आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ७/४/२००९
सतीश छिम्पा रो जलम 25 नवम्बर, 1986 नै सूरतगढ़ में हुयो। राजस्थानी अर हिंदी रा चर्चित युवा कथाकार-कवि-संपादक। 'डांडी सूं अणजाण' कविता संग्रै। हिंदी रा प्रतिनिधि कहाणीकारां रो संग्रै 'कथा हस्ताक्षर' अर 'किरसा' पत्रिका रो संपादन।
आपणै अठै काम पोळावै तो कविता बोलण री लूंठी रीत। आं नै सिरलोका कैवै। सोंवतां, उठतां, बैठतां, खांवतां, पींवतां, रसोई करतां, चूल्हो चेतन करतां, दिसा-जंगळ जांवतां अर न्हावतां-धोंवतां। यानी हरेक क्रिया माथै सिरलोका बोलीजै। सिरलोका मंतरमान। साखी, बाणी या कौथ भी कैय सकां आं नै।
दिन री सरूआत सिरलोकै सूं। उठतां पाण बोलीजै-
इणी भांत पींपळ सींचतां बोलीजै- 'पींपळ देवता थे बड़ा, थां सूं बड़ा ना कोय। थां सींच्यां हर मिलै, दुख-दाळद ना होय।' 'पींपळ सींचण म्हैं गई, कुळ अपणै री लाज। पींपळ सींच्यां हर मिल्या, एक पंथ दो काज।' पछै देईजै सुरजी नै अरग। अरग देंवता बोलै- 'हाथ रतन सा, पग पदम, कर तुळछां री माळा। सुरजी नै अरग देंवतां, ठाकुरजी रखवाळा।' अर 'सूरज भगवान रो आसरो, भरियो पीअर, भरियो सासरो।'
आस्था पूरण रै पछै घर रो खोरसो। खोरसै में पण आस्था। झांझरकै चूल्हो पोतीजै। चूल्हो पोततां बोलै- 'चन्नण सो चूल्हो, कूं-कूं सी राख। चूल्हो पोतण आळी रो, बैकूंठां में बास।' चूल्हो चेतन करतां बोलै- 'चन्नण री लाकड़ी, चांदी रो चूल्हो। चूल्हो चेतावै पदमणी, दाळ-रोटी पोवणी।' घर री साफ-सफाई भी लाजमी। बुहारा-झाड़ी रो सिरलोको बोलीजै-
तारीख- ७/४/२००९
सतीश छिम्पा रो जलम 25 नवम्बर, 1986 नै सूरतगढ़ में हुयो। राजस्थानी अर हिंदी रा चर्चित युवा कथाकार-कवि-संपादक। 'डांडी सूं अणजाण' कविता संग्रै। हिंदी रा प्रतिनिधि कहाणीकारां रो संग्रै 'कथा हस्ताक्षर' अर 'किरसा' पत्रिका रो संपादन।
-सतीश छिम्पा
आपणै अठै काम पोळावै तो कविता बोलण री लूंठी रीत। आं नै सिरलोका कैवै। सोंवतां, उठतां, बैठतां, खांवतां, पींवतां, रसोई करतां, चूल्हो चेतन करतां, दिसा-जंगळ जांवतां अर न्हावतां-धोंवतां। यानी हरेक क्रिया माथै सिरलोका बोलीजै। सिरलोका मंतरमान। साखी, बाणी या कौथ भी कैय सकां आं नै।
दिन री सरूआत सिरलोकै सूं। उठतां पाण बोलीजै-
धरती माता थूं बड़ी, थां सूं बड़ो न कोय।
उठ संवारै पग धरां, बाळ न बांका होय।।
दिनूगै दिसा-जंगळ जांवतां बोलीजै-उठ संवारै पग धरां, बाळ न बांका होय।।
उत्तम धरती मध्यम काया,
उठो देव, जंगळ कूं आया।
नित रा कामां सूं निवट न्हावणा-धोवणा करीजै। न्हावतां सिरलोका बोलीजै- 'हर मिल्या सो जळ मिल्या, जळ मिल्या जळ का जामा पैरके, हर का मिंदर देख।' 'गंगा बड़ी गोदावरी, तीरथ बड़ो परियाग। सबसूं बड़ी अयोध्या, राम लियो अवतार।' 'जळ ताता जळ सिंवळा, जळ जागता देव। जळ घर आयां आवै, बिरमा-बिसणू-महेस।' 'गंगा गयो न गोमती, चढ्या गढ़ गिरनार। बिणजारै रै बैल ज्यूं, गया जमारो हार।' 'गंगा गोदावरी जटा संकरी, भागीरथ गिरवर सूं उतरी। भागीरथ ल्यायो भाव सूं, म्हैं न्हायो चाव सूं।'उठो देव, जंगळ कूं आया।
'गंगा रो गटोळियो, लोटो पाणी ढोळियो,
धोया कान अर होया सिनान।'
राजस्थान में रूंख-बिरछ री मैमां। खुद रै संपाड़ै बाद रूंखां री पूजा। तुळछी सींचतां बोलै- 'तुळछी माता बिड़लो सींचूं थारो, कर निस्तारो म्हारो, चटकै री चाल देई, पटकै री मौत देई, श्रीकरसण री खां'द देई, मीठा-मीठा गाछ देई।' अर तुळछां राणी, सींचां पाणी। पत्तै-पत्तै में गंगा राणी।' बड़लो सींचता बोलै-धोया कान अर होया सिनान।'
'बड़ सींचूं बड़ोली सींचूं, सींचूं बड़ की डाळी,
राम झरोखै बैठ कर सींचै सींचण वाळी।'
राम झरोखै बैठ कर सींचै सींचण वाळी।'
इणी भांत पींपळ सींचतां बोलीजै- 'पींपळ देवता थे बड़ा, थां सूं बड़ा ना कोय। थां सींच्यां हर मिलै, दुख-दाळद ना होय।' 'पींपळ सींचण म्हैं गई, कुळ अपणै री लाज। पींपळ सींच्यां हर मिल्या, एक पंथ दो काज।' पछै देईजै सुरजी नै अरग। अरग देंवता बोलै- 'हाथ रतन सा, पग पदम, कर तुळछां री माळा। सुरजी नै अरग देंवतां, ठाकुरजी रखवाळा।' अर 'सूरज भगवान रो आसरो, भरियो पीअर, भरियो सासरो।'
आस्था पूरण रै पछै घर रो खोरसो। खोरसै में पण आस्था। झांझरकै चूल्हो पोतीजै। चूल्हो पोततां बोलै- 'चन्नण सो चूल्हो, कूं-कूं सी राख। चूल्हो पोतण आळी रो, बैकूंठां में बास।' चूल्हो चेतन करतां बोलै- 'चन्नण री लाकड़ी, चांदी रो चूल्हो। चूल्हो चेतावै पदमणी, दाळ-रोटी पोवणी।' घर री साफ-सफाई भी लाजमी। बुहारा-झाड़ी रो सिरलोको बोलीजै-
'उठो राणी, काढो बुहारी,
आंगण आया, किरसन मुरारी।'
चरखै माथै सूत कातै जद बोलै- 'करम कातूं, सुपणा कातूं, कातूं राम रो नाम। ओड़ी में आडा आसी, भली करैला राम।' खेत खड़तां बोलीजै- 'नट री बेटी बांस चढैली, पांथ रै लारै देखै हाळी।' 'जाट री बेटी ऊंखळ बैठी, मूसळ बावै, पांथ में करसो तेजो गावै।' थक्या-हार्या पोढण ढूकै। पोढतां भी सिरलोको बोलै। यानी करम चूकै तो चूकै सिरलोको। पोढतां बोलै-आंगण आया, किरसन मुरारी।'
'धरती करिया बिछावणा, अम्बर करिया गलेफ।
पोढो राजा भरतरी, चोकी देवै अलेख।'
राजस्थानी परापर री रीतां निरवाळी। परापर पण चालै भाषा लारै। भाषा खिंवै तो परापर खिंवै। भाषा निंवै-निवड़ै तो परापर निवड़ै। भाषा परापर री बेतरणी। भाषा बिना पार नीं लागै। भाषा परापर री सांसा। आज जणां आपणी मायड़भाषा ई मान नै तरसै तो परापर में सांसां कुण सांचरै!पोढो राजा भरतरी, चोकी देवै अलेख।'
आज रो औखांणो
मां, घोड़ा री पूंछ पकड़ूं, कांईं दे'सी कै घोड़ो मतै ई दे दे'सी।
माँ, घोड़े की पूंछ पकड़ूं या दोगी कि घोड़ा खुद ही दे देगा।
गलत काम का अंजाम हमेशा बुरा होता है।
मां, घोड़ा री पूंछ पकड़ूं, कांईं दे'सी कै घोड़ो मतै ई दे दे'सी।
माँ, घोड़े की पूंछ पकड़ूं या दोगी कि घोड़ा खुद ही दे देगा।
गलत काम का अंजाम हमेशा बुरा होता है।
jai rajasthani
ReplyDeleteAaj bhai Stish ro lekh ghano chokho lagyo a sirlok ghara me budha badhera su sunya karta ha pan aaj ek jagya banchne ro moko milyo ghana ghana rang bhai Satish ne
-Santosh Pareek,Mumbai
सतिश, बांच’र घणौ चोखौ लागौ. आज रै जुग मांय थां जैड़ा नूंवा मोट्यार लिखारां री खास जरुरत है.
ReplyDeleteजै राजस्थांन ! जै राजस्थांनी
Bhai,
ReplyDeletesatish,
Tharo ghenho hi puthra bol vanchiya,mundo segelo mitho ho giyo.Thanye e mithi batta ri khatir dher som asirbad.mahri bhasha mai ghena hi mitha geet or kavita hai jiki bili jave dinugye uthtye hi.
Mhanye gheno hi payro lagyeo hai tharo o mitho so lekh.
NARESH MEHAN