सण्डे स्टोरी
तारीख-१९/४/२००९
भैतर साल गो बूढ़ियो, करै है कमाल
परलीका के 75 वर्षीय बुजुर्ग राजेराम बेनीवाल ने 72 की उम्र में लिखना शुरू किया और अब तक ढाईहजार दोहे लिख चुके हैं। लिखने का क्रम बदस्तूर जारी है।
-विनोद स्वामी
परलीका(हनुमानगढ़)। 75 वर्षीय राजेराम दिखने में साधारण बुजुर्ग लगते हैं। साफा, धोती-कुर्ता और पैरों में चप्पलें। सुनते ज्यादा हैं और बोलते कम। उनका बोला हर वाक्य किसी बड़े कवि की कविता या फिर कोई दार्शनिक का वक्तव्य-सा लगता है। मगर यह तो उनके बोलचाल का साधारण लहजा है। बिना स्कूली शिक्षा पाए घर पर ही अक्षरों की पहचान कर इन्होंने 72 बरस की उम्र में लिखना शुरू किया। लिखने की लगन ऐसी कि मीरां का प्रेम और कबीर का लहजा साथ नजर आए। राजस्थानी व पंजाबी भाषा में ढाई हजार से ज्यादा दोहे लिखकर इस बात को सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा व लगन के आगे उम्र व परिस्थितियां आड़े नहीं आती। अपनी पूरी जवानी खेतों में कठिन परिश्रम करके जब सुस्ताने की घड़ी आई तो ऐसी लगन लगी कि बस हर बात दोहे में दिखने लगी और कस्सी की जगह कलम पकड़ कविता का श्रम करने में जुट गए।-विनोद स्वामी
गांव में इस उम्र के बू़ढे-बडेरों का ज्यादातर समय एक ओर जहां हुक्का पीते हथाइयों में गुजरता है, वहीं राजेराम बैनीवाल निरंतर कुछ लिखने या सोचने में व्यस्त नजर आते हैं। उनकी रचनाओं में समाज की हर पीड़ा, दुख, असमानता व शोषण की सरल व सहज अभिव्यक्ति मिलती है। लिखने का अभ्यास न होने के कारण वे बहुत मुश्किल से अपनी भावनाओं को कागज पर दर्ज कर पाते हैं। उनका मानना है कि लेखक को अपने समय का सच लिखना चाहिए। उनकी रचनाओं में गांव, गरीबी, लाचारी और भ्रष्टाचार का ऐसा सजीव चित्रण मिलता है कि श्रोता सुनते व पाठक पढ़ते हुए डूब जाते हैं। इस उम्र में लिखने का कारण बताते हुए वे कहते हैं कि- 'लिखणो तो आवै कोनी। बांका-बावळा लीकलकोळिया करां। कोई बात जद ठीक ना लागै तो घरळमरळ-सी होवण लागज्यै। अर जद पैन-कापी लेय'र लिखण लागूं तो मांयलो उबाळ दोहां रै मिस कापी पर मंडज्यै। आज देस, दुनियां अर गांव-गळी री हालत चोखी कोनी रैयी। मैं तो दुनियां नै सूणी अर चोखी बणावण रा सपना देखूं।' उन्हें अपने चारों और ठीक होता नहीं लग रहा। जब कोई घर या देश ठीक नहीं चलता है तो उसकी चिंता हर किसी को होती है। पर समाधान सब के पास नहीं होता। बैनीवाल ने अपनी कलम से देश व दुनिया को ठीक करने का प्रयास किया है। उनकी तमन्ना है कि उनके जीते जी उनकी किताब छप जाए और उनका लिखा लोग पढ़ें जरूर।
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''राजेराम बैनीवाल के दोहों में उनका भोगा हुआ यथार्थ व देखी हुई दुनिया है। पोथियों में न पढ़ आंखों से देखकर रचना करने वाले इस क्षेत्र के सबसे विरल कवि हैं राजेराम बैनीवाल। उम्र के आखिरी पड़ाव में इतना अधिक लिखना उनके अनुभव संसार के विस्तार का प्रमाण है। कबीरी अंदाज में आज की व्यवस्था को धत्ता बताते उनके दोहे अपना गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।''
-रामस्वरूप किसान, प्रसिद्ध साहित्यकार।
----------------------------------------------------------------------------------------------------''इनको पढ़ते-सुनते हुए पाठक एक बच्चे के समान हो जाता है और रचना दादी-नानी की तरह। रचना के साथ ये रिश्ता निश्चय ही एक अच्छी दुनिया के निमार्ण का संकेत है। ताऊजी ज्यादा नहीं पढ़े, छंद को नहीं जाना, मगर इनकी रचना इतनी भावपूर्ण, लोकरंजक और मारक है कि छंद का टूटना लय में बाधक नहीं बनता।''
-सत्यनारायण सोनी, व्याख्याता (हिन्दी), परलीका।
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बानगी
भैतर साल गो बूढ़ियो, करै है कमाल।
दूहा लिखै जोरगा, होग्या कई साल।।
खारा धुंवा गिटै आदमी, किस्यो'क पड़ग्यो बैल।
साबण लगावै सरीर गै, भीतर लगावै मैल।।
सरपंची गो चुनाव लड़ै, दारू प्यावै गाम नै।
कूकर पूरो आवै गो तूं, इत्तै उलटै काम नै।।
किसान बराबर दुनिया में कोनी दूजो देव।
खेतां में फळ लटकावै, अंगूर-संतरा-सेव।।
किरसो कमाऊ देस गो, ईं पर है सो' बोझ।
अन्न बणावै एकलो, जीमै सगळी फौज।।
कई लगावै चौका और कै बांधै गा बीम।
गरीब लगावै जांटी, कै लगावै नीम।।
गरज बिना आदमी, गरब करै बोडी गो।
गरज होयां छोडै कोनी, पैंडो बेली ठोडी गो।।
उठतां पाण आदमी गै, जी में आवै बीड़ी गी।
तागै स्यूं टिपागे छोडै, खाल काढै कीड़ी गी।।
हुण तुसी दसो बेली! ऐ कै़डी है निरास्ता?
असमानता अखरदी है, रोकदी है रास्ता।।
परलीके जेड़ा पिंड कित्थे होर नहीं मिलदा।
ऐ तां लगदा है पिंड सानू, हिस्सा साडे दिल दा।।
भैतर साल गो बूढ़ियो, करै है कमाल।
दूहा लिखै जोरगा, होग्या कई साल।।
खारा धुंवा गिटै आदमी, किस्यो'क पड़ग्यो बैल।
साबण लगावै सरीर गै, भीतर लगावै मैल।।
सरपंची गो चुनाव लड़ै, दारू प्यावै गाम नै।
कूकर पूरो आवै गो तूं, इत्तै उलटै काम नै।।
किसान बराबर दुनिया में कोनी दूजो देव।
खेतां में फळ लटकावै, अंगूर-संतरा-सेव।।
किरसो कमाऊ देस गो, ईं पर है सो' बोझ।
अन्न बणावै एकलो, जीमै सगळी फौज।।
कई लगावै चौका और कै बांधै गा बीम।
गरीब लगावै जांटी, कै लगावै नीम।।
गरज बिना आदमी, गरब करै बोडी गो।
गरज होयां छोडै कोनी, पैंडो बेली ठोडी गो।।
उठतां पाण आदमी गै, जी में आवै बीड़ी गी।
तागै स्यूं टिपागे छोडै, खाल काढै कीड़ी गी।।
हुण तुसी दसो बेली! ऐ कै़डी है निरास्ता?
असमानता अखरदी है, रोकदी है रास्ता।।
परलीके जेड़ा पिंड कित्थे होर नहीं मिलदा।
ऐ तां लगदा है पिंड सानू, हिस्सा साडे दिल दा।।
ई बहत्तर साल कै बाबा नै म्हारा 72 हजार सलाम । धन धरती राजस्थान री ।
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ReplyDeleteपरलीका रै धाम में, रेवै राजेराम
भैतर खेती कून्तनै, टोरयो साहित काम
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राजेरामजी रै हौंसले नै निवन..!!
-राजूराम बिजारनियाँ ''राज''
Loonakaranasar
9414449936
ਰਾਜੇ ਰਾਮ ਵਰਗੇ ਬਾਬੇ ਬੋਹੜ ਤੋਂ ਨਵੀਂ ਪਨੀਰੀ ਕੀ 'ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਸਿੱਖਦੀ ਹੈ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵੱਸ ਹੈ!
ReplyDeleteਬਾਬੇ ਦੀ ਫੁੱਲ ਕਿਰਪਾ!
There is no age constraint for learning and creativity. Thanks for presentation of this unique example of Shri Rajeram Beniwal. New generation may take encouragement by this example.
ReplyDeleteHari Krishna Arya
Hanumangarh
E-mail: arya_hk@yahoo.co.in
बूढियो तो कमाळ गो है .. अरर थे बांउ इ ऊपर कर .. लाग्या रो लाडी .. खैचल काम आवेली ...
ReplyDeleteपृथ्वी, नई दिल्ली
राजस्थानी भाषा गा सारा शुभ चिन्तकाँ ने घणो घणो नमस्कार. कोशिश करनी चाइये कै राजस्थानी में टाबराँ खातर लिखण-पढण गो जुगाड़ थोड़ो-भोत तो होणो ही चाइये...बियां तो सह जाणै ही हे ज़मानों हिंदी गै बाद...अंग्रेजी गो हे...खाली बातां स्यूं पेट को भरिजे रामप्यारी भुवा....
ReplyDeleteप्रोफ़ेसर लखन गुसाईं
जॉन्स होपकिंस विश्वविद्यालय
वॉशिंगटन, डीसी २००३६
अमेरिका
कमाल गो बुडियो है भाई .....बहुत बढिया लिखे
ReplyDeleteकमाल गो बुडियो है भाई .....बहुत बढिया लिखे
ReplyDeleteYe bahut hi badiya kadam h
ReplyDeletetaki apni bhasa bhi apne logo tak pahunche OR jo log aapni bhasa ne bhulan lagraya hain ba bhi samjhya esi koisis karta ravo
RAM RAM SARA NE
namaskaar
ReplyDeleteye prernaa prad baate hai ki agar hum me lalak ho to seekhne ki koi umr nahi hoti . bas zazbaa honaa chahiye .
bhot hi chokha bichyaar hai taau ga...je sagla budhiya jagruk hujye to desh go bavishye sudhar jye
ReplyDeleteबेमिसाल !!
ReplyDeleteनम सलाम बाबा को !!
बेमिसाल !!
ReplyDeleteनमन सलाम बाबाजी को !