Saturday, January 31, 2009

१/२ चंदण की चिमठी भली

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-//२००९

चंदण की चिमठी भली,

गाडो भलो न काठ।

स्यांणै मिनखां री स्यांणी बातां। स्यांणी बातां बगत-बगत पर सुणावण में काम आवै। मिनखां नै संस्कारित करै। राजस्थानी लोक में आं बातां री कोई कमी नीं। कोई ओड़-थोड़ नीं। आपणी भासा में नीति अर सीख री बातां घणी चालै। घर-आंगण, खेत-खळै अर बास-गळी में बातां, बात-बात पर सुणन नै मिल ज्यावै। आओ, आज बांचां ऐ स्यांणी-स्यांणी बातां-
मूरख री पिछांण
घणी दवा सूं बिगड़ै तन,
परधन देख्यां बिगड़ै मन।
बिना भावतो खावै अंन,
तीनूं ई मूरख जन।।
सुसरा रै घर नितकी रैणो,
मांग परायो पैरै गैणो।
छत्तां पइसां राखै दैणो,
आं तीनां नै मूरख कैणो।।

सीख री बातां
बैठणो भायां रो, होवै चायै बैर ई।
जीमणो मां रै हाथ रो, होवै चायै जैर ई।
चालणो गेलै रो, होवै चायै फेर ई।
छीयां मौकै री, होवै चायै कैर ई।
धीणो भैंस रो, होवै चायै सेर ई।।

सातूं सुख
पैलो सुख-निरोगी काया,
दूजो सुख-हो घर में माया।
तीजो सुख-पतिबरता नारी,
चौथो सुख-सुत आग्याकारी।
पांचवो सुख-सुथांन वासो,
छट्ठो सुख-हो नीर-निवासी।
सातवों सुख-राज में पासो।।

आज रो औखांणो
चंदण की चिमठी भली, गाडो भलो न काठ।
चातर तो एक ई भलो, मूरख भला न साठ।।


चंदन तो चुटकी भर ही भला, मगर काष्ठ का गाड़ा भरा हो तो भी भला नहीं माना जाता। इसी प्रकार चतुर-सुजान तो एक हो तो भी भला होता है, मगर मूरख-जन साठ हों तो भी किस काम के? मतलब प्रतिभा की सौरभ पूजनीय है। यह कहावत इस अर्थ में भी कही जाती है कि नेकी का धन तो मुट्ठी भर भी काफी और काला धन ढेरों भी बेकार होता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- www.aapnibhasha.blogspot.com

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Friday, January 30, 2009

३१ पांख पसारी चिड़कली

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-३१//२००९

मनोज कुमार स्वामी रो जलम ३१ मई, १९६२ नै सूरतगढ़ तहसील रै गांव सरदारपुरा खर्था मांय हुयो। राजस्थानी रा जाण्या-माण्या कथाकार। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर सूं पुरस्कृत। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश मंत्री। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी - ओ खास लेख।


पांख पसारी चिड़कली

-मनोज कुमार स्वामी

कैबा चालती, 'बेटी जाई रै जगन्नाथ, ज्यां रा हेठी आया हाथ।' पण अबै बा बात कोनी रैयी। बेट्यां बेटां सूं दो पांवडा आगै बध'र घर-परवार अर देस-समाज री सेवा करै। लारला दिनां रेडियो पर एक कवि रो दूहो सुण्यो। म्हनै याद रैयग्यो। बांचो-
पांख पसारी चिड़कली, झाड़ी सारी धूळ।
लाडां कोडां लाडली, पढण चली स्कूल।।
बेटी पगां चालण लागै उण बगत सूं ई आपरी मां रो स्हारो बणज्यै। जद कै बेटो तो बीस बरसां रो हुयां ई स्हारो बणै का ना बणै पुख्ता कोनी। जिका मां-बाप बेटी रै जलम नै माड़ा भाग मानै, बां मा-बापां रै, अबखी वेळा में बेट्यां ई आडी आवै। राजस्थान रो तो इतियास भी बेट्यां री सबळाई री जबरी साख भरै। हाड़ी राणी री बराबरी आखै जगत में कुण करै? जद हाड़ी राणी जलमी उण वेळा पी'र मांय थाळ तो नीं बाज्यो, पण सैनाणी मांय आपरो माथो बाड'र थाळ मांय मेल्यो तो कांसी रो थाळ टंणकार उठ्यो। नाथूसिंह महियारिया रो ओ दूहो इण बात री साख भरै-
पीहर थाळ न बाजियो, हाडी यण अंहकार।
थाळ बजायो सासरै, सिर कट खटकी धार।।
खेजड़ी गांव मांय इमरता देवी, रूंखां री रिछपाळ करतां थकां आपरो सीस कटायो अर उणां रै साथै घणां आपरी ज्यान दरख्तां सारू निछावर कीनी। आज पर्यावरण सारू आखो संसार रोळो मचावै, पण है कठै ई इसी मिसाल? पन्नाधाय रो बलिदान अर आपरी लाज बचावण सारू जौहर री ज्वाळा मांय कूदण रा छै'ला काम राजस्थान री बेट्यां कर्या है। जिणा पर आखो देस गुमेज करै। आज देस रै सिरै पद पर देस री बेटी है। पण इण आधुनिक जुग मांय एक मसीन आई जिकी रो नांव 'अल्ट्रासाउण्ड' है। अर इण रै पाण बेट्यां रा बेरी बांनै गरभ मांय ई मारण लागग्या। रामस्वरूप किसान एक दूहै रै मिस लिखै-
बेटी बोली बाप सूं, तड़फ, डागदर मेज।
दु:ख माय नै क्यूँ दियो, सोयो क्यूँ तूं सेज।।
बडेरा कैवै कै संसार मांय धरती अर नारी दो ई सैं सूं धीरा है अर आं दोनूंवा बिना मिनख जमारो नरक बरोबर। बेट्यां नै गरभ मांय मारण रा घणा माड़ा नतीजा आपणै सामी है। तीस सूं लेय'र पचास तक रा छड़ा मक्कू हरेक गाम अर सै'र मांय आपां देख सकां।
बेट्यां नै बचावण री दरकार है। बां नै पढावण री दरकार है। बां नै सनमान देवणो है। इण सारू गांव-गांव अर ढाणी-ढाणी अलख जगावणी है। तो आओ, आपां सगळा रळ'र संकळप करां कै बेटी नै बचावणी है। आज कोई भी क्षेत्र मांय ऐ चिड़कल्यां लारै नीं है। आपां नै आं रो सांचै मन सूं मान करणो चाइजै। छेकड़ म्हैं आपरै साम्हीं ओ सवाल छोडूं- 'बेटी नीं जामोगा तो थे कियां जामोगा?'
ताऊ शेखावाटी आपरी कविता में इण बात नै इण भांत मांडी है-
क्यूं जग में हर कोई नै ईं, बेटी री चिंत्या खा'री है।
क्यूं बेटां स्यूं बेटी धन री, कीमत कम आंकी जा'री है।।

आज रो औखांणो
बेटा सूं बेटी भली जे कोई होय सपूत।
यहां सपूत से मतलब गुणी इंसान से है। भले मानुस से है। वह चाहे पुरुष हो, चाहे स्त्री। यदि बेटी के लक्षण उत्तम हैं तो वह बेटे से बेहतर है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
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३० रंग-रंगीला रंग

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-३०//२२०९

रं-रंगीला रं

लारलै दिनां आपां रंगां रा नांव बांच्या। आपणै लोक मांय ठाह नीं कित्ता-कित्ता नांव बिखर्या पड़्या है। जरूरत है वां नै अंवेरण री। वां नै ठाया राखण री। आप भी आ सेवा कर'र आपरी हाजरी लगवा सको हो। आज कीं रंगां रा नांव और हाथ लाग्या है। बांचो सा!
अब्बासी, आबी, आभासांईं, आभैवरणो, उन्नावी, कपासी, करजवी, काफरी, काही, किसमिसी, कुमैत, कोकई, कोकाकोला, कोच, कोढ़िया, क्रीमकलर, गेरूवरणो, चटणी रंग, चप, जंगाली, जमुरुदी, जाम्बू रंग, जीलानी, तांबल, तीतरवरणो, तूतिया, तूसी, दाड़मियां, दूधिया, नाफरमांनी, नीला, पिस्ताकी, पोपटी, फालसई, बादळवरणो, बादळसांईं, बुर्रा, भंवर, मजीठिया, रूपैलो, लाजवर्दी, सब्जकाही, समदरलैर, सरदई, सावरी, सिंगरफी, हरसिंगारी।
कीं गूढा रंगां सारू नांव लिया जावै-
उजळो बुराक, काळो किट्ट, काळो ध्राक, काळो भंवर, काळो मिट्ठ, धोळो धक्क, धोळो धट्ट, धोळो फट्ट, पीळो केसर, रातो चुट्ट, रातो चोळ, रातो लाल, लाल चुट्ट, लाल सुरंग, लीलो चैर, लीलो स्याह, सफेद झक्क, सफेद बुराक।
आपणी भासा री बोलियां रा रंग ई निराळा। न्यारी-न्यारी बोली रा न्यारा-न्यारा ठाठ। शेखावाटी बोली में मजाक बड़ी जबरी औपै। ल्यो, आज बांचो-
मसखरी
()
गांव में एक लुगाई बुहारी निकाळ रैयी थी। चौक में उण रो धणी बैठ्यो थो। बा बुहारी काडती-काडती उणरै कनै आई तो बोली, 'परै सी सरकियो।'
आदमी उठकै पौळी में आगो। लुगाई भी बुहारी काडती-काडती पौळी में आगी और धणी नै बोली, 'आगै नै सरकियो दिखां।'
आदमी बारलै चौक में आगो। थोड़ी ताळ पछै बठै भी आगै सरकणै की बात कैयी। बो उठकै घरां रै बारणै दरूजै पर आगो अर चबूतरै पर बैठगो। लुगाई बुहारती-बुहारती घरां कै बारै आई तो पति नै बोली, 'सरकियो दिखां।'
आदमी आखतो होय'र मुंबई चल्यो गयो। बठै सूं चिट्ठी लिखी- 'अब भी तेरै अड़ूं हूं कै और आगै सरकूं? आगै समंदर है, देख लिए।'
(2)
कंजूस लुगाई आपरै धणी नै जोर-जोर सूं धमका रैयी थी। पाड़ोसण पूछ्यो- 'कैयां गुस्सै हो'री है?'
लुगाई बोली- 'म्हैं पतिदेव नै कैयी थी कै दो-दो सीढी एक सागै चढियो जिण सूं जूता कम टूटैंगा।'
पाड़ोसण बोली- 'पण ईं में नाराज होणै की के बात है। बै थारो कैणो मान्यो कोनी के?'
लुगाई बोली- 'कैणो तो मान लियो, पण बै दो-दो की जगां, च्यार-च्यार सीढी चढ़ बैठ्या, सो नूंई पैंट पड़वा ल्याया।'

आज रो औखांणो
संपत हुवै तो घर, नींतर भलो परदेस।
घर में सुख-शांति और चैन का अभाव हो तो परदेस जाकर बसना उचित है। संदेश यह है कि परिवार के सभी लोगों को हेल-मेल से रहना चाहिए।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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२९ हाड़ौती बोली में राजस्थानी री बात

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २९//२००९

अतुल कनक रो जलम १६ फरवरी १९६७ नै रामगंज मंडी (कोटा) में हुयो। राजस्थानी रा चावा-ठावा मंचीय कवि। तीन पोथ्यां छपी। राजस्थानी, हिन्दी अर अंग्रेजी मांय सात हजार सूं बेसी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपी। आकाशवाणी अर दूरदर्शन सारू मोकळो लेखन। हाड़ौती राजस्थानी भासा री घणी प्यारी बोली। आपरी भासा में हाड़ौती बोली री सांगोपांग रळक आवै। आओ, आज आं रै इण लेख में आपणी भासा री हाड़ौती बोली रो स्वाद चाखां।

हाड़ौती बोली में राजस्थानी री बात

-अतुल कनक

भासान् का मसला पे आपणां राजनीतिक स्वारथ साधबा की जुगत सुतंतर भारत बेई कोय नुई बात कोय न्हं। स्वारथ का रथ पे असवारी करतां-सतां जिम्मेदार मनख्यां ने जठी नरी भासान् के तांई ऊ मुकाम भी बख्श्यो, जीं की वे सांच्या ही हकदार न्हं छी (म्हूँ नांव अर नजीर दे'र कोय विवाद न्हं पनपाबो चावूं), उठी ही राजस्थानी जशी तागतवर भासा सूं सौतेलो बर्ताव भी कर्यो। म्हां ईं बात को निर्णय बगत के माथै छोड़ भी द्यां के आज़ादी का अतना बरस पाछै भी राजस्थानी नै संवैधानिक मानता न्हं मिलबा देबा का जिम्मेदार कुण छै, तो भी या टीस तो रह रह'र साळै ई छै के राजस्थानी अबार भी संविधान की आठवीं अनुसूची में आपणो मुकाम न्हं पा सकी।
लारला दनां राजस्थानी भासा नै संवैधानिक मानता न्ह मिल पाबा को दरद काळज्या में ऊँ बग़त फेर साळ्यो, जद लगै-टगै सोळह विधायकां विधायक पद की आन बेई राजस्थानी भासा में शपथ लेणी चाही, पण वे ईं लेखे आपणी इच्छा न्ह पूर सक्या। क्यूं के राजस्थानी नै संविधान की आठवीं अनुसूची में भैळै न्हं करयो गयो। कांई यो लोकतंत्र का मूळ भाव की आड़ी स्वारथ की राजनीति की चींगण्या कोय न्हं के राजस्थान प्रदेस की विधानसभा में एक विधायक चाह्वै तो कोंकणी अर नेपाली जशी भासान् में तो शपथ ल्ये सकै छै पण राजस्थानी में शपथ न्हं ल्ये सकै?
पण ईं चींगण्यां का महताऊ पख भी छै। या घटना वां लोगां के तांई बग़त को ऊथळो छै जे ये कह'र मानता की मांग की मुहिम की आड़ी सूं उदासीन हो ज्यावै छै के मानता मिलबा सूं भासा की साख में सुरखाब का पाँखड़ा न्ह लाग ज्यावैगा। या घटना आम आदमी के तांई भी स्यात् ईं बात को अहसास करा सकै के मायड़ भासा नै मानता न्हं मिलबो जूण नै कशी-कशी अबखायां सूं दो-च्यार करा सकै छै।
भारत सरकार को गजट भी मानै छै के देस में जे भासावां सैं सूं बेसी बापरी ज्यावै छै, राजस्थानी वां मं सूं एक छै। न्हं जाणै कितणी जगत पोसाळां में राजस्थानी पढ़ाई ज्यावै छै। पाकिस्तान सूं ले'र नेपाल अर रूस तांई राजस्थानी की भासाई रंगत का दरसाव होवै छै। जीं राजस्थानी की महताऊ पोथ्यां सूं राष्ट्रभासा हिन्दी की थरपना मानी ज्यावै छै अबार भी जीं राजस्थानी में मांडबा हाळां की एक पूरी पांत छै। जे ऊ ही राजस्थानी आपणी मानता सूं बरज दी ज्यावै तो ओछोपण भासा को न्हं, मानता देबा हाळां को साबित होवै छै।
एक मसलो हमेस राजस्थानी की मानता के आड़े फरै छै। नरा लोग क्है छै के राजस्थानी में एकरूपता कोय न्हं अर मानता देती बग़तां कश्या रूप नै मानता द्यां! यो सवाल जबर हो ज्यावै छै। यो सवाल खड़्यो करबा हाळा स्यात् भासान् का चरित्तर न्हं पहचाणै। संसार की सगळी सामरथवान भासान् का घणकरा रूप चलन में होवै छै। न्हं अंग्रेजी ईं को अपवाद छै। नाळी-नाळी बोलियां अर उपबोलियां तो भासा को प्राणतत्त्व होवै छै। कांईं बिहार में बापरबा हाळी हिन्दी अर मुंबई में बोली जाबा हाळी हिन्दी एक स्यारकी छै।
म्हूं मानूं छूं के एकरूपता की दीठ सूं महताऊ जतन बग़त की दरकार छै। पण ये एकरूपता पोथियां के पांण अर बुद्धिजीवियां के बेई ही हो सकै छै। लोक में जीवती रहबा हाळी भासावां अर बोलियां लोकचलन की गति-गैल सूं ही चालै छै। राजस्थानी की मानता के आड़े एकरूपता को मसलो रळकाबा हाळा अर 'कशी राजस्थानी' को सवाल खड़ो करबा हाळा भी ईं सांच ने प्हैचाणै छै। पण ज्यां को मकसद ई कुचमाद करबो होवै, वां ने गाल बजाबा सूं कुण बरज सकै छै?
न्हं तो आप बताओ, यो सवाल ऊं बगत खड़ो क्यूं न्हं होयो जीं बग़त केन्द्रीय साहित्य अकादेमी ने भारत की मोकळी भासान् के लारै राजस्थानी भासा पे भी सालीणो ईनाम देबो सरू कर्यो? पच्चीस बरस सूं राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी, बीकानेर में काम कर रही छै अर कशी राजस्थानी को सवाल न्हं उठ्यो। पाठ्यक्रमां में राजस्थानी पढ़ाई ज्यावै छै अर वां में सगळा राजस्थान का रचनाकारां की रचनावां छै तो फेर कशी राजस्थानी को सवाल कठी सूं उठ्यो? पच्चीस बरस की आपणी कवि-सम्मेलनी जातरा में म्हंनै पायो छै के राजस्थानी का नरा लाडेसर अर मानीता कवि राजस्थान में ही न्हं राजस्थान सूं बारे भी चाव सूं सुण्या अर गुण्या जावै छै। फेर 'कशी राजस्थानी' को सवाल फगत कुचमाद कोय न्हं तो कांई छै?
नाळा-नाळा रूपां में बापरबा जाबा हाळी राजस्थानी आपणां प्राणतत्त्व में एक छै। ईं बात को एक बड़ो प्रमाण तो यो ही छै के ईं बेर विधानसभा का प्हैला सत्र में विधायक पद की शपथ राजस्थानी में लेबा की मांग करबा हाळा जनप्रतिनिधि राजस्थान का सगळा अंचलां सूं जीत'र विधानसभा में पूग्या छै। राजस्थानी भासा की बोलियां अर उपबोलियां तो गंगा की अशी धारां की नांई छै, जे देस का नाळा-नाळा हिसान् सूं माटी की सौरम समेट गंगा में खमावै छै अर ऊं ईं पापधोवणी बणावै छै।
आज रो औखांणो
मां री गाळियां, घी री नाळियां।
मां की गालियां, घी की नालियां।
मां ललकारती-फटकारती है तो संतान के भले की खातिर। उसके मन में दूर-दूर तक कोई दुर्भावना नहीं रहती। मां की गालियां ममता का ही दूसरा रूप है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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Tuesday, January 27, 2009

२८ झगड़ बिलोवणो खाटी छा:

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २८//२००९
झगड़ बिलोवणो खाटी छा:
-रामस्वरूप किसान
जनकवि कन्हैयालाल सेठिया मरुभोम री घणी बडायां कीन्ही। 'धरती धोरां री' में ओळ्यां है-
'इण रा फल-फुलड़ा मन भावण,
इण रै धीणो आंगण-आंगण,
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण।'
इण बड़ भागण धरती पर धीणै रा ठाठ ई ठाठ। मौज-मजा। कैबा चालै- जांका घर दोझा, वां का घर सोझा। जकै घर में धीणो-धापो, बो घर सूझ-बूझ आळो बाजै। जकै घर में धीणो। बीं घर में भांत-भांत री चीजां, भांत-भांत रा ठाम चाइजै। आं ठामां में ठावो ठाम- बिलोवणो। दही बिलोवण रो ठाम। जकै नै कुम्हार काची माटी रो बणावै। अर न्ह्याई में पकावै। पछै ओ बिलोवणो कुहावै। धीणै आळै घरां बिलोवणो होवणो जरूरी। जकै रै खूंटै धीणे़डी। उणरी बेवणी में बिलोवणो।
धीणे़डी दो टेम दूजै। दिनगै-आथण। दिनगै आळो दूध कढावणी में घलै। हारै में तातो टिकै। पूरो आंच कढावणी नै मिलतो रैवै, बारै नीं जावै। इं सारू हारै पर दबणो देणो पड़ै। दबणो माटी रो बण्यो हारै रो ढक। जको हारै रै आंच नै दपट'र राखै। हारै में थेपड़ी अर छाणां रो आंच। थेपड़ी अर छाणा जुगती सूं जचा'र कु़डछी भर आग नाखीजै। जकै सूं छाणा थेपड़ी सिलगण लागै। इण पूरै काम नै हारो घालणो कैवैहारो घाल'र उणमें दूध री कढावणी टेकीजै। जकै नै दूध टेकणो कैवै। दिन छिपे तक ओ दूध उकळ'र लाल होज्यै। जकै नै कढेरो दूध कैवै। इण दूध पर रोटै बरगी जाडी मळाई आज्यै। सांझ नै जीमण बगत घर धिराणी आ कढावणी उतारै। अराई पर धरै। अराई सिणियै रो गूंथ्योरो एक अडेखण, जको कढावणी नै थिर राखै। पछै इण कढावणी नै बिलोवणै में ओथावै। मळाई समेत कढावणी रो ऊपरलो-ऊपरलो दूध बिलोवणै में घालणै नै ओथावणो कैवै। पछै धीणे़डी नै आथण दूवै। इण दूध रो आधो हिस्सो बिलोवणै में अर आधो कढावणी में घलै। कढावणी आळो दूध खाणै-पीणै में बरतीजै। पछै सोवण बगत कढावणी रो ऊबरेडो दूध बिलोवणै में घाल'र छाछ रो छींटो देय'र दूध नै जमा दियो जावै। इण काम नै दूध में जावण गेरणो कैवै। जावण लाग्यां दूध जमै। दूध जम'र दही में बदळ ज्यावै। जावण देणै में ई जाणकारी चइयै। जे तातै दूध में जावण लागज्यै तो दही खाटो जमै। अर जे ठंडै में लगा बैठै तो का तो दूध जमै ई कोनी का फेर अधजम्यो रैयज्यै। इण सारू बिलोवणै रै मसरोड़ लगावणी पड़ै। इण काम में जावण लगाय'र बिलोवणो नै एक जाडै गाबै सूं ढकियो जावै। जकै सूं दूध नै वाजिब गरमास मिलती रैवै अर मीठो अर सवाद दही जमै।
दिनगै उठतां पांण दही भरियो ओ बिलोवणो बिलोवण सारू ने'ड़ी रै नजीक बेवणी में मेल्यो जावै। ने'ड़ी भींत रै सारै रोप्योडी कैर री लकड़ी। अर बेवणी ने'ड़ी सूं चिपतो एक छोटो-सो खाडो। जकै में बिलोवणो पूरो-पूरो टिक सकै। ना हालै ना गु़डै। अब बिलोवणै में झेरणो डुबोय'र ने'ड़ी अर झेरणै नै मिलांवता ऊपर-नीचै रा दोय सींखळा घाल्या जावै। एक सींखळो ने'ड़ी अर झेरणै में घल'र झेरणै नै ऊपर सूं काबू राखै अर दूजो नीचै सूं। अब झेरणै में घलै नेतरो। अर बिलोवणै सारै ढळै पीढो। पीढै पर बैठै बिलोवणो करणियो। जकै रै एक हाथ में नेतरै रो एक सिरो अर दूजै में दूजो। अब दोनूं हाथां सूं नेतरै रा दोनूं सिरा बारी-बारी खींच्या जावै। अर झेरणो गे़ड चढ'र दही बिलोवै। झगड़-झूं, झगड़-झूं रै संगीत साथै बिलोवणो चालतो रैवै। इण बगत री एक लोककविता खासी चलण में है-
'झगड़ बिलोवणो खाटी छा:।
आओ लुगाइयो घालां छा:।।'
जद बिलोवणो पूरो बिलोइज जावै तो दही छाछ में अर छांछ पर चूंटियै रो थरको जमै। पछै बिलोवणै नै खांगो कर'र चूंटियै रो लोधो एक ठाम में काढ्यो जावै। छाछ बरतीज जावै जद बिलोवणो उकसणी सूं रगड़-रगड़'र धोइजै। उकसणी डचाभ री जड़्यां सूं बण्यो एक बुरछ होवै। पछै बिलोवणै नै तावड़ो लगाइज्यै, जको बिलोवणो बांसै ना। कढावणी री खुरचण साफ करण सारू खुरचणो चाइजै।
बिलोवणै करणै में घणी बिद्या तो कोनी पण फेर ई कीं न कीं जाणकारी चाइजै। बिलोवणै री तासीर रो ग्यान जरूरी है। ठंडै-तातै रो ग्यान। ना ठंडै पर घी मंडै नां तातै पर। ठंडै पर झाग अर तातै पर मिरमिरी। घी जद ई मंडै जद बिलोवणो ना ठंडो होवै ना तातो। समान तापक्रम चावै बिलोवणो।
आज रो औखांणो
दूध-दही रा पांवणां, छाछ नै अणखावणा।
जब दूध-दही खाने वालों को छाछ भी नसीब नहीं होती।
बड़ी चीज के हकदार को जब तुच्छ चीज भी प्राप्त नहीं होती तो विवशता दरसाते हुए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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Sunday, January 25, 2009

२६ पैर पिछाणै मोचड़ी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २६//२००९

पैर पिछाणै मोचड़ी,
नैण पिछाणै नेह


डॉ. नन्दलाल वर्मा राजकीय चिकित्सालय, सूरतगढ़ मांय नेत्र रोग रा कनिष्ठ विशेषज्ञ हैं। आज बांचो आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

-डॉ. नन्दलाल वर्मा

रं-बिरंगी, मनमोवणी दुनिया रा दरसाव दिखावै नैण। उमंग, उच्छब, हरख, कोड अर हेत-प्रीत री बातां नैणां सूं जुडियोडी। सिस्टी सूं दिस्टी रो नातो जोड़े नैण। आंख, आंख्यड़ल्यां, अंखियां अर नेतर इणरा ई नांव। दीदा, ढोबसा नांव भी दूजै भावां में लिया जावै। कैबा चालै- आंख जणावै जगत नै पण आंख ना जाणी जाय। आओ, आंख्यां री बात करां।
अंधारै में स्वाद सूं स्वाद जीमण जीमो। आणंद नीं मिलै। काया तो देखतां-देखतां जीम्यां ई तिरपत व्है। बीनणी भलां ई कित्ती ई फूटरी अर रूपाळी व्हो। बींदराजा जे खाली नांव रो ई नैणसुख तो फुटरापो किण काम रो! हर्यो भर्यो खेत, मेळै-मगरियै रा रंग रंगीला दरसाव, दीवाळी रा दिप-दिपावता दीवा, होळी रा राता-पीळा-हरा-कोढिया रंग, आखातीज रा उडता भूतल-पटील-चांदल-माथल-फरियल किन्ना, नाचतै मोरियै री मनमोवणी छिब, उठती कळायण, खिंवती बीजळ, अंधारी रात में तारां जगमग आभो, फागण रा फागणिया, सावण रा लेहरिया, मखमल सा राता राता ममोलिया, रेतां रमती सोनलभींग, गोरती गाय रो टीकलियो बाछड़ो, सांगर्यां सूं लड़ालूंब खेजड़ा, आंगणै में वार-तिंवार मांडीजता मांडणा, हथेळ्यां राच्योडी सुरंगी मैंदी, माटी में लोटपोट नान्हीं नान्हीं मूरतां, आपणा-परायां री सूरतां, आं सगळी बातां रा ठाटआंख्यां देखै, निरखै। नीं जणां सगळो जग सूनो। सगळा रंग काळा। सगळा चांनणा काळी अंधारी रात।
आंख्यां फगत देखै ई नीं। देखणो तो नैणां रो जैविक कर्म। पण मिनखपणै री कंवळी भावनावां, अपणायत, निस्चै, भरोसो, घिरणा, रीस, लाज, हेत-प्रीत अर नेह री औळख भी आपणी दीठ अर नैण ई दरसावै।

पैर पिछांणै मोचड़ी, नैण पिछांणै नेह।
कंथ पिछांणै कांमणी, नार पिछांणै गेह।।


दो प्रेमियां नै एकाकार करण वाळी प्रीत, सैंणी-बींझो, मूमल-महेन्द्र, रामू-चन्नणां नै आपस में बांधण वाळा बंधण सब नैणां रा मोहताज।
तीर लगो, गोळा लगो, लगो मरम रो घाव।
नैण किणी रा ना लगो, तिणरो नहीं उपाव।।


पिव परदेस बसै, तन-मन अधीर, मिलण री घणी चाव। इण हाल में नैण बेहाल।

मेवड़लै झड़ मांडियो, मन ना धीर धरै।
विरहण ऊभी अणमणी, नैणां नीर झरै।।


नैणां री मार निबळो बणावै तो नैणां रो निस्चै-निरणै इतिहास रचावै। मेघराज मुकुल री 'सैनाणी' री ओळ्यां बांचो। नैणां रो कमाल देखो!
घायल सी भागी मैलां में, फिर बीच झरोखां टिक्या नैण।
बारै दरवाजै चूंडावत, उच्चार रह्यो थो वीर बैण।।
नैणां सूं नैण मिल्या छिण में, सरदार वीरता बिसराई।
सेवक नै भेज रावळै में, अंतिम सैनाणी मंगवाई।।


अर हाडी राणी आपरै हाथां आपरो माथो काट'र पकड़ा दियो।
मायड़भोम री मरजाद निभावै नैण। सेठियाजी री कविता 'पातळ अर पीथळ' में राणा प्रताप रा बोल है-

जद याद करूं हळदीघाटी,
नैणां में रगत उतर आवै।


म्हे मरुधरा रा वासी। मनवार में नैण बिछावां, तो सूंपां भी।

साजन आया सखी, कांईं भेंट करूं।
थाळ भरूं गजमोतियां, ऊपर नैण धरूं।।


अर नैण जे पराई पीड़ में आडा नीं आया। पराई पीड़ में जे नीं बरस्या। तो किस्या नैण। महसूसो वां री पीड़, जिकां नै भगवान नैण नीं बगस्या। जिकां रा नैण हारी बीमारी में जावता रैया। आपां कीं करां। आपणा नैण वा नै रंग रंगीली दुनिया सूं मिलावै। आओ, आपां वां री अर आपणी पीड़ सांझी करां।

आज रो औखांणो

आंख्यां दीठी परसराम कदै न कू़डी होय।
आंखों देखी परशुराम कभी न झूठी होय।
प्रत्यक्ष अनुभव को चुनौती नहीं दी जा सकती।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

Saturday, January 24, 2009

२५ बोल्यां है मिणियां, माळा राजस्थानी

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख- २५/१/२००९
बोल्यां है मिणियां,
माळा राजस्थानी
-ओम पुरोहित 'कागद'
नदियां रै जळ सूं ई समंदर भरीजै। भरियो समंदर ई सोवणो लागै। बिना जळ तो समंदर एक दरड़ो। मोटो समंदर बो ईज। जकै में घणी नदियां मिलै। भासा भी समंदर होवै। बोलियां होवै नदियां। बा ईज भासा लूंठी जकी में घणी बोलियां। आ बात बतावै भासा विग्यानी। आपरी निजर है कीं भासा तणी बोलियां। उड़िया-24, बंगाली-15, पंजाबी-29, गुजराती-27, नेपाली-6, तमिल-22, तेलगु-36, कन्नड़-32, मलयालम-14, मराठी-65, कोंकणी-16, हिन्दी-43, अंग्रेजी-57 अर आपणी राजस्थानी में 73 बोलियां। अब बताओ दिखांण कुणसी भासा लूंठी? किणी भासा रो सबदकोस बोलियां रै सबदां री भेळप सूं सामरथवान बणै। जकी भासा में बोलियां कम। उणरो सबदकोस छोटो। आपणी मायड़भासा राजस्थानी रो सबदकोस दुनिया रो सै सूं मोटो। राजस्थानी भासा में एक एक सबद रा 500-500 पर्यायवाची। एक सबद रा इत्ता पर्यायवाची किणी भासा में नीं लाधै। भासा विग्यानी जार्ज ग्रियर्सन 'लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' में, डॉ. एल.पी. टेस्सीटोरी 'इंडियन एंटीक्यूवेरी' में अर डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी 'पुराणी राजस्थानी' में राजस्थानी नै दुनिया में सैसूं बेसी ठरकै आळी भासा बताई है।
हरेक भासा में बोलियां होवै। एक भासा मुख सुख सूं बोलीजै। एक भासा बोली री ओळ में बोलीजै। पण अकादमिक भासा रो ठरको न्यारो। हिन्दी तो घणा ई लोग बोलै। हरेक री हिन्दी न्यारी-न्यारी। पण भणाई में पूरै देस री एक ई हिन्दी। जकी में पोथ्यां छपै। बा हिन्दी एक। आपणै पड़ोसी पंजाब नै ल्यो। पंजाब री राजभासा पंजाबी। पंजाबी में पटियाळवी, दोआबी, होशियारपुरी, मलवई, मांझी, निहंगी, भटियाणी, पोवाधि, राठी, गुरमुखी, सरायकी आद 29 बोलियां। पण बठै जका राजकाज रा दफ्तरी हुकम, अखबार-पत्रिकावां अर भणाई री पोथ्यां निकळै, बै एक इज भासा में निकळै। बा है मानक पंजाबी। राज रा हुकम सूं ई किणी भासा रो मानक थरपीजै। इकसार कायदो बणै। जकै दिन आपणी राजस्थानी राजकाज री भासा थरपीजसी। उण दिन मानक राजस्थानी भी थरपीजसी। सगळै दफ्तरां, अखबारां, पत्रिकावां अर पोसाळां री पोथ्यां में एक ई भासा चालसी। बा होसी मानक राजस्थानी। जद तक ओ काम नीं होवै, बठै तक लोग आप-आपरी बोली में लिखै। इण में हरज भी नीं है। अब देखो, पंजाब रै हर अंचल में न्यारी-न्यारी बोलियां बोलीजै। पण विधानसभा, कोट-कचे़ड्यां, पोसाळां, जगत-पोसाळां अर अखबार-पत्रिकावां में राज री थरपियोड़ी मानक पंजाबी ई बपराइजै। पंजाब रै भी हरेक लेखक री भासा में उणरै अंचल री महक भी आयबो करै। आवणी जरूरी है। इणसूं भासा रो फुटरापो बधै। आपणै राजस्थानी लेखकां री भासा में भी आपरै अंचल रो लहजो झलकबो करै। आपां हरेक अंचल री भासा रो सवाद चाखां। तो ठाठ ई न्यारा। बगीचै री सोभा भांत-भंतीला फूलां सूं ई बध्या करै। एक ई रंग-सुगंध रा फूलां रो किस्यो मजो।
राजस्थानी में भी मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाती, वागड़ी, हाड़ोती, भीली, ब्रज अर मारवाड़ी समेत 73 बोलियां। आं सगळी बोलियां नै भेळ'र ई राजस्थानी भासा बणै। जकी भासा में जित्ती बेसी बोलियां, बित्ता ई क्रिया रूप। क्रिया विशेषण, कारक। विशेषण पर्यायवाची होया करै। हिन्दी में 'है' होवै, पण राजस्थानी में 'है', 'सै', 'छै', 'छ' आद कई रूप। हिन्दी में आपां कैवां- आपका। पण राजस्थानी में आपरो, आपनो, आपजो अर आपगो मिलै। राजस्थानी में कई जग्यां 'स' नै 'ह' बोलै। जियां साग नै हाग। सूतळी नै हूतळी। सीसी नै हीही। सासू नै हाहू। सात नै हात। अर सीरै नै हीरो। कोलायत सूं जैसलमेर तक री पट्टी नै मगरो कैवै। ल्यो मगरै री बात बताऊं। दोय मगरेची बंतळ करै-
-होनिया, हुणै है कांई?
-हां, हूणूं हूं नीं, हैंग बातां।
-होनिया यार, हाहू नै हौ बोरी हक्कर होमवार नै भेजणी है। बोरी हीड़ दे नीं। लै हूवो-हूतळी।
-हूं बी हरहूं रै तेल री हो हीही हूहरै नै भेजणी है। म्हनै तो ओहाण ई नीं।
अर अबार सुणो जनकवि कन्हैयालालजी सेठिया री कविता री ओळ्यां-
मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, वागड़ी, हाड़ोती मरुवाणी,
सगळां स्यूं रळ बणी जकी बा, भासा राजस्थानी।
रवै भरतपुर अलवर अलघा, आ सोचो यांताणी!
हिन्दी री मा सखी बिरज री, भासा राजस्थानी।
जनपद री बोल्यां है मिणियां, माळा राजस्थानी।
आज रो औखांणो
बोलै ज्यांरा बिकै बूमड़ा*, नींतर जवार पड़ी खोखा खाय।
बोले जिसके बिकें बूमड़े, नहीं तो ज्वार पड़ी रह जाय।
वाचाल व्यक्ति केवल अपनी जीभ के जोर पर बेइंतहा लाभ उठाता है, वरना चुप रहने वालों का अच्छा माल भी बिन बिका पड़ा रहता है।
*अनाज के ऊपर वाले छिलके।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
Email- aapnibhasha@gmail.com
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Friday, January 23, 2009

२४ फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २४/१/२००९

प्रहलादराय पारीक रो जलम १ मार्च, १९६४ नै बडोपळ गांव में हुयो। राजस्थानी रा चावा लिखारा अर शिक्षक। पीळीबंगा तहसील रा गांव १८ एसपीडी रा वासी। आपरी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपती रैवै। आज बांचो आं कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई
भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई

-प्रहलादराय पारीक
रूंख मुरधर रा देवता। तुळछी-पींपळ-बड़ री पूजा अठै रो धरम। खेजड़ी अर बोरटी देवतावां रो ठावो ठिकाणो। पितरां-भैरूंआं, भोमियां-खेतरपाळां अर मावड़्यां जी रा थान रूंखां तळै। गोगैजी, हरीरामजी, बिग्गाजी, हड़बूजी, पाबूजी अर हड़मानजी रा थान तळै तो धजा रूंखां माथै। रूंख काटणो अठै पाप। 'सिर साटै रूंख रवै तो भी सस्तो जांण' री रीत पाळै राजस्थान। इण बात री साख भरै खेजड़ली गांव। खेजड़ली में ३६५ बिसनोई कट मर्या पण रूंख नीं कटण दिया।
रूंख हिमायती राजस्थान माथै प्रकृति री अणखूट किरपा। अठै नीम, कैर, बड़, फरांस, जाळ, रोहिड़ो, बांवळी, गूंदियो, कूमटो, हींगवांण, कीकर, बोरटी, कंके़डो अर फोग जे़डा नांमी रूंख। बांठ-झाड़ यां-घासां में अळाई, सीवण, धामण, बूर, सरकणो, प्याजी, बूई, कागारोटी, मामालूणी, दूधी, भूं-कटेरी, द्रोणियो, बेकरियो, गंठील, भुरट, गिरम, आसकंद, धतूरो, मोथियो, मुरायली, आकड़ो, डचाभ, खींप, रींगणी, सिणियो, अपूठ-कांटो अर सित्यानासी जग में सिरै। धरती रा मोभी। कम पाणी में पळै। काळ-दुकाळ-तिरकाळ अर सतकाळ पड़ै। पण अै नीं मरै। सूकै। पण मेह री छांट देखतां ई हर्या हुवै।
फोग पण धरती रो सैं सूं मोभी बांठ। बांठ कैवै झाड़की नै। इण बांठ रो अठै रैवणियां सूं जीव-जड़ी रो नातो। मरुधरा में रूंखां नै हर्या रैवण में अबखो। पण ऊंडी आस्था अर ऊंडी जड़-जूण रा जतन। मरुधर रा रूंख ऊंडी राखै जड़। फोग री जड़ भी ऊंडी। बंतळ करता लोग कैवै कै फोग-खेजड़ा पताळ रो पाणी पीवै। खोदता जावो, पण आं री जड़ नीं खूटै। फोग रो बोटेनिकल नांव 'केलिगोनम पोलिगोनियोलस'।
फोग बिरखा रै पाणी सूं ई जीवतो रैय सकै। गरमियां में हर्यो रैवै। इं रा जड़-बांठ सांगोपांग बळीतो। इणरा पत्तां नै ल्हासू कैवै। गाय, भैंस, बकरी, भेड अर ऊँट ल्हासूं कोड सूं खावै। इण बांठ रा फूलां नै फोगलो कैयीजै। फोगलै रो रायतो बणै लिज्जतदार। इण रायतै री तासीर ठण्डी। सरीर री गरमी रो बैरी। बैदंग में इण बांठ रो खासो नांव। लू रो ताव उतारण सारू रामबांण। डील माथै इणरा हर्या पानका नाखो अर लू रो ताव उतारो। लकवै रै रोग्यां रो इलाज भी फोग सूं हुवै। मरीज नै उघाड़ो कर`र मांचै सुवावै। मांचै नीचै सूं फोग रै पत्तां री भाप दिरीजै। बैद बतावै कै इणसूं लकवो ठीक हुवै। फोग रै फळ नै घिंटाळ कैवै। घिंटाळ डांगरां रो लजीज चारो। घिंटाळ ऊँटां नै भोत भावै। जे खोड़ में तिसाया मरो, फोग रा पानका चाबो। तिरस नै जै माताजी री।
फोग धोर्यां रो चूल्हो दोय तरियां सूं बाळै। एक तो लकड़ी सूं अर दूजो पानकां, घिंटाळ अर बळीतै रै बिणज सूं। इणी कारण मुरधर रै लोकजीवण में फोग री मोकळी महिमा। बैसाख री तपती लूवां में हर्यो कच्च रैवै। खारा खाटा ल्हासू खाय'र छाळ्यांक् मोकळो दूध देवै। बैसाख में गाय-भैंस रो दूध सूक ज्यावै, पण छाळ्यां धीणो बपरावै। इण सारू लोक में कैबा चालै- 'फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई। भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई।' फोगलै रै रायतै सारू भी लोक में कैबा है- 'फोगलै रो रायतो, काचरी रो साग। बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग।'
लोक में रच्यै-बस्यै इण रूंख री इतिहास में भी ठावी थोड़ । एकर री बात, बीकानेर रा राजा रायसिंहजी रा भाई पीथळ नांव सूं ख्यातनांव कवि, दिल्ली पातस्याह अकबर रा भेज्या बुरहानपुर गया। बठै रा सूबेदार थरपीज्या। देस सूं घणा दिन अळगा रैया तो बीकाणै री ओळ्यूं आवण ढूकी। एक दिन बै तफरी करै हा। अचाणचकै बां नै फोग दीख्यो। फोग नै देखतां ई बै हर्या होग्या। फोग सारै जाय बैठ्या। बतळावण ढूक्या-
तूं सैंदेसी रूंखड़ो, म्हे परदेसी लोग।
म्हानै अकबर तेड़िया, तूं यूं आयो फोग।।
आज रो औखांणो
फोग आलो ई बळै, सासू सूदी ई लड़ै।
कहावत में कहा गया है कि जिस प्रकार फोग की लकड़ी गीली होने पर भी आग पकड़ लेती है, उसी प्रकार सास सीधी हो तब भी अधिकार पूर्वक बहू को फटकार लगा ही देती है। मौका मिलने पर असली स्वभाव उजागर हो ही जाता है।
छाळी अर मिणमिणी बकरी रा पर्याय है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

Thursday, January 22, 2009

२३ सियाळै री रुत भली, कोई परदेसां मत जाय

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख- २३//२००९
सियाळै री रुत भली,
कोई परदेसां मत जाय

-रामस्वरूप किसान

डांफर चीरै डील नै, चीरै रीळ कपाळ।
ठांठो-कोड़ो-कोढियो, दावो, लक्कड़-बाळ।।

पाळै रा अलेखूं रूप। जित्ता ई रूप, बित्ता ई नांव। ठारी, ठांठो, रट्ठ, कोढियो रट्ठ, रीळ, लूरी, डांफर, कोड़ो, दावो। दावो भी दोय भांत रो, आक दावो अर लक्कड़ दावो। पाळै री उमर च्यार म्हीना। मिंगसर जलमै। ऐ तीस दिन टाबरपणैं में बीतै। गांव री गळियां रमै। खेतां खेलै। अर वणराय में भंवै। बडो हुवै। बतळ चालै, ठारी आयगी। मीठी-मीठी ठारी। टाबर गांवता फिरै-
'पाळो लागै-सीयो लागै, धन-कुक्कड़ी।
धन्नै रो जंवाई आयो, रंध खिच्चड़ी। '
ओ आवतो पाळो बजै। जको सेध ई सकै। कैबा है कै पाळो आवतो सेधै का जावतो। यूंकै आवतो पाळो टाबर अर जावतो बूढो अर टाबर अर बूढै सूं आपां कम डरां। इंर् सारू बेसी बिसवास करां अर इं बिसवास पर मार खा बैठां। पछै फिरां सुरड़-सुरड़ करता। धांसता अर नाक पूंछता।
पाळो जद पोह में बड़ै, जवानी ढुळ-ढुळ पड़ै। बिरवां रा पान झड़ै अर काळा बांबी में बड़ै। जद ओ जमै माट अर घड़ै। डील में बिच्छू सा लड़ै। लोग बतळावै, दावो पड़ग्यो। आक दावो।
आक दावो पड़ै जद आक रा पानका बळै। अरण्ड अर सरस्यूं री खेती नै खतरो। लोग खेतां में जावै। सरसम री फळी ल्यावै। चीर-चीर उगाड़ में दिखावै, ऐ देखो रगड़ दिया। एक ई दाणो नीं छोड्यो। सगळां रो पांणी बणा दियो। मुरड़ांद आवै फळियां में। पाळै सूं सीजग्या दाणा। अब द्यो दरखास खराबै री।
लोग खराबै री दरखास देंवता फिरै। दूजी कानी पाळो आं सगळी बातां सूं बेखबर गे़ड चढण लागै। जोबन ऊफणै। आक दावै सूं लक्कड़ दावै पर आवै। लक्कड़ दावो सैं सू खतरनाक। कोढियो रट्ठ। कोझो को'ड़ो। जिकै में बूई-सिणिया अर छोटा-मोटा रूंख तकात भुळसीजै। देखतां-देखतां हर्यो रूंख लक्कड़ बणै। आखी रोही तुरड़ीज जावै। पूरी जमीं पर बरफ री चादर बिछ जावै। इस्यै रट्ठ में खेती रो कांइं माजणो। किरसा गरळावै, आज सरग्यो काम। इणनै कैवै पाळो। तुखम ई कोनी छोडी। लक्कड़ दावो पड़ग्यो।
पाळै रो ओ तांडव आधै माह तांई चालै। पूरी दुरळ मचावै। पछै तर-तर जोबन ढळै। जवानी रो नसो उतरै। आंख खोलै। च्यारूंमेर निरखै। आपरी करणी पर पछतावै अर सगळां रा घाव सै'लावै। बिरवां पर कूंपळ फोडै। टूटी वणराय जोडै। रोवतड़ा जीव हँसावै। धरती पर फूल खिलावै। अब पाळो बसंत कुहावै।
पाळै अर बूढै में उलटो संबंध। पाळो जद जुवान हुवै तो बूढो और ई बूढो। अर पाळो जद बूढो हुवै तो बूढो छक जवान। दोय दांत। खड़्या कान। पांख आज्यै। रग-रग नाचण लागै। सूत्योडो जोबन जागै। बोलो, है कांइं कसर? ओ रुत रो असर। आं नै कैवै रुत-रुत रा मेवा। कदे राकस तो कदे देवा।
पाळो बूढो हुग्यो। पाळै नै पाळो लागै। जाड़ बाजै। धूजणी छूटै। गळ में गोडा घाल रिजाई में बड़ग्यो पाळो। अर दूजी कानी? बो देखो बूढियो। रिजाई रै लात मार, मांची सूं कूद, हाथां में डफ झाल्यां खड़्यो है।
फागण आग्यो बेलियो! मदमावतो फागण। नाचतो-गावतो फागण। गुलाल उडावतो फागण। पाळै नै बुढावतो फागण। बूढो मिनख नीं सुहावै। सगळां रै आंख्यां आज्यै। पण बूढो पाळो आछो लागै। आखी जीयाजूण टाबर री भांत इण री गोदी खेलै। हाँसै। किल्लोळ करै।
फागण मनभावणो म्हीनो। इण रो मद छक कुदरत डुलै। पोह-माह री टूंट फागण में खुलै। निवाया दिन। ठंडी रात। हाथ में हाथ। बात में बात। चूंतर्यां पर गप्प। बाजता डफ। मारता उछाळ। गावता धमाळ। सिर पर होळी। भर-भर झोळी। खुसियां री ल्यायो है फागण।
मधरो-मधरो बायरियो चालै। रूंखां रा पत्ता हालै। भंवरा भणकै। धरती री पायल खणकै। दरख्तां पर पाखी बोलै। कानां में मिसरी घोळै। गयो सियाळो-आयो उन्हाळो। लोगड़ा बोलै।
पाळै रै हरेक रूप रा न्यारा-न्यारा नांव। न्यारा-न्यारा काम। पण सियाळै री रुत सिरमौर। एक लोकगीत में आपरै परदेसी पिया नै एक बिजोगण नार इण भांत कैवै-
मैं तनै कैवूं सायबा, कोई सियाळै भल आय।
सियाळै री रुत भली, कोई परदेसां मत जाय।।
आज रो औखांणो
सियाळो तो भोगी रो अर उन्हाळो जोगी रो।
सर्दियों की मौसम भोगियों के लिए आनन्दप्रद होती है तो गर्मी की तप्त मौसम योगियों के लिए उपयुक्त है, इसलिए कि साधना में विकार उत्पन्न नहीं होते। मनुष्यों के संदर्भ में प्रत्येक ऋतु की अलग-अलग उपादेयता होती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

Wednesday, January 21, 2009

२२ आंगण-आंगण चरखलो ढाणी-ढाणी ढेरियो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २२/१/२००९
आंगण-आंगण चरखलो
ढाणी-ढाणी ढेरियो

राजस्थान रा गांव निराळा तो अठै रा मिनख भी निराळा। निराळी अठै री रीत-पांत तो निराळी अठै री जिनसां। आं जिनसां रा नांव नूंवी पीढी भूलती जावै। आपणी भासा छीजती जावै। आपां आं जिनसां सूं जु़डी हर बात, हर सबद सूं जाणीजाण हुवण रा जतन करता रैस्यां। आं जिनसां में एक निराली जिनस है, ढेरियो। इं नै ढेरो भी कैवै। कैबा चालै, आंगण-आंगण चरखलो, ढाणी-ढाणी ढेरियो। गांव, गळी, चौपाल, अर खेत-खळै तांइं इं रो पगफेरो।
ढेरियो भोत काम री चीज। आं दिनां तो इं री तार आ जावै। गांवां में तो घणकरा लोग तावड़ो करता, हथायां करता, राह बगता ढेरियो कातता दिखै। ढेरियै पर कोई सूत कातै तो कोई लोगड़। कोई कातर कातै तो कोई जट्ट। कताई पछै आं री रास, जेवड़ी, जेवड़ा, लाव, तांगड़, मांचा, पीढा, मोरखिया, बोरा अर इण भांत री कई दूजी चीजां बणै। जिकी घर अर खेत में पग-पग पर काम आवै। खेती अर ढेरियै रो गहरो नातो। जूनो सम्बंध। मै'णती मिनख रै औसाण में ढेरियो एक पंथ दो काज करै। खेत जाय'र नीरणी ले आवै अर साथै एक ढेरो सूत कात ल्यावै।
ढेरियो इतणा काम करै पण खुद री काया किसी'क? ढेरियै में बिलांत-बिलांत री दोय लकड़ी होवै। बां रै बिचाळै मोरखा होवै। आं मोरखां में डेढ पाव रै सिरियै री करीब डेढ बिलांत लाम्बी एक छड़ घालीजै। आ छड़ काठ री भी होय सकै। आपणी भासा में आं दो लकड़ियां नै गाही अर छड़ नै मझेरू कैवै। मझेरू रै ऊपरलै पासै घुंडी होवै। घुंडी में सूत नै अटकाय'र बंट लगाइजै। काठ रै मझेरू में घुंडी री जागा कील्ली होवै।
कातै जको कतारो। कतारो आपरी कांख में लाम्बी बादी रो एक झोळो राखै। जिकै में सूत, जट्ट या कातर घाल्यां राखै। कातण सूं पै'ली सूत सुळझाणो पड़ै। तार-तार काढनै मोइया बणाइजै। कतारो मोइयां रा तार एक-दूजै सूं जोड़तो अर बंट लगावतो जावै। बंट डावो अर जीवणो जियां ढब बैठै बियां लगा सकै। सूत नै दोलड़ो कर'र दूसर कातै तो डावै काते़डै रै जीवणो अर जीवणै रै डावो बंट लागै। चोखो कतारो एक दिन में कई ढेरा कात देवै। पण अमूमन दोय ढेरा उतरै। काचै सूत रै इं ढेरै रो भार पाइयै सूं लेय'र आध सेर तक होवै। ईं सूं बेसी वजन रो ढेरो कातणो ओखो मानीजै। दोय काचै ढेरां नै एक साथै पळेटण सूं गेडी बणै। गेडी नै फेरूं ढेरै पर कातण सूं पींडी बणै। ईं पींडी नै जद मांचा-पीढा बणावण सारू काम लेइजै तो बो बांण बजै। जे इंर् बाण रा रास, जेवड़ा, मोरखिया का तांगड़ बणावणा होवै तो तांतो बजै। तांतो बांण रो बो रूप है जिकै में बांण कई लड़ो बंटीजै। बांण रो तांतो बणावण सूं पै`ली सूत री पींडी निंदोळणी पड़ै। पींडी नै पाणी में भेवण रो नांव निंदोळणो है। निंदोळण पछै बांण सुखाइजै। पछै तांतो बणाइजै।
ढेरियै री आपरी रुत। डोकरा बतावै कै उन्हाळै में बैसाख-जेठ अर सियाळै में पौह-माह में ढेरियो बेसी कतै। यूं कै आं दिनां खेतां सूं औसाण होवै। ढेरियो इत्तो काम करै। मिनख री पग-पग पर इमदाद करै। फेर ई कई जिग्या ईं नै सुभ कोनी मानै। बिरखा रा दिनां में अर बरसतै में ढेरियो कातणो असुभ मानीजै। ब्याव-सगाई अर दूजा ऐढां-मेढां पर ई ढेरियै नै आपरा हाथ-पग थामणा पड़ै। कई तो कतारै नै टोक ई देवै, '' यूं बंट चढावै, तेरै और काम कोनी कांईं ?'' आपणै 'बंट चढाणो अर 'बंट काढणो' मुहावरा भी चलण में है।
ढेरियै सूं कई और ई फायदा होवै। कैबा चालै, बे'लै नै बदमासी सूझै। ढेरियै सू बेला'ई में काम मिल जावै। ढेरियो कातण सूं डील कई भांत री कसरत करै जिणसूं काया निरोग रैवै अर मन ई को भटकै नीं। गांवां में आज भी ढेरियै री कदर घणी। नूंवी पीढी रै हाथां में जठै बैट-गींडी दीख जावै बठै ई चूंतरियां पर तावड़ो करता भोत-सा जवान ढेरियो कातता भी दीखै।
अर ल्यो, अबार सुणो कन्हैयालालजी सेठिया रो एक गळगचियो-
मिनख कयो- उलझयोड़ी जेवड़ी, म्हैं तनै सुळझा'र थारो कत्तो उपगार करूं हूं! जेवड़ी बोली- तूं किस्यो'क उपगारी है, जको म्हारै सूं छानूं कोनी। कोई और नै उळझाणै खातर म्हनै सुळझातो हुसी!
आज रो औखांणो
कमावै थोड़ो खरचै घणो, पै'लो मूरख उणनै गिणो।
कमाए कम, खर्च करे ज्यादा, बेजोड मूरख का यही लबादा।
आय से अधिक खर्च करने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

२१ माघ मास जो पड़ै न सीत। मेहा नहीं जांणियो मीत।।

माघ मास जो पड़ै न सीत।
मेहा नहीं जांणियो मीत।।
डॉ. राजेन्द्र बारहठ रो जलम २० जून, १९६९ नै जोधपुर जिला रा गांव खारी छोटी मांय हुयो। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रा राजस्थानी विभागाध्यक्ष अर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश महामंत्री। राजस्थानी रा नांमी लिखारा, भाषाविद् अर चिन्तक। आपरी पोथ्यां छपी हैं अर आप राष्ट्रीय अर अन्तरराष्ट्रीय सेमीनारां मांय रिसर्च पेपर भी बांच चुक्या हैं। उदयपुर री साहित्यिक संस्था 'राजस्थानी जाजम' रा संस्थापक अर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा अंगी संगठन, राजस्थानी महिला परिषद्, राजस्थानी मोट्यार परिषद्, राजस्थानी चिंतन परिषद् अर राजस्थानी खेल परिषद् रो गठन करावण में आगीवांण। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी- खास लेख।

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २१/१/२००९

माघ मास जो पड़ै न सीत।
मेहा नहीं जांणियो मीत।।

-डॉ. राजेन्द्र बारहठ, उदयपुर।

राजस्थानी लोक साहित री भागीरथी री अबोट धारावां में लोक-गाथावां, लोक-नाट्य, बातां, लोकगीत, आडियां, औखांणा इत्याद हैं। जिण धारावां री मारफत लोक में आ ग्यान-धारा परम्परागत रूप में बैवती रैयी है। इण लोक ग्यानधारा रै मारफत ई अठै रा मानखां री पीढ़ियां निकळगी जकी शिक्षा, कला, विग्यान, बिणज, इंजिनियरी अर दूजा विसयां सूं सम्बन्धित कोई उपाधियां नीं राखती अर नीं राखै, फेर भी पीढ़ियां रै संचियोडा अनुभवां रै उजास सूं आज रै विकसित विग्यान नैं भी केई मामलां में साच बतावती लागै आ सबळी लोक-साहित री परम्परा।
राजस्थानी लोक-साहित री सब विधावां में अणूंतो साहित विविध विधावां में मिलै, जिणमें मौसम विग्यान री कैवतां भी है। जकी कैवती-दूहां रै रूप में लोक में पसरी पड़ी है। मौसम विग्यान री ऐ कैवतां तो आधुनिक मौसम विग्यान री भविष्यवाणियां सूं भी च्यार पांवडा आगै निकळती लागै। आं कैवतां रा रचेता कुण है? आं री रचना कठै अर कद हुई? ओ पक्कायत रूप सूं कैवणो मुसकल है। आ बात तो तै है कै ऐ राजस्थानी लोक री हथाई शैली री महताऊ रचनावां है। आं कैवती दूहां रो ज्योतिष अर मौसम विग्यान री दीठ सूं अध्ययन अर मूल्यांकन जरूरी है। आओ, आज बांचां पौह अर माह म्हींनै सारू लोक चलत रा ऐ कैवती-दूहा अर वां रो अरथ-
पौस अंधारी सप्तमी, विन जळ वादळ जोय।
सावण सुद पूनम दिवस, अवसै वरखा होय।।
अरथ- पौस री अंधारी सातम नै जे मेह नीं बरसै तो सावण सुद पूनम नै अवस बरसैला।
पौस अंधारी सप्तमी, जे नहीं वरसै मेह।
तो आदराक् वरसै सही, जळ थळ अेक करेह।।
अरथ- पौस री अंधारी सातम नै जे मेह नीं बरसै तो आदरा नखतर में जरूर बरसैला अर जळ-थळ एक कर देवैला।
पौस अंधारी सप्तमी, जे घण नह वरसैह।
तो आदरा में भड्डळीख्, जळ थळ एक करैह।।
अरथ- पौस री अंधारी सातम रै दिन जे बादळा नीं बरसै तो हे भड्डळी! आदरा नखतर में घणाई बरसैला, च्यारूं कूंटां पांणी ही पांणी कर देवैला।
पौस वदी दसमी दिवस, वादळ चमकै वीज।
तो वरसै भर भादवै, होय अनोखी तीज।।
अरथ- पौस वदी दसमी रै दिन जे बादळां में बिजळी चमकै, तो पूरै भादवै चोखी बिरखा होवै अर तीज रो तिवांर अनोखो बण जावै।
माह अंधारी सप्तमी, मेह वीजळी संग।
च्यार मास वरसै सही, प्रजा करै नवरंग।।
अरथ- माह वदी सातम रै दिन जे बीजळियां खिंवै अर बादळ हुवै तो आगै चाल'र पूरै चौमासै मेह बरसै अर मानखै री मन री रळियां मतलब मनस्यावां पूरी हुवै। प्रजा रै सब तरै रा आणंद हुवै।
माह अमावस रात-दिन, मेघ पवन घण छाय।
धरती में आणंद हुवै, संवत् चोखो थाय।।
अरथ- माघ म्हीनै री अमावस नै जे बादळ छावै अर वायरो बाजै। तो धरती माथै आणंद छावै अर संवत् चोखो बीतै।
आज रो औखांणो
माघ मास जो पड़ै सीत।
मेहा नहीं जांणियो मीत।।
माघ महीने में यदि सरदी पड़े तो आगामी बरस में बरसात होने के आसार होते हैं।
१. आद्रा नक्षत्र, २. एक कवि रो नांव।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

Monday, January 19, 2009

२० एक-एक चीज रा अलेखूं नांव

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख- २०/१/2009
एक-एक चीज रा अलेखूं नांव

किणी भासा री खिमता बीं रै सबदां सूं जाणी जावै। जिकी भासा में जित्ता बेसी सबद बा भासा बित्ती ई लांठी। बित्ती ई तकड़ी। आपणी भासा भोत तकड़ी है। एक-एक चीज रा अलेखूं नांव इण बात री साख भरै। हरेक भाव अर हरेक सम्बंध सारू न्यारा-न्यारा नांव। कई भासावां में तो भूआ, काकी, ताई, मौसी अर मांमी, आं सगळां सारू एक ई नांव लाधै। पण आपणै तो न्यारा-न्यारा है। आपणा तो ठाठ ई न्यारा है। जदी तो नारो बोलां-
राजस्थानी थारो झांपो काम।
एक चीज रा सौ-सौ नाम।।
ल्यो आज बांचा, रिस्तां रा नांव। रिस्तै नै आपणै राजस्थानी में सगाई, सम्बंध अर गनो भी कैवै। सगाई सबद तो नूंवै सम्बंध सारू भी बरतीजै। तो देखो, आपणी भासा में कांईं-कांईं रिस्ता-
कंत, कंवर-सा, कंवरी, काकी, काकीआत भाई, काकीआत बैन, काकेर-सासू, काकेर-सुसरो, काको, कीकी(बेटी), कीको, कुको(बेटो), कुकी, ख्वास(रखैळ), गीगली, गीगलो, गुरू, गूजर(तीजी लुगाई), गैलड़, गोठी(साथी), चाची, चाचो, चेलो, छंवर(पड़पोतो), छोटियो, छोरी, छोरो, जंवाई, जजमान, जांमण, जांमण जाई, जामण जायो, जांमी, जीजी, जीजी बाई(बडी सौक), जीजा(बडी बैन), जीजाजी, जीजोसा, जीसा, जेठ, जेठांणी, जेठूती, जेठूती-जवांई, जेठूतो, जोड़ायत, टाबर, डीकरी, डीकरो, तंवर(लड़पोतो), ताई, ताऊ, तायर सासू, तायर सुसरो, दाता, दादी, दादेर-सासू, दादेर-सुसरो, दादो, देरांणी, देवर, दोयती, दोयती-जंवाई, दोयतो, दोस्त, धण, धणी, धर्मबैन, धर्मभाई, धीव, नणद, नणदोई, नांणदी, नांणदी-जंवाई, नांणदो, नांनी, नांनेर-सासू, नांनेर-सुसरो, नांनो, पड़दादी, पड़दादो, पड़दायत(रखैळ), पड़नांनी, पड़नांनो, पड़पोती, पड़पोतो, पांवणी, पांवणो, पाड़ोसण, पाड़ोसी, पासवान(रखैळ), पीतस(काक सासू), पीतसरो, पोती, पोतो, फूंफी, फूंफो, फूंफसरो, बडी(पैली लुगाई), बडी मां, बडी सासू, बडो सुसरो, बडेरी, बडेरो, बडो बाप, बाखड़ो बेटो(गैलड़), बाखड़ी बेटी, बापू, बाई, बाप, बाबल, बाबो, बिचोटियो, बींद, बीनणी, बेटी, बेटो, बेली, बैन, बैनोई, ब्याई(समधी), भंवर(पोतो), भतीजी, भतीजी-जंवाई, भतीजो, भरतार, भांणजी, भांणजी-जंवाई, भांणजो, भाई, भाभा(माता), भाभी, भाभू(मां), भायली, भायलो, भावज, भूआ, भूआत भाई, भाईजी, भूआत बैन, भूआर-सासू, भू'ड़ो(फूफो), भोजाई, मां, मांई-जाई(सौतेली बैन), मांई जायो, मांई-मां(सौतेली मां), मां जाई, मां जायो, मांमी, मांमीआत भाई, मांमीआत बैन, मांमेर सासू, मांमेर सुसरो, मांमो, माईत, मासी, मासीआत भाई, मासीआत बैन, मासेर-सासू, मासेर-सुसरो, मासो, मिंत, मोट्यार, मांटी(पति), मोबी, यार, रखैळ, लड़पोती, लड़पोतो, लाडकंवर, लाडी(बहू), लाडली, लाडेसर, लालजी(देवर), ल्होडी(दूजी लुगाई), वाभो, वीरो, सगी, सगो, समधण, समधी, साळेली, सवासणी, साढू, साळी, साळो, सावकी, सावको(सौतेलो), सासू, सुसरो, सौक।
म्हे तो घणा ई ढूंढ्या, पण फेर ई घणा ई छूट्या होसी। आपनै भी कीं न्यारा नांव आवता होसी। पूगता करज्यो सा!
अर अबार बांचो किरपारामजी बारहठ रो ओ सोरठो-
मतलब री मनवार, नूंत जिमावै चूरमो।
बिन मतलब मनवार, राब न पावै राजिया।।
आज रो औखांणो
आपआळो मारै तो छिंयां जरूर गेरै।
घात करने के बाद भी अपने आत्मीय के मन में कभी न कभी तो प्रेम उमड़ता ही है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

Sunday, January 18, 2009

१९ मावठ री जे सूत बैठज्या, भर-भर ल्यावै बोरा

मावठ री जे सूत बैठज्या,
भर-भर ल्यावै बोरा
हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के गांवों में ओलावृष्टि और मावठ के मौसम पर राजस्थानी भाषा के साहित्यकार परलीका निवासी रामस्वरूप किसान का लेख-पढ़ें आपणी भाषा-आपणी बात स्तंभ में -कीर्ति राणा

रामस्वरूप किसान रो जलम १४ अगस्त, १९५२ नै परलीका मांय हुयो। राजस्थानी रा सिमरथ लिखारा। साहित्य अकादेमी समेत मोकळा पुरस्कारां रा विजेता। कहाणियां अर कवितावां री सात पोथ्यां छप चुकी। आपरी रचनावां रा अंग्रेजी, हिन्दी, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मलयालम अर मराठी भाषा में अनुवाद भी हुया है। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।


आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १९/१/२००९
मावठ री जे सूत बैठज्या,
भर-भर ल्यावै बोरा

-रामस्वरूप किसान
माध वूठै तो मावठ। वूठै मतलब बरसै। मावठ रो अरथ-माघ-वृष्टि। माह रो मेह। आपणै हर म्हीनै मेह रा न्यारा-न्यारा नांव। चैत में चिड़पिड़ाट। कैबा है- चैत चिड़पिड़ो तो सावण निरमळो। लोक मानता है- चैत रो चिड़पिड़ाट सावण री बिरखा नै लीलज्यै। जेठ में मिरग-पीया। जेठ लागतै रै मेह नै मिरग पीया घालणा कैवै। साढ़ में सरवांत। सावण-भादवै में झड़ी। आसोज-काती में टांडातोड़। मिंगसर रो झारो। पो-माह री मावठ। अर फागण में आड़ंग।
अठै सियाळै रै मेह नै मावठ कैवै। सियाळै री खेती पर मावठ करै इमरत रो काम। कैबा चालै-
टीबा-टेचरी, दोमट माटी, मधरा-मधरा धोरा,
लीला घोड़ा, लाल काठी, ऊपर गबरू गोरा,
मावठ री जे सूत बैठज्या, भर-भर ल्यावै बोरा।
मतलब चीणां री खेती मामूली टीबा-टेचर्यां, मधरै-मधरै धोरां अर गदर-सी जमीन में हुवै। चीणै रै बूंटै नै लीलो घोड़ो, फूलां नै लाल काठी अर घेघरियां मतलब चीणां री फळियां नै गोरा गबरू री उपमा दिरीजी है। मावठ री जे सूत बैठज्या तो इण भोम में चीणां रो कांइं लेखो! लोग बोरा भर-भर खेतां सूं ल्यावै।
बिरानी खेती सारू मावठ सरजीवण बूंटी। चीणां अठै री बिरानी खेती। कम पाणी सूं नीपजै। चीणो ऊंडी आल नै मानै। ऊंडी आल अर ऊपर भरळ। चीणै री जड़ां खासी लाम्बी। दो फुट तळै सूं आलीड़ो खींचै। चीणो थोड़े मेह में पाकणआळी खेती। पण मावठ री अणूंती दरकार। मावठ बिना चीणो नीं होवै। मावठ भावूं थोड़ी होज्यै, चीणै री खेती खाली नीं जावै।
मावठ हाड़ी री गारंटी। हाड़ी री खेती पर मावठ री मो'र लागै। दाणां रा बोरा भर-भर आवै आगै। इणी सारू किरसां नै मावठ री उडीक रैवै। कैवणै में आवै-'मेह री सी उडीक।' मेह री उडीक सैं सूं तकड़ी। जद तांई बिरखा नी हुवै, किरसां रै डील पर मकड़ी-सी चढबो करै। दिन-रात एक ई रट- 'मावठ कोनी होई। बादळिया मंडै तो है। पांच आंगळ करद्यै तो न्ह्याल हो ज्यावां। अजे तांई तो हाड़ी सांगोपांग खड़ी है। रामजी सुणल्यै तो दाणां में सीर होज्यै।' अर जद रामजी सुणल्यै तो किरसां रै हरख रो पार नीं रैवै। रग-रग नाचण लागै। चैरां चेळको बापरज्यै। बतळावै- 'न्ह्याल कर दिया। सांवरियै आछी सुणी। बड़ै मौकै री मावठ होयी। मरयोड़ा नै जिवा दिया। मेह नीं जीवण बरस्यो है। ऐ दस आंगळ छांट तीस आंगळ रो काम करसी।' सियाळै रो मेह सूकै कोनी। यूं कै म्हीनै तांइं धंवर पड़सी। जकी सियाळै री खेती सारू रामबाण। धंवर खेती नै सिनान करावै। पाळै सूं बचावै। अर पत्तां पर पड़ी पाणी री बूंद इमरत रो काम करै। आ धंवर ई मावठ बिना नीं आवै। मावठ धंवर री मां।
किरसै रो सो कीं मावठ पर ई है। एक भैण सारू भाई रा बोल- भैण भात नूंतण आई। काळां सूं टूट्योड़ा भाई। भिणभिणा बैठ्या। भैण देख'र गळगळी होयी। बडोडो भाई सिर पळूंसतो बोल्यो- 'आंसू मत ल्यावै म्हारी लाडेसर! पचास बीघा में हाड़ी है। चीणां में सुसिया दुबकै। जे मावठ होयगी तो बंट काढ देस्यां भात में। नीं तो टीको कढावण तो आ ही जास्यां।
आज रो औखांणो
मेह बाबो मोकळो, ढकणी में ढोकळो।
बालक-बालिकाएं मूसलाधार पानी बरसने के बाद खुशियां मनाते हुए नाचते हैं। बार-बार यह उक्ति दोहराते हैं। अर्थात् मेह बाबा ठाट से बरसा तो अब सारे ठाट पूरे हो जाएंगे।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका। ईमेल- aapnibhasha@gmail.com Blog- www.aapnibhasha.blogspot.com

१८ काळी भली न कोड्याळी, भूरी भली न सपेत।

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख- १८/१/२००९
काळी भली न कोड्याळी,
भूरी भली न सपेत।

लारलै दिनां आपां रंगां रा नांव बांच्या। आपणै लोक मांय ठाह नीं कित्ता-कित्ता नांव बिखर्या पड़्या है। जरूरत है वां नै अंवेरण री। वां नै ठाया राखण री। आप भी आ सेवा कर'र आपरी हाजरी लगवा सको हो। आज कीं रंगां रा नांव और हाथ लाग्या है। बांचो सा!
अब्बासी, आबी, आभासांइंर्, आभैवरणो, उन्नावी, कपासी, करजवी, काफरी, काही, किसमिसी, कुमैत, कोकई, कोकाकोला, कोच, कोढ़िया, क्रीमकलर, गेरूवरणो, चटणी रंग, चप, जंगाली, जमुरुदी, जाम्बू रंग, जीलानी, तांबल, तीतरवरणो, तूतिया, तूसी, दाड़मियां, दूधिया, नाफरमांनी, नीला, पिस्ताकी, पोपटी, फालसई, बादळवरणो, बादळसांई, बुर्रा, भंवर, मजीठिया, रूपैलो, लाजवर्दी, सब्जकाही, समदरलैर, सरदई, सावरी, सिंगरफी, हरसिंगारी।
कीं गूढा रंगां सारू ऐ नांव लिया जावै-
उजळो बुराक, काळो किट्ट, काळो ध्राक, काळो भंवर, काळो मिट्ठ, धोळो धक्क, धोळो धट्ट, धोळो फट्ट, पीळो केसर, रातो चुट्ट, रातो चोळ, रातो लाल, लाल चुट्ट, लाल सुरंग, लीलो चैर, लीलो स्याह, सफेद झक्क, सफेद बुराक।
संसार में सात सुख बताया है। ऐ सातूं सुख किणी बिरळै अर भागी मिनख नै ई मिलै-
सातूं सुख
पैलो सुख-निरोगी काया
दूजो सुख-हो घर में माया
तीजो सुख-पतिबरता नारी
चौथो सुख-सुत आग्याकारी
पांचवो सुख-सुथांन वासो
छट्ठो सुख-हो नीर-निवासी
सातवों सुख-राज में पासो।
आज रो औखांणो
काळी भली न कोड्याळी, भूरी भली न सपेत।
राखो रांडां च्यारवां, एकण ई रणखेत।।
काली भली न चितकबरी, भूरी भली न सफेद।
चारों दुष्टाओं को मारो, एक ही रणखेत।।
इण औखांणै रै लारै एक कहाणी है। बांचो-
गोरखनाथ रा गुरु मछंदरनाथ एकर कांगरू देस गया। बठै कई जादूगारी लुगायां मिल'र बां नै बळद बणा दिया। गोरखनाथ नै ठाह पड़ी। घणी भाजादोडी कर'र आपरै गुरु री खोज करी। जद बै आपरै गुरु नै आपरै साथै लेय'र चालण लाग्या तो जादूगरणियां बाज पंछी रो रूप धार लियो अर लारै-लारै उडी। मछंदरनाथजी हा भोत ई दयालु। वां नै दया आयगी। जद गोरखनाथजी आ बात कैयी। बै जादूगरणी जकी बाज बण'र उडै ही, बां रा च्यार न्यारा-न्यारा रंग हा। बां में किसी ई भली को ही नीं, ना काळी, ना कोड्याळी मतलब चितकबरी, ना भूरी अर ना सपेत। गोरखनाथजी बोल्या, च्यारूं ई दुस्ट है अर च्यारुवां नै एक ई जिग्यां मार'र बूर देणी चाइजै।
दुसमण अर दुस्टी लोगां पर कोई दया दिखावै जद आज ई आ बात कैयी जावै।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

Friday, January 16, 2009

१७ केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख-१७/१/२००९

केसरिया बालम आवो नीं
पधारो म्हारै देस
लोकगीत बित्ता ई जूना है जित्तो के मिनख। ऐ लोकगीत राजस्थानी जनमानस रै हिरदै रा साचा उद्गार है, जीवता-जागता चितराम है। घटती-बधती छिंयां अर तावड़ै रै उनमांन ई मानखै रा जीवण में सुख-दु:ख आवता-जावता रैवै। सुख, हरख, कोड, उछाव री घड़ियां में वो जिको मैसूस करै, वां अनुभूतियां री अभिव्यक्ति ई लोकगीतां रै जलम रो कारण बणै।
ल्यो आज बांचां नांमी लोकगीत, 'केसरिया बालम'। धणी नै सुहागण रो सिणगार मानीजै। बीं रो सगळो सिणगार, पैरवास, गैणा-गांठा पिव नै रिझावण सारू हुवै। पिव परदेस बसै तो जोड़ायत आपरा सगळा सिणगार ऐळा मानै। इण लोकगीत में प्राण-प्यारै पिव री उडीक में जोड़ायत री बिरह-बिथा प्रगट हुयी है। ओ एक रजवाड़ी गीत है अर खासतौर सूं मांड राग में गायो जावै। मसहूर लोक-गायिका अल्लाह जिलाई बाई अर गवरी देवी समेत राजस्थान रा हरेक लोक-गायक इण गीत नै घणै हरख सूं गायो है। राजस्थान 'पधारो म्हारै देस' अर 'पधारो सा' री संस्कृति वाळो प्रांत है। अठै आवण वाळा सैलानियां रै स्वागत में ओ गीत खासतौर सूं गायो जावै। इण गीत री घणी कड़ियां है। गायक आप-आपरै अंदाज में जरूरत मुजब गावै।
केसरिया बालम
केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस।।
सावण आवण कह गया सो कर गया कौल अनेक
गिणतां-गिणतां घस गई म्हारी लाल आंगळियां री रेख।।
थारी औळूं म्हे करां और म्हारी करै नां कोय
दूर-दूर पण करै सहेलियां और मु़ड-मु़ड देखै तोय।।
जो मैं एसो जाणती प्रीत कियां दु:ख होय
नगर ढिंढोरो पीटती प्रीत न करियो कोय।।
केसर सूं पगल्या धोवती भले पधारो पीव
और बधाई या करूं, पल-पल वारूं जीव।।
आंबां मीठी आमली चौसर मीठी सार
सेजां मीठी कामणी रणमीठी तलवार।।
मारू थारा देस में निपजै तीन रतन
इक ढोलो, दूजी मारवण, तीजो कसूमल रंग।।
साजन आया ऐ सखी और कांईं भेंट करांह
थाळ भरां गज मोतियां और ऊपर नैण धरांह।।
हो साजन आवत देखके सो तोड्यो नवलख हार
सै: जाणै मोती चुगै म्हैं झुक-झुक करूं जुहार।।
केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस।।
आज रो औखांणो
जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विष होय।
बोलण सूं ई ठा पड़ै, कागा कोयल दोय।।
जीभ में ही अमृत बसता है और जीभ में ही विष। कौए और कोयल का भेद बोलने पर ही मालूम होता है।
आदमी की काफी-कुछ प्रतिष्ठा वाणी पर निर्भर करती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

Thursday, January 15, 2009

१६ लोकगीत ऐ प्रांण, आपणी संस्क्रति रा

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख-१६/१/२००९
लोकगीत ऐ प्रांण,
आपणी संस्क्रति रा
आपरी संस्कृति अर परम्परा रै पांण राजस्थान री न्यारी पिछाण। रणबंका वीरां री आ मरुधरा तीज-तिवारां में ई आगीवांण। आं तीज-तिवारां नै सरस बणावै अठै रा प्यारा-प्यारा लोकगीत। जीवण रो कोई मौको इस्यो नीं जद गीत नीं गाया जावै। जलम सूं पैली गीत, आखै जीवण गीत अर जीवण पछै फेर गीत। ऐ गीत इत्ता प्यारा, इत्ता सरस कै गावणिया अर सुणणियां रो मन हिलोरा लेवण लागै।
लोकगीतां रो लिखारो कुण है, इण बात रो ठाह किणी नै नीं। लोकगीत तो आम जनता री भाषा। खासतौर सूं ऐ लोकगीत लुगायां रै हिवड़ै री उपज। लुगायां रा गीत न्यारा। मिनखां रा गीत न्यारा। रजवाड़ी गीत न्यारा। राजस्थान में भोत-सी गायक जातियां हैं जकी गायन नै आपरो हीलो बणायो। ऐ जातियां हैं- लगां, मांगणियार, भोपा-भोपी, फदाली, कळावन्त, गंधर्व, राणा, मिरासी, ढोली, ढाढी, नगारची, दमामी, जांगड़, नट, पातर, कंचनी, गेला, खारे़ड, देधड़ा, बोघर, बाबर, डगाधोला, थईम, डोसावसी, गुणसार, फुलवाणी, बोमणियां, भटि्टका अर जीण। हरेक गीत में मिनखां रै हिवड़ै री किलोळ परगट हुवै। गांव-गळी अर घर-परवार में गाया जावण वाळा गीतां रो तो कोई छे़डो नीं, पण राजस्थानी लोकगायक जिका गीत गावै वां रा कीं नांव बांचो- विनायक, ईण्डुणी, ओळूं, कागलियो, उमराव, काजळियो, केसरिया बालम, कुरजां, कलाली, काछबो, कूकड़ो, केसर, कोयलड़ी, कामण, गणगौर, गोरबंद, तीज, बिच्छु़डो, घु़डलो, घोड़ी, चटणी, चरखो, चिरमी, बन्नो, बन्नी, जलाल, जंवाई, जल्लो, जीरो, झालो, झूटणियो, डिगीपुरी का राजा, ढोला, तारां री चूंदड़ी, तेजो, तोरणियो, दळ-बादळी, बिछियो, निहालदे, नींबू़डो, धरती धोरां री, पणिहारी, पौदीनो, पटेल्यो, पींपळी, बियाणा, रसिया, बालम, बायरियो, बीरो, बाजू़डै री लूम, पंछीड़ो, मरवण, माहेरो, मूमल, मोरियो, मेथी, मैन्दी, घूमर, मींझर, राइको, रायधण, रुपीड़ो, रुमाल, चंग, पपइयो, लांगुरिया, सुपनो, सूवटियो, सूंठ, सोरठ, हिंडोळो, हंजामारू, हळदी, हिचकी, हींडो। और घणा ई नांव है।
लोकगीतां बावत अस्तअलीखां मलकांण रो एक छप्पय छंद इण भांत है-
लोकगीत ऐ प्रांण, आपणी संस्क्रति रा।
उघड़ै बै चितरांम, जनजीवण री क्रति व्रति रा।।
आं गीतां रै मांय, आपणो जीवण बोलै।
पड़ै बोल जद कान, जाण बो इमरत घोळै।।
जीवण निजू प्रगट हुवै, आं ई गीतां रै पांण।
अतीत रो दरसण हुवै, पुरखां पांण-आपांण।।
आज रो औखांणो
लोक-वांणी सो देव-वांणी।
जो जनता की वाणी है, जनार्दन की वाणी है।
अनेक लोगों की राय ही ईश्वर की राय है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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