Sunday, April 19, 2009

२० सै'त सुधारै राबड़ी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२०//२००९

सै'त सुधारै राबड़ी, मेटै सगळा खोट

लोक रै रूं-रूं रा सांचा रंगरेज, बुजुर्ग कवि राजेराम बैनीवाळ रो जलम वि. सं. 1990 में परलीका गांव में हुयो। घरां ई आंकां री पिछाण करणी सीखी। पण खास बात आ कै 72 बरस री उमर में सिरजण सरू कर्यो। 75 बरस री उमर में भी लगोलग लिखै। राजस्थानी में अजे तक ढाई हजार दूहा मांड्या है। पंजाबी में भी मांड्या। पत्र-पत्रिकावां में भी मोकळा छप्या। कवि छंद रा जाणकार कोनी, पण जिकै भाव में अर जिकै अंदाज में बात कैवै, बा हरेक बांचणियै-सुणनियै रो मन मोह लेवै। आज बांचो, आं रा कीं दूहा-

-राजेराम बैनीवाळ

अब आळी औलाद नै मिलै कोनी ल्हासी।
कूकर बणै जवान , लूखी रोटी खासी।।

रोज बणावै राबड़ी, पूरो राजस्थान।
जाणै ईं नै नांव स्यूं, पूरो हिंदुस्तान।।

कोरी होवै हांडकी, बीं में ठंडी रैवै राब।
सारै दिन पीवो चाये, होवै कोनी खराब।।

राबड़ी में टैस्ट हुवै, सुवाद भोत लागै।
पीयां पछै नीन आवै, जगायो कोनी जागै।।

सै'त सुधारै राबड़ी, मेटै सगळा खोट।
ईं नै इस्तेमाल करो, मांह गेरगे रोट।।

भरगे थाळ पी ले तूं, ओ गुण करैगो राबड़ो।
मां' मरोड़ले रोट तूं, भर्यो पड़्यो है छाबड़ो।।

पी ले धापगे राबड़ी, लागै कोनी तावड़ो।
आ चीज है काजबीज, पीणी चावै बटाऊड़ो।।

खाटो भेळै बूढळी, बीं गो बणै संगीत।
राबड़ी रै कोड में, गावण लागज्यै गीत।।

लूण गेरगे ल्हासी पीयां, आयबो करै स्यांत।
टैस्ट बणै टोपगो, पाटण लागज्यै आंत।।

चरकी रोटी चीणां गी, सागै मीठा प्याज।
जाड़ा नीचै बाजबो करै, फेर सूणो-सूणो साज।।

आज रो औखांणो

राबड़ी छोड सीरै में हाथ घालै तद राबड़ी रा ई जांदा पड़ जावै।

राब छोड़कर हलुवे में हाथ डाले तब राबड़ी से भी हाथ धोना पड़ता है।

अधिक लोभ करने का नतीजा अच्छा नहीं होता।


2 comments:

  1. आपकी पोस्ट बहुत मजेदार बनी है बिलकुल राबड़ी की तरह से

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  2. भोत चोखी बात लिखी है राजेराम दादे.......

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