Monday, April 6, 2009

६ जीभड़ल्यां इमरत बसै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- //२००९

जीभड़ल्यां इमरत बसै

-अन्नाराम सुदामा

बार थोड़े दिनां पैलां री बात है, एक बेली घरै जावै हो जीमण नै। करम फूटियोड़े नै भाग फूटियोड़ो, अधकोस री अंवळाई खा'र ही आ मिलै, आ ही ईं सागै हुई। बीच में एक भाएलो मिलग्यो। बो जावै हो बाजार कोकाकोला पीवण नै। पैलै पूछ लियो, 'अरे, ईं तावड़ियै में कींनै हांफतो फिरै हिड़काव उठियोड़ो-सो?'
'कोकाकोला पीवण नै बजार', बण चालतै ही उडतो-सो उत्तर दियो।
'देसी गधी अर पूरबी चाल, कोकाकोला बिना सिर दूखै, बाप-दादै ही पीयो हुसी कदेई? घरे जाय'र मटकीकोला क्यों पियैनीं।'
'बस, आगै बोल्यो तो चंदरमा सोचलिए थारो', बण थोड़ी रीस में आ'र कैयो।
'सोच लियो, तूं कांईं पूंछ बाढ लेसी म्हारो?'
कीं गरमी-कीं मूड माड़ो, कीं काळजो धुकै हो, अर ऊपर सूं बाड़ी बोली रो पूळो, झळ ऊपर उठतां ताळ कित्तीक लागी। पूंछ बाढ लेसी म्हारो, बस म्हारै रै सागै ही थापा-मुक्की शुरू हुगी- तावड़ियै में बठै कुण छुडावै अर कींनै टेम, कुण समझावै? औजार-पाती कनै तो हा नहीं, सड़क माथै पड़्यो तीखी कोर रो एक भाठो हाथ लागग्यो, साचै हाथ सूं जचा'र दे मारी, कनपटी सूं च्यारांगळ ऊपर, जाय जांवती खोखा खांवती, लोही री तूरकी छूटगी जाणूं खळभळै मतीरै रै कोचरो कर'र कणहीं ऊंदो कर दियो हुवै बींनै। भाईजी एकर तो बठै ही गोच खायग्या, लिप्सी खाई किन्नी(पतंग) दाईं। घरै तो नहीं पूग्या, पूगग्या असपताळ। दूसरोड़ो बजार तो नीं ढूक्यो, ढूकणो पड़ग्यो थाणै में। थाणैआळा तो उडीकै ही हा, बोरटी कोई हाथ लागै तो झड़कावां बींनै जी खोल'र। देख्यो बोली रो चमत्कार? एकनै किसोक जिमायो तातो-तातो तवै उतरतो, अर दूसरै किसोक पियो कोकाकोलो ठंढो-ठंढो, फ्रिज में राख्योड़ो? एक लगाम नीं राखी जीभ पर, दूसरै धीरज छोड दियो, बोली सैण नीं हुई। उतावळ में तो एक्सीडेंट ही हुवै, पण आ बतावो, कै ईं अचपळी अर उछांछळी जीभड़ी रो कांईं बिगड़्यो? बांडै कुत्तै रो लाय में कांईं बळै? कूटीज्या धिंगाणै सफा बेकसूर बापड़ा करमचंदजी अर बेमतळब दुख पाया मनीरामजी। इत्तै सूं ही कांईं हुयो, आगै थांणैआळा किसा बाप लागै हा, बां इसी झड़काई बोरटी नै, बरसां तांईं नहीं पांघरै इसी। अस्पताळ में सूयां, कैपसूल, अर ग्लुकोज री खेती थोड़ी ही नीपजै? डोकरी मसांण कीं रा? आयां-गयां रा। मैतराणी सूं ले, पी।एम।ओ. तांईं नै जे कोई चीकणी चोटी रो रोगी हाथ आ लागै तो बां री पांचूं घी में। बै नीरोगां नै थोड़ा ही उडीकै, बां रै तो रोगी ही मेवै रा रूंख है। करम ही फूट्यो अर पइसां रा चांचवा भळै खाणा पड़्या। धन है जीभ तनै। ('रसना रा गुण' निबंध रो एक अंस)

दूहो

जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विष होय।
बोलण सूं ई ठा पड़ै, कागा-कोयल दोय।।

आज रो औखांणो

काणी भाभी पाणी प्याई, कै लक्खण तो दूधआळा है।

कानी भाभी पानी पिला, कि लक्षण तो दूध वाले हैं।

समस्त हानि-लाभ बोली पर ही निर्भर है। कड़वे बोल किसी के लिए फायदेमंद नहीं होते।

2 comments:

  1. घणौ चोखौ लेख लिख्यौ है सा. साची बात है, बडेरा केह ग्या है कै बोलण सूं पैली सबदां नै तोल लेवणा चावै..:)

    विनोद जी अर सत्यनारायणजी,
    आज रा ओखाणा मांय अरथ हिंदी मांय क्यूं देवौ हौ सा... पुरौ पुरौ अरथ विस्तार सूं राजस्थानी मांय क्यूं नहिं सा. अगर पुछण मांय गलती हूवै तौ माफी चावूं, शायद औ हिंदी छापा (अखबार) मांय छपै है, औ कारण तौ नीं ???

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  2. हुकम पड़ुत्तर नीं दियौ सा !!!!!

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