Tuesday, May 26, 2009

२७- सीस पड़ै पण पाघ नहीं

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२७//२००९
महाराणा प्रताप जयंती पर खास












सीस पड़ै पण पाघ नहीं

-सुलतानराम गोविंदसर

माता जयवन्ता बाई जिसी कूख सगळी मातावां नै नीं मिल्या करै। जे मिलती तो घर-घर राणाप्रताप होंवता। 27 मई, 1540 में महाराणा उदयसिंह रै घरां जळम्यो ओ टाबर मेवाड़ रै गिगनमंडळ में सूरज री भांत एकलो तप्यो अर चमक्यो। मुगल बादसाह अकबर रो तेज इण तेज नै नीं बेध सक्यो। अकबर रा दरबारी कवि प्रथ्वीराज राठौड़ जका पीथळ नांव सूं भी जाणीजै, लिख्यो-
माई, ड़ा पूत जण, जेड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै सांप।।
प्रताप कदेई दिल्ली दरबार में अकबर री हाजरी नीं भरी। उणांरो तरक हो कै मेवाड़ दिल्ली सूं कमती नीं। इणनै अधीन कुण कर सकै। आजादी रो ओ परवानो प्रताप मेवाड़ रो, आखै राजस्थान रो, आखै हिन्दुस्तान रो अणमोल मोती हो। कवि दुरसा आढ़ा लिखै-
अकबर पथर अनेक, कै भूपत भेळा किया।
हाथ न लागो हेक, पारस राण प्रतापसी।।
राणाप्रताप रो राजतिलक गोगुन्दा में 28 फरवरी, 1572 नै हुयो। सिंहासण पर बैठतांई दिल्ली री चालां सरू होगी। अकबर संधि करण अर अधीनता मानण सारू जलाल खां, मानसिंह, राजा भगवन्तदास अर टोडरमल नै भेज्या, पण प्रताप नीं डिग्यो। छेकड़ अकबर राजा मानसिंह नै सेनापति बणा'र मेवाड़ पर चढ़ाई कर दीनी। हळदी घाटी रो जुद्ध होयो। 18 जून, 1576 सूं सरू होवण आळै जुद्ध में मेवाड़ अकबर रै कब्जै में आ'ग्यो पण प्रताप हार नीं मानी। मेवाड़ रो महल तज नैं जंगळां में भटकणो मंजूर। प्रताप टूट सकै पण झुक नीं सकै। फेरूं आपरा जतन कीना। मांडल अर चितौड़ नै छोड़'र सगळा किला आपरै हक में कर लीना। चावण्ड नै आपरी नूंवी राजधानी बणाई।
चितौड़ सूं प्रताप रो घणो हेत। उणां नैं ओ दुखड़ो हरमेस बण्यो रह्यो कै वे आपरी मायड़भौम चितौड़ नै दुसमियां सूं मुगत नीं करा सक्या। चितौड़ री माटी नै फेरूं निंवण करण री आस पूरी नीं हो सकी। इण अधूरी आस रै साथै ई 19 जनवरी, 1597 में राणाप्रताप देवलोक व्हेग्या। मिनख चावै कितरो ई लूंठो होवै, बीखो सगळां में पड़ै। रणबांकुरै प्रताप रो मन भी एकर दुबळो पड़ग्यो, पण वां रा मित्र कवि प्रथ्वीराज राठौड़ उणां में फेरूं वीरता रो भाव भर दियो अर मेवाड़ रो ओ शेर पाछो दहाड़ मारण लागग्यो।
कवि कन्हैयालाल सेठिया आपरी कविता 'पातळ अर पीथळ' में आं भावां नै सजीव कर दीना-
हूं रजपूतण रो जायो हूं, रजपूती करज चुकाऊंला।
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं, दिल्ली रो मान झुकाऊंला।।
राणा रै साथै राणा झाला अर भामाशाह रो नांव भी इतिहास में अमर है। राणा प्रताप जद रणभोम में घायल होग्या तो राणा झाला उणांरो छत्र आपरै मस्तक पर धारण कर लीनो। राणा प्रताप री जान तो बचगी पण झालाजी आपरै इण बळिदान सूं इतिहास में अमर हुया। हळदी घाटी रै जुद्ध रै पछै जद राणाजी रो खजानो खाली होग्यो तो भामाशाह आपरो सो कीं राणाजी नै अर्पित कर दीनो। त्याग, शौर्य, देशभक्ति अर आजादी री आ मिसाल फगत राणाप्रताप अर मेवाड़ में ही मिलै। क्यूं नां जयवन्ता बाई जिसी कूख हिन्दुस्तान री सगळी मातावां नै मिलै। वां री कीरत में कवियां वगत-वगत पर सांतरा छंद कैया। कवि केसरीसिंह बारहठ महाराणा फतहसिंह नै चेतावणी रा चूंगट्यां में भी लिख्यो-
पग-पग भम्या पहाड़, धरा छांड राख्यो धरम।
महाराणा'र मेवाड़, हिरदै बसिया हिंद रै।।

राणा प्रताप जिकी भाषा में हुंकार भरता। वा भाषा भी आज मान सारू बिलखै है। आओ, राणा प्रताप री मायड़भाषा राजस्थानी नै सांचो मान दिरावां।

Monday, May 25, 2009

२७ मई,- पातळ अर पीथळ

२७ मई
महाराणा प्रताप जयंती पर खास

पातळ अर पीथळ

-कन्हैयालाल सेठिया


महाराणा प्रताप

राजस्थानी रा सिरै नांव कवि अर मनीषी कन्हैयालाल सेठिया री 'पातळ अर पीथळ' नामी अर चावी कविता है। आ कविता १९४२ में लिखीजी। उण वगत अंग्रेजां रो राज हो अर गांधीजी री पुकार 'करो या मरो' रै साथै देस रा सगळा नेतावां नै जेळ में ठूंस दिया हा अर जनता में घणी उदासी अर निरासा फैलगी ही। उण संदर्भ नै ध्यान में राख'र देस री जनता नै चेतावण सारू सेठिया आजादी रै रखवाळै महाराणा प्रताप रै इण इतियास कथा-प्रसंग नै लेय'र आ कविता लिखी। आ कविता इत्ती चावी बणी कै राजस्थानी रा लूंठा विद्वान प्रो. नरोत्तमदास स्वामी इणरी दस हजार प्रतियां छपवा'र आखै राजपूतानै री रियासतां में भिजवाई। रावत सारस्वत इण कविता रो अंग्रेजी अनुवाद ही करियो। 'पातळ-पीथळ' राजस्थानी भोम रै स्वाभिमान, गौरव, अठै री मान-सम्मान अर वीरता री भावना नै सांगोपांग ढंग सूं प्रगटै। इण ओजस्वी रचना में आपणी संस्क्रति री मरजादा अर माठ-मरोड़ री भावना छिप्योड़ी है। आ रचना राजस्थानी री घणी चावी अर अमर रचना है।

पातळ'र पीथळ

अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैरयाँ री खात खिंडावण में,
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै'लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाळ्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड़्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो' सपनूं सो सांचो,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरयाँ रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही, बोल्यो अकबर,

म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवैलो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो,

म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवैलो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवैलो,

म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो, आ बात कठै तक गिणां सही?

पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई,

हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?

धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां में तरवार थकां
कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरयाँ री
छात्यां में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्यां ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूं अथक लड़ूंला अकबर स्यूं
उजड़्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।

पातळ=प्रताप। पीथळ=कवि पृथ्वीराज राठौड़ जका महाराणा प्रताप रा साथी अर अकबर रै दरबार रा नवरतनां में सूं एक हा। अमरयो=महाराणा प्रताप रो बेटो अमरसिंह। चेतकड़ो=राणा प्रताप रो घोड़ो। बाजोट=जीमण सारू बणी काठ री चौकी। आडावळ=अरावली। पण=प्रण। कूकर=कुत्तो। कड़खो=विजयगान।

Friday, May 22, 2009

२३ मतीरा -कन्हैयालाल सेठिया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
-२३//२००९












मतीरा


-कन्हैयालाल सेठिया

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।

सोनै जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पन्ना जड़िया,
चुरा
सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
कुण इमरत रा घड़िया?


आं अणमोलां आगै लुकग्या
लाजां
मरता हीरा।

मरू
मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।


कामधेणु रा थण ही धरती
आं में दूया जाणै,
कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।*

लीलो कापो गिरी गुलाबी
इंद्र सा लीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।


कुचर कुचर नै खपरी पीवो
गंगाजळ सो पांणी,
तिस तो कांईं चीज, भूख नै
ईं री घूंट भजाणी,

हरि-रस हूंतो फीको,
ओ रस,
जे पी लेती मीरां!
मरू
मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा
गटक मतीरा।

*कलप वृक्ष के फल पर स्वर्ग तो बेवजह ही गर्व करता है, इससे कहीं बेहतर फल तो मतीरा है जो धोरों में पैदा होता है।

आज रो औखांणो

मतीरा तो मौसम रा ई मीठा लागै।
अवसर के अनुकूल ही बात सुहानी लगती है।


Thursday, May 21, 2009

२२ बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा

आपणी भाषा-आपणी बात तारीख-२२//२००९

बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा


विनोद कुमार सहू रो जलम जुलाई 1984 में नोहर तहसील रै उज्जळवास गांव मांय हुयो। आजकाल 4 एमएसआर सरदारगढ़िया मांय अध्यापक। राजस्थानी में लिखण-पढ़ण रो डाडो कोड। पत्र-पत्रिकावां मांय रचनावां छपती रैवै।

-विनोद कुमार सहू
कानाबाती-9460191607

पणी धरती में मोत्यां-रतनां री कमी नीं। अठै कण-कण में सोनै अर सुगंध रो वास। इण धरती पर जद सावण री काळी बादळी गरजै-बरसै तो हरियाळी मुळकै। सावण री फुहारां साथै ई खेतां में बीजारो पड़ज्यै। थोड़ै दिनां में ई खेतां में गुंवार, बाजरी, मूंग, मोठां रै साथै ई काकड़िया-मतीरां री रळक पड़ै। आ हराळ देख किरसाण रो काळजो ठण्डो होज्यै। जीवण में सुख-स्यांति-सी बापरज्यै।
मतीरो धोरां रो अमरफळ। दिनूगै पैलां ईं री लाल-लाल गिरी रो भोग लगावां तो देवतावां रै मूंडै ई लाळ पड़ण लागै। कई ग्यानी मिनख मतीरै रो रंग देख'र ई बीं रो हाल बताद्यै कै बो काचो है'क पाको। बडै मतीरै नै फोड़'र खपरिया बणाइज्यै जिकै नै चीर'र सिफळिया बणावै। छोटा टाबर सिफळिया खावै तो बडोड़ा खपरिया सूंतै। कैबा चालै-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा
बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा।।
आपणै अठै एक कैबा और है कै गादड़ै री उंतावळ सूं मतीरो नीं पाकै। गादड़ अर मतीरै रो जूनो नातो। कई भोळा मिनख जिका मतीरै रो मोल नीं पिछाणै, बै ईं नै गादड़ रो खाजो कैवै। पण स्याणा मिनख मतीरै नै चोखा दिनां ताईं राखण सारू तू़डी में दबा'र राखै। जद दीवाळी रो त्यूंहार आवै, इण मतीरै री गिरी निकाळ'र इण में बेजका कर देवै अर रात रै टेम टाबर इण में दीवो मेल'र गळी-गळी अर घर-घर फिरै। दीवै में तेल घलावै। दुआ देवै- घालो तेल, बधै थारी बेल। रात नै ओ मतीरो बिजळी सूं जगमगाट करतो हवामहल-सो लागै। पण आजकाल इस्या नजारा देखण नै कम ई मिलै। मतीरो बारामासी राखीजै। होळी मंगळावै जद ईं नै होळी री झळ मांखर काढै। मानता है कै इयां कर्यां आगलै साल जमानो चोखो होवै।
जको मतीरो खेत में बिना बीज्यां ई पणपै, बीं नै अड़क मतीरो कैवै। जिकै नै अड़क मतीरो खाण री बाण पड़ज्यै बीं रो तो राम ई रुखाळो। कैबा चालै, हिली-हिली गादड़ी अड़क मतीरा खाय। मतीरो इतणो मीठो अर स्यान री निशानी हुवै कै ईं नै लेय'र राजघराणां मांय भी राड़ छिड़गी। बीकानेर अर नागौर राजघराणै बीच 1544 ई. में एक मतीरै नै लेय'र तलवारां खिंचीजगी, इस्या हवाला मिलै।
मतीरै रै साथै-साथै इण रा नाती काकड़िया अर टींडसियां री लंगाटेर होवै। मतीरै रै काचै फळ नै लोइयो कैवै अर ईं री सबजी घणी सवाद बणै। मतीरै रा बीज भूंद-भूंद'र खाइज्यै। गिरी मिनख खावै तो खुपरी पसुवां रो सांतरो खाजो। आपणी ईं धोरां री धरती में और भी इसी भोत-सी चीजां दबियोड़ी है जकी नै आपां जबान नीं दे सकां। आं रै मोल नै सबदां में बांधणो ओखो काम। मतीरै रै मोल रो अंदाजो इण बात सूं लगायो जा सकै कै जद कोई सांतरै मिनख का कोई सांतरी चीज रो अचाणचक ठाह पड़ै तो कैइज्यै, 'भाई, ओ तो बूरे़डो मतीरो लाधग्यो।'

आज रो औखांणो
मतीरो भांणा में आयां पछै सासरा में मती-रो।
मतीरा थाल में आ जाय तो फिर ससुराल में मत रहो।
कहावत है कि जब दामाद के थाल में मतीरा आ जाय तो उसे वहां नहीं रहना चाहिए। सामंती शासन में जिस व्यक्ति को सेवामुक्त करना होता उसे मतीरा थमा दिया जाता। वह तुरंत सोच लेता कि उसे नौकरी से निकालने का आदेश मिल गया है।


Wednesday, May 20, 2009

२१ नातां-बातां री रमझोळ

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २१//२००९

नातां-बातां री रमझोळ

-ओम पुरोहित कागद

नातां-रिस्तां री रमझोळ फगत राजस्थानी भाषा में। रिस्तां री झणकार। झणकार में टणका। कदैई मीठा। कदैई चरपरा। पण नाता-रिस्ता सरजीवण राखण सारू मैताऊ। सुणावणियो सुणाय'र राजी। सुणणियो सुण'र।
मा री ठौड़ जग में सैं सूं ऊंची। पण मासी कम नीं। मा सी ई होवै मासी। मासी सागै भाणजा रमै। हाँसी करै। खारी कैवै। पण मासी नै भावै। एक भाणियो मासी नै कैवै- मासी ओ मासी, तन्नै काळा कुत्ता खासी, तन्नै भाणजो छु़डासी। मासी मुळकै। भाणियै रै लारै भाजै। मासी ने़डी आवै जद भाणियो आपरा सबद पाछा लेवै- मरो मा, जीवो मासी। दूध नीं तो, छाछ पासी।।
सासू-बू रा झगड़ा तो जग जाहर। फळ रो पाछो फूल बण सकै पण सासू-बू में बणनी दोरी। सासू नै बू बुरी लागै तो बू नै सासू। इणी खातर कैईजै- 'सासू तो माटी री बुरी।' आ बी कैईजै कै हाथी पाळणो सोरो, बू परोटणी दोरी। बू माथै सासू रा टणका न्यारा ई। माड़ो काम कुण करियो। सासू बोलै, कूघरां री जाई... छाटियै री बू। कोई गळत काम होंवता ई मैणो त्यार। बहुवां कनू चोर मरावां, चोर बहू रा भाई। पण आ भी कैबा कै सासू बिना के सासरो, नदी बिना के नीर। बैन सारू कैईजै- बैन हांती री धिराणी है, पांती री नीं। मामा रा कोड करतो भाणियो बोलै। मा सूं मामो चोखो। मा में एक पण मामा में दो-दो भायां सारू औखांणो है- रैवणो भायां में, हुवो चावै बैर ई। बैठणो छाया में, हुवो चावै कैर ई। भाई हुवै तो बावड़ै, गया बेगाना छड्ड। भाई बेटी ई नीं परणीजै, बाकी कीं नीं छोडै। भाई मर्यै रो धोखो नीं, भौजाई रो नखरो तो भंग्यो!
राजस्थानी संस्कृति में जुवाई जम बरोबर मानै। लाडां-कोडां सूं पाळ्योड़ी छोरी नै उणी भांत ले ज्यावै, जिण भांत जम सरीर सूं आदमी नै। एक ओखाणो है- सिंघ नीं देख्यो, तो देख बिलाई। जम नीं देख्यो, तो देख जंवाई।। ढुकाव री घड़ी गीत गाइजै। आं गीतां में मसखरी होवै। बात-बात में चूंठिया बोडीजै-
सात सुपारी लाडा सिंघाड़ां रो सटको।
ओछा ल्यायो जानी, लाडी क्यांरो करसी गटको।।
राजस्थानी सगै नै लडाइजै-कोडाईजै। पण जान में ढूक्योड़ा सगां ने गीतां में गाळ्यां काढीजै। ऐ कोडायती गाळ्यां बजै। सगा सुण-सुण राजी हुवै। उथळा देवै। सग्यां गावै- सगो जी री लीला न्यारी, ऐ तो बोल्यां घणी बणावै रै, ऐ तो सेखी घणी बतावै रै आं सूं राम बचावै रै। दूजी गावै- पांच बरस रा सगो जी, बीसां ढळ गई सगी जी। सग्यां भेळी गावै-थे सगा जी म्हारा आया, मोटा म्हारा भाग, थे सगा जी थारै माथै धरल्यो पाग, लाजां मरगी ओ थारो उगाड़ो माथो, नीं तो थारै टोपी आळो खीलो। इण गीत में सगा उथळो देवै। वाह! वाह, सगी जी वाह!! सग्यां पाछी फिरै- बोल्यो रै बोल्यो, गाळ्यां रै कारण बोल्यो, कैण कैयो सो बोल्यो, माळजादी रा। पै'र सगी जी रो घाघरो, सग्यां में आटो पीसै रै। सगा बोलै-हूं। सग्यां घिरै-हूं रे हूं, थारै घाघरियै में जूं, थारी मा रो मांटी हूं, कैण कैयो सो बोल्यो, माळजादी रा।
इणी भांत मोकळा ई चूंठियां, गाळ्यां, आड्यां, बंध अर आण गाईजै। कैईजै। बकारीजै। आं सगळां में अपार रस। रिस्ता नै ने़डा करण रो सामरथ। घर-आंगणै में बी औखांणा कैईजै। बाबो मर्यो गीगली जाई, रैया तीन गा तीन। दादी रो चू़डो फूट्यो सुवासण्यां नै सीरो भावै। बेटी जाई रै सुब राज, उण रा होया नीचा हाथ। काको-काकी लारै-बाकी म्हारै लारै। टाबरिया ई घर बसावै, तो बाबो बूढळी क्यूं ल्यावै। काको ल्यायो काकड़ी, काकी गाया गीत, काकै मारी लात गी, काकी गावै गीत। लुगाई रो न्हावणो-मरद रो खावणो। तिरिया रै दो आसरा-का पीहर का सासरा। तिरिया तेरै-नर अठारै। लुगाई भली लुकाई। भलाई रांड कुत्तां री बहू। दादी परणी तो दोहिती नै फेरा भावै। जच्चा जिस्या बच्चा। बेटी अर बळद जूवौ नीं न्हाखै।

Tuesday, May 19, 2009

२० मटकी महाजन की

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २०//२००९

मटकी महाजन की



मुकेश रंगा रो जलम 23 जुलाई, 1983 नै बीकानेर जिलै रै महाजन कस्बै में हुयो। आजकाल महाजन सूं दैनिक भास्कर सारू समाचार संकलन करै। राजस्थानी मोट्यार परिषद् रा जुझारू कार्यकर्ता।



-मुकेश रंगा
कानाबाती- 9928585425


जेठ महीनै सुरजी करड़ा तेवर दिखावै। तावड़ो घणो आकरो। लूवां बाजै। परसेवा सूं हब्बाडोळ जातरी रा कंठ सूखै। होठां फेफ्यां आ ज्यावै। पग आगीनै कोनी धरीजै। इण हालत में जे खुदोखुद भगवान सामी आय'र इंछा पूछै तो जातरी महाजन री मटकी रै ठण्डा पाणी रो लोटो ही मांगै।
महाजन बीकानेर राज्य रो अधराजियो। इतिहास री दीठ सूं जूनो गांव। राष्ट्रीय राजमारग संख्या 15 माथै बीकानेर सूं 110 किलोमीटर अळगो बसियोड़ो। अठै री मटकी जग में नांमी। जिण री तासीर घणी ठण्डी। पाणी ठण्डो टीप। सुवाद ई सांतरो। सांचाणी इमरत। इण रो कारण अठै री माटी। कूंभांर माटी नै रळावै। पगां सूं खूंधै। चाक माथै चढावै। हाथ सूं थापै। न्हेई में पकावै। रंगीळ मांडणा मांडै। इण ढाळै आपरो कड़ूंबो पाळै अर दुनियां नै ठण्डो पाणी पावण रो जस लूटै। ऐड़ी मटकी रो पाणी पीयां कल्याणसिंह राजावत रो ओ दूहो मतै ई चेतै आवै-
इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम।
गटक-गटक पी ले मना, होज्या ब्रह्मा समान।।
कोई इणनै गरीब रो फ्रिज कैवै तो कोई देसी फ्रिज। फ्रिज खरीदणो हरेक रै बूतै री बात नीं, पण महाजन री मटकी फ्रिज री भोळ भानै। इणरो पाणी फ्रिज करतां नीरागो भळै। आखै संभाग में लोग गरमी सरू हुंवता ई महाजन री मटकी बपरावै। रेलगाड़ी का बस सूं महाजन हूय'र जांवता जातरी अठै री मटकी ले जावणी कोनी भूलै। भाई-बेलियां अर सगा-परसंगियां नै तो अठै रा लोग खुदोखुद पुगा देवै।
मटकी रा न्यारा निरवाळा रूप। जद कूंभार रा कामणगारा हाथ चाक माथै चालै तो गांव गुवाड़ री जरूरत मुजब भांत-भंतीली रचनावां रचीजै। इण नै आंपा घड़ो, हांडकी, मंगलियो, लोटड़ी, झारी, मटकी, कुलड़ियो, झावलियो, परात, बिलोणो, चाडो, ढक्कणी, आद रूपां में ओळखां अर घर-घर नित बरतां। कूंभांर रो समूचो परवार मटकी बणावणै में लाग्यो रैवै। कोई माटी कूटै तो कोई न्हैई खातर बासते रो बन्दोबस्त करै। कोई मटकी पकावै तो कोई मांडणा मांडै। इण ढाळै मटकी री रचना हुवै।
कल्याणसिंह राजावत रो ई एक और दूहो बांचो सा!
घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखांण।
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पांण।।

आज रो औखांणो

घड़ै कूंभार, बरतै संसार।
घड़े कुम्हार, बरते संसार।


कलाकृति का सृष्टा तो एक ही होता है, पर उसका आनन्द लेने वाले बहुतेरे।

Monday, May 18, 2009

१९ आधी रोटी काख में सुसियो लिटै राख में

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १९//२००९

आधी रोटी काख में

सुसियो लिटै राख में

-डॉ. मंगत बादल

'आडी' यानी तिरछी या टे़ढी! मतलब जकी सीधी नीं हुवै। आडी अर पहेली नै बिंया तो पर्यायवाची मानै पण इण में फरक। पहेली रो उत्तर जठै एक सबद में हुवै 'आडी', एक छोटी कविता (RHYNE) जिण नै टाबर एक-दो बार सुणतां ईं याद कर लेवै। एक तरां री समस्या पूर्ति रो ई बीजो रूप। लारली सदी रै पांचवै-छठै दसक में जद टेलीविजन रो प्रवेश गांवां में कोनी हो, रात नै टाबर सोणै सूं पैली पहेली पूछता मतलब आडी आडता। घर में जितरा टाबर होंवता बै आपरी दो टोळियां बणा लेंवता अर पछै आडी आडण रो कार्यक्रम सरू! जको दळ जवाब नीं दे सकतो बो हार ज्यांवतो।
समाज में इण आडियां रो चलण परापरी सूं चालतो आयो। आज सोच'र हैरानी हुवै कै जद गांवां में आज री भांत स्कूल कोनी होंवता। गांव में कोई एक-दो मिनख मुस्कल सूं एड़ा मिलता जिकां नै आखर-ग्यान होंवतो, पण इण रै बावजूद व्यावहारिक शिक्षा री कमी कोनी ही। टाबरां रै मनोविग्यानिक विकास में आं आडियां अर पहेलियां रो पूरो योगदान होंवतो। हिसाब-किताब रा चालू गुर अर नीति री बातां रो ग्यान भी आडियां में मिलै। अचूम्भै री बात है ड़ो पाठ्यक्रम कुण त्यार करतो?
टाबर री तर्क बुधी रो विकास करणै तांईं अर कविता मुजब बां में जिज्ञासा जगावणै रा एड़ा छोटा-छोटा प्रयास लोक में चालता ई रैंवता। आडी में भी एक छोटी-सी कविता हुवै। एक आडी है- सुसियै नै बाळी पै'रावणो-
खड़बच पींडी, खड़बच बाण,
रै सुसिया करां निनाण,
करतां-करतां आई दीवाळी,
रे सुसिया पै'रां बाळी।
कुण तो इण कविता रो रचण वाळो अर इण रो उद्देश्य कांईं? तो जबाब है कै ऐड़ी बेशुमार कवितावां (RHYNE) लोक ई रची अर उद्देश्य भी टाबरां नै शिक्षा देणो। टाबर तुकबंदी करणो किण भांत सीखता, आं छोटी-छोटी कवितावां सूं ठा पड़ै-
भूरी भैंस नै पढ़ाद्यो-

आधी रोटी पर कढ़ी।
भूरी भैंस पढ़ी।

सुसियै नै राख में लिटाद्यो-

आधी रोटी काख में।
सुसियो लिटै राख में।

टाबर सैं सूं पैली मायड़-भाषा सीखै अर आप रै आळै-दुआळै रै वातावरण नै देख्यां-समझ्यां बीं री समझ भी बधै। आं छोटी-छोटी कवितावां में रोटी, भैंस, कढ़ी अर सुसियो बीं रा देखे़डा हुवै। इण कारण बीं रै स्मृति-पटळ पर ऐ बातां सदां-सदां खातर मंड जावै। अब म्हारो ओ बताणो कांईं मायनो राखै कै मायड़-भाषा में शिक्षा देणो टाबर तांईं कितरों फायदेमंद हुवै। घर में राजस्थानी, समाज में हिंदी अर स्कूल में जाय'र जद 'एक्स' फोर 'जायलोफोन', 'वाई' फोर 'याक' अर 'जैड' फोर 'जेबरा' भणै तो बो मासूम रट तो लेवै, पण इण मुजब इतरो ई जाणै कै इणां री तस्वीर बीं रै कायदै में मंडेडी हुवै।
आज जै़डी बातां प्रतियोगितात्मक परीक्षावां में पूछी जावै, बै भी इण आडियां अर पहेलियां में पूछी जांवती। एक पहेली है-
थांरै साळै रो साळो
बीं रो डावो कान काळो
बीं रै भाणजै री भूवा
थां रै कांई लागी?
जवाब-घरआळी या साळी।
इणी' भांत किणी ऊंट रै सवार सूं पूछ्यो-
अरे! ऊंट रा सवार,
थांरै सागै जिकी नार
थां री बै' है या बेटी?
बै' या बेटी नै ऊंट रै आगलै आसण बिठांवता। पूछणियै देख' कैयो। पण जबाब मिल्यो-
ना म्हांरी बै', ना बेटी,
इण री मां अर म्हारी मां,
है दोन्यूं मां-बेटी।
थे कोई पेच भिड़ाओ!
म्हांरै लागै कांईं? सोच' बताओ!
जवाब-भाणजी।
लोक इण भांत शिक्षा दे देंवतो। कैयो है- कान कटै बो कै़डो सोनो? विद्या नै भी मिनख रो सिणगार मानै, पण जद म्हूं छोटै-छोटै नौनिहालां नै भारी-भरकम बस्तो चक्यां देखूं तो सोचूं- कद हुवैलो म्हांरी शिक्षा में सुधार?

Sunday, May 17, 2009

१८ बळ्यो बाळण जोगो तेरो टोपो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १८//२००९

बळ्यो बाळण जोगो तेरो टोपो

-बैजनाथ पंवार

म्हारा एक साथी गोरधनजी इंदोरिया, सिद्धमुख वाळां बतायो कै जद बै कोई पैली-दूसरी कलास में पढ्या करता, तद बांनै घर वाळां एक-दो पीसा रोजीना भूंगड़ा-मूंगफळी सारू दिया करता। बां दिनां एक रुपियै में चौसठ पीसा हुया करता। भूंगड़ा अर मूंगफळी एक रुपियै री सोळा सेर आंवती। बै स्कूल रै कनै ईज दूकान में आधी छुट्टी में एक पीसै री कदैई मूंगफळी अर कदैई भूंगड़ा ले लिया करता।
एक दिन बै एक पीसै री मूंगफळी लिरावण दूकान में गया। दूकान पर घणी भीड़ ही। जद गोरधनजी दूकानदार सूं एक पीसै री मूंगफळी मांगी तो दूकानदार दूजै ग्राहकां नैं सलटांवतो बोल्यो, 'जा! दूकान रै आगलै खण में बोरी भरी पड़ी है। तूं जा'र ले आ।'
गोरधनजी म्हनैं बतायो कै मूंगफळ्यां सूं भरियोड़ी बोरी देख'र म्हारो मन बस में नीं रैयो। म्हैं म्हारी टोपी में जित्ती मूंगफळी समाई, भर'र टोपी ओढली। बां बरसां में कोई पढेसरी नागै सिर कोनीं रैंवतो। आपरी ईमानदारी दिखाणै सारू एक पीसै री जित्ती मूंगफळी आंवती धोबै में भर'र दूकान सूं बारै आंवतो दूकानदार नैं धोबो दिखांवतो बोल्यो, 'ताऊ! इत्ती मूंगफळी लायो हूं।'
दूकानदार बोल्यो, 'जा लेयज्या, बळ्यो बाळण जोगो तेरो टोपो!' कै'र मजाक में उण होळै-सी म्हारी टोपी रै चपत लगाई। चपत लगातां ईज म्हारी टोपी अर मूंगफळ्यां दूकान आगै खिंडगी। म्हैं डरतो म्हारै धोबै वाळी मूंगफळी भी बठैई गेर'र घर कानीं तैतीसा मनाया। ना टोपी उठाई अर ना मूंगफळी। दूकान पर ऊभा लोगड़ा कई ताळ दांत काढता रैया।

आज रो औखांणो

टाबरपणै सिख्योड़ो लोह री लकीर।

बालपन के संस्कार बड़े स्थाई होते हैं। बच्चे के कोमल अंतस में बैठी बात जीवन भर नहीं मिटती।

Friday, May 15, 2009

१६ गुवाळियो नीं ऐवाळियो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-१६//२००९

गुवाळियो नीं ऐवाळियो

पणी भाषा रै इण स्तंभ में का'ल आप व्यंग-लेख 'गुवाळियो' बांच्यो। इण बावत म्हारै कनै मोकळा फोन आया। ओ आपरी पाठकीय जागरूकता रो प्रमाण। राजस्थानी लूंठी भाषा अर लूंठो इण रो सबद-भंडार। हरेक भाव अर हरेक चीज रा न्यारा-न्यारा नांव। भे़ड नै आपणै लरड़ी, टरड़ी, लाड़ी अर गाडर भी कैवै। भे़ड रै बच्चै नै घेटियो, उरणियो, लैळकी, ले'ड़ियो। नर भे़ड नै मींढो। भे़डां रा दळ नै जिणमें बकरी अर गधा भी सामल हुवै, रेवड़ या एवड़ कैवै। रेवड़ रै पाळनहार नै रेवड़ रो पाळी, एवड़ रो पाळी, रेवाड़ियो, एवाड़ियो अर ऐवाळियो भी कैवै। गडरियो भी आपणी भाषा में चलै। भे़ड नै गाडर तो गाडर चरावणियै नै गडरियो। पाठकां री बात साव साची कै भे़डां रै पाळी नै गुवाळियो नीं ऐवाळियो कैवै। गुवाळियो तो गायां चरावणियै नै कैवै। आपणै अंचल में हर भांत रै ढोर-डांगर नै चरावणियै सारू गुवाळियो सबद भी रूढ़ हुयग्यो। इण वास्तै आ चूक होवणी भी सुभाविक। आपरो आपरी भाषा सारू मोह अर सजगता रै कारण आप म्हानै चेतो भी करावता रैवो आ म्हारै वास्तै घणै गुमेज री बात।
जकी धरती आपां नै पाळै-पोखै। जकी भाषा रा संस्कारां सूं आपां संस्कारित हुवां बीं सारू आपणो फरज तो बणै ई है। पंजाबी में गुरदास मान रो गीत है नीं.... 'जे़डे मुलक दा खाइये ओसदा बुरा नीं मंगीदा...'
तो एक जंगळ में चंदण रा दरख्त। बां पर रैंवतो एक हंस। एकर जंगळ में आग लागी। सगळा जीव-जिनावर उड चल्या। हंस बैठ्यो रैयो। तो चंदण रो रूंख बोल्यो-
आग लगी बनखंड में, दाझ्या चंदण-वंस।
हम तो दाझे पंख बिन, तूं क्यूं दाझै हंस?
तो हंस रो जवाब हो-
पान मरोड़या रस पिया, बैठा एकण डाळ।
तुम जळो हम उड़ चलें, जीणो कित्ती'क काळ!
जिण दरख्त रा पान मरोड़-मरोड़ रस पींवता रैया। जिण री डाळ पर बसेरो कर्यो। वां रो साथ छोड़'र जीवणो भी कांईं जीवणो। कैयो है-
हंसा सरवर ना तजो, जे जळ खारो होय।
डाबर-डाबर डोलतां, भला न कहसी कोय।।

आज रो औखांणो

आपनै सूझै कोनी, दूजां नै बूझै कोनी।
समझदार व्यक्ति की राय मानने से किसी मूर्ख व्यक्ति का काम सुधर सकता है, पर माने तब न। मान जाये तो वह फिर मूर्ख ही कहाँ।

Thursday, May 14, 2009

१५ गुवाळियो -रामधन अनुज

गुवाळियो

रामधन अनुज रो जलम 8 जून, 1961 नै श्रीगंगानगर जिलै रै गांव लाडूवाळी में हुयो राजस्थानी रा समरथ लिखारा। लघुकथा संग्रह 'काळी कनेर' छपियोडो। प्रयास संस्थान, चुरू कानी सूं बरस 2008 रो दुर्गेश स्मृति पुरस्कार मिल्यो। अबार जेसीटी मिल, श्रीगंगानगर रै प्रसासन विभाग में काम करै। आज बांचो, आं रो व्यंग।

-रामधन अनुज


बियां तो कोई भी माणस गुवाळियै सबद सूं अणजाण कोनी, पण फेर भी जे कोई है तो म्हारै इण लेख नै पढ़्यां समझ सकै। गुवाळियो बणन खातर आज तांईं कोई डिग्री या सिक्सा रो स्तर निर्धारित कोनी। एम.ए. पी।एचडी। सूं लेय'र अंगूठा छाप तांईं कोई भी आदमी गुवाळियो बण सकै। क्यूँ कै भेड चराण खातर आज तांईं म्हारै देस मांय इस्यो कोई स्कूल या ट्रेनिंग सेंटर कोनी बण्यो। एक स्कूल मास्टर नै गोरमिन्ट रिटायर कर'र घरां घाल देवै कै अब तूं कीं काम रो कोनी रैयो। पण बो गुवाळियो बण सकै। अर बै भेडां, बस थे एक'र सोचल्यो कै म्हैं गुवाळियो बणनो है। गुवाळियो बण्यां पाछै थानै भेडां ल्याण री जरूरत कोनी। भेड अपणै आप थारै कनै आ जासी। गुवाळियो बणनै री सुरूआत करणै सूं पैलां थानैं थोड़ै-भोत चारै रो प्रबन्ध करणो पड़ सकै। थोड़ो टेम भी काढ़णो पड़ सकै। गुवाळियो बणन खातर आदमी नै बोलणो आणो चाईजै, जकोभेड बिण रै सबद-जाळ मांय उळझी रेवै अर भाज ना सकै। रैई बात चरित्र री तो जिकै गुवाळियै रो चरित्र जित्तो माड़ो, बो बित्तो ई आच्छो। इसी म्हारै देस री मानता। गुवाळियो ठण्डै सुभाव रो प्राणी। थे बिणनै गाळ काढ़ो, जूत्ती फैंको, कीं कैवो, बो बात नै हांस'र टाळ देवै।
गुवाळियां रो आपरो एक अळगो समाज। भेडां नै दिखाण खातर बै आपरै विरोधी गुवाळियां नै गाळ काढ़ता रेवै। पण आथण सगळा बैर-विरोध भुला'र साथै बैठ जावै। इणसूं बेरो लागै कै म्हांरै देस मांय विभिन्नता मांय एकता रो पाठ पढ़ाण मांय गुवाळियां रो कित्तो योगदान है। गुवाळिया छोटा-बड़ा भी हुवै। छोटा गुवाळिया बै हुवै जिका आपरै गांव री भेडां नै ई चरा सकै। अर बड़ा गुवाळिया बै जिका पूरै देस री भेडां नै चरा सकै।
गुवाळियै री एक खासियत आ भी है कै बै भेडां री बात नै एक कान सूं सुणै अर दूजै सूं काढ़ देवै। एक अणपढ़ गुवाळियो एस.डी.एम. या कलैक्टर नै फटकार सकै। छोटै मोटै थाणै-तहसील रा काम तो गुवाळियै रै डावै हाथ रो खेल। थाणेदार जिसी नौकरी करण वाळा तो बापड़ा इणां रै आगै-लारै फिरै। बड़ै सूं बड़ो अपराध कर्यां पाछै भी इणांनै पकड़न खातर पुलिस रै पसीना आज्यावै अर थाणै मांय भी गुवाळियां री इत्ती सेवा हुवै धाणै जंवाई आये़डो हुवै।
जे सगळी भेडां मिल'र आपरै गुवाळियै नै राजधानी पूगा देवै तो फेर तो कैवणो ई कांईं। बठै लम्बै-चौड़ै खेत नै गुवाळियो जी-भरगे चर सकै। बेटा-पोता, भाई, भतीजा, लुगाई सगळां नै बो गुवाळियो बणनै री बिद्या सीखा सकै। जियां-जियां गुवाळियो बड़ो हुवै, बिण री याददास्त भी कम हुंवती जावै। होळै-होळै बो आपरै गांव रो नांव भी भूल जावै। पण कई कानूनी अड़चना है कै पांच सालां पाछै गुवाळियां नै फेरूं गुवाळियो हुवण रो प्रमाण-पत्र भेडां सूं लेणो पड़ै। बस आ ही एक दवाई है जिण सूं बिणा री याददास्त फेरूं लोटै अर बै भेडां बिचालै आवै।
मैं एक बात आज री भेडां सूं कैवणो चावूं कै बै पढ़णै मांय आपरो टेम बरबाद करण री जगां गुवाळिया बणन री कोसिस करै तो स्यात ज्यादा फायदो हुवै। दूसरी बात आ है कै गुवाळियो बणनो नौकरी लागण सूं जादा सोखो काम है। नौकरी मांय तो साठ साल पाछै रिटायर भी हो सको, पण गुवाळियै री तो कोई उमर ई निर्धारित कोनी। बै तो अस्सी साल सूं ऊपर री उमर तांईं भी भेडां चरा सकै। आज जे म्हारै सिरखी छोटी-छोटी भेडां भी गुवाळियो बणज्यावै तो आपरी रोज री जरूरतां तो आराम सूं पूरी कर सकै।

Wednesday, May 13, 2009

१४ लोक काव्य मांय सरस संवाद

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १४//२००९

लोक काव्य मांय सरस संवाद

-डॉ. भगवतीलाल शर्मा, जोधपुर।

बुढापो कांई आयो, सिंघ रै विकास रा जांदा पड़गा। चटोकड़ी जीभ अर लबूरका लेवती आकळ-बाकळ आंतां नै पाथर तो परोसीजै कोनी। व्ही पण व्ही। सेवट वो साधूपणो धारण कर छळ-छंद सूं पेट पाळण ढूको। भावेजोग एक दिन एक बांदरो इण भगवाधारी सिंघ नै पूछियो-
नीं कांटो नीं खोबड़ो, फूंक-फूंक दे पांव।
बंदर पूछ्यो सिंघजी, तेरो कौण सभाव?
सिंघ जाणियो कै आज सुगन चौखा। बांदरा रो मांस! जीभ झरण लागी। कपट-भाव सूं फट आतमा री एकरूपता रो बखाण करतो ई बोल्यो-
जैसी अपणी आतमा, तैसा दध में घीव।
थोड़ा दिन रै कारणै, मत मर जावै जीव।।
बांदरो सभाव रो भोळो। आंबा (आम) रा रूंख सूं उतरतो इज व्हियो अर मीठा-गटाक आंबा सिंघ नै निजर कर, पगां पड़ियो-
बंदर ब्रख सूं ऊतर्यो, आंब निजर किय आय।
पैली परदिखणा करी, पड़्यो सिंघ रै पाय।।
सिंघजी तो ताक में हा इज। आव देखियो न ताव। फट बांदरा नै झांप लियो। बांदरो बखड़ी में झिलियो, पण झिलियो। कै़डी बेजां व्ही! पण हो थोड़ो पाटक। ऐकाऐक हँसणो मांडियो। सिंघ इजरज सूं पूछियो-
पड़्यो काळ री डाढ में, हाँसी आई काय?
सिंघ पूछियो बंदरा, इण रो भेद बताय।।
बांदरै सिंघ नै लाळच दियो-
बंदर कहियो सिंघ नै, उरलो छोडै मोय।
तीन लोक री वारता, कहै सुणावूं तोय।।
इण माथै सिंघ थोड़ी ढील दी, कै तचाक, बांदरो उचक'र सीधो डाळ माथै। पण वठै बैठ'र ई वो रोवण लागगो। सिंघ फेरूं इचरज सूं पूछियो-
ऊंचै तरवर बैठकर, नैणां डारत नीर।
सिंघ कह्यो अब बांदरा, थारै कुणसी पीर?
बांदरो इण कळजुग मांय छळ-छद्म सूं भरियोड़े साधूपणा माथै निसांसां नांखतो कह्यो-
तुमसे कळि में साधु हों, हम रोवत हैं ताहि।
हम तो छूटे फंद तैं, और फंदैगे आहि।।
ओ दिस्टांत है 'नाहर-बंदर' रै संवाद रो, जिण मांय कळजुग रा कपटी साधुवां रो खाको खींचीजियो है। आपणी भाषा राजस्थानी मांय एड़ा मोकळा संवाद चलै। अमलदार री अर साद री लुगाई रो संवाद, सुमत-कुमत संवाद, मोती-कपास संवाद, गुरु-चेला संवाद, दातार-सूर रो संवाद, जीभ-दांत संवाद, भांग-अमल संवाद, पंडित-मुल्ला संवाद, पीर-मुरीद संवाद, चावळ-बाजरी संवाद, दुरबळ-सबळ संवाद, करम-धरम संवाद, पति-पत्नी संवाद, सोना-चिरमी संवाद, गाय-नाहर संवाद, गुण-माया संवाद, नणद-भोजाई संवाद, बाप-बेटा संवाद इत्याद। आपरै आसै-पासै बू़ढा-बडेरां कनै अजे ई मोकळो सामान है। फुरसत री वेळा आप भी अंवेर सको। आओ, आपां सगळा मिल परा आपणी भाषा री ऐ सांतरी-सांतरी बातां भेळी करां।

आज रो औखांणो

सिंघ कद छाळियां नै जीवती छोडै
सिंह कब बकरियों को जीवित छोड़ता है।
दुष्ट किसी का सगा नहीं होता। उसे जब मौका मिलता है वह गरीब को नोचने की चेष्टा करता है।

Tuesday, May 12, 2009

१३ जोर की ललकार सूं म्हे, आज बोलां छां

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १३//२००९

जोर की ललकार सूं म्हे,

आज बोलां छां


-हीरालाल शास्त्री

(राजस्थान रा पैला मुख्यमंत्री)

यपुर रै जोबनेर मांय 24 नवंवर 1899 नै जलम्या पं। हीरालाल शास्त्री स्वतंत्रता-आंदोलण में जनता रो पथ-प्रदरसण अर दिसा-नियंत्रण करण वाळा सेनानी रैया। स्वतंत्रता रै पछै राजस्थान रै एकीकरण री जिम्मेदारी निभावणिया शास्त्री जी विशाल राजस्थान रा पैला मुख्यमंत्री बण्या। सन् 1929 में शास्त्री जी नवै ग्राम समाज री रचना रै त्हैत वनस्थळी में 'जीवन-कुटीर' नांव री संस्था री थरपणा करी अर सन् 1935 में 'वनस्थली विद्यापीठ' रै रूप में 'श्री शांताबाई शिक्षा' री। शास्त्री जी राजस्थानी अर हिंदी दोनूं ई भाषावां में काव्य-सिरजण कर्यो। सन् 1974 रै दिसम्बर महीनै में आपरो सुरगवास हुयो।
आज बांचां, आपरी एक कविता। इण कविता में कवि जनमानस में उठतै आक्रोश नै वांणी दीनी। शासकां अर चाकरशाहां नै ललकारतां कवि कैवै कै ऊंचै सुर में बौकारता म्हे आज बोलां हां। अब तांईं चुप रैया अब नीं रैवांला। दुख भुगतता म्हे थकग्या हां। जनता धापगी है। अबै चोरी अर सीनाजोरी नीं चालण देवांला। पगां हेटै पीसीजती माटी भी सिर चढ'र बोलण लाग जाया करै। म्हे तो मिनख हां इण खातर आज बोलां हां। म्हारी बिखरियोड़ी ताकत नै तोल'र बोलां हां। थे संभळ जावो नीं तो पछतावोला। सत्ता पलटैला अर थां माथै भी लोग राज करैला। म्हारी चेतावणी सुण लेवो, म्हे आज बोलां हां अर आकरै सुर में बोलां हां।

दुखभरी आवाज सूं म्हे, आज बोलां छां।
जोर की ललकार सूं म्हे, आज बोलां छां।।
बोल्या-बोल्या ठेठ सूं म्हे, सारी रचना देख ली।
देखता म्हे धापगा जद, आज बोलां छां।।
पिसतां-पिसतां आज तांईं, म्हां को चुरकट हो लियो।
फाटगो यो काळजो जद, आज बोलां छां।।
मांयली तो मांय म्हां कै, बारली बारै रही।
कळ्ळावै या आतमा जद, आज बोलां छां।।
टर्रकटम ऊपरलो बोल्यो, बिचलां कै तो खुशी न गम।
निचला छां सो 'दबे तो हम' म्हे, आज बोलां छां।।
जूती सूं चिंथ जावै जद तो, माटी भी माथै चढै।
आखर तो छां आदमी म्हे, आज बोलां छां।।
चोरी अर सिरजोरी थांकी, सारी दुनियां देखली।
थांका हिया की फूटगी सो, आज बोलां छां।।
चोखा छां अर भोत सारा, ताकत पण बिखरी हुई।
ताकत को अंदाज कर म्हे, आज बोलां छां।।
चाली जतरै चाल लीनी, अब नहीं या चालसी।
दीखै कोनी चालती जद, आज बोलां छां।।
भोत होगी भोत होगी, अब थे आंख्यां खोलल्यो।
नांतर थे पछतावस्यो म्हे, आज बोलां छां।।
उल्टैली अर थांका माथा, ऊपर होकर जायली।
सुणल्यो या चेतावणी म्हे, आज बोलां छां।।

Monday, May 11, 2009

१२ सासरै रो स्नान

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १२//२००९

सासरै रो स्नान

-श्यामसुंदर वर्मा


म्हारै पड़ोस में एक बुजुर्ग रैवै। बां नै म्हे ताऊ कैवां। ताऊ रा किस्सा बड़ा ही रोचक। लारलै दिनां सासरै गया। बठै बां नै सांप खाग्यो, पाछा आया जद बस एक ई रट- 'सासरै गो स्नान गोगो धुकावै'। मैं पूछ्यो- ताऊजी आ के ब्याधी है? सावळ बताओ। बां किस्सो बतायो कै बेटा, तन्नै के बताऊं, मेरो सासरो बागड़ में है, बठै घर-घर पाणी गो कनैक्शन तो है कोनी। तो ईं दिसंबर गै महीनै में मेरा साळा मनैं नहर पर नुहाण लेग्या, पाळो इत्तो तकड़ो हो कै नहर भी ठंड सूं कांपण लागी। मैं बेटा दीर्घ शंका गो निवारण कर'र नहर गै पाणी सूं हाथ धोण लाग्यो तो बित्तो-बित्तो हिस्सो ही सुन्न पड़ग्यो। मैं थूक गिटगे साळै नै पूछ्यो कै इत्तै ठंडै पाणी सूं न्हाणो पड़सी? तो बो बोल्यो फेर के अठै गिजर लागर्यो है। थे डटो मनां, पाणी एकर-एकर ही ठंडो लागै है, फेर तो सैहणै पड़ज्या है। मैं सोच्यो सैहणै तो के, फेर शरीर सुन्नो पड़ज्यै है। इत्तै में छोटो साळो बोल्यो- भीया, मैं तो बैनोई जी गो कच्छो अर बनियान ल्याणो ही भूलग्यो। मैं मां ही मां राजी होयो कै चलो अब तो न्हाणै सूं गैल छूटी। पण बो मरज्याणो बीच आळो साळो बोल पड़्यो कै अरै छोटू, तेरो तैमल देदे। छोटै साळै सूं तैमल ले'र मनै दे'र बोल्यो- ल्यो, तैमल बांध'र न्हाल्यो, पण तैमल थोड़ो सावळ बांध लेईयो। पाणी गो बहाव थोड़ो तेज है। तो बेटा, मैं मेरा सारा कपड़ा तो दिया खोल अर तैमल लियो लपेट, ले गै राम गो नाम नहर में कूदग्यो, अब बेटा, एक तो पाणी डाडो ठंडो अर तूं जाणै ई है, ऊपर सूं मैं थोड़ो मदरो, पग जद तळै लाग्या तो सिर डूबग्यो। सिर बारै काड्यो तो तळो छूटग्यो। ईं उछळ-कूद में मैं पाणी गै मां कीं चाल्यो जांवतो देख्यो तो संभाळ्यो तो पतो चाल्यो कै तैमल जी तो गया।
फेर ताऊ?
फेर के म्हे तो होग्या बिस्सा, जन्मतै टेम हा जिस्सा। अब आगै सुण, मेरा साळा बोल्या- बैनोई जी, बारै आज्याओ, नहीं तो ठर ज्याओगा। मैं कैयो कीं कोनी ठरां। मनैं तो उछळ-कूद में मजा आर्या है, थे चालो। आथण गै आऊंगो, अंधेरो पड़्यां। पण मेरा साळा भी दुसमण बणग्या। बोल्या, थे बारै आओ हो का कोनी, निस तो म्हे आवां अंदर। छोटो साळो बोल्यो, नहीं भीया, आज तो बैनोई जी नै आपां नै ही बारै ल्याणा पड़सी। चालो कूदो पाणी में। ओ कह'र साळा नहर में कूदग्या। मैं सोच्यो, जे साळा कन्नै आग्या तो मनै इसो गो इसो ही बारै काढ लेसी। इत्तै में नहर में कैळियां गो झुंड दीख्यो। मैं सोच्यो- ईं नै ही पलेट गे बारै निकळल्यूं और भाज'र कपड़ा पैहरल्यूं। पण मैं आ भी सुण राखी ही कै कैळियां में जी-जिनावर भी हुवै। दूसरै पासै साळा मेरै कन्नै आंवता दिख्या। इज्जत खतरै में पड़ती देख मैं आव देख्यो न ताव, कैळियां ले'र शरीर पर पळेट बारै भाज्यो। लारै-लारै मेरा साळा। जकी बात गो डर हो बा ही होगी। कैळियां में एक बिल सूं भटके़डो काळो सांप हो। मैं कैळियां फैंक सक्यो कोनी। भाजगे कपड़ां कन्नै पहुंच गे चादर लपेटी अर कैळियां परनै फैंकी। पण इत्तै में सांप आप गो काम करग्यो अर मां ही मां मनै कई जिग्यां खाग्यो।
फेर ताऊ?
फेर के बताऊं बेटा, जकी इज्जत नै मैं तीन जणां सूं छुपाण लागर्यो हो। बीं नै पैलां तो देखी लोगां अर फेर भोपां। बेटा, सासरै गो स्नान गोगो इयां धुकावै।
आज रो औखांणो

गोगो बडो कै राम- कै बडो तो है जको ई है पण सापां सूं बैर कुण बसावै?
डर के मारै किसी व्यक्ति के बारे में जब कोई वास्तविक राय प्रकट न की जाए तो यह कहावत कही जाती है।

Sunday, May 10, 2009

११ सुरंगी रुत आई म्हारै देस

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ११//२००९

सुरंगी रुत आई म्हारै देस

भलेरी रुत आई म्हारै देस

राजस्थानी लोकगीतां में करसै रो पूरो जीवण गाईज्यो है। खेती रो कोई काम इस्यो नीं, जिण साथै एक या एक सूं बेसी गीत नीं जु़ड्या होवै। सू़ड करण सूं लेय'र अन्न घर पुगावण तांईं रा सगळा प्रसंग गीतां सूं गुंजायमान। ऐ गीत मैनत नै सरस बणावण में असाधारण भूमिका निभावै। करसै रो मन गीतां री राग में इतरो रम जावै कै वो आपरो थकेलो भूल लगोलग मैणती जीवण रो आणंद लेवै। खेती रै गीतां री रस-धारा नेह री जळ-धारावां रै सागै बैवै। इण बगत जीव-जगत आणंद सूं विभोर हो जावै। करसां सारू तो ओ अवसर जीवण रो आधार। अंतस रो राग अपणै आप गूंज उठै-
सुरंगी रुत आई म्हारै देस।
भलेरी रुत आई म्हारै देस।।
मोटी-मोटी छांट्यां ओसर्यो बादळी
तो छांट घड़ै कै मान, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
मुन्याणो-मोज्योणो सै भर्या बादळी
तो धोळपाळियो ठेलमठेल, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
यो कुण बावै बाजरो बदळी
यो कुण बावै हरिया-मोठ, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
ईसरराम बावै बाजरी बदळी
तो कान्हीराम बावै हरिया-मोठ, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
म्हारै देस मांय सुरंगी रुत आई है। म्हारै देस मांय बड़ी भली रुत आई है। अरे बादळी! थूं घणी मोटी-मोटी छांटां रै रूप में बरस रैयी है, एक-एक बूंद एक घड़ै बरोबर है। म्हारै देस मांय मेवा अर मिसरी रै समान सुरंगी रुत आई है। मुन्याणो अर मोज्याणो नाम रा कच्चा तळाव पूरा भरग्या अर धोळपाळियो नाम रो पक्को तळाव ऊपर तांईं लबालब भरग्यो है। ईसरराम बाजरो अर कान्हीराम हरिया-मोठ बोय रैयो है।
हाळी हळ पर हाथ राखण रै साथै ई गीत री टेर चकै तो बा टेर खेत रूखाळी सूं लेय'र खळै तक बीं रो साथ देवै। ऐ गीत अन्न रै साथै पाकै। अन्न रै कस मांखर बाळ-कंठा बासो करै। गुवाड़ में रमै। लुगायां रै कठां बसै। चानणी रातां में चूंतरियां पर ऐ गीत गूंजै तो गांव री गळी-गळी गुलजार व्है जावै।

आज रो औखांणो

सूखै घसीजै हळबांणी, आलै घसीजै चवू।
सांवण घसीजै डीकरी, काती घसीजै बहू।।

Saturday, May 9, 2009

१० मां जिसो मंतर नहीं, अन्न जिसो न औखद

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १०//२००९

मां जिसो मंतर नहीं,

अन्न जिसो न औखद

मां कैयां मूंडो भरीजै। मां सूं आछो कीं कोनी जगत में। सुख में-दुख में, हर घड़ी जको टप्पो आपोआप कंठा नीसरै, बो है- 'मां'। माय, माऊ, मात, माता, मावड़ी, अम्मा, जामण, जणनी इणरा ई नांव। हेजळी अर रातादेई जिसा कित्ता ई विशेषण। आपणी भाषा रै औखांणां में इणरो जिकर अणथाग। मां आप मारै, पण किणी नै मारण नीं देवै। मां आवै दही-बाटियो लावै। मां करै सो धी करै। मां खेत में अर पूत जनेत में। मां गैल डीकरी, घड़ा गैल ठीकरी। मां गैल बेटी अर काठ गैल पेटी। मां, घोड़ा री पूंछ पकड़ूं कांईं देसी, कै घोड़ो मतै ई दे देसी। मां जिसो मंतर नहीं, अन्न जिसो न औखद। मां डाकण कै वेळा डाकण। मां डाकण, तो ई आपणी। मां तो एक मां है। मां तो फगत जलम देवै, करम नीं। मां तो भटियारण अर बेटो फतै खां! मां, दो कवा है, एक थूं खायलै अर एक म्हैं खायलूं, कै नीं बेटा, दोनूं थूं ई खायलै। मां नीं अर नीं मां रो जायो, देसड़लो परायो। मां-बाप मरग्या अर इणी घर री करग्या। मां-बाप मेवा रो रूंख। मां बिना कै़डो मांमाळ, सास बिना कै़डो सासरो! मां बेटी रो रीसणो अनै मोठां रो पीसणो। मां मरै जिणरी मासी पैलां मरै। मां मां, गुळ री भेली लावूं ऐ, कै थारी कड़ियां री लांक ई कैवै। मां मां, मामा आया, कै भाई तो म्हारा ई है। मां मां, माखी ऐ, उडा दे बेटा, कै दो है। मां मां, मोटो व्हियां बामण ई बामण मारस्यूं, कै राम करै मोटो व्है ई ना। मां मां, म्हैं भाजूं जबरो ऐ, कै काकी रो जायो नीं मिल्यो जित्तै ईज। मां, म्हैं स्यांमी हो जास्यूं, कांईं जोर आयो, लखपति व्है तो जाणूं! मां रै पेट में कुण ई सीखनै नीं आवै। मां री गाळियां, घी री नाळियां। खावणो मां रै हाथ रो, हुवो चायै जहर ई। मां री मार अनै बाप रा बोल बराबर। मां री मार में लागै थोड़ी पण हाको घणो। मां रै सगळा टाबर इकसार। मां रै हाथ री हांडी तो बाप रै हाथ री मोगरी। मां रो जीव तो सदावंत सिरै। मां रो जीव धीणा में। मां रो दूध मोल थोड़ो ई मिलै। मां पर पूत, पिता पर घोड़ो, घणो नीं तो थोड़म-थोड़ो। मां संपणी तो ई अपणी। मां सूं पूतां रा उणियारां कांईं छांना। आपणी भाषा में मां सारू इत्ता औखांणा कै मत बूझो बात! ऐ बांच्यां है तो आपनै कीं और भी याद आया हुसी। पुगावो दिखांण।
साहित्यकार शिवराज भारतीय (नोहर) री बैठक मांय वां री मां रो फोटू। अर फोटू सागै है आ कविता। रचणहार खुद शिवराज भारतीय। बांचो सा!
लाड-कोड रो समंदर मां,
मो' ममता रो मिंदर मां।
चोखी-चोखी बात सुणावै,
लोरी गा'र सुआवै मां।
धमकावै अळबाद करां जद,
रूसां जद बुचकारै मां।
मां कै'यां मुंडो भर आवै,
हियै हेत सरसावै मां।
मिनख भलांई हुवै डोकरो,
उणनै समझै टाबर मां।
सगळा तीरथ-धाम उठै ई
जिण घर हरखै-मुळकै मां
मां री होड करै कुण दूजो
परमेसर भी पूजै मां।

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?