Monday, March 30, 2009

३१ कार्तिकेय जननी स्कन्द माता

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३१//२००९


कार्तिकेय जननी स्कन्द माता

-ओम पुरोहित कागद

माताजी रो पांचवों नोरतो। चौथै नोरतै री धिराणी स्कंद माता। स्कन्द माता दुरगाजी रो पांचवों सरूप। स्कन्द रो एक नांव कार्तिकेय भी। कार्तिकेय पण माताजी रो लाडेसर बेटो। कार्तिकेय री जामण होवण रै कारण इण सरूप रो नांव स्कन्द माता। देवतावां रै बैरी तारकासुर नै स्कन्द माता जमलोक पुगायो। माताजी रै च्यार हाथ। जीवणै पसवाड़ै रै एक हाथ सूं आपरै लाडेसर नै गोद्यां बैठाय' झालियोड़ो दूजै हाथ में कमल पुहुप। डावै पसवाड़ै रै एक हाथ में आसीस छिब। दूजै हाथ में भळै कमल पुहुप। सिर माथै सोनै रो मुगट बिराजै। कानां में सोनै रा गैणा। सिंघ री सवारी। स्कन्द माता संसार्यां नै मोख दिरावै। ध्यावणियां भगतां री मनस्यावां पूरै। पांचवै नोरतै में ध्यावणिया जोग्यां रो मन विशुद्ध चक्र में थिर रैवै। इण कारण ध्यावणियां रै मनबारै री अनै भीतरली चित्त वरत्यां रो लोप हो जावै। पांचवै नोरतै नै साधक माताजी रै अंगराग अर चनण रा लेप करै। भांत-भांत रा गैणा-गांठा पैरावै।

लिछमी पांच्यूं

लिछमी पांच्यूं भी। लिछमी भी माताजी रो एक सरूप। लिछमीजी कमल आसन माथै विराजै। कमल मतलब पदम। इण सारू आप रो एक नांव पदमासना भी। बिणज-बौवार करणियां नैं माताजी रो रूप डाडो भावै।लोग माताजी रै लिछमी रूप नै ध्यावै। बिणज अर धन रै बधेपै री कामना करै। माताजी बां रा मनोरथ पूरै।

खाता उल्टा पल्टी रो दिन

बिणज-बोपार में आज रो दिन रोकड़ खाता पल्टी रो। वित्तीय लेखा बरस रो पैलो दिन। इण दिन बोपारी हिसाब फळावै। लेण-देण चुकावै। तळपट मिलावै। आपरै बिणज री बईयां बदळै। रोकड़, खाता अर चौपड़ी पलटै। लेण-देण री खतोन्यां खतावै। नूवीं बईयां री पूजा करै। नूवीं रोकड़, खाता अर चौपड़ी रै पैलै पानै माथै 'गणेशाय नम:' लिखै। रोळी सूं साथियौ (साखियौ) मांडै। उण माथै पान-सुपारी, रोळी-मोळी अर फळ-प्रसाद चढावै। दूजै पानै माथै लिखै- 'लिछमीजी महाराज सदा सहाय छै। लाभ मोकळा देसी।' इणी माथै लिछमी सरूप 'श्री' इण भांत लिखै-
श्री
श्री श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
इण रै असवाड़ै-पसवाड़ै 'शुभ-लाभ' अर 'रिद्धि-सिद्धि' लिखै। रोळी कूं-कूं चिरचै। चावळ भेंटै। नूंई लेखणी-कलम-कोरणी बपरावै। इण माथै भी मोळी बांधै। अब पण लोगड़ा कम्प्यूटर-लेपटाप बपरावै तो इण जूंनी परापर नै कठै ठोड़!

Sunday, March 29, 2009

३० कूष्माण्डा/ राजस्थान-दिवस

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३०//२००९

मधरी-मधरी मुळकै कूष्माण्डा

-ओम पुरोहित कागद

माताजी रो चौथो नोरतो। चौथै नोरतै री धिराणी कूष्माण्डा माता। कूष्माण्डा कैवै कूम्हड़ै अर पेठै नै। ब्रह्मांड पैठै-कुम्हड़ैमान। इणी कूष्माण्डामान ब्रह्मांड री सिरजणहार माता कूष्माण्डा। दुरागाजी रै इणी चौथै सरूप रो नांव कूष्माण्डा माता। कूष्माण्डा री मधरी-मधरी मुळक। इणी मधरी मुळक सूं अण्ड अर ब्रह्मांड नै सिरज्या। अण्ड अर ब्रह्मांड री सिरजणां रै पैटै दुरगा रै इण सरूप नै कैवै कूष्माण्डा माता। ब्रह्मांड री सिरजणहार होवण रै पाण आप सिरस्टी री आद-सगत। आप रै सरीर रो तप-औज सुरजी मान पळपळावै। कूष्माण्डा माता रै आठ हाथ। इणी पाण आप अष्टभुजा देवी भी बखाणीजै। आप रै जीवणै पसवाड़ै रै च्यार हाथां में कमण्डळ, धनुख, बाण अर कमल बिराजै। डावै हाथां में इमरत कळस, जपमाळा, गदा अर कर साम्भै। सीस सोनै रो मुगट। कानां सोनै रा गैणां। शेर री सवारी। कूष्माण्डा माता री ध्यावना सूं भगतां रा सगळा संताप मिटै। रोग-सोग समूळ हटै। उमर, जस, बळ अर निरोगता बधै।
चौथै नोरतै में साधक रो मन अनाहज चक्र में बास करै। इण सारू माणस नै निरमळ मन सूं कूष्माण्डा माता री ध्यावना करणी चाइजै। माताजी रा जप-तप अर ध्यावना भगत नै भवसागर पार उतारै। माणस री व्याध्यां रो मूळनास होवै। दुख भाजै। सुख रा डेरा जमै। इण लोक अर आगोतर री जूण सुधारण सारू कूष्माण्डा माता री ध्यावना करीजै।

राजस्थान-दिवस बधायजै

आज रो दिन ओर ओरयुं खास। आज रै दिन आपणै राजस्थान री थापणा हुई। बो दिन हो तीस मार्च-1949 राजस्थान नांव पच्छम रा इतिहासार 'कर्नन जेम्स टाड' 1829 में दियो। इण सूं पैली इण रो नाम राजपूताना हो। नांव जार्ज थामस सन 1800 में दियो। राजपूतानै में 26 रियासतां ही। आं नै भेळ' भारत में मिलावण री पैली चेस्टा 31 दिसम्बर, 1945 में पंडित जवाहरलाल नेहरू करी। बां उदयपुर में राजपूताना सभाणा दूजी चेस्टा उदयपुर रा राजा भूपालसिंह अर बीकानेर नरेश सार्दुलसिंघजी करी। पैला गृहमत्री सरदार पटेल चौथी चेस्टा में इण राजपूतानै नै भारत संघ में रळायो। आज रै राजस्थान रै एक री बी सात चेस्टावां होई। पैली चेस्टा 18 मार्च, 1948 में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली नै भेळण री। नांव थरप्यो- मत्सय संघ। इणरी राजधानी बणी अलवर। राजप्रमुख बण्या धौलपुर नरेश उदयभान सिंघ। प्रधानमत्री बण्यां शोभाराम कुमावत। दूजी चेस्टा 25 मार्च, 1948 में हुई। मत्सय संघ में कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, कुशलगढ, शाहपुरा, प्रतापगढ, किशनगढ, टोंक अर डूंगरपुर नै भेळ' राजस्थान संघ बणायो। इणरी राजधानी कोटा। कोटा रा महाराज भीमसिंह राजप्रमुख। गोकळदास असावा प्रधानमंत्री। तीजी चेस्टा18 अप्रेल, 1948 में होई। इण बार उदयपुर राजस्थान संघ में भिळ्यो। उदयपुर रा महाराजा भूपालसिंह राजप्रमुख। माणिक् लाल वर्मा बण्या प्रधानमंत्री। चौथी चेस्टा 30 मार्च, 1949 में। इण बार बण्यो बृहद राजस्थान। इण बार रियासतां भिळी बीकानेर, जयपुर, जैसलमेर अर जोधपुर। राजप्रमुख बण्या महाराजा भूपालसिंह। उप राजप्रमुख कोटा महाराव भीमसिंह। हीरालाल शास्त्री बण्या प्रधानमंत्री। पांचवी चेस्टा 15 मई, 1949 में होई। अबकै मत्सय संघ भिळ्यो। छठी चेस्टा 26 जनवरी, 1950 में होई। सिरोही नै भेळ्यो। सातवीं अर छेकड़ली चेस्टा 1 नवम्बर, 1956 में होई। अबकै अजमेर रियासत भिळी। इणी दिन 9 बज' 40 मिनट माथै राजस्थान अर राजस्थानी लोकराज रै गेलै लाग्या। आज रै आपणै राजस्थान नै बणावण सारू सात चेस्टावां होई। राजस्थान दिवस पण तीजी चेस्टा रै दिन 30 मार्च नै मनावणो तेवड़ीज्यौ। राजस्थानी भासा रै पाण बण्यौ राजस्थान। हाल पण राजस्थानी भासा राज-मानता नै तरसै। मायड़भासा रा मौबीपूत सुरगवासी साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया रै काळजै री पीड़ दूहे में बांचो-

खाली धड़ री कद हुवै, चैरै बिन्यां पिछाण?
मायड़ भासा रै बिन्यां, क्यां रो राजस्थान ?

Saturday, March 28, 2009

२९ मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा/ गणगौर

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २९//२००९

मस्तक घंटा धारिणी चंद्रघण्टा

-ओम पुरोहित कागद

ज तीजो नोरतो। तीजै नोरतै री मैमा न्यारी। ध्यावै जगती सारी। तीजो नोरतौ जगजामण मात रै तीजै सरूप चंद्रघण्टा रै नांव। मात चंद्रघण्टा रै मस्तक माथै घण्टैमान चंद्रमा बिराजै। चंद्रमा मस्तक माथै सौभा पावै। इणी कारण माताजी रो तीजो सरूप चंद्रघण्टा। मात चंद्रघण्टा दस हाथ धारै। जीवणै पसवाड़ै रा पांच हाथ अभय दिरावण री छिब में। सरीर सोनै वरणो। एक हाथ में कमल। दूजै में धनुख। तीजै में बाण। चौथै में माळा। पांचवौ हाथ आसीस में उठियो थको। माताजी रै डावै हाथां में भी अस्तर। एक हाथ में कमण्डळ। दूजै में खड़ग। तीजै में गदा। चौथै में तिरसूळ। अर एक हाथ वायुमुद्रा में। चंद्रघण्टा रै शेर री सवारी। कंठा पुहुपहार। कानां सोनै रा गैणा। सिर सोनै रो मुगट। चंद्रघण्टा दुष्टां रो खैनास करण नै उंतावळी। दुष्टदमण सारू हरमेस त्यार। मानता कै चंद्रघण्टा नै ध्यावणियां शेर री भांत लूंठा पराकरमी अर भव में डर-मुगत भंवै। मात चंद्रघण्टा आपरै भगतां नै भुगती अर मुगती दोन्यूं एकै साथै देवै। मन-वचन-करम अर निरमळ हो विधि-विधान सूं चंद्रघण्टा रै सरणै आय जकौ ध्यावै उण नै मन-माफक वरदान मिलै। ऐड़ा भगत सांसारिक कष्टां सूं मुगत होय परमपद ढूकै। तीजै नोरतै री खास बात। इण नोरतै में माताजी नै खुद रो फुटरापो गोखाईजै। इण दिन उणां नै आरसी में मुंडो दिखाईजै। इणीज दिन माता जी नै सिंदूर भेंटीजै।

गणगौर पूजा

नोरतै रै तीजै दिन यानी चैत रै चानण पख री तीज नै गौरी-शंकर री पूजा होवै। गौरी मात जगदम्बा यानी पार्वती। पार्वती रा धणी शंकर। इण दिन आं दोन्यां री पूजा ईसर-गणगौर रै रूप में होवै। पार्वतीजी शंकर नै वर रूप पावण सारू तप करियो। शंकरजी राजी होया। वरदान मांगण रो कैयो। पार्वतीजी शंकरजी नै ई वर रूप मांग्यो। पारवती री मनसा पूरण होई। बस उणीज दिन सूं कुंवारी छोरियां मनसा वर पावण सारू ईसर-गणगौर पूजै। सुहागणां धणी री लाम्बी उमर सारू पूजै।
गणगौर री पूजा चैत रै अंधार पख री तीज सूं सरू होवै। होळका री राख सूं छोरियां बत्तीस पिंडोळिया बणावै। घर में थरपै अर सोळै दिनां तांणीं गणगौर पूजै। सोळै दिनां तांई भागफाटी उठ दूब ल्यावै। बाग-बाड़ी में गावै-

'बाड़ी आळा बाड़ी खोल, बाड़ी री किवाड़ी खोल, धीवड़्यां आई दूब नै।'

दूब लेय घरां आवै। माटी का काठ री गणगौर री देवळ नै दूब सूं काचै दूध रा छांटा देवै। राख री पिंडोळ्यां माथै कूं-कूं री टिक्की लगावै। कुंवार्यां अर सुहागणां भींत माथै कूं-कूं अर काजळ री टिक्की काढै। गावै-

'टिक्की राम्मा क झम्मा, टिक्की पान्ना क फूलां।'

कांसी री थाळी में दई, पाणी, सुपारी अर चांदी री टूम धर दूब सूं गणगौर नै संपड़ावै। गावै-

'केसर कूं-कूं भरी तळाई, जामें बाई गवरां न्हाई।'

आठवैं दिन ईसर बाई गवरजा नै लेवण सासरै ढूकै। इण दिन छोरियां कुम्हार रै घर सूं पाळसियो अर माटी ल्यावै। घरां माटी सूं ईसर, ढोली अर माळण बणावै। सगळी देवळ नै गणगौर भेळै पाळसियै में बैठावै। आगलै आठ दिन तक बनौरा काढै। दाख, काजू, बिदाम, मिसरी, मूँफळी, पतासा सूं दोन्यां री मनावार करै। सौळवैं दिन दायजै रो समान- दूब अर पुहुप भेळा करै। जीमण सारू बाजरी रा ढोकळा बणावै। ढोकळा चूर'र सक्कर बुरकावै अर ऊपर धपटवों घी घालै। जीमा-जूठी पछै बाई गवरजा नै आज रै दिन सासरै पधरावै। नदी, तळाब का कूवै नै सासरो मानै। भेळी होय ईसर-गणगौर री सवारी गाजै-बाजै सूं काढता थकां बठै ढूकै। देवळ्यां नै विद्या दीरीजै। कूवै, नदी का तळाब में पधरावै।
गवर पूजण आळ्यां सोळै दिन ऐकत राखै। इण दिन बरत खोलै। पग रै आंटै सूं ढोकळा जीमै। सुहागणां ब्यांव रै बाद गणगौर रो अजूणौ करै। अजूणै में ढोकळां री ठोड़ खीर-पू़डी अर सीरो बणै अर सौळै सुहागणां नै नूंत जीमावै।
गणगौर पूजा आखै राजस्थान में। उदयपुर री घींगा गवर, बीकानेर री चांदमल डढ्ढा री गवर नामी। उदयपुर रा महाराजा राजसिंह छोटी राणी नै राजी करण सारू चानण-पख री तीज री जाग्याँ अंधार-पख री तीज नै गणगौर री सवारी काढी। ओ काम धिंगाणै करीज्यो। इण सारू धींगा गवर बजै। बूंदी रा राजा जोधासिंह हाडा सम्वत में चैत रै चानण-पख री तीज नै गणगौर री देवळ अर आपरी जोड़ायत भेळै नाव चढ तळाब में सैर करै हा। अचाणचक नाव पळटी अर दोन्यूं धणी-लुगाई गणगौर समेत डूबगया। बस इणी दिन सूं बूंदी में गणगौर पूजण रो बारण। बूंदी में कैबा चालै- हाडो ले डूब्यो गणगौर।


Friday, March 27, 2009

२८ धीरज धिराणी ब्रह्माचारिणी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २८//२००९
धीरज धिराणी ब्रह्माचारिणी

-ओम पुरोहित कागद


नवदुरगा रा नव रूप निराळा। हर रूप मनमोवणो -मनभावणो। रूपां री पण छिब निरवाळी। ऐड़ी ही निरवाळी छिब मात ब्रह्माचारिणी री। जग जामण महालक्ष्मी ब्रह्माचारिणी नै दूजी देवी रूप परगटाई। बह्मा सबद रो मतलब तप। ब्र्रह्माचारिणी घोर तप अर धीरज री धिराणी। आं में तप री सगति अपरम्पार। आं रै तप नै नीं कोई लख सकै, नीं लग सकै। चारिणी सबद रो मतलब चालण आळी। यानी तप रै गैंलां चालण आळी। घोर तप रै गैलां चालण रै कारण नांव थरपीज्यो ब्रह्माचारिणी। इण नावं सूं जग चावी। बडा-बडा रिखी-मुनि, जोगी, सिद्ध, ग्यानी-ध्यानी, तपिया-जपिया अर हठिया भी आं रो तप देख' चकरी चढ्या। आंख्यां तिरवाळा खायगी।
ब्रह्माचारिणी रो रूप भव्य। लिलाड़ माथै तप रो ओज। आं रो सरूप जोता-जोत। जोतिर्मय। डावै हाथ में मडंळ। जीवणै हाथ में जप माळा। सिर माथै सोनै रै मुगट री सोभा निरवाळी। नोरतां रै दूजै दिन इणी मां दुरगा री पूजा हौवै। उपासना करीजै। मां दुरगा रो सुरंगो रूप भगता नै भावै। आं री ध्यावना सूं भगतां, सिद्धां, जोग्यां, ध्यान्यां, तपियां अर जपियां रा मनोरथ पूरीजै। भगतां- सिद्धां नै अखूट-कूंत फळै ब्रह्माचारिणी रा दरसण। धीरज-धिराणी ब्रह्माचारिणी री ध्यावना मिनखां में धीरज बपरावै। मिनखां में त्याग,वैराग्य अर धीरज रो बधैपो करै। इण री किरपा चौगड़दै। चौगड़दै सिद्धि। चारूकूंट विजय दिरावण वाळी। धीरज धिराणी बह्माचारिणी मिनखां में सदाचार अर संयम बगसावै। जोग्यां नै जोग सारू तेडै जोग-साधक दूजै दिन आपरै मन नै स्वाधिष्ठान चक्र में थिर करै। इण चकर में थिर मन माथै ब्रह्माचारिणी री किरपा बरसै। ऐडो साधक देवी री किरपा अर भगति नै पूगै।
नोरतां रै दूजै दिन मां दुरगा री खास पूजा होवै। इण दिन माता रा केस गूंथीजै। बाळ बांधीजै। चोटी में रेसमी सूत का फीतो बांधीजै। माता रै बाळां री सावळ संभाळ करीजै। लगो-लग श्री दुरगा सप्त्सती अर मारकण्डेय पुराण पाठ करीजै। एकत पण चालतौ रैवै। आज रो बरत नोरतै रो दूजौ बरत बजै।

Thursday, March 26, 2009

२७ सैलपुत्री पैलां सिरै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २७//२२०९

सैलपुत्री पैलां सिरै

-ओम पुरोहित कागद

वासन्तिक नोरता आज सूं सरू। आज पैलो नोरतो। नोरता नौ देवियां रा रूप। देवी सगती री नौ रातां अर नौ दिन। देवी अर रातां एकूकार। इणी नौ दिनां में महालक्ष्मी परगटाई नौ देवियां। इणी नौ देवियां नै नवदुरगा बखाणीजै। नोरतां रै नौ दिनां अर नौ रातां में इणीज नव दुरगा री ध्यावना होवै। श्री लक्ष्मणदान कविया(खैण-नागौर) रचित दुरगा सतसई में नव दुरगा री विगत-

सैलपुत्री पैला सिरै, ब्रह्माचारिणी दुवाय।
तीजी चंद्रघंटा'र चव, कुषमांडा कहवाय।।
स्कंध माता पांचवीं, कात्यायनी छटीज।
कालरात्रि सातमी, महागौरी अस्टमीज।।
नवौ नांव दुरगा तणौ, सिद्धदात्री संसार।
प्रतिपादित बिरमा किया, सहजग जाणणहार।।

नवदुरगा में पैली दुरगा सैलपुत्री। मां भागोती रो पैलो सरूप। परबतराज हिमवान री लाडेसर बेटी। सैल नाम परबत रो। इणी कारण नांव थरपीज्यौ सैलपुत्री। सैलजा भी इण रो नांव। सैलपुत्री री सुवारी बळद। इण रै डावै हाथ में तिरसूळ। जीवणै हाथ में मनमोहणो कमल पुहुप। सिर माथै सोनै रो मुगट अर आधो चंद्रमां। पैलड़ै जलम में राजा दक्ष री कन्या रूप में जलमी। उण जलम में नांव पण सती। उण जलम आप घोर तप करियो। भगवान शिव नै राजी कर वर रूप में हांसल करियौ। पण दक्ष नै बेटी री आ बात नीं जंची। उणां शिव नै सती रै वर रूप में अणदेखी करी। सती नै आ बात अणखावणी ढूकी। सती रा बापू सा एकर जिग करियौ। सती रा वर शिव री अणदेखी करी। सती नै आ बात दाय नीं आई। बै रिसाणी होय'र बापू सा रै जिग-कुंड में बळ परी भस्म होयगी। उणां भळै हिमालय री कन्या रूप में दूजो जलम लियो। भळै तप करियो अर पाछी भगवान शंकर री अधडील बणी। उणां नै मनमुजम शंकर भगवान वर रूप में मिल्या।
सैलपुत्री नै मिली मनवाछिंत सिद्धि। इणरै पाण बै मनसां पूर्ण हुई। मनसां पूरण सारू लोग उणां नै हाल ताणी धौके-ध्यावै। घोर तपियां अनै जपियां नै दुरगा रो सैलपुत्री रूप घणौ भावै। जोगी सैलपुत्री नै ध्यावै। आं नै पड़तख राख जोग करै। जोग करतां मन नै मूळ आधार में थिर करै। इणरी ध्यावना सूं जोग्यां रा जोग जमै। तपियां रा तप सधै। जपियां रा जप फळै। जोग रा संजोग बैठै। जोग साधना री मूळ थरपीजै। नोरता पूजन रै पैलै दिन सैलपुत्री री उपासना सूं मन मुजब इंच्छा पूरण होवै। जग जामण मां दुरगा री पूजा में हर दिन मां रा सिणगार करीजै। हर दिन पण निरवाळा सिणगार। पैलै नोरतै में माता रा केश संस्कार करीजै। इण दिन माता जी री देवळ नै द्रव्य-आवंळा, सुगधिंत तेल भेंटीजै। केश संवारिजै। केश सवांरण री जिन्सां भेंटीजै। आखै दिन एकत राखीजै अर दुरगा सप्तसती रा पाठ करीजै।


२६ 'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी' लेखमाळा 1 सदा भवानी दाहिनी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २६//२००९


आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी

आपणी भाषा-आपणी बात स्तंभ में आज सूं रामनवमी तांईं आपां राजस्थानी रा लूंठा लिखारा ओम पुरोहित 'कागद' रा नवरात्रां रै मंगळ मौकै सारू लिख्योड़ा खास लेख बांचस्यां। 27 मार्च नै घटस्थापना रै साथै ई देवी आराधना रा अनुष्ठान सरू व्है जावैला। 'आओ, म्हारै कंठां बसो भवानी' लेखमाळा रै पैलै दिन आज जाणो नोरतां रो पूजन विधान।

सदा भवानी दाहिनी

-ओम पुरोहित कागद

राजस्थान रजपूतां-रणबंका री खान। पण सारू रण। पण पाळै अर रण भाळै। जीत री पाळै हूंस। हूंस पण स्यो-सगत रो वरदान। इणीज कारण स्यो रा गण भैरूं अठै पूजीजै। मां सगत दुरग रूखाळी। इणीज कारण दुरगा बजै। रणबंका खुद नै सगत रा पूत बतावै। मरूधरा रै कण-कण में रण री छाप। रण री देवी रणचंडी री ध्यावना आखो राजस्थान करै। नोरतां में तो कैवणो ई काँईं।घर-घर दुरगा री पूजा हुवै। सरूपोत में गजानंद महाराज अर सुरसत सिंवरीजै। भळै मात भवानी ध्यावै।

सिमरूं देवी सारदा। गुणपत लागूं पांय।।
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख होय गणेश।
पांच देव रक्षा करै, ब्रह्मा विष्णु महेश।।

एक साल में च्यार नोरता आवै। चैत, आसाढ, आसौज अर माघ रै चानण पख री एक्युं सूं नौमीं ताईं। चैत रा नोरतां नै वासन्तिक नौरता। आसाढ अर माघ रा नोरता गुप्त नोरता। आसोज रा नोरता बजै शारदीय नोरता। नोरता में जगजामण मां भागोती रै सैंकड़ूं रूपां री पूजा होवै। तीन मूळ देवियां- महालक्षमी, महाकाळी अर महासरस्वती। शक्ति रा उपासक आं री ध्यावना करै। शक्ति रा उपासक इणी पाण शाक्त बजै।
दीठमान जग रै सरूपोत में बिरमा जी परगट्या। एकला डरप्या। साथ री गरज पाळी। खुद रै ई रूप सूं देवी परगटाई।इण सारू बिरमा अर सगत में राई-रत्ती रो ई भेद नीं मानीजै। महादेवी कैवै- म्हैं अर बिरम सदीव एक हां। बुद्धि रै भरम सूं ई भेद लखावै। इणी जग जामण शून्य जगत नै पूरण करियो। महादेवी यानी महालक्ष्मी देवियां अर देव परगटाया। महालक्ष्मी पैली महाकाळी अर महासरस्वती नै प्रगट करी। भळै आं दोन्यां नै एक-एक स्त्री-पुरूष सिरजण री आज्ञा दीवी। खुद बिरमां अर लक्ष्मी नै सिरज्या। महाकाळी शंकर अर त्रयी नै। महासरस्वती विष्णु अर गौरी नै। पछै आपस में जोड़ा बनाया। शंकर-गौरी, विष्णु-लक्ष्मी, बिरमा-त्रयी(सुरसत) रा जोड़ा बण्या। भळै बिरमां अर सुरसत जगत रच्यो। विष्णु अर लक्ष्मी जगत नै पाळ्यो। शंकर अर गौरी परळैबेळा में जगतसंहार करियो।
महालक्ष्मी-महाकाळी अर महासरस्वती ई नौ देवियां परगट करी। शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी अर सिद्धिदात्री। आं रा दूजा रूप है-चामुंडा, वाराही, ऐन्द्री, वैष्णवी, महेश्वरी, कौमारी, लक्ष्मी, ईश्वरी अर ब्राह्मामी। नोरतां में इणी नौ देवियां री पूजा देवी भागवत मार्कण्डेय पुराण अर दुर्गासप्तसती में बताई विधि मुजब नौ दिनां तक होवै। पैलै दिन केश-संस्कार। दूजै दिन केश गूंथण-संस्कार। तीजै दिन सिंदूर-आरसी संस्कार। चौथै दिन मधुपर्क तिलक संस्कार। पांचवै दिन अंगराग-आभूषण संस्कार। छठै दिन पुष्पमाळा संस्कार। सातवैं दिन ग्रहमध्य पूजा। आंठवैं दिन उपवास अर पूजन। नौवैं दिन कुमारी पूजा। कुमारी कन्यावां नै जीमाइजै। दसवैं दिन पूजा करणियैं री पूजा अर जीमण, दान-दखणां। नौ रातां ताणी एकत करै। इणी कारण ऐ नौ दिन नोरता बजै।

नोरतां रो पूजन विधान

पैली घट थापना होवै। बेकळा री वेदी थरपीजै। वेदी में जौ-कणक रा ज्वारा बाईजै। इण माथै सोनै, चांदी, तांबै या माटी रो कळसियो धरै। कळसियै माथै देवी री फोटू लगावै। फोटू ना होवै तो कळसियै रै लारै साथियो। असवाड़ै-पसवाड़ै त्रिसूळ। पोथी या साळगराम धरै। पैलै नोरतै में स्वस्तिवाचन अर शान्ति पाठ कर'र संकळप लेईजै। भळै गणपत, षोडष मात्रिका, लोकपाळ, खेतरपाळ, नवग्रह, वरूण, ईष्टदेव री ध्यावना करै। प्रधान देवळ री षोडषोपचार सूं पूजा होवै। अनुष्ठान में महाकाळी अर महासरस्वती री पूजा होवै। नौ दिन तक दुर्गा-सप्तशती रा पाठ करै। नौ रातां दिवळो चेतावै। आधीरात, भखावटै अर दिनूगै जोत करीजै। सम्पदा चावणियां आठवैं दिन अर आखी धरती रै राज री मनस्या राखणियां नौवैं दिन माताजी री कढ़ाई करै। कढ़ाई रै दिन कुमारी पूजन होवै। कन्यावां नै देवी मान पग धोय'र गन्ध पुहुप सूं पूजा करियां पछै जीमावै। चूनड़ी-गाभा भेंटै। नोरतां में कन्यावां री पूजा रा फळ बखाणीजै। एक सूं एश्वर्य। दो सूं भोग अर मोक्ष। तीन सूं धर्म अर्थ अर काम। च्यार सूं राज्यपद पांच सूं विद्याङ्क्तबुद्धि। छै सूं षटकर्म सिद्धि। सात सूं राज्य। आठ सूं सम्पदा अर नौ सूं पिरथी री प्रभुता मिलै । दस वर्ष सूं कम री कन्यावां न्यारी-न्यारी देवी मानीजै। दो बरस री कन्या कुमारी। तीन बरस री त्रिमूर्तिनी। च्यार बरस री कल्याणी। पांच बरस री रोहिणी। छै: बरस री काळी। सात बरस री चंडिका। आठ बरस शाम्भवी। नौ बरस री दुर्गा अर दस बरस री कन्या सुभद्रा या स्वरूपा बजै।

Tuesday, March 24, 2009

२५ कुणां जी मुलावै घोड़ी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २५//२००९


कुणां जी मुलावै घोड़ी,

कुणांजी सजावै

राजस्थानी रा नूवां लिखारा सुलतानराम रो जलम 1 जुलाई, 1968 नै विजयनगर तहसील रै गोविंदसर गांव में हुयो। पत्र-पत्रिकावां मांय छपै। राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गोविंदसर मांय अध्यापक।

-सुलतानराम
9828402816

जिनगाणी रा सोळा संस्कार। ब्याव रो संस्कार घणो महताऊ। घिरसती रो आधार। संस्कार बिना सिरस्टी नीं चालै। टाबर परणावण-जोग होवै। मायत रिस्तो ढूंढै। सगाई री रस्म होवै। छोरी आळा छोरै रै घरां जावै। रिपियो-नारेळ देवै। इण काम सारू घर रा मिनख तो जावै ई जावै। नानकै-दादकै सूं भी भेज्या जावै। घणी हेलां फूंफै तकात नै बडेरचारो मिलै। बेटी रो बाप इण मोकै नीं जावै। छोरै रो टीको करीजै। छोरै आळां कानी सूं भी छोरी रै घरां जाइजै। नानकै-दादकै आळा जावै। फूंफा अर जवाइयां नै भी भेज्या जावै। छोरी नै गै'णो-गांठो अर बेस आद दीरीजै। आसीस दीरीजै। इण रस्म नै 'संधारो' या गोद भराई कैवै।
फूलरिया दूज अर आखातीज अबूझ सा'वा। ब्याव रै रंग चाव री सरूआत पीळा चावळां सूं। ओ सरेव दोनूं सगां रै किस्यै ई घरां हो सकै। सगा-सगा चावळां री पोटळी बदळै। बांथोबांथ मिलै। दोनूं परवारां रो परेम बधै। इण मोकै री गीत-रागां बडेरां रो मान बधावै। बनड़ै नै लडावै।

सूई सारैगी, तागो पाटै गो।
पोतो टीकीजै, फलाणै जी राव गो।

इणरै पछै भाई-बंध, काका-बाबा, फूंफा-मामा सगळां रा नांव लिया जावै। मोकै पर अड़ोसी-पड़ोसियां रा नांव भी नीं छूटै। सगा-परसगियां नै भी आं गीतां सूं खूब लडाइजै।

कठोड़ै सूं आया बिड़ला जी, कठोड़ै सूं आया रे नारेळ?
बीकाणै सूं आया बिड़ला जी, जोधाणै सूं आया रे नारेळ।
कुणां जी झाल्या बिड़ला जी, कुणां जी झाल्या रे नारेळ?
दादो-सा झाल्या बिड़ला जी, जामी-जी झाल्या रे नारेळ।

फेर आगै सूं आगै न्यारा-न्यारा नांवां सूं टेर चालती रवै। पीळा चावळां पर घोड़ी जरूर गाइजै। इण गीत में इतणो जोस'र हुळस होवै कै उठै बैठ्यै मिनखां रा होठ भी आपोआप फड़कण लागै। नाचण रा कोडीला पग आपोआप ठुमकण लागै।

कुणां जी मुलावै घोड़ी कुणांजी सजावै,
कुणां जी रै कारण घोड़ी आई है!
लखपतियां री घोड़ी
जामी जी मुलावै घोड़ी माताजी सजावै,
बनड़ै रै कारण घोड़ी आई है।
लखपतियां री घोड़ी

ब्याव संपूरण होवण तक न्यारा-न्यारा टेवां पर रंग-चाव चालबो करै। हिड़दां में हेत गाढ़ो होयबो करै। ढोल-ढमीड़ा बाजै। जीमण रा कोडीला लाडूवां रा सुरंगा सुपना जोवै।

आज रो औखांणो

ब्याव रा गीत तो गायां सरसी

ब्याह के गीत तो गाने ही पड़ते हैं।

उचित अवसर पर किए हुए काम की अपनी ही शोभा है।

२४ चौधरी दौलतराम सहारण संस्कृति अवार्ड


चौधरी दौलतराम सहारण

संस्कृति अवार्ड


हनुमानगढ़, 24 मार्च। प्रसिद्ध हास्य-कलाकार व फिल्म अभिनेता ख्याली सहारण व उनके अग्रज हनुमान, जीराम, रामकुमार व दुलाराम सहारण ने अपने पिता चौधरी दौलतराम सहारण की स्मृति में प्रतिवर्ष दो संस्कृति कर्मियों को पुरस्कृत करने की घोषणा की है ख्याली ने बताया कि यह अवार्ड उनकी माता श्रीमती तीजां देवी के सान्निध्य में शुरू किया गया है। इस वर्ष का चौधरी दौलतराम सहारण संस्कृति अवार्ड परलीका के युवा कवि तथा राजस्थानी आंदोलन के जुझारू कार्यकर्ता विनोद स्वामी और बरवाळी के राजस्थानी गीतकार रामदास बरवाळी को दिया जाएगा। पुरस्कार चयन समिति के राजेन्द्र छींपा, प्रहलादराय पारीक, सत्यनारायण सोनी, बाबूलाल जुनेजा तथा कृष्णकुमार आशु ने सर्वसम्मति से इन नामों की घोषणा की है। अवार्ड के रूप में स्वामी बरवाळी को 5100-5100 रुपए, स्मृति चिह्न, शॉल श्रीफल प्रदान किए जाएंगे। पुरस्कार समारोह 31 मार्च को सायं 7 बजे ख्याली के गांव 18 एसपीडी में उनके पिता के तेहरवें के अवसर पर आयोजित होगा।

आयोजित होगा कवि सम्मेलन भी

ख्याली ने बताया कि इस अवसर पर हास्य कवि सम्मेलन होगा। जिसमें राजस्थानी के सुप्रसिद्ध कवि ताऊ शेखावाटी, रामस्वरूप किसान तथा रूपसिंह राजपुरी सहित मुंबई के कई हास्य कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देंगे।

अनूठी परम्परा की शुरूआत

गौरतलब है कि ख्याली के पिता दौलतराम सहारण का 19 मार्च को 88 वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया था। उनकी याद में ख्याली के परिवार ने मृत्युभोज की बजाय संस्कृति अवार्ड व हास्य कवि सम्मेलन आयोजित कर अनूठी परम्परा की शुरूआत की है। ख्याली ने बताया कि उनके पिता ने अपनी समस्त जिम्मेदारियां निभाने के पश्चात देवलोक गमन किया है। इस अवसर पर मातम की बजाय एक स्वस्थ हँसी-खुशी के माहौल के सृजन के उद्देश्य से ही हास्य कवि-सम्मेलन करवाया जा रहा है।


Sunday, March 22, 2009

२३ देस पुकारै वीर नै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २३//२००९


देस पुकारै वीर नै,

नैणां भर-भर नीर


जस आखर लिखै जठै, वा धरती मर जाय।
संत सती अर शूरमा, ऐ ओझळ व्है जाय।।

साची कैयो, कवि हनुवन्तसिंह देवड़ा। इणी वास्तै वीर-शहीदां री गाथावां गाईजै। वां सूं प्रेरणावां लीरीजै। आज रो दिन भीड़ै वीर-शहीदां री गाथावां गावण रो दिन। 23 मार्च, 1931 शहीद--आजम सरदार भगतसिंह अर वां रा क्रांतिकारी साथी राजगुरू अर सुखदेव रो बलिदान-दिवस। आखो देस आज रै दिन वां नै याद करै। पंजाबी रा नांमी अर क्रांतिधर्मा कवि अवतारसिंह पाश रो नांव भी किणसूं छानो। आज रै दिन फगत 38 बरस री उमर में सन् 1988 नै वै आपरै गांव तलवंडी सलेम (जालंधर) मांय आतंकवादियां री गोळी सूं शहीद हुया। सरदार भगतसिंह रो कथन आज रै दिन याद करां- 'क्रांति बम अर पिस्तोल री संस्कृति नीं, क्रांति उण व्यवस्था रै खिलाफ संघर्ष है, जकी मिनख सूं मिनख रो शोषण करवावै।' आओ, आज रै दिन बांचां कवि रामस्वरूप किसान रा सरदार भगतसिंह रै नांव रचियोड़ा दूहा। फगत बांचा नीं, बांच-बांच' सुणावां। देसभगती री भावना जन-जन रै मन में जगावां।

खून दियो जिण वास्तै, बां रो पी'ग्या खून।
बूझै देस भगतसिंह, क्यूं बैठ्यो थूं मून।।

भगतसिंह तनै याद करूं, हिवड़ै जागै हूक।
आजादी रै थानड़ै, सीस चढायो मूक।।

काम करणिया आदमी, थानै रैया पुकार।
एकर औरूं पधारियो, भगतसिंह सरदार।।

औरूं लड़स्यां लाजमी, आजादी री जंग।
देस कवै सरदार नै, ले गे थानै संग।।

देस पुकारै वीर नै, नैणां भर-भर नीर।
एकर औरूं आवणा, धणी, बंधावण धीर।।

भगतसिंह थूं गयो कठै, रोवै मायड़भोम।
जोधा थारी बाट नै, जोवै मायड़भोम।।

आज रो औखांणो

सूर नंह पूछै टीपणो, सुकन नंह देखै सूर।

शूर पूछे पंचांग, शकुन देखे शूर।

ज्योतिषी के पास मुहूर्त शकुन पूछने वही व्यक्ति जाता है, जिसे जीवन के प्रति अत्यधिक मोह हो, जिसे मरने का अधिक डर हो, जो सुख-सुविधाएं भोगने का आकांक्षी हो और जिसे कमाने का प्रबल लोभ हो। लेकिन इसके विपरीत जो शूरवीर युद्ध में मरने को ही एकमात्र सुख मानता हो, भला वह मुहूर्त शकुन पूछने की खातिर ज्योतिषी के पास क्यों खामखाह चक्कर काटेगा!

कविराजा बांकीदास के दोहे का यह अंश कहावत के रूप में भी प्रचलित है। पूरा दोहा इस प्रकार है-

सूर नंह पूछै टीपणो, सुकन नंह देखै सूर।
मरणां नै मंगळ गिणै, समर चढै मुख नूर।।

(आज रो औखांणो- विजयदान देथा के 'राजस्थानी-हिंदी कहावत-कोश' से साभार)

Saturday, March 21, 2009

२२ राजस्थानी सबद अर संस्कार

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २२//२००९


राजस्थानी सबद अर संस्कार

-ओम पुरोहित 'कागद'

राजस्थानी भाषा जित्ती मीठी, बित्ती ई संस्कारी। संस्कारां री छिब पग-पग माथै। खावण-पीवण, पैरण-ओढण, उठण-बैठण में संस्कार। बोलण-बतळावणं में संस्कार। सबदां रा संस्कार सिरै। कैबा कै बाण रा घाव मिटै, पण बोली रा घाव नीं मिटै। इण सारू सावचेती सूं बोलणो। बोलण सारू बगत-घड़ी, वेळा-कुवेळा अर ठोड़-ठिकाणों देखणो। ऊंच-नीच अर काण-कायदो देखणो। बो' ई सबद बपरावणो, जकै री दरकार। मांदो नीं बोलणो। नन्नो नीं बरतणो। यानी नकार नीं बरतणो। बडेरा सिखावै कै नीवड़णो, बंद करणो, कमती होवणो, बुझावणो, आग लगावणो जेड़ा सबद नीं बोलणा। नीं, कोनी अर खूटणो मूंडै सूं नीं काढणो।
आपणी भाषा री मठोठ देखो। चूल्है में आग बाळणो नीं, चूल्हो चेतन करणो कैईजै। मरणै नै सौ बरस पूगणो। दुकान बंद करणै नै दुकान मंगळ करणो। दीयो बुझावण री
ठोड़ दीयो बडो करणो। घटती नै बढती। मारणै नै हिंडावणो या धोबा देवणो। लूण नै मीठो। गुण बायरै नै रंगरूड़ो का रोहिड़ै रो फूल। पाणी में चीज न्हाखण नै पधरावणो। जावणै नै पधारणो। जांवण री इग्या मांगणियै नै जा' री ठोड़ 'बेगो आई' कैवणो। कठै जावै पूछणो होवै तो पूछीजै सिधसारू, पण कठकारो नीं देईजै।
कांण-मोकाण में लोकाचार। मरियो
ड़ै री 12 दिन बैठक। मरियोड़ै रै समचार नै चिट्ठी। अस्त चुगण नै फूल चुगणो। इणी कारण पुहुप नै फूल नीं कैईजै। सांप रै डसण नै पान लागणो। मरियोड़ै टाबर नै माटी देवणै नै आडै हांथां लेवणो। साग-सब्जी नै काटणो नीं, बंधारणो का सुंवारणो कैईजै। ओसर-मोसर, कारण-ऐढां माथै जीमण सारू बुलावण नै नूंतो। फगत बुलावण सारू तेड़ो। जवाई नै तेड़ो। गीतां रो तेड़ो। मैं'दी-पीठी रो तेड़ो उच्छब-रैयाण रो तेड़ो कैईजै। जकै रै बाप नीं होवै बो बापड़ो। मा रै जिको चिप्यो रैवै बो मावड़ियो। हांचळ सूं दूध नीं पीवै, पण आंगळ्यां सूं कुचरणी करै बो कुचमादी। सासरै जांवती छोरी रै कूकणै नै बिराजी होवणो। पोतियो गमी में पै'रीजै। जींवतै रो सिराणो उतरादै नीं करीजै। बडेरो मरियां बाळ कटावणै नै भदर होवणो कैईजै। आडै दिनां दाड़ी-मूंछ नीं कटाईजै। दाड़ी-मूंछ मायतां रै मरियां ई कटाईजै। पण बाळ कटावण नै सुंवार करावणो कैईजै। यानी बात साफ है कै काटणो अर कटावणो कैवणो ई कोनी। एक सोरठो चेतै आवै-

मरता जद माईत, मूंछ मुंडाता मानवी।
रोज मुंडावण रीत, चाली अद्भुत चकरिया।।

हाजत-आफत सारू बी न्यारा सबद। गा छंगास। मिनख पाळी। सांढ-ऊंठ चीढै अर भैंस मूत करै। पण अब तो मिनख मूत करण लागग्या। निमटणै री संका नै हाजत। निमटणै नै संका भांगणो। जंगळ जावणो। दिसा जावणो। फिरणो। बन जावणो। भरिया करण का छी छी जावणो कैईजै। पैसाब करण नै संको पालणो, भीजिया का नाडो खोलणो कैईजै। रितु धरम नै गाभा।
रोटी खास्यूं कैयां बडेरा कैवै डाकी है के? ईं सारू सबद है जीमण। जीमण सारू थाळी लगावणो। पुरसणो। जिमावणै नै पुरसगारी अर जिमावणियै नै पुरसगारो कैईजै। बातां तो भोत है, पण बडेरां खनै बैठ्यां ई लाधै।

आज रो औखांणो


हंसा सरवर ना तजो, जे जळ खारो होय।

डाबर-डाबर डोलतां, भला न कहसी कोय।।

हे हंसो, यदि जल खारा है तो भी सरोवर मत छोड़ो। पोखर-पोखर डोलने से कोई तुम्हें भला न कहेगा।

जिस भूमि और जल से हमारा सीर-संस्कार जुड़ा है, उसकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। वरना कहीं भी कद्र नहीं होगी।

Friday, March 20, 2009

२१ भंवर म्हानै बोरिया भावै

आपणी भाषा-आपणी बात

तारीख- २१//२००९

भंवर म्हानै बोरिया भावै

-प्रहलाद राय पारीक

सिरजणहार धरती सिरजी। आभो सिरज्यो। नदी, पहाड़, समंदर सिरज्या। रूंख, पानड़ा, बेलड़ी, कीड़ी, मकोड़ा, सांप, गोयरा, अजगर सिरज्या। पांख-पंखेरू सिरज्या। हाथी, घोड़ा, ऊंट, बांदर, बनमाणस सिरज्या। पण मिनख री सिरजण अणूंती कळा। सिरजणहार मिनख नै आपरी सगळी सगती सूंप सिरजक बणायो। अब बो मिनख सिरजै भांत-भांत री कळावां। भांत-भांत री चीजां। भांत-भांत री बातां।
मिनख लोक नै सिरज्यो। लोकभाषा सिरजी। संस्कृति अर संस्कार सिरज्या। देई-देवता, भोमिया-पित्तर, पीर-पैगम्बर सिरज्या। संस्कारां नै थिर राखण सारू सिरज्या लोकगीत। मिनख रै पेट पड़नै सूं लेय'र मरणै तक रा सगळा संस्कारां, रीत-रिवाजां, मंगळ-मौकां रा गीत। आं गीतां री सरसता मिनखां में उमंग भरै। एक-एक बोल थाकेलो हरै। म
रियोड़ा मन जीवंत करै। जद ई तो पीढ़ी दर पीढ़ी कंठ सूं कंठ लगोलग ऐ गीत गूंजबो करै।
मिनख रै पेट पड़नै सूं लेय'र नव म्हीनां तांईं रा गीत 'हूंस रा गीत' बाजै। लुगाई री सारथकता मां बणनै में ई मानीजै। लुगाई रो भी ओ सै सूं मोटो सपनो। इण सारू पेट मंडाण रै सागै ई उणरै मन मांय सिरजण रो उछाव पांगरै। इणी उछाव में बा जापै री पीड़ रो सामणो करण सारू त्यार व्है जावै। इण वेळा गाइजण वाळा गीत भी उण में मोकळी ताकत भरै। आं दिनां लुगाई में डीलगत अर मनगत बदळाव आवै। न्यारी-न्यारी चीजां खावण री मनस्या हुवै। आं बदळावां रो बखाण लोकगीतां मांय बड़ो सोवणो अनै मनमोवणो। हूंस रा गीत घेवर, कैर, बोर, मतीरो, पड़वाळियो आद नांवां सूं जाणीजै।

लाल पिलंगड़ो पिछोकड़ै, सूती जे कोई बूझै बात
भंवर म्हानै बोरिया भावै।

घेवर री हूंस रै गीत मांय दस म्हीनां में री न्यारी-न्यारी हूंस रो जिकर आवै-

पैलो मास'ज जच्चा राणी नै लागियो
म्हारो मन पड़छायां जाय।
म्हारो मन हरख्यो घेवर में।
आ तो हूंस भली छै घर री नार
थारो सुसरोजी पुरावै ओ राज
म्हारो मन हरख्यो घेवर में।

आज रो ओखाणो

कूख सूं जायोड़ो सरप ई मां नै वाल्हो लागै।

कोख से जन्मा साँप भी माँ को प्रिय होता है।

मां की कोख से बदमाश, लंपट व शैतान ही क्या,
यदि साँप भी पैदा हो जाय तो वह उसे प्यार करती है।


मां की ममता का कोई पार नहीं।

Thursday, March 19, 2009

२० समै मांय बेरिया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २०//२००९


काळ मांय कैरिया, समै मांय बेरिया

-रामदास बरवाळी

बू़ढा-बडेरां रै मूंडै सुणां ओ औखांणो- काळ मांय कैरिया, समै मांय बेरिया। सदियां सूं चालतो आवै ओ जिकर। समै री सैनाणी बेरियां सूं जाणी। बियां तो बेरिया सै नै चोखा लागै, पण लुगाई-पताई अर टाबरां साथै कीं ज्यादा ई मोह-जाळ हुवै बेरियां रो। क्यूं कै बेरियां रो सीजन दो-तीन म्हीनां तांईं रैवै। टाबर काढ़ै गच्च। बेरड़्यां रै मींझर सरू होवतां ई टाबर झाबरा काटणा सरू करद्यै, मोढै झोळा टांग। कईयां रै हाथां मांय दग्गड़। कईयां रै लाम्बा-लाम्बा तड़ा। फिरै खेतां मांय रोझां री ढाळ। भांत-भांत री बेरड़ी। भांत-भांत रा बेरिया। भांत-भांत रै टाबरां रा टोळ। कइयां रै पगां मांय बूंटिया, कइयां रै चप्पली, कई उभाणा भी चाल व्हीर हुवै। कांटा गडण री कोई परवा नीं हुवै। कीं पजामा आळा। कीं कछड़ी आळा। कीं मांय-बिचाळै सीधा ई हुवै नंग-धड़ंग। बगै बेरियां रै चाव मांय दड़ाछंट। बेरड़ियां रै तळै गूंछळो बणा'र, मारै दग्गड़। कोई तड़ां सूं पीटै। झाड़ै बेरिया। कद ई झाड़ बेरड़ी़ पीटै। कद ई देसी। तो कद ई पेमली। भांत-भांत रा बेरिया, घालै न्यारा-न्यारा। कीं झोळै में। कीं जेबां में। कीं कुड़तिये री झोळी मांय। और कोई-कोई तो पजामै रै पांयचा में भरै बेरिया अर लपेटै कड़तू रै बा'रकर। जाणै न्योळी बांधी होवै रिपियां री भरेड़ी चाखै कई मेळ रा सवाद। रोटी-पाणी याद नीं आवै बेरियां रै मोद मांय। दूहो है-

आंधी झाड़ै बोरिया, टाबर चुग-चुग ल्याय।
मरुधर मेवा हेत सूं, जीमै काख बजाय।।

मजै री बात तो आ है कै जित्तै भांत रा बेरिया। बित्ता ई नांव। मायड़भासा री आ अळगी पिछाण। बेरिया, बोरिया, बेर, बोर, घाघड़ा, गुटाल, आळा घाघड़ा, पेमली, झाड़ी-बेरिया, हाळी-बेरिया, भुळावणा-बेरिया, दूधिया, खारक, सेब, मीठा, चमेली, देसी, रांग अर कंठ-बेरिया। इयां ई कई मीठा, फीका, खाटा, चरपरा, बै़डा। कई तो इतणा खाटा कै घेटुवो ई पकड़ल्यै। कोई भोळो-स्याणो खा'ल्यै तो आंख कढ़ा द्यै। बगत पर पाणी नीं हुवै तो नानी याद आज्यै। बेरियां बाबत लुगायां ई लारै नीं रैवै। भरोटी पूळी रै मिस गंठड़ी में बांध'र ल्यावै। ओल्लै-छानै भावै जित्ता खावै। बंचे़डा छात पर सुकावै। साझै मुलायजा, पुगावै दूर-दूर तांई, प्यारै परसंगियां मांय, भर-भर कोथळिया।

आज रो औखांणो

बोलै जिणरा बोर बिकै।

जो बोले, उसी के बेर बिकते हैं।

जो हांक लगाते हैं, उनका माल बिकता है। खामोश रहने वालों का माल पड़ा रहता है।

Wednesday, March 18, 2009

१९ ख्याली सहारण छे़डेंगे अभियान


राजस्थानी
भाषा के पक्षधर

को ही समर्थन की अपील

हास्य कलाकार ख्याली सहारण छेड़ेंगे अभियान

भाषा को बनाएंगे चुनावी मुद्दा

हनुमानगढ़, 17 मार्च। प्रसिद्ध हास्य कलाकार एवं फिल्म अभिनेता ख्याली सहारण ने प्रदेश वासियों से लोकसभा चुनावों में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता के समर्थक प्रत्याशियों को ही वोट देने की अपील की है। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों से जन सम्पर्क के दौरान अपनी मायड़भाषा में ही संवाद का आग्रह करते हुए इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने का आग्रह किया है।
ख्याली ने सोमवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में अफसोस जताया कि राजनीतिज्ञ राजस्थानी के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं। अमरीकी प्रशासन ने प्रमुख भाषा के रूप में राजस्थानी को मान्यता दी है, पर अपने ही देश में करोड़ों लोगों की यह मातृभाषा संवैधानिक मान्यता को तरस रही है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी भाषा का महत्त्व समझना चाहिए। यदि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिल जाए तो प्रदेश में सरकारी नौकरियों के लिए इसकी अनिवार्यता लागू हो सकती है।
ऐसा होने पर राजस्थानी भाषियों को सरकारी सेवाओं में स्वत: ही प्राथमिकता एवं वरीयता मिलने लगेगी। ख्याली ने कहा कि जो भी राजनीतिक दल या प्रत्याशी राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के लिए प्रतिबद्धता जताएगा वे उसके लिए लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार करेंगे।

भास्कर के प्रयासों की सराहना

राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए 'भास्कर' के प्रयासों की सराहना करते हुए ख्याली ने कहा कि राजस्थानी होने के नाते इसकी जितनी सराहना की जाए, वह कम है। ख्याली ने 'भास्कर' में प्रकाशित नियमित स्तंभ 'आपणी भाषा-आपणी बात' को राजस्थानी भाषा की मान्यता दिलाने के अभियान के लिए मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा कि इससे राजस्थानियों को 'भास्कर' का शुक्रगुजार होना चाहिए।

किए कई आइटम साँग

ख्याली सहारण ने बताया कि उनकी नई फिल्म 'मेरी पड़ोसन' 10 अप्रेल को रिलीज होगी। उन्होंने कहा कि फिल्म 'सिंह इज किंग' में आइटम साँग के रूप में उन पर फिल्माया गया गीत 'तैनूं दूल्हा किन्हे बनाया.....' हिट होने के बाद उनकी मांग बढ़ गई है। उन्होंने इसके बाद कई फिल्मों में आइटम साँग किए हैं। इस अवसर पर उन्होंने कई राजस्थानी हास्य गीत व चुटकले भी सुनाए।

व्हाइट बीयर बोले तो छाछ

राजस्थानी की माटी की खुश्बू बिखेरने के लिए ख्याली इन दिनों एलबम जारी करने तैयारी में हैं। उन्होंने कहा कि 'व्हाइट बीयर बोले तो छाछ' नामक एलबम में राजस्थानी संस्कृति रहन-सहन, पर्यटन क्षेत्रों की जानकारी, शिक्षा पद्धति तथा कुरीतियों पर कटाक्ष करते आइटम शामिल किए जा रहे हैं जिसे सुनकर प्रवासी राजस्थानी खुद को माटी के निकट पाएंगे।
(समाचार पत्रों से साभार)


१९ छोलियां री चटणी

आपणी भासा-आपणी बात
तारीख
- १९//२००९

छोलियां री चटणी,

पीठ फोरगे गिटणी


26 अगस्त, 1979 नै नोहर तहसील रै बरवाळी गांव में जलम्या दयाराम ढील राजस्थानी रा युवा लिखारा। अध्यापक अर समाजसेवी। आपरी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपै अर आकाशवाणी सूं प्रसारित हुवै। आज बांचो आं रो ओ लेख।

-दयाराम ढील

छोलियां री रुत आंवतां पाण जीभड़ी करै किलोळ। करै जाड़ां साथै मजाक। बूढा-बडेरा, हाळी-पाळी, छोरी-छांपरी, लुगायां-पतायां, टाबर-टीकर बगै उपाळा, खेतां कानी, छोलियां रै कोड में। गांव रै गौरवैं निकळतां पाण मूंडो आपी पळपळाइजै। मतै ई जावै हाथ बूंटां कानी। घेघरियां सूं लड़ालूम बूंटा घणा ई जीव लळचावै, पण जोर कोनी चालै। जिकां रै आपरा खेत, बां रै तो घणा ई ठाठ, पण जिकां रै खेत नीं, बां री पीड़ कुण जाणै! भरयै खेत माखर कुत्तै ज्यूं टिपो, का फेर निजरां चुका'र इण जीभड़ी रो बाळा-फूंको करो। पण छोलियां रो सुवाद तो खावै जिको ई जाणै। काचा खावो, पाका खावो एक सूं एक जबरो सुवाद। ना जीभ थमै, ना पेट भरै। जाड़ां चालबो करै। छोलियां रो सुवाद ऐ
ड़ो कै मन में आवै, आ रुत कदे नीं जावै।

हांथां सुरड़ै घेघरी, चालै चाकी जाड़।
कुकै ऊभा छोलिया, बड़ग्यो सांड लुंगाड़।।

पाड़ै बूंटा, बांधै पांड। घरां आंवतां पाण सगळा फिरै बा'रकर। छोलिया काढण सारू बीनणी सासू कनै बैठ ठूळो ठरकावै- छोलियां री चटणी, पीठ फोरगे गिटणी।
मांय बिचाळै टाबरिया ई डांचळी मार ज्यावै। चटणी री भरै कूंडी। कइयां रै पल्लै पड़ै, कइयां में होवै भूंडी। कई तो आंगळी चाटता ई रैय जावै।

चटणी प्यारी, तीवण प्यारो, प्यारा लागै होळा।
नाचै गावै, काख बजावै, टाबर चढग्या छोळां।।


पेट रो कोटो पूरो होयां याद आवै छोलियां रा बीजा सुवाद। धोरियै माथै भींटका बाळै करै होळा।

बाळ भींटको धोरियै, होळा करै किरसाण।
पैली खाया धापगे, फेरूं करै लदाण।।


आज रो औखांणो

छोलियो अर गोलियो मूंडै लाग्यां माड़ो।

चना और दुष्ट व्यक्ति मुँह लगे अच्छे नहीं।

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खेद है सा!

'आपणी भाषा-आपणी बात' स्तंभ मांय 18 मार्च नै छप्यै लेख 'अजब-गजब धोरां री काया-माया' (रूपसिंह राजपुरी) रै एक सबद माथै सिक्ख समाज रै वरिष्ठजनां स. तेजेन्द्रपालसिंह टिम्मा, मुखत्यारसिंह बढावण, सूरतसिंह, मुकुंदसिंह महराजका, गुरुकृपालसिंह, गुरुप्रीतसिंह, नौनिहालसिंह, कुलविंद्रसिंह, हरसिमरणसिंह, इकबालसिंह, अवतारसिंह, नक्षत्रसिंह, सुनील भाटिया अर अभिभाषक कुलवंतसिंह संधू अर अभिभाषक अमरजीतसिंह जॉली 'भास्कर' कार्यालय मांय पधार'र आपरो विरोध दर्ज करवायो।
'भास्कर' हमेस जनभावना रो सनमान करतो रैयो है अर करतो रै'सी। अणजाण-पणै मांय हुयी इण भूल सूं आपरी भावना नै ठेस पूगी, इणरो म्हानै घणो खेद है।
-संपादक






Tuesday, March 17, 2009

१८ अजब-गजब धोरां री काया-माया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
-१८//२००९

अजब-गजब धोरां री काया-माया


रूपसिहं राजपुरी रो जलम 15 अगस्त, 1954 नै संगरिया तहसील रै गांव मोरजंडा सिक्खांन में होयो। राजस्थानी में साहित रचणवाळा देस रा पै'ला सरदार। देस-विदेस में हास्य-कवि रै रूप मांय चावो नाम। सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड अर हांगकांग रै मंचां पर राजस्थानी कविता पाठ। आधा दरजन पोथ्यां रा लिखारा। शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अध्यापक। रावतसर में बसै। राजस्थानी मान्यता आंदोलन सूं सरू सूं ई जु़डाव। दूरदर्शन अर रेडियो सूं प्रसारण।

-रूपसिहं राजपुरी
कानाबती- 9928273519

राजस्थानी धरती री पिछाण आन-बान खातर पिराण लुटावणियां रण-जोधां सूं है, जकां रा नाम चेतै करतां ई काळजै में करण-करण, बूकियां में सरण-सरण अर मूंछ्यां में फरण-फरण होवण लागज्यै। अठै इस्या-इस्या बीर हुया, जका सिर कट ज्याण पछै भी बैरयां रा सिर कड़बी-सा काट-काट छांग लगांवता। जोर पिताण अर हथियारां रो काट उतारण सारू लड़ाई मोल ले लेंवता। उधारी लेवण सूं भी को चूकता नीं। जद ई तो कैयो है-

केसर नंह निपजै अठै, नंह हीरा निपजंत।
सिर कटियां खग सांभणा, इण धरती उपजंत।।


ईं धरती री पिछाण एक और चीज सारू भी है, बा है, ईं रा धोरा। जिकां नै टीबड़िया भी कैवै। धड़ा भी कैवै। दूर-दूर तांणी रेत रो समंदर। आंधी, बोळी-काळी आंधियां अठै सूं ई उपजती अर अठै ई खत्म हो जांवती। भरमां-बहमां रा बाप भंभूळिया भी अठै ई जलमता। रात ई रात में चै'न चक्कर बदळ जांवतो। नक्सो पळट जांवतो। मोटो
ड़ो धोरो गावं री आथूणी कूंट होंवतो पण दिनूगी नै अगूण दीसतो।
आं धोरां सागै ई जु़ड्यो है अठै रै रैवासियां रो जीणो-मरणो। टाबर गुडाळियां चालणो पैलपोत रेत पर ई सीखै। पक्कै फरस पर सौ जोखम। पण रेत मां री गोद-सी सुखाळी-रूपाळी। ठुमक-ठुमक, रूणझुण बजांवतो टाबर कोडां-कोडां मे ई चालणो सीख जावै। मोटा होवण रै पछै रेत सूं हेत बधै। जेबां-झोळ्यां भर-भर खेलै। साथी-संगळियां पर उछाळै। किलोळ करै। थोड़ा और मोटा होय'र डांगर-ढोर चराण जावै तो आं टीबां में सरण मिलै। धोरां री ओट भांत-भांत रा खेल खेलै। कुरां-डंडो, आंधो-झोटो, सक्कर-भिज्जी, लूणिया-घाटी, लाला-लिगतर अर मुरचा-पिछाण।
कित्ता ई चिड़ी-जिनावर टीबां रै आसरै दिन कटी करै। हेरण, रोझ, गोडावण, चीतल, सांभर, गादड़, लूंकड़, रो'ई-बिल्ला, सेह, गोह, नेवळिया, गोईरा, सुसिया, परड़, बिच्छू, ऊंदर, टीटण, कसारी, किरड़कांटी, भूंड-भूंडियो अर बू़ढी-माई बरणा अलेखूं जीव-जिनावर धोरां सूं हेत को तोड़ सकै नीं। तीतर, बुटबड़, गिरझ, चील, घग्घू, सिकरा, बाज, कोचरी अर कागडोड टीबां सूं दूर कठै! बणराय मतलब वनस्पति रा तो ऐ धोरा खैंण। डचाब, बूर, भुरट, सींवण, खींप, सिणियो, बूई, बोझा, झाड़की, रोहिड़ा, खेजड़ी, इरणां, जाळ, सरकणां, फोग, रींगणी, धतूरा, आक, आसकंद, मूसळी, कुरंड, मोथियो, और कठै लाधै!
छोरी नै परणावण सारू हाथ पीळा करण री कैबा ना चाल'र धोरियै ढळावण री कैबा चालै। घणा ई धोरा आपरै नाम सूं औळखीजै। लाखा धोरा, टेसीटोरी धोरा, समराथळ धोरा, रत्ता टीबा। सूरतगढ़ रै आ'र-बा'र रो सैकड़ूं मील रो ऐरियो टीबा खेतर रै नांव सूं जाणीजै। सदियां सूं टीबा गांव-गुवाड़ रा साखी अर संस्कृति रा रथवान। जद तक दुनिया रै'सी। टीबां री बातां रैसी। फिलमां आळा अर विदेशी सैलाणी टीबां कानी भाज्या आवै तो कोई तो कारण होसी!

अब एक हांसणियै रा मजा ल्यो सा!

राजस्थानी पढ़ाणिया गुरूजी बीं दिन छुट्टी पर हा। हेडमास्टरजी बां री जिग्यां एक दूसरा मास्टरजी नै पढ़ाण भेज दिया। बै राजस्थानी सूं सफा कोरा। बां पाठ पढ़ायो अर आपरी तरफ सूं अरथ भी कर दियो।

'ईं धरती रो रुतबो ऊंचो, आ बात कवै कूंचो-कूंचो।'

बां मास्टरजी अरथ समझायो, 'राजस्थान की धरती की मान-मर्यादा बड़ी महान है। इस बात को पंजाब का हर सिक्ख भी कह रहा है।

आज रो औखांणो

धोरा किण री कांण राखै, चढ़तां दौरा तो उतरतां सौरा।

टीले किसी का लिहाज नहीं रखते, चढ़ते हुए कठिन तो उतरते हुए आसान।

चाहे अमीर चढ़े या गरीब, चाहे राजा चढ़े या रंक दोनों के लिए चढ़ना मुश्किल और उतरना आसान।


आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?