Friday, April 17, 2009

१८ म्हारी जबान पर ताळो क्यूं

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
- १८//२००९

म्हारी जबान पर ताळो क्यूं

डॉ. भरत ओळा रो जल 6 अगस्त, 1963 नै भादरा तहसील रै भिराणी गांव में हुयो। आजकाल नोहर में रैवै। राजस्थानी रा चावा कथाकार। साहित्य अकादेमी समेत मोकळा पुरस्कार अर मान-सनमान मिल्या। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रा राजस्थानी परामर्श मंडळ सदस्य अर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा पैला प्रदेशाध्यक्ष। शिक्षा विभाग राजस्थान मांय अध्यापक।
-डॉ. भरत ओळा

राजस्थानी री मानता सारू लाम्बै बगत सूं आंदोलन चालै। लारलै दस बरसां में ओ आंदोलन गति पकड़्यो है अर जन आंदोलन बणतो जा रैयो है। संघर्ष समिति लगोलग धरणा-प्रदरसण करै अर रैलियां काढै। 3 मार्च, 2003 नै राजस्थान विधानसभा रै साम्हीं प्रदरसण कर्यो अर उण वगत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सूं संघर्ष समिति री बंतळ हुयी। 25 अगस्त, 2003 नै राजस्थान विधानसभा में राजस्थानी री संवैधानिक मानता सारू सर्व सम्मति सूं संकळप प्रस्ताव भी पारित हुयो। अबै केन्द्र सरकार नै आठवीं अनुसूची में राजस्थानी भाषा नै भेळी करणी है अर आ आज नीं तो का'ल भेळी हुय जासी।
राजस्थानी रै हेताळुवां साम्हीं अर दूजा भायां रै मगज में कीं सवाल सदीव उठता रैवै कै राजस्थानी भाषा कुणसी है? उणरी साहित्यिक-व्याकरणिक ताकत किसी'क है? आ राज री मानता री हकदार है'क नीं? है तो आज तांईं मिली क्यूं कोनी? राज री मानता सूं कांईं हुसी? आ क्यूं जरूरी है? मिल्यां कांईं-कांईं फायदा अर नीं मिल्यां कांईं-कांईं घाटा? और घणा ई सवाल है जिकां रो पडूत्तर आम मिनख नै मिलणो चाइजै।
इण में कोई दो राय कोनी कै राजस्थानी आखै जगत री सबळी भासावां मांय सूं एक है। आपणी भासा खासी जूनी पण नांव नूंवो। राजस्थान सबद सै सूं पैली कर्नल जेम्स टॉड आपरी पोथी 'एनल्ज एण्ड एटिक्विटीज ऑफ राजस्थान' (1828 ई.) में बरत्यो। इणी आधार पर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन आपरी पोथी 'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' (1907-08 ई.) में राजस्थान सूबै री भाषा सारू 'राजस्थानी' सबद बरत्यो। जार्ज ग्रियर्सन सूं पैली राजस्थानी भाषा सारू मरुभाषा, मरुवाणी, मरुदेसीय भाषा, मरुभूम भाषा आद नांव लाधै। जिकी थोड़े घणै स्थानीय बदळाव साथै आखै राजस्थान में बोलीजै। सम्वत 835 में उद्योतन सूरि रचित 'कुवलयमाला' में मरुभोम रो लेखो-जोखो लाधै। 18 देसी भाषावां रै साथै इण पोथी में मरुभाषा रो नांव पण गिणाइज्यो। अबुल फजल 'आइन-ए-अकबरी' में ठावी-ठावी भारतीय भाषावां में मरुभाषा नै गिणाई है। मरुभाषा एक मोटो नांव है जिकै मांय उणरी सगळी बोलियां भेळी है जिकी रो नांव है 'राजस्थानी'।
बातां तो और भी करस्यां। करता रैस्यां। पण आज सोचो, आपणी ईं लूंठी भासा नै मानता क्यूं कोनी। राजनेतावां सूं सवाल करो- सगळी भासावां नै मानता, राजस्थानी नै टाळो क्यूं? म्हारी जबान पर ताळो क्यूं?

आज रो औखांणो

जबान है'क साटी रो पान?

मिनख वो ई खरो जको आपरी जबान पर कायम रैवै।

साटी- एक भांत रो रूंख, जिणरो पेडो धोळो, पत्ता गोळ अर छोटा जिका हळकी-सी पून सूं हालता अर उलटीजता-पलटीजता रैवै।

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