हैं- 'किताब सदां सूं आछी लागै, अबी जी करै जाणै सारै दिन पढ़ूं पण बैठ्यो कोनी रैइजै। फेर ई मन कोनी मानै। किताब तो आदमी नै फिल्टर करै। बीं री बुराइयां नै रोक गे माणस बणावै अर भोत भांतगो ग्यान बधै जिको न्यारो। किताबां मेरी खुराक है। आ मिलबो करै तो मैं क्यांगै ई सारै कोनी। पैली थारै बरगां कनै ऊं जागे लियांवतो। अब तो ऐ टाबरिया ल्यागे द्यै जिसी बांचल्यां।' वे अपनी दस वर्षीय पोती की ओर इसारा कर बताते हैं।
ताज्जुब तो यह है कि किताब के प्रति इतना मोह रखने वाले मनफूलाराम रेडियो व टीवी के बिलकुल भी शौकीन नहीं। उनका मानना है कि किताब में जो आंनद है वह अन्यत्र दुर्लभ है। स्थानीय साहित्यकारों के पास उन्हें किताबें सहज सुलभ हो जाती हैं और वे उन्हें पढ़ते ही लौटा देते हैं।
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''मेरी याद आणी में मैं रोज आं नै पढतां देख्या है। कई बारी पूछल्यां तो मुळक गे बोलै, बांचां हा भाई! एक चोखी किताब हाथ आई है आज तो। आं नै देख-देखगे बांचण नै तो म्हारो ई जी करै, पण फोरो कठै!"-भानीराम खाती (परलीका के उपसरपंच और मनफूलाराम के पड़ोसी)
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लेखकां-कवियां अर पोथ्यां री बात
-नीरज दईया
-नीरज दईया
२३ अप्रैल। विश्व पुस्तक अर कॉपीराइट दिवस। अंग्रेजी रा महान नाटककार सेक्सपीयर अर बीजा कई लेखकां-कवियां री जयंती का पुण्यतिथि। राजस्थानी में इण सागी दिन तो नीं पण अप्रैल महीनै में कई लेखकां-कवियां रो संजोग इतिहास में मिलै। आ तारीख लेखकां-कवियां नैं सिमरण रो एक ठावो दिन। यूनेस्को आगीवांण बण्यो अर भारत में बरस 1999 सूं ओ दिन मनाइजै। इण पेटै बरस 2003 में दिल्लीनै आखै संसार री पुस्तक-राजधानी हुवण रो रुतबो ई मिल्यो। अबकी बरस बेइरुट (लेबनान) नै ओ मान मिलर्यो है। बाल गंगाधर तिलक रो कैवणो हो कै जे टाळवीं पोथ्यां साथै नरक मिलै तो बठै रैवणो ई कबूलहै। पण ग्लोबल हुवती दुनिया में पोथ्यां सूं प्रीत फीकी पड़ती जाय रैयी है।
राजस्थानी खातर कोई बारलो कोनी सोचैला। आपां राजस्थानियां नै ई सोचणो है। आ आपा री खुद री बात है। जे भाषा अर साहित्य नै भूंलां तो याद कांईं राखांला? आ जिम्मेदारी तो आपां नै खुद ही उठावणी पड़ैला। नींतर आपांबिना पांख्यां रा पखेरू हुय जांवाला। फरज बणै आपां सगळां रो कै आपणी भाषा रै विगसाव खातर कीं काम करां।राजस्थानी समाज रा कई लिखणियां-पढणियां आज रै दिन सभा-गोष्ठियां करै। किताबां बेचणियां आज रै दिन गिरायकां रो आपरी सरधा सारू आव-आदर करै। इतिहास री खोड़ खु़डावणियां प्रकाशक-दुकानदार आज रै दिन पोथ्यां खरीदण वाळां नै गुलाब रै फूल रो निजराणो पेस करै। किणी पोथी या लेखक कवि माथै चरचा राखीजै। आं सगळां सूं महताऊ काम कर सकै है आपणी स्कूलां। पण आ अलख चेतावां आपां मिल परा। दसवीं सूं पैली तो स्कूलां में राजस्थानी कठैई कोनी। तीजी भाषा रै रूप में दूजै प्रांतां री भाषावां तो पढ़ाई जावै पण आपणी राजस्थानी नीं। हाँ, राजस्थान रै पाठ्यक्रम री खासियत राखण रै नांव माथै इक्की-दुक्की राजस्थानी रचनावां जरूर हिंदी री किताबां में राखीजै। देस रै हरेक प्रांत में आप-आप री भाषा पढ़ण रो नेम-कायदो। पण राजस्थान जिको राज रो स्थान है, उण में राजस्थानी रो कायदो कोनी मतलब राज में स्थान में कोनी! फगत राज-राज है। चुणाव रै टैम राज नै राजस्थानी रै स्थान री बात आपरो स्थान बणावण पेटै याद आवै।
ग्यारवीं-बारवीं में राजस्थानी विषय गिणी-चुणी स्कूलां में है। राजस्थानी व्याख्यातावां री पूरी भरती कोनी। कोलेजां रो ई ओ ई हाल। कोई सैण सवाल करै - राजस्थानी लियां सूं कांईं होसी? किणी विषय नै लियां सूं कांईं कोनी हुवै। जे आखरां रो भळको कीं राजस्थानी रो हुयग्यो तो जूण सफल हुय जासी। माटी रा जाया हां तो इण माटी रो कीं करज हळको हुय जासी। जे मिनख होय'र मिनखपणो नीं समझां तो कांईं बात हुवै? भाई साब, बस आ ई बात है कै जे राजस्थानी होय'र राजस्थानी नीं समझां तो कीं कोनी समझां। अर जे आपां राजस्थानी समझां तो कैवण-सुणण री दरकार ई कोनी कै पीड़ कठै अर कांईं!
हाल ओ है कै भाग-दोड़ री जिंदगी में आज बगत ई कठै है? घणा सारा काम-काज है अर ता पछै कीं बगत बचै तो घर-परिवार बिच्चै बैठां कद? सुख-दुख री करण नै ई टैम कोनी। आजकाळै तो बुद्धू-बगसै रो चसको ई जबरो। इत्ता सारा चैनल, सीरियल-फिलमां, बाप रे बाप! इंटरनेट रो जादू ई कम कोनी। टाबर वीडियो गेम में मस्त। किताबां सूं माथाफोड़ी कुण करै? स्टेट लाइब्रेरी में पाठकां री संख्यां दिनोदिन घटती जावै। राजस्थानी पढ़ण-लिखण रो अभ्यास कोनी। हेवा हुवां तो किंयां। ओ तो भलो हुवै भास्कर अखबार रो जिको कोलम चालू कर परो अंधारपख में दीवो चास राख्यो है। भाई साब, थे ई कमाल करो! माफ करो- राजस्थानी पोथी बांचणी आवै कोनी। फेर टैम ई कठै? अखबार ई नीठ देखां। पढ़णा हा जित्ता पढ़ लिया। अब पढ़ां कै काम करां?
तो सा रामजी भला दिन देवै। साव भोळा जीवां बिच्चै एकदम भोळो जीव हुवै- लेखक-कवि रो। आपरी दुनिया में लीन-मगन। लोगां री भाषा में बगनो हुयोडो जीव। राजस्थानी लेखक-कवि खुद लिखै, जिको खुद ई घर रा पइसा लगा परो पोथी छपवावै। दुरगत छपण-छपाण री कैवां तो खुद ई लाजां मरां। पीड़ कुठोड़ अर सुसरो जी बैद वाळी गत। खैर राज री अकादमी ई कदै-कदास कीं फूल सारू पांखड़ी निजर करै देवै। लेखक-कवि खुद री पोथी बांट-बांट'र मजा लेवै। कोई बिक जावै तो समझो लारलै जलम रो लैणियो-दैणियो है। कोपी राइट दिवस अर रोयल्टी री बात मजाक लागै। कई पोथ्यां जिकी भाग सूं बी. ए. अर एम.ए. में लागै। बां री फोटो कोपी बिकै। किताबां पूरी मिलै कोनी तो आधार अर संदर्भ पोथ्यां री बात तो घणी आगै आवै। चकवो-चकवी बात करै हा कै कुवै में भांग पड़गी दाळ में लूण बेसी कोनी लागै। लूण री ई दाळ बणाई है। अबी जे नीं जागां तो कद जागस्यां? छेकड़ में तेजसिंह जोधा री ओळ्यां सूं बात सांवटूं- कीं तो खायगो राज/ कीं लिहाज/ अर रह्यो-सह्यो खायगी चूंध अर खाज....... खम्माघणी।
ग्यारवीं-बारवीं में राजस्थानी विषय गिणी-चुणी स्कूलां में है। राजस्थानी व्याख्यातावां री पूरी भरती कोनी। कोलेजां रो ई ओ ई हाल। कोई सैण सवाल करै - राजस्थानी लियां सूं कांईं होसी? किणी विषय नै लियां सूं कांईं कोनी हुवै। जे आखरां रो भळको कीं राजस्थानी रो हुयग्यो तो जूण सफल हुय जासी। माटी रा जाया हां तो इण माटी रो कीं करज हळको हुय जासी। जे मिनख होय'र मिनखपणो नीं समझां तो कांईं बात हुवै? भाई साब, बस आ ई बात है कै जे राजस्थानी होय'र राजस्थानी नीं समझां तो कीं कोनी समझां। अर जे आपां राजस्थानी समझां तो कैवण-सुणण री दरकार ई कोनी कै पीड़ कठै अर कांईं!
हाल ओ है कै भाग-दोड़ री जिंदगी में आज बगत ई कठै है? घणा सारा काम-काज है अर ता पछै कीं बगत बचै तो घर-परिवार बिच्चै बैठां कद? सुख-दुख री करण नै ई टैम कोनी। आजकाळै तो बुद्धू-बगसै रो चसको ई जबरो। इत्ता सारा चैनल, सीरियल-फिलमां, बाप रे बाप! इंटरनेट रो जादू ई कम कोनी। टाबर वीडियो गेम में मस्त। किताबां सूं माथाफोड़ी कुण करै? स्टेट लाइब्रेरी में पाठकां री संख्यां दिनोदिन घटती जावै। राजस्थानी पढ़ण-लिखण रो अभ्यास कोनी। हेवा हुवां तो किंयां। ओ तो भलो हुवै भास्कर अखबार रो जिको कोलम चालू कर परो अंधारपख में दीवो चास राख्यो है। भाई साब, थे ई कमाल करो! माफ करो- राजस्थानी पोथी बांचणी आवै कोनी। फेर टैम ई कठै? अखबार ई नीठ देखां। पढ़णा हा जित्ता पढ़ लिया। अब पढ़ां कै काम करां?
तो सा रामजी भला दिन देवै। साव भोळा जीवां बिच्चै एकदम भोळो जीव हुवै- लेखक-कवि रो। आपरी दुनिया में लीन-मगन। लोगां री भाषा में बगनो हुयोडो जीव। राजस्थानी लेखक-कवि खुद लिखै, जिको खुद ई घर रा पइसा लगा परो पोथी छपवावै। दुरगत छपण-छपाण री कैवां तो खुद ई लाजां मरां। पीड़ कुठोड़ अर सुसरो जी बैद वाळी गत। खैर राज री अकादमी ई कदै-कदास कीं फूल सारू पांखड़ी निजर करै देवै। लेखक-कवि खुद री पोथी बांट-बांट'र मजा लेवै। कोई बिक जावै तो समझो लारलै जलम रो लैणियो-दैणियो है। कोपी राइट दिवस अर रोयल्टी री बात मजाक लागै। कई पोथ्यां जिकी भाग सूं बी. ए. अर एम.ए. में लागै। बां री फोटो कोपी बिकै। किताबां पूरी मिलै कोनी तो आधार अर संदर्भ पोथ्यां री बात तो घणी आगै आवै। चकवो-चकवी बात करै हा कै कुवै में भांग पड़गी दाळ में लूण बेसी कोनी लागै। लूण री ई दाळ बणाई है। अबी जे नीं जागां तो कद जागस्यां? छेकड़ में तेजसिंह जोधा री ओळ्यां सूं बात सांवटूं- कीं तो खायगो राज/ कीं लिहाज/ अर रह्यो-सह्यो खायगी चूंध अर खाज....... खम्माघणी।
आज रो औखांणो
जस आखर लिखै न जठै, वा धरती मर जाय।
संत-सती अर सूरमा, ऐ औझळ व्है जाय।।
हनुवंत सिंह देवड़ा रो ओ दूहो सूक्ति रूप में चलै।
जिण धरती पर जस रा आखर नीं लिखीजै, वा धरती मर जावै अर उण धरती रा संत, सती अर सूरमा औझळ व्है जावै।
जस आखर लिखै न जठै, वा धरती मर जाय।
संत-सती अर सूरमा, ऐ औझळ व्है जाय।।
हनुवंत सिंह देवड़ा रो ओ दूहो सूक्ति रूप में चलै।
जिण धरती पर जस रा आखर नीं लिखीजै, वा धरती मर जावै अर उण धरती रा संत, सती अर सूरमा औझळ व्है जावै।
प्रिय अजय अर मानिता सत्यनारांयणजी अर विनोदजी.
ReplyDeleteआज रौ औखाणौ देख’र मन घणौ राजी हुयौ.
आज पैली बार आप दूहा रौ मतळब राजस्थांनी मांय दियौ है, घणौ चोखौ लागौ सा.
जद हिंदी भासी कोई बात लिखै तौ वै उणरौ मतळब राजस्थांनी मांय नीं समझावता तौ आपां नै कांई जरुरत है. खड़ी बोली सूं जित्ती दुरी बणावांला अर मायड़भासा सूं प्रेम बधावांला उतरौ ईं आपणौ राजस्थांन प्रगती करैला.
उदाहरण वास्तै दखिण भारत रा अर दूजा नोन-हिंदी राज्य, आपणै हिंदी भासी राज्यां करता चार पांवड़ा (कदम) आगे इज है.
जै राजस्थांन ! जै राजस्थांनी !!
गुरूजी,
ReplyDeleteविश्व पुस्तक अर कॉपीराइट दिवस पर
लिख्यो आपरो लेख सान्तरो..!
-राजूराम बिजारनियाँ ''राज''
लूनकरनसर
9414449936
गुरूजी,
ReplyDeleteविश्व पुस्तक अर कॉपीराइट दिवस पर
लिख्यो आपरो लेख सान्तरो..!
-राजूराम बिजारनियाँ ''राज''
लूनकरनसर
9414449936
Bhai
ReplyDeleteSONI JI VINOD JI.
Tharo visev pustak dives per lekh vanciyo.gheno hi jhujaru ho.Manphula Ram Jat ro pustak prem aacho lagyo.Niraj deyia nai vach r sukhed lageyo.
Thanye dona nai mahro asirbad.
NARESH MEHAN