Thursday, April 30, 2009

1 मई - धोरां आळा देस जाग

मई दिवस पर खास

धोरां आळा देस जाग

-मनुज देपावत

मई दिवस। मतलब मजदूर दिवस। दुनियाभर रा मजूरां नै कै रो सनेसो देवै। आपरै हकां सारू जगावै। राजस्थानी रा कवियां भी मजूर-किरसाणां रै कै सारू मोकळा गीत लिख्या। एहड़ाएक कवि मनुज देपावत। सन् 1923 में देशनोक में जलम्या। क्रांतिकारी कवितावां-गीत रच्या। फगत 25 बरस री उमर में सन् 1952 में देशनोक अर बीकानेर बिचाळै एक रेल दुर्घटना मांय चल बस्या। पण वां रा गीत आज भी जण-जण रा कंठां गूंजै। मजूर-किरसाणां नै कै सारू चेतावै। मुरदां में ज्यान फूंकै। आज बांचो वां रो एहड़ोएक गीत।

धोरां आळा देस जाग रे, ऊंठां आळा देस जाग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे, धोरां आळा देस जाग।।
धोरां आळा देस जाग रे........
उठ खोल उनींदी आंखड़ल्यां, नैणां री मीठी नींद तोड़
रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो, सपनां रो कू़डो मोह छोड़
थारी आंख्यां में नाच रह्या, जंजाळ सुहाणी रातां रा
तूं कोट बणावै उण जूनोड़ै, जुग री बोदी बातां रा
रे बीत गयो सो गयो बीत, तूं उणरी कू़डी आस त्याग।
छाती पर पैणा..............
खागां रै लाग्यो आज काट, खूंटी पर टंगिया धनुष-तीर
रे लोग मरै भूखां मरता, फोगां में रुळता फिरै वीर
रे उठो किसानां-मजदूरां, थे ऊंठां कसल्यो आज जीण
ईं नफाखोर अन्याय नै, करद्यो कोडी रो तीन-तीन
फण किचर काळियै सापां रो, आज मिटा दे जहर-झाग।
छाती पर पैणा..............
रे देख मिनख मुरझाय रह्यो, मरणै सूं मुसकल है जीणो
खड़ी हवेल्यां हँसै आज, पण झूंपड़ल्यां रो दुख दूणो
धनआळा थारी काया रा, भक्षक बणता जावै है
रे जाग खेत रा रखवाळा, आ बाड़ खेत नै खावै है
जका उजाड़ै झूंपड़ल्यां, उण महलां रै लगा आग।
छाती पर पैणा..............
इन्कलाब रा अंगारा, सिलगावै दिल री दुखी हाय
पण छांटां छिड़कां नहीं बुझैली, डूंगर लागी आज लाय
अब दिन आवैला एक इस्यो, धोरां री धरती धूजैला
सदां पत्थरां रा सेवक, वै आज मिनख नै पूजैला
ईं सदां सुरंगै मुरधर रा, सूतोडां जाग्या आज भाग।
छाती पर पैणा..............

रामस्वरूप किसान रो दूहो

मुरदा अठै मजूरिया, मल्लां मानिंद मोड।
चिलको मारै काच ज्यूं, चरबी चढिया भोड।।

Wednesday, April 29, 2009

३० पाकिस्तान में राजस्थानी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३०//२००९

पाकिस्तान में राजस्थानी

राजनीतिक सीमांकन सांस्कृतिक कड़ियां नीं तोड़ सकै

-डॉ. राजेन्द्र बारहठ, उदयपुर।
कानाबाती- 09829566084

पाकिस्तान रा एक बड़ा हिस्सा में आज भी राजस्थानी भाषा चलै। पाकिस्तान रा प्रसिद्ध आलोचक अर सिरजक बाग अली सौक री पोथी 'राजस्थानी जबान ओ अदब' नाम सूं उरदू में छपी। इणी रा एक अध्याय 'आधुनिक राजस्थानी साहित्य री पिछाण' सूं कीं जाणकारी 'माणक' रा जनवरी 1994 रा अंक में छपी। पाकिस्तान रा राजस्थानी साहित्यकारां रो दल 1994 में 'माणक' रा दफतर में जोधपुर आयो। इणां रो घणो मान करीजियो। बाग अली सौक रा सबदां में- पाकिस्तान में राजस्थानी साहित्य रो इतिहास घणो जूनो। सिंध-पंजाब री सीमा रा इलाका में तो इणरो घणो असर। थारपारकर अर आं जागावां में राजस्थानी लोकगीत अणूंता प्रसिद्ध। जलालो, चनेसर, मटयारो, सावणी तीज, करहो, अम्रलो, पटयारी, मरवण, मूमल, रायधण अर घौंसळो इत्याद खास। कराची में सिलावट बिरादरी रा कीं मोट्यारां मिल'र सन् 1955 में 'अंजुमन मारवाड़ी सोअरा' नाम री संस्था गठित करी। इण संस्था कई जगां उरदू अर राजस्थानी कवि-सम्मेलन राखिया। इण संस्था रा संस्थापक अर कवियां मैसूस करियो कै उरदू री लिपी में राजस्थानी लिखणो संभव नीं। इण सारू स्व. यार मोहम्मद रमजान 'नसीर' इत्याद कवि लिपि में सुधार कर'र लिखण री कोसीस करी। आ सरूआती कोसीस गति पकड़ी। सन् 1955 सूं 1965 तक जका कवि आगै आया, वां में कीं खास नाम है- मास्टर अब्दुल हमीद जैसलमेरी, यार मो. चौहान 'ताहिर', बाग अली सौक जैसलमेरी, मो. रमजान 'नसीर', ओरंगजेब 'जिया', असरफ अली 'अफसोस', कुरबान अली चौहान अर महमूद दार कस्मीरी। पछै 'सिलावट वेलफेयर स्टूडेन्ट फैडरेसन' री तरफ सूं सालीणा इनामी कवि-सम्मेलनां री सरूआत व्ही। ऐ कवि-सम्मेलन घणा चावा व्हिया 'यूथ प्रोग्रेसिव कॉन्सिल' नाम री संस्था इणां कवि सम्मेलनां रो इंतजाम करती। विण वगत जका कवि आगै आया वां में युनुस नीर, युनुस राही, लियाकत अली 'दीपक', निसार 'तालिब', जियाऊदीन 'परवाज', इकबाल 'बर्क', लियाकत 'राज', अब्दुल मजीद 'चिंगारी', बसीर अहमद 'बसीर' अर मो. हनीफ काळू खास हा। भारत-पाक जुद्ध (1971) रै कीं बरसां पछै 1976 में 'राजस्थानी अदब सभा' री नींव राखीजी। इणरी तरफ सूं खेलिजियो पैलो नाटक 'एनात-अपूजी बात' घणो नांमी व्हियो। डोढ-दो बरसां री लगोलग कोसीसां रै पछै राजस्थानी भाषा री व्याकरण त्यार करीजी अर राजस्थानी व्याकरण री कीं खास-खास बातां तै व्ही। ओ काम सैयद सिब्तै हसन पार पटकियो। वै पाकिस्तान रा अंग्रेजी दैनिक 'डॉन' में राजस्थानी नै लेय'र लेख भी लिखिया। आ सभा ब्याव-सादी रा संस्कार गीतां रा कैसिट गुलाम अली री धुनां माथै त्यार कराया। राजस्थानी नाटकां रो सिलसिलो पण सरू व्हियो। राजस्थानी रचनावां रा उरदू, सिंधी, बलोची अर पंजाबी में अनुवाद कराया। खास कर'र 'गोल्डन-जुबली' इत्याद अवसरां पर कवि चावा व्हिया। जकां में सरदार अली चौहान, फारूक आजम फरीद, रजब अली 'गम' अर फिरोज अली 'फिरोज' खास। करांची में 1904 ई. में जलम्या श्री अब्दुल हमीद 'हमीद' राजस्थानी में सांतरै सिरजण सारू आज भी घणा मान सूं याद करीजै।
इणरै अलावा पाकिस्तान में डिंगळ सैली रो साहित्य बड़ी मात्रा में रचीजियो जको क्रम आज भी जारी है। लोक-साहित्य भी भांत-भांतीलो अर बड़ी मात्रा में है। चारणां, सोढां, राजपूतां, मेघवाळां अर दूजी जातियां में राजस्थानी री मारवाड़ी बोली रो चलण है। उमरकोट सोढा राजपूतां री रियासत रीवी है। ओ सांच है कै राजनीतिक सीमांकन सांस्कृतिक कड़ियां नीं तोड़ सकै।

आयां नै आदर घणो, नैणां बरसै नेह

29 जनवरी, 2006 सूं 7 फरवरी, 2006। पूर्व विदेश मंत्री जसवंतसिंह जसोल आपरी इष्ट देवी हिंगळाज माता री जातरा माथै गया। पाकिस्तान रै बलूचिस्तान प्रांत में माता रो मोटो धाम। फगत हिन्दू ई नीं, मुसळमानां में भी मौकळी मानता। कुळ-परम्परा मुजब हर जात-समाज रा लोग जसोल सा रै जत्थै में भेळा। कुल 86 जणा हा। म्हारा जी सा कानदानजी बारहठ भी साथै। वां बतायो कै जत्थै रो पाकिस्तान में जिग्यां-जिग्यां मौकळो आव-आदर व्हियो। डॉ. अरबाब अली मलिक मीरपुर खास में जबरो सतकार कीनो। सब जातरुआं नै टोपी पैराय'र शाल पण औढाया। हरेक जातरू नै दोय-दोय दूहा फारसी लिपि रै साथै देवनागरी लिपि में भी लिख परा भेंट कीना। दूहा इण भांत हा-

आयां नै आसण धरूं, मस्तक धराऊं मौड़
जसवंत रा जौड़, फेर पधारज्यो परांमणां।।

आयां नै आदर घणो, नैणां बरसै नेह।
साथीड़ां, फेर पधारज्यो, देख हमारो सनेह।।

लेखक अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश महामंत्री हैं।

आज रो औखांणो

कांट-कंटीली झाड़की, लागै मीठा बोर।

कोई व्यक्ति जबान से कटु पर दिल का उदार हो तो यह कहावत कही जाती है।

Tuesday, April 28, 2009

२९ आडो बोल्यां आज

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २९//२००९
आडो बोल्यां आज,

आडो आवै कुण अठै?


-अन्नाराम सुदामा

एक सूरदास नै जांवतां देख कणहीं मीठै अर मनचल्यै माई रै लाल कैयो, 'ओ, आंधिया?'
सूरदास, डांगड़ी रा ठेगा देंवतो-देंवतो माथै में कांकरो लाग्योड़ो -सो ठैर्यो, कीं रीस में आ'र बोल्यो, ' यों, कांई चाईजै?'
'भजन-कीरतन आवै है कीं?'
'हां, आवै है?'
'तो सुणा देखां कीं?'
' यों कींरै ही बाप रो करजो है म्हारै माथै, कीं बगसीस मांगूं तो तिजूरी मत खोलै, काठी राखै।' बड़-बड़ करतो बटीजतो आगै निकळग्यो अर भजन सुणनियां भाईजी मूंढो छाछ-सो कर, गधो गम्योडो-सा आंख्यां सून में ही फाड़ता रैया। सांइंर्ना में झेंप मिटांवता बोल्या, 'आंधा ऐबी हुवै,' पण आ नहीं सोची कै, 'मैं जिसा सुजाका किसाक गधा हुवै जिकां री बोली सुण्यां ही डांग री सी लागै अगलै रै।'
सूरदास धीरै-धीरै आगै बधतो गयो। अगली गळी में भळै कणहीं भलै मिनख जीभ खोली, 'सूरदासजी, संतां पगै लागूं।'
'जियो नारायण जुगोजुग।'
पगां रै हाथ लगा'र बड़ी नरमाई सूं बोल्यो, 'जळपान करण री किरपा करस्यो कीं?'
'नहीं नारायण, प्रसाद लियोड़ो है।'
'भजन-कीरतन ही जाणता हुस्यो कीं?'
'और सूरदास ही यों हुयां हां नारायण'
'तो किरपा करस्यों कीं?'
'नहीं यों?'
'तो आवो पधारो,' डांगड़ी खींच'र ले बड़्यो घर में। बैठग्यो आसण पर, झट झोळी सूं खड़ताळ काढी अर छमाछम रै सागै ही सुर फूट्या:
'चरण कमल बन्दौं हरि राई।'
पंगु चढइ गिरिवर गहन, अन्धै को सब दरसाई।

नान्हीं-मोटी सुणनआळी सै सीपट्यां एकर ब्रहमानन्द में डूब'र आपो बीसरगी।

Little words of kindness
How they cheer the heart
What a world of gladness
While a smile in part।

देख्यो बोली रो मजो। आंधियो अर सूरदासजी अर्थ में एक ही, पण फळ में कोसां परियां। एक जूत जिमावै जिसो, दूसरो हियो हुळसावै इसो। धरती सरग-नरक इंयां हीं तो बणै, पण जीभ रै असर नै कोई समझै जद नीं?

('रसना रा गुण' लेख रो एक अंश)

अर ल्यो बांचो, ताऊ शेखावाटी रो ओ सोरठो-

आडो बोल्यां आज, आडो आवै कुण अठै?
मीठो राख मिजाज, बतळावण में बावळा!

Monday, April 27, 2009

२८ कोरियै घड़ै रो पाणी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२८//२००९

कोरियै घड़ै रो पाणी

राजस्थानी रा लूंठा कवि श्री चंद्रसिंह बिरकाळी बातड़ल्यां सिरैनांव सूं छोटी-छोटी कहाणियां भी मांडी। आज बांचो, बातड़ल्यां री एक बानगी।

-चंद्रसिंह बिरकाळी

कोरियै घड़ै रो पाणी मा! जीभ सूकै- रामू बोल्यो। रामू किसनै खाती रो मोभी बेटो। मा रो लाडेसर। घर रो चानणो। साथी संगळियां रै मन-लागतो। ऊमर कोई पंदरा-सोळा साल। गांव में फूटरां में गिणीजै। गोरो छड़छड़ीलो। बड़ी-बड़ी आंख। आज तीन दिन सूं सुनपात में।
माचै रै पगाथियां उण री मा उण रै मुंह सामीं जोवै। काळजो मुंह नै आवै। इतरै में रामू फेर बैलण लाग्यो। दोनूं हाथ थाम उणनैं जगायो। थोड़ी देर बाद पाणी मांग्यो। रूवै उंदावड़ै में सूं बाटकी पाणी घाल उण रै होठां लगाई। पाणी सूं मूं भर कुरळो कर पाछो थूकतां बोल्यो- कोरियै घड़ै रो पाणी मा! बेटा, ओ ही आछो, गुटकां-गुटकां पी। सुणी-अणसुणी कर रामू फेर आंख मींचली।
थोड़ी देर में, काको कठै मा! गायां खेत भेळ दियो होसी। पेमै नैं मारसूं। जोड़ै में नहा'र आसूं। पाछो बैलण लाग्यो।
रामू रो काको बैद लेय'र ने़डलै सहर सूं पाछो बावड़्यो नहीं। गांव रा स्याणा आप आपरी बुध सारू लूंग, दाळ-चीणी, जावतरी दे धाप्या। कोई ऊपरलो बतावै तो कोई कहै टाबर रै निजर लागगी। लोग आवै अर देख जावै। माचै रै सारै बैठी मा मावड़ियांजी नै मनावै। खेतरपाळ नै धोकै। रामदेवजी रै देवरै री पगां जात बोलै। माताजी रा आखा दिखावै। इतरै में फेर रामू कोरियै घड़ै रो पाणी मांग्यो- मा, मैं मर्यो। मा री आंख्यां में चोसरा चालै। बाटकी होठां रै लगा'र कैवै- लै बेटा। पाणी पाछो थूकै। कोरियै घड़ै रो पाणी मा, कह'र पाछो माची पर पड़ै अर आंख्यां मीचै।
बापड़ी मा करै तो के करै। सारा देई-देवता मना धापी। स्याणा झाड़ा दे धाप्या। बैद आयो नहीं। हे सांवरिया, थारो सरणो। छिणेक मा री आंख लागी। रामू री आंख खुली। दूर कोरियो घड़ो दीखै- फुरती कर, डब-डब लोटो भर, गट-गट पी, माचै पर आ सूत्यो। जोर सूं बैलण लाग्यो। मा जागी। सामैं देखै तो रामू चुप। हाथ लगायो। डील ठंडो टीप। धाड़ मार मा भी उण पर पड़ी। थोड़ी देर में वा भी ठंडी टीप!

आज बांचो राजेराम बैनीवाळ रो एक दूहो

साढ-सावण गी गरमी में, दुख पावै है जीव।
कोरै घड़ै गै पाणी स्यूं, नीचो लागै घीव।।

आसाढ़-सावण री गरमी में उमस हुवै अर गरमी रो काम ई बेजां। इण वेळा कोरै घड़ै रै पाणी रो मोल मतलब महत्तब बढ़ जावै।

Sunday, April 26, 2009

२७ आखातीज

आपणी भाषा-आपणी बात
२७//२००९

आखातीज-बांडाबीज,

गुळवाणी अर गळियो खीच


-ओम पुरोहित कागद

राजस्थान में रूतां रा अलेखूं तिंवार। पण आखातीज सिरै। यानी अक्षय तृतीया। वैसाख सुदी तीज नै आवै। बसंत अर गरमी री रूतां बिचाळै। इण तिंवार पेटै विष्णु धर्मसूत्र, मत्सय पुराण, नारदीय पुराण, स्कन्द पुराण अर भविष्यादि पुराण में मोकळा बखाण। मानता कै इण तिथ रो खै मतलब क्षय नीं होवै। इण दिन करियोड़ा भलै कामां अर पुन्न रा फळ भी अखै रैवै। अखै बजै सत्य। सत्य नै मानै ईश्वर। ईश्वर अखंड अर सरब-व्यापक। तो आखातीज ईश्वर तिथि।
मानता के संसार खैमान मतलब नासवान। भगवान पण अखै। जगत खैमान। तो खै नै नीं, अखैमान मतलब ईश्वर नै ध्यावणो। खैमान कारजां नै छोड़ अखैमान कारज करणां। असद भावना, असद्विचार, अंहकार, सुवारथ, काम, किरोध अर लोभ भी खैमान। त्याग, परोपकार, भाईचारो, भेळप, करूणा, दया, प्रेम अर स्यांति अखैमान। आखातीज रो तिंवार चेतावै कै आपां अखैमान नै परोटां-बपरावां-बरतां। मिनखा मौल अर जीवण मौलां नै धारां-अंगेजां। आखातीज रो तिंवार इण री विरोळ करण रो तिंवार। आपणै करमां री चींत, कूंत अर निरख रो तिंवार। अक्षय ग्रंथ 'गीता' इण री साख भरै।
जोतक में च्यार अणबूझ मोहरत बजै। गुडीपडवा (चैत सुदी एकम), आखातीज, दसरावो अर दियाळी। आखातीज पण अणबूझ सावो भी। आखातीज माथै राजस्थान में हजारू चंवर्यां मंडै। मकान, दुकान, बिणज, बौपार, खरीद-बेचान, बुवाई-बिजाई रा काम इण दिन करीजै। गैंणा-गांठा, असतर-ससतर, गाभा-लत्ता, जमीन भवन री खरीददारी इण दिन सुब मानीजै। अनाज आखा बजै। आखा रैवै आखा। इण सारू किरसाण जतन करै। खळै सूं अनाज घरां ल्यावै। भखारी में राखै। आगली फसल में बुवाई सारू बीज साम्है। भगवान सूं अरज करै- आखा अखै राख्या, सात सिलाम।
अक्षय तृतीया यानी आखातीज नै परशुराम तिथ भी बखाणीजै। इण दिन नर नारायण, हयग्रीव अर भगवान परशुराम रो जलम होयो। परशुरामजी, अश्वत्थामा, बलि, हड़मानजी, विभीषण, वेद ब्यास अर कृप सात चिंरजीवी बजै। परशुरामजी आं सातां में सूं एक । इण कारण आखातीज चिंरजीवी तिथि बजै। टीपणा अर पुराणां मुजब च्यार जुग। सतजुग, त्रेताजुग, द्वापरजुग अर कळजुग। आं जुगां में त्रेताजुग री सरूआत आखातीज सूं मानीजै। इणीज कारण आखातीज जुगादतिथ बजै। आखातीज नै ई भगवान बद्रीनारायण रै मिंदर रा पट खुलै। इण दिन नै बद्रीनारायण दरसण तिथ भी कैवै। बिंदरावन में बिहारीजी रै चरणां रा दरसण भी इणी दिन होवै।
आखातीज माथै गंगा-सिनान री मैमा। मानता कै इण दिन करियोड़ा त्याग, तप-जप, दान-पुन्न अर होम-हवन अखै रैवै। बैन-सुवासणी, बाई-बेटी, गरीब-गुरबां अर बिरामणां नै अखै चीजां दान करीजै। घड़ै, पंखी, खड़ाऊ, जूतै, छातै, गाय, जमीन, गन्नै, सतनाजै, सोनै, पुहुप, खरबूजै अर तरबूज रा दान पण सिरै। गन्नै रै रस सूं बणायोड़ी चीजां रै दान री मैमा अपरम्पार। आखाजीत रै दिन ई पित्तरां रो तिल सूं अर जळ सूं तरपण करीजै। पिंडदान करीजै। छोरियां इण मौकै बीन-बीनणी रा स्वांग रचावै। टोळी बणा'र घर-घर जावै, नेग मांगै, गावै-
आखातीज बांडाबीज, गुळवाणी अर गळियो खीच।
घालो आखा घालो गुळ, नीं घालो तो पईसा द्यो।।
आज रै दिन छोर्यां-छापर्यां अर लुगायां-पतायां गौरी पूजा करै। झुंड में बैठ बिरखा री ध्यावना-चावना करै। बिरखा रा सुगन देखै। लुगायां घर रै आंगण में मेट सूं मांडणा मांडै। देवी-देवतावां रा पगलिया कोरै। आखातीज रै दिन मोठ-बाजरी अर कणक-बाजरी रो खीचड़ो रांधीजै। धपटवों घी घालीजै। खीचड़ै साथै गुवार फळी-काचरी अर अखै बड़ी, मोठोड़ी-कोकला-काचर गोटकां रो साग अनै कढी बणाइजै। चरकै-मरकै सारू पापड़, खीचिया, गुवारफळी अर कैरिया तळीजै। गु़ड, इमली, काळी मिरच, लूंग अर इलायची भेळ'र सरबत बणावै। ओ सरबत अमलवाणी बजै। पछै घर रा सगळा मिनख भैळा जीमै। आखातीज रा कोड करै।

आज रो औखांणो

घर में नीं अखत रा बीज, बंदो खेलै आखातीज।

घर में नहीं अक्षत(चावल) के बीज, बंदा खेले आखातीज।

थोथी शान-शौकत की हेकड़ी दिखाने वाले व्यक्ति पर कटाक्ष।






Saturday, April 25, 2009

२६ बीकानेर राज थापणा उच्छब: आखाबीज

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
-२६//२००९

बीकानेर राज थापणा उच्छब : आखाबीज

-ओम पुरोहित कागद

तिंवारां री खाण राजस्थान। सातूं दिन तिंवार। पग-पग थान। थान थरपणा रा तिंवार-उछब। एहड़ो उछब-तिंवार आखाबीज। आखै देश मनाइजै आखातीज। यानी अक्षय तृतीया। जूनै राज बीकानेर में पण आखातीज सूं पैली आखाबीज धोकीजै। इणीज दिन बीकानेर राज री थापणा श्री करणीमाता जी रै सुब हाथां होई। राव बीकाजी आसोज सुदी दस्यूं विक्रमी सम्वत 1522 नै जोधपुर राज सूं रिसाणा होय नूंवो राज थरपण निकळ्या। साथै हा काकोसा राव कांधळ जी। काकै-भतीजै जोधपुर री सींव सूं जांगळू, सिरसा, अबोहर, भटिण्डा, साहवा तक री धरती जीती। जाटां रा छ: राज लाघड़िया-शेखसर (पांडू गोदारा), भाड़ंग (पूला सारण), सीधमुख (कंवरपाल कंस्वा), रासलाणा (रायसल बेनीवाळ), बलूंदा (काना पूनिया), सुई (चोरण सिहाग) भेळ्या। नापा जी सांखला रै सुगनां माथै श्रीकरणी माता जी रै हाथां विक्रमी सम्वत 1542 में बीकानेर राज री थापणा होई। हाल रै लक्ष्मीनाथ जी रै मिंदर खन्नै नागौर-मुल्तान मारग माथै रातीघाटी में किलै रो नींव भाटो थरपीज्यो। किलो बणन में तीन बरस लाग्या। किलो बण्यां पछै थापणा उछब विक्रमी सम्वत 1545 री वैसाख सुदी दूज, थावर नै मनाइज्यो।
पनरै सै पैंताळवै, सुद वैसाख सुमेर।
थावर बीज थरप्पियो, बीकै बीकानेर।।

आज भी जूनै बीकानेर राज रै गांवां-सैरां में आखाबीज मनाइजै। ओ दिन बंसत अर गरमी री रुतां रो बीचलो दिन। इण कारण ओ मौसम रो तिंवार। मौसम रो तिंवार तो पक्को ई किसानां रो तिंवार। आं दिनां नूवों धान खळां सूं घरां ढूकै। नूंईं फसल बाईजै। बीज नै आखा भी कैइजै। आगली बुवाई सारू आखा साम्भीजै। आखाबीज नै अणबूझ मोहरत अर अणबूझ सावो भी मानै। ब्यांव मंडै। चंवर्यां मंडै। नूंवै कामां री थरपणा भी इणी दिन करीजै। आखाबीज नै साम्हो खीचड़ो रांधीजै। ऐ खीचड़ा आखातीज सूं एक दिन पैली रांधीजै। इण सारू साम्हा खीचड़ा बजै। बाजरी अर मोठ रो खीचड़ो। ऊपर धपटवों घी। काचरी-भेळ खीचड़ो चरको। गु़ड-सक्कर बुरकायां मीठो। दूध मिलायां, सबड़क्यां राफां री आफत। पण सुवाद रा ठाट। कणक-बाजरी नै भेळ बणायोड़े खीचड़ै रा रंग न्यारा। इण खीचड़ै में कणक दाखां रो सुवाद पुरावै। अमलवाणी रा गुटकां पछै पेट करै और ल्याव.....और ल्याव। ....बाजरिया थारो खीचड़ो, लागै घणो सुवाद। रंधीण रै साथै चरका-मरका सारू भी सुआंज। पापड़-खीचिया, गुवारफळी अर कैरिया तळीजै। लूण-मिरच बुरका'र परोसीजै। आखी बड़ी, फळी-काचरी, मोठोड़ी-कोकला-काचर-गोटकां रा साग छमकीजै। थाळी में फूटरा अर बाकै में सुवाद लागै। पछै दुनियां री सगळी नमकीनां ईसका करै।
रंधीण, अमलवाणी, मोठ, बाजरी, काचरी, अर कैर री आयुर्वेदिक मैमा। बाजरी बुढापो भजावै। आदमी नै जुवान बणायां राखै। काम-वासना बधावै। लुगायां रो रूप निखारै अर थिर राखै। चंचलता अर फुरती बधावै। गुरदै री पथरी, गर्भवती, बावासीर अर पेट रै रोग्यां नै पण खावण सारू बरजै। मोठ पाचक अर पित्त-कफहर होवै। मोठ घणा खायां पेट आफरै अर पेट में कीड़ा पड़ै। इण सारू हींग-ल्हसण भेळीजै। काचरी नै आयुर्वेद में मृगाक्षी कैवै। काचरी पण जूनो बिगड़ीयोड़ो जुखाम, पित्त, कफ, कब्ज, परमेह अर पैसाब रै रोगां नै ठीक करै। कैरिया गरम करै। पित्त बणावै पण सोजन मेटै अर पेट साफ करै। इमली अर गुड घोळ'र बणै अमलवाणी आ अमलवाणी धान पचावै। भूख बधावै। बाय-बादी मेटै। आखाबीज माथै आखै जूनै बीकानेर राज में खावणै-पीवणै, पैरनै -ओढणै अर सजणै-धजणै रा ठाट। इणी कारण कैईजै-
ऊंठ, मिठाई, इस्तरी, सोनो, गहणो साह।
पांच चीज पिरथी सिरे, वाह बीकाणा वाह।।
आखाबीज माथै पतंगबाजी री परापर। बीकानेर सैर रै आभै रा तो इण दिन भाग ई जागै। समूळो आभो किन्ना रै रंगां सू हळाडोभ। सूरज दिखै न आभो। चारूं कूंट किन्ना ई किन्ना। घर-गळी डागळां माथै 'बोई काटा' री गूँज। किन्ना उडावणियां अर लूंटणियां री भीड़ ऐकूंकार। ना कोई छोटो अर ना कोई मोटो। किन्ना रा नांव पण सांतरा। अध्धो, पूणो, झांफ, तिग्गो, टिकलियो, कोयलियो, फरियल, आंखल, मकड़ो, टीक्कल, ढूंगल, पूंछड़, भूतड़ आद नांव किन्ना रा। ढूंगै आळो किन्नो अर बिना ढूंगै आळो बजै किन्नी। पतंग उडावण आळी डोरी बजै मंझो। मंझो एहड़ो कै नस काट देवै। ओ मंझो तीन भांत रो होवै। सूतो या सादो, लुगदी आळो अर घोळियै आळो। सूती बजै अणसूंत्यो धागो। लुगदी आळो अर घोळियै आळो मंझो सूंतीजै। लुगदी आळो मंझो चावळां री मांड सूं सूंतीजै। पिसियोड़ो कांच, साबण, ईसबगोळ अर चावळ री मांड भेळ'र सून्तीजीयोड़ै धागै नै घोळियो मंझो केवै। ओ मंझो जबरो पक्को। इण मंझै सूं पेच लड़ाइजै। पेच ई लड़त बजै। लड़त में टाबर, बूढा-बडेरा अर लोग-लुगाई सब सामल। बीकानेर में कोठारी-कोचरां री लड़त, हकीम-काजी री लड़त अर नाई -धोबियां री लड़त नामी। पतंगा री लड़त रात ढळ्यां पछै तक चलै। इनाम राखीजै। होड मचै। साथै-साथै पण खावणा-पीवणा चालता रैवै।

Friday, April 24, 2009

२५ राई राई रतन तळाई

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २५//२००
राई राई रतन तळाई

-राजूराम बिजारणियां

राई-राई रतन तळाई। महीयो गूंज्यो, कीं नै घमकाई, चढ-चढ मकड़ी-घोड़ा लकड़ी, लाला-लाला लिगतर द्यूं कै ल्यूं, पाछो घिर गुद्दी में द्यूं, घूम-घूम चकरी-बाबो ल्याया बकरी, बाटकड़ी में चमा-चोळ - माऊ बाबो ढेल मोर, लौह-लक्कड़ - चां-चक्कड़, किण रै घर रो डेरो अर इरची-मिरची-राई का पत्ता हाथी दांत कलम रा छत्ता। जे़डा सैंकड़ूं खेलां रा सुर जमाने री तेज रफ्तार रै बिचाळै मंदा पड़ग्या। एक बगत हो जद गाँव अनै कस्बा आपरी ओळख रीति-रिवाजां, सीर-संस्कारां अर खेलां रै पेटै बणायनै राखता। पण अब परम्परावां अर ग्रामीण जीवण री रूखाळी करता संस्कार आधुनिक ता री चमक-दमक में धुंधळा पड़ रैया है।
लुक-मीचणीं, लूणीयां-घाटी, कुरां, जेळ, तिग्गो, गड्डा, आंधा-घोटो, हरदड़ो(अडबळी), धोळियो-भाटो, कां-कुट, झूरणी, न्हार-बकरी, सतोळीयो, मारदड़ी, चरभर, खोड़ियो-खाती, शांकर बल्लो, भैंसा दबको, लाला-लिगतर, चढ-चढ मकड़ी, घुत्तो, निसरणी, गुल्ली-डण्डो, मार-मु को इत्याद ऐ सगळा खेल जिका अपणै आप में गाँवां रै इतिहास नै संजोय, गांवा री कूंत करता हा, गांव री रुणक बतांवता हा। आज कठै गमग्या? आ सोचण री बात है।
गाँव-गुवाड़ अर गळियां में कदेई आं खेलां री धाक हुंवती पण अब तो फगत क्रिकेट रो भूत ही अठै घूमर घालै। ले देयनै कबड्डी, रूमाल-झपटो, रस्साकस्सी, खो-खो, गुल्ली-डण्डो जे़डा कैई खेलां नै परम्परागत ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगितावां रै नांव पर खेल परिषद कांनी सूं रूखाळणै रो दम भरीजै है। गाँव री छोरी-छींपरयां रो भेळी होय'र गडा खेलणोई अब कठै निजर आवै? आज री पीढ़ी री आं खेलां रै पेटै आ ही बेरूखी रैई तो आवण आळी पीढ़ी नै विरासत में खेलां रो नांव भी नीं दे पावांला।
खेल मिनख री जिनगाणी रौ सदीव सूं अंग रैयो है। गाँव री गुवाड़ टाबरां री रम्मत सूं हरी-भरी रैंवती। पण जद सूं टेलिविजन घर में बापर्यो है, बाळकां रो बाळपणो ई छांई-मांई हुग्यो। टीवी देखता टाबरां नै रोटी जीमण रो ई फोरो कोनी। पछै गुवाड़ में रमण कीकर जावै। बेसी सूं बेसी नम्बर ल्यावण रो फोबियो ई टाबरां री निजरां पोथी-पानड़ां में उळझायां राखै।
आज रो औखांणो

रमो-खेलो ऐ छोकरियां, लूंबां री डोरी।
खेलो-नाचो ऐ छोकरियो, लूमों की डोरी।

यही खेल-कूदने की अमोलक घड़ियां हैं, खूब खेलो-नाचो, आनंद मनाओ। ये दिन वापस आने वाले नहीं हैं।

२४ टिगट

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २४/४/२००९
टिगट

-डॉ. मंगत बादल

जि भांत रेल-बस में सफर सारू टिगट लेणो जरूरी। उणीज भांत सत्ता रूपी गाड़ी री सवारी सारू भी उपयुक्त पार्टी रो टिगट लेणो जरूरी। 'उपयुक्त' रो मतलब अठै बीं पार्टी सूं, जिण री संभावना सत्ता में आणै री हुवै। चुणाव जीत'र निर्दलीय रूप में संसद या विधानसभा में बैठणो बियां ई है, जियां छींको लगा'र किणी पशु नै हरी फसल में चरण खातर खुलो छोड़ दियो जावै। जनता रा काम करावणै तांईं मिलण आळी (सांसद अर विधायक कोटो) रासी मांय सूं दस-पनरा परसैंट सूं पार कोनी पड़ै। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री भी निर्दलियां री धौंस में जद ई आवै जद सरकार बणाणै तांईं बिणां री दरकार हुवै। निस तो बां रो हाल नपुंसक सांड सिरखो ई हुवै मतलब दड़ूकता रैवो चाये। किणी काम रा कोनी हुवै। सत्ता में नीं हुवै बां विधायकां, सांसदां नै जनता भी कम ई घास गेरै। हां! जद सूं गठबंधन री सरकारां बणण लागी है निर्दलियां री पांचूं घी में है। पण इण रो ओ मतलब कतई कोनी कै टिगट रो मोल घटग्यो हुवै।
'रूलिंग पार्टी' रो टिगट मिलणै रो मतलब है बिनां कष्ट सहन करियां चुनाव री वेतरणी पार करणी। चुनाव में धन लगावणै रो मतलब है दो हाथां सूं लगाओ अर हजार हाथां सूं कमाओ। कम सूं कम आपणै देस में तो ऐड़ो बीजो कारोबार कोनी जिण में इतरो फायदो हुवै। ऐकर चुण्या गया तो उम्र भर री पैंसन, बीजी सुविधावां रो कांईं कैणो? बाकी तो कमावणियै पर निर्भर है कै बो कितरो'क कारोबार कर सकै । अठै 'जळ में मीन पियासी' कोनी रैवै। लोगां चुणाव नै इयां ई बोपार कोनी बणा राख्यो। जे जन सेवा ई करणी है तो और घणा ई मारग है। राजनीति में आणै री कांईं दरकार? नेता कोई वीतरागी, त्यागी कोनी हुवै। बां रै भी बाल-बच्चा हुवै। जिकां तांईं चुग्गै-पाणी रो प्रबंध करणो पड़ै। बियां चाये कितरी ई मंदी चालती हुवै। नेता एक चुणाव लड़ल्यै तो बस फेर चांदी ई चांदी। आप पूछस्यो- किण भांत? तो भाया! ऐ बातां बतावणै री थोड़ेई हुवै!
राजनीति में दुस्मणी या दोस्ती कदै टिकाऊ कोनी हुवै। काल रा दुस्मण आज दोस्त अर आज री दोस्ती काल दुस्मणी में बदळ सकै। दरअसल अठै प्रतिबद्धता किणी मिनख या पार्टी सूं नीं होय'र कुर्सी सूं हुवै। कुर्सी देखी अर पैंतरो बदळ्यो, बै लोग ई अठै घणा कामयाब हुया है। इण कारण बखत-बखत पर दोस्ती-दुस्मणी रो गणित बदळतो रैवै। नेता राजनीति में भजन करण तो आवै कोनी। जे संत ई बणणो हुंवतो तो हिंवाळै नीं जांवता? टिगट लेणै तांईं राजधानी कानी क्यूं भाजता? आजकाल तो आसरम खोल'र बैठणियां बाबां पर भी कद राजनीति रो रंग चढ़ज्यै, कैयो कोनी जा सकै। भारतीय राजनीति में साधु-संतां रो गठबंधन घणो जूनो। बां रै प्रभाव रै कारण नेता लोग सम्पर्क साधणो जरूरी समझै। राजनीति में सुधार या जनहित रो नांव लेय'र बाबा जद सत्ता सुख में रम ज्यावै तो बै नेतावां सूं भी घणा खतरनाक हुवै। इण कारण राजनेता भी इण नै टिगट देय'र आप कानी मिलाण री कोसिस करै। अब तो आप समझ्या टिगट रो महत्त्व!

आज रो औखांणो

सिंघां रा भाई बघेरा, वै नौ कूदै कै ते'रा।

चोर-चोर सगळा एक सरीखा। कोई छोट-मोट नीं।

Wednesday, April 22, 2009

२३ (१) सत्तासी की उम्र में भी बरकरार किताब का जुनून, (२) लेखकां-कवियां अर पोथ्यां री बात

विश्व पुस्तक दिवस पर खास

सत्तासी की उम्र में भी बरकरार

किताब का जु
नून

किताबां मेरी खुराक है। मिलबो करै तो मैं क्यांगै सारै कोनी।

-विनोद स्वामी

किताबें वक्त को उंगली पकड़ कर, सीढ़ियां चढ़ना सिखाती हैं।
सच
तो ये है हर सदी में पीढ़ियों को, पीढ़ियां पढ़ना सिखाती हैं।।



परलीका के बुजुर्ग मनफूलाराम जाट को देखकर राजेश चढ्ढा की ये पंक्तियां बरबस ही स्मरण हो आती हैं। दुनियाभर में विश्व पुस्तक दिवस मनाया जा रहा है और परलीका में ८७ वर्षीय बुजुर्ग मनफूलारा इस सब से बेखबर अपनी धुन में कमलेश्वर का चर्चित उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' पढ़ने में लीन हैं। जीवन का संध्याकाल है।
हाथ-पैरों में सत नहीं रहा। जुबान लड़खड़ाती है, मगर आंखें और कान अब भी पूरी तरह सजग। पड़ोसी बताते हैं, मनफूलाराम ने अपने जीवन में फुरसत का हर पल किताबों के साथ गुजारा है। उनको अकेले बैठे देख हर कोई यही सोचता होगा कि यह बू़ढा इस उम्र में आखिर कौनसी परीक्षा की तैयारी कर रहा है। मगर यह बू़ढा तो साहित्य की दुनियां में गोते लगाता खुद को पूरी दुनियां से जोड़े है।
वि. सं. 1978 में जनमे मनफूलाराम उस जमाने में चार तक पढ़ाई कर पटवारी बने, मगर नौकरी रास नहीं आई तो किसानी करने लगे। उन्होंने पहली किताब कौनसी व कब पढ़ी, ये तो उन्हें याद नहीं पर जब से होश संभाला उनका पढ़ना बदस्तूर जारी है। शुरू में उन्होंने धार्मिक किताबों का अध्ययन किया। रामायण, महाभारत, गीता और शिवपुराण जैसे ग्रंथों को कई-कई बार भी पढ़ा। ज्योतिष में रूचि होने के कारण लोग-बाग जब पंचांग संबंधी कोई बात पूछने आते तो लगे हाथों पढ़ी जा रही किताब का कुछ अंश उनको भी सुना देते। स्कूल लायब्रेरी से भी लाकर किताबें पढ़ते। जिसमें राजनीति, नैतिक शिक्षा से लेकर ज्ञान-विज्ञान तक सभी प्रकार की किताबें होतीं। स्थानीय बाजारों में उनकी रूचि की किताबें उपलब्ध नहीं रहीं और दूर-दराज जाने का अवसर ही न मिला। और कुछ न मिला तो बच्चों से पाठ्यपुस्तकें ही मांग-मांग कर पढ़ लेते। मगर जैसे ही गांव में साहित्यिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा तो मानो उन्हें अपना खोया हुआ खजाना मिल गया।
खुद बू़ढे होते जा रहे हैं मगर किताबों को पढ़ने की भूख दिन-दिन जवान। उन्होंने आज ही कमेलश्वर का 'कितने पाकिस्तान' शुरू किया है। राजस्थानी और हिन्दी की कई सौ किताबें पढ़ी हैं। किन-किन का जिक्र किया जाए, वे तो सभी किताबों को अनमोल बताते हैं। उनका मानना है कि साहित्य तो सही राह दिखाता है और आदमी को इंसान बनाता है। बिज्जी की 'बातां री फुलवाड़ी' के सारे भाग, मुंशी प्रेमचंद समग्र, यशपाल का 'झूठा-सच' राही मासूम रजा का 'आधा गांव' सहित जो भी सुलभ हुआ पढ़ डाला। सुबह चाय के बाद खाना खाने तक पढ़ना अब उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा है। दोपहर को आराम के बाद शाम तक भी वे पढ़ते देखे जाते हैं। आजकल उनको बोलने में परेशानी होती है। फिर भी वे बताते हैं- 'किताब सदां सूं आछी लागै, अबी जी करै जाणै सारै दिन पढ़ूं पण बैठ्यो कोनी रैइजै। फेर ई मन कोनी मानै। किताब तो आदमी नै फिल्टर करै। बीं री बुराइयां नै रोक गे माणस बणावै अर भोत भांतगो ग्यान बधै जिको न्यारो। किताबां मेरी खुराक है। आ मिलबो करै तो मैं क्यांगै ई सारै कोनी। पैली थारै बरगां कनै ऊं जागे लियांवतो। अब तो ऐ टाबरिया ल्यागे द्यै जिसी बांचल्यां।' वे अपनी दस वर्षीय पोती की ओर इसारा कर बताते हैं।
ताज्जुब तो यह है कि किताब के प्रति इतना मोह रखने वाले मनफूलाराम रेडियो व टीवी के बिलकुल भी शौकीन नहीं। उनका मानना है कि किताब में जो आंनद है वह अन्यत्र दुर्लभ है। स्थानीय साहित्यकारों के पास उन्हें किताबें सहज सुलभ हो जाती हैं और वे उन्हें पढ़ते ही लौटा देते हैं।
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''मेरी याद आणी में मैं रोज आं नै पढतां देख्या है। कई बारी पूछल्यां तो मुळक गे बोलै, बांचां हा भाई! एक चोखी किताब हाथ आई है आज तो। आं नै देख-देखगे बांचण नै तो म्हारो जी करै, पण फोरो कठै!"
-भानीराम खाती (परलीका के उपसरपंच और मनफूलाराम के पड़ोसी)
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लेखकां-कवियां अर पोथ्यां री बात

-नीरज दईया
२३ अप्रैल। विश्व पुस्तक अर कॉपीराइट दिवस। अंग्रेजी रा महान नाटककार सेक्सपीयर अर बीजा कई लेखकां-कवियां री जयंती का पुण्यतिथि। राजस्थानी में इण सागी दिन तो नीं पण अप्रैल महीनै में कई लेखकां-कवियां रो संजोग इतिहास में मिलै। तारीख लेखकां-कवियां नैं सिमरण रो एक ठावो दिन। यूनेस्को आगीवांण बण्यो अर भारत में बरस 1999 सूं दिन मनाइजै। इण पेटै बरस 2003 में दिल्लीनै आखै संसार री पुस्तक-राजधानी हुवण रो रुतबो मिल्यो। अबकी बरस बेइरुट (लेबनान) नै मान मिलर्यो है। बाल गंगाधर तिलक रो कैवणो हो कै जे टाळवीं पोथ्यां साथै नरक मिलै तो बठै रैवणो कबूलहै। पण ग्लोबल हुवती दुनिया में पोथ्यां सूं प्रीत फीकी पड़ती जाय रैयी है।
राजस्थानी खातर कोई बारलो कोनी सोचैला। आपां राजस्थानियां नै सोचणो है। आपा री खुद री बात है। जे भाषा अर साहित्य नै भूंलां तो याद कांईं राखांला? जिम्मेदारी तो आपां नै खुद ही उठावणी पड़ैला। नींतर आपांबिना पांख्यां रा पखेरू हुय जांवाला। फरज बणै आपां सगळां रो कै आपणी भाषा रै विगसाव खातर कीं काम करां।राजस्थानी समाज रा कई लिखणियां-पढणियां आज रै दिन सभा-गोष्ठियां करै। किताबां बेचणियां आज रै दिन गिरायकां रो आपरी सरधा सारू आव-आदर करै। इतिहास री खोड़ खु़डावणियां प्रकाशक-दुकानदार आज रै दिन पोथ्यां खरीदण वाळां नै गुलाब रै फूल रो निजराणो पेस करै। किणी पोथी या लेखक कवि माथै चरचा राखीजै। आं सगळां सूं महताऊ काम कर सकै है आपणी स्कूलां। पण अलख चेतावां आपां मिल परा। दसवीं सूं पैली तो स्कूलां में राजस्थानी कठैई कोनी। तीजी भाषा रै रूप में दूजै प्रांतां री भाषावां तो पढ़ाई जावै पण आपणी राजस्थानी नीं। हाँ, राजस्थान रै पाठ्यक्रम री खासियत राखण रै नांव माथै इक्की-दुक्की राजस्थानी रचनावां जरूर हिंदी री किताबां में राखीजै। देस रै हरेक प्रांत में आप-आप री भाषा पढ़ण रो नेम-कायदो। पण राजस्थान जिको राज रो स्थान है, उण में राजस्थानी रो कायदो कोनी मतलब राज में स्थान में कोनी! फगत राज-राज है। चुणाव रै टैम राज नै राजस्थानी रै स्थान री बात आपरो स्थान बणावण पेटै याद आवै।
ग्यारवीं-बारवीं में राजस्थानी विषय गिणी-चुणी स्कूलां में है। राजस्थानी व्याख्यातावां री पूरी भरती कोनी। कोलेजां रो हाल। कोई सैण सवाल करै - राजस्थानी लियां सूं कांईं होसी? किणी विषय नै लियां सूं कांईं कोनी हुवै। जे आखरां रो भळको कीं राजस्थानी रो हुयग्यो तो जूण सफल हुय जासी। माटी रा जाया हां तो इण माटी रो कीं करज हळको हुय जासी। जे मिनख होय' मिनखपणो नीं समझां तो कांईं बात हुवै? भाई साब, बस बात है कै जे राजस्थानी होय' राजस्थानी नीं समझां तो कीं कोनी समझां। अर जे आपां राजस्थानी समझां तो कैवण-सुणण री दरकार कोनी कै पीड़ कठै अर कांईं!
हाल है कै भाग-दोड़ री जिंदगी में आज बगत कठै है? घणा सारा काम-काज है अर ता पछै कीं बगत बचै तो घर-परिवार बिच्चै बैठां कद? सुख-दुख री करण नै टैम कोनी। आजकाळै तो बुद्धू-बगसै रो चसको जबरो। इत्ता सारा चैनल, सीरियल-फिलमां, बाप रे बाप! इंटरनेट रो जादू कम कोनी। टाबर वीडियो गेम में मस्त। किताबां सूं माथाफोड़ी कुण करै? स्टेट लाइब्रेरी में पाठकां री संख्यां दिनोदिन घटती जावै। राजस्थानी पढ़ण-लिखण रो अभ्यास कोनी। हेवा हुवां तो किंयां। तो भलो हुवै भास्कर अखबार रो जिको कोलम चालू कर परो अंधारपख में दीवो चास राख्यो है। भाई साब, थे कमाल करो! माफ करो- राजस्थानी पोथी बांचणी आवै कोनी। फेर टैम कठै? अखबार नीठ देखां। पढ़णा हा जित्ता पढ़ लिया। अब पढ़ां कै काम करां?
तो सा रामजी भला दिन देवै। साव भोळा जीवां बिच्चै एकदम भोळो जीव हुवै- लेखक-कवि रो। आपरी दुनिया में लीन-मगन। लोगां री भाषा में बगनो हुयोडो जीव। राजस्थानी लेखक-कवि खुद लिखै, जिको खुद घर रा पइसा लगा परो पोथी छपवावै। दुरगत छपण-छपाण री कैवां तो खुद लाजां मरां। पीड़ कुठो
ड़ अर सुसरो जी बैद वाळी गत। खैर राज री अकादमी कदै-कदास कीं फूल सारू पांखड़ी निजर करै देवै। लेखक-कवि खुद री पोथी बांट-बांट' मजा लेवै। कोई बिक जावै तो समझो लारलै जलम रो लैणियो-दैणियो है। कोपी राइट दिवस अर रोयल्टी री बात मजाक लागै। कई पोथ्यां जिकी भाग सूं बी. ए. अर एम.. में लागै। बां री फोटो कोपी बिकै। किताबां पूरी मिलै कोनी तो आधार अर संदर्भ पोथ्यां री बात तो घणी आगै आवै। चकवो-चकवी बात करै हा कै कुवै में भांग पड़गी दाळ में लूण बेसी कोनी लागै। लूण री दाळ बणाई है। अबी जे नीं जागां तो कद जागस्यां? छेकड़ में तेजसिंह जोधा री ओळ्यां सूं बात सांवटूं- कीं तो खायगो राज/ कीं लिहाज/ अर रह्यो-सह्यो खायगी चूंध अर खाज....... खम्माघणी

आज रो औखांणो

जस आखर लिखै न जठै, वा धरती मर जाय।
संत-सती अर सूरमा, ऐ औझळ व्है जाय।।

हनुवंत सिंह देवड़ा रो ओ दूहो सूक्ति रूप में चलै।

जिण धरती पर जस रा आखर नीं लिखीजै, वा धरती मर जावै अर उण धरती रा संत, सती अर सूरमा औझळ व्है जावै।

Tuesday, April 21, 2009

२२ बातां रुळगी भाषा लारै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २२//२००९

बातां रुळगी भाषा लारै

-ओम पुरोहित कागद

राजस्थानी संस्कृति रा ठरका निराळा। संस्कृति पण कांण राख्यां। कांण रैवै राख्यां। हाल घड़ी बडेरां कांण राख राखी है। पण कीं अरथां में मोळी पड़ती लखावै। सरूआत आंगणै सूं। आंगणै सूं सबद खूट रैया है। काको, मामो, मासो, फूंफो, कुलफी आळै भेळो अंकल। मामी, मासी, भूआ, काकी, नरसां भेळी अंटी बणगी। देखतां-देखतां ई आपणी संस्कृति खुर रेई है। ढाबै कुण? मोट्यार तो अंग्रेजी रा कुरला करै। सो कीं भूल'र माइकल जै सन रा नातेदार बणन ढूक्या है।
बात नातां-रिस्तां री। नातेदार बै जका आपरी पांचवीं पीढी सूं पैली फंटग्या। पण भाईपो कायम। रिस्तेदार बो जकै सूं आपरो खून रो रिस्तो। यानी चौथी पीढी सूं लेय'र आप तांई। गिनायत कैवै खुद रै गोत नै टाळ आप री जात रै दूजै लोगां नै। जिण सूं आपरा ब्याव-संबंध ढूक सकै। कड़ूंम्बो कैवै दादै रै परिवार नै। लाणो-बाणो हुवै खुद रो परिवार। गनो होवै संबंध। जियां म्हारी छोरी रो गनो व्यासां रै ढूक्यो है। तो ओ होयो गनो। छोरै अर छोरी रै सासरै आळा होया सग्गा। ऐ बातां अब कुण जाणै?
आजकाळै कीं रिस्ता-नाता तो इलाजू कळा जीमगी। कूख मौत होवण सूं काका-काकी, बाबो-बडिया, भाई-भौजाई, मासो-मासी, फूंफो-भूआ, नणद-नणदोई, जेठ-जेठाणी, देवर-देराणी, काकी सासू, बडिया सासू, भूआ सासू, मासी सासू, मामी सासू जै़डा सबद आंगण में लाधणा दौ'रा होग्या। जद ऐ नामी रिस्तेदार, नातेदार अर गिनायतिया ई नीं लाधसी तो टाबरियां री ओळ कठै।
भेळप अर ऐ कठ राजस्थान्या री आण। पण अब तो ब्याव रै तुरता-फुरती न्यारा होवण री भावना। कुण जाणै कै देवर रो छोरो देरुतो, छोरी देरुती, जेठ रो बेटो जेठूतो, बेटी जेठूती, नणद रा बेटा-बेटी नाणदो अर नाणदी, काकै अर भूआ रा बेटा-बेटी, भतीजा-भतीजी, आजकाळै एक छोरै रो चलण। छोरी तो होवण ई नीं देवै। एक छोरै रै एक छोरो। बाकी रिस्तां रै लागै मोरो। आ होयगी भावना। घणकरै दिनां में टाबर पूछसी- 'पापा ये भूआ और फूंफा या होता है? मासा-मासी किसे कहते हैं?' ना साळा-साळी रैसी, ना मासा-मासी अर ना मामा-मामी। काका-काकी, भूआ-फूंफा अर बाबा-बडिया सोध्यां ई नीं लाधैला
दूसरो ब्याव करणियो दूजबर, किणी रै बिना ब्याव बैठणो, चू़डी पैरणो बजै। इण नै नातो कैवै। नातै जावण आळी लुगाई नै नातायत। नातै गयोड़ी लुगाई रै लारै आयोडै टाबर नै गेलड़ कैवै। जद रिस्ता-नाता, गन्ना, अर कड़ूम्बै रो ग्यान नीं तो संस्कारां रो ध्यान कठै। बडै रै पगाणै बैठणो, सिराणै नीं। भेळा जीमतां टाबर पछै जीमणो सरू करै पण चळू पैली करै। बडेरो आदमी जीमणो पैली सरू करै पण चळू छेकड़ में करै। सवारी माथै लुगाई लारलै आसण बैठै। आगलै पासै बैन, भौजाई, मा, दादी, काकी, बडिया, भूआ आद बैठै। अब पण ऐ बातां तो भाषा रै लारै ई रुळगी। मायड़ भाषा नै मानता मिलै तो पाछी बावड़ै। अब बांचो रिस्ता जाणण री दोय आड्यां-

()
पीपळी रै चोर बंध्यो, देख पणियारी रोई।
काईं थारै सग्गो लागै, काईं लागै थारै सोई।।
नीं म्हारै सग्गो लागै, नीं लागै म्हारै सोई।
ईं रै बाप रो बैन्दोई, म्हारै लागतो नणदोई।। (बेटो)
()
जांतोड़ा रै जांतोड़ा, थारै कड़ियां लाल लपेटी।
आ आगलै आसण बैठी, थारै बैन है का बेटी।।
नीं म्हारै आ बैन है, नीं है आ म्हारी बेटी।
ईं री सासू अर म्हारी सासू, है आपस में मा-बेटी।। (बेटै री बू)

आज रो औखांणो

पांवली कुत्ती अर पूंछ में कांघसियो, अठै-सी कोनीं बावूं, आगै-सी बास्यूं।
कोई घणो दिखावै करै जद मजाक में आ कहावत कहीजै।

Monday, April 20, 2009

२१ नोट, वोट अर जूतो


आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२१//२००९

नोट, वोट अर जूतो

डॉ. मंगत बादल रो जलम 1 मार्च, 1949 नै सिरसा (हरियाणा) में हुयो। मूल रूप सूं ग्राम चकां (सिरसा) रा वासी डॉ बादल राजस्थानी अर हिंदी रा समरथ लिखारा। मोकळी पोथ्यां छपी। सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार समेत मोकळा मान-सनमान मिल्या। आजकाल रायसिंहनगर में रैवै अर स्वतंत्र लेखन करै। ल्यो बांचो, आपरो ताजा व्यंग।
-डॉ. मंगत बादल


नोट, वोट अर जूतो तीन्यूं ऊपर सूं देखण में तीन विषय दीसै। पण खरबूजै दांईं भीतर सूं एक। दीखण में तो ऊपर सूं जनता दल रा लालू यादव, रामविलास पासवान अर शरद पंवार भी अळगा-अळगा। पण जद सत्ता री रेवड़ी बंटैली तो सगळा घी-खीचड़ी हो जावैला। आज ऐ लोग जद जनता सूं वोट लेणा है तो एक-दूजै री बुराई करै। कमियां काढ़ै। पण पछै गठबंधण री सरकार बणांती बारी एक-दूजै री बड़ाई करतां आं री जीभ कोनी थकैली। खैर! कुर्सी चीज ई ऐड़ी हुवै।
नोट देय'र वोट लेणै री परम्परा भारत में घणी जूनी। जिकै कनै जेड़ी है, बा ई'ज तो मिनख दे सकै। किणी मंगतै नै जद आप कीं देवो तो बिण कनै देणै तांईं सिर्फ दुआ हुवै। गाळ काढणियै नै कुण भीख देवै? भारतीय कर्मवाद रै सिद्धांत रै मुजब मिनख नै कर्म कर बिण में फळ री आस नीं करणी चायजै। आ भी कोई बात हुई! भाई! बीजस्यो तो बै ऊगै ई ला! अब नीं तो आगलै जन्म में भोगणा पड़ै। म्हारा नेता ऐड़ा धार्मिक अर शुद्ध हियै आळा मिनख है कै बै किणी री ना तो उधार राखै अर ना ही मुफ्त कोई चीज लेवै। इण कारण वोटां रै बदळै नोट दे दिया तो कांईं हुयो? पइसा नीं देय'र नेता जनता साथै क्रितघ्नता कर लेवै? भाड़ में पड़ो ड़ी आचार संहिता! गरीबां रो भलो चुणाव आयोग नै कद सुहावै। अंग्रेजी दारू पीय'र मुरगो खावणियो नेता दो दिन गरीबां नै मुफ्त में प्या ई देवै तो कांईं गधी नै धांसी हो ज्यासी। अम्बर तो हेठां पड़न सूं रैयो! फेर बेरो नीं क्यूं चुनाव आयोग रै कीड़ी चढ़ै?
नेतावां रै बताणै मुजब जे भरोसो करां तो स्विस बैंकां में भारतीय नेतावां रो जितरो धन जमा है, बिण नै जे हरेक भारतीय में बरोबर बांट्यो जावै (?) तो लाखूं रिपिया पांती आवै। अमीर नेतावां रै गरीब देश भारत रै गरीब लोगां नै इण बहानै नेतावां रो कीं चिरणाम्रत मिल जावै तो कांईं फर्क पड़ै। आप कबीर सूं घणा धार्मिक कोनी। ऐड़ै मौकां तांईं बिणां कैयो- 'चीड़ी चूंच भर ले गई, नदी न घटियो नीर।' आप नीं बांटणद्यो नोट। चलो आपरी बात मानली! पण फेर कांईं गारंटी है कै चुणाव जीत्यां पछै नेता नोट नीं कमावैला। नाड़ हालै, पगां सूं चाल्यो कोनी जावै, आँख्यां सूं सूझै कोनी, दो जणां पकड़'र खड़्या करै, फेर भी चुणाव लड़णै तांईं त्यार। क्यूं कै इणां तो आप री आखरी सांस तांईं देश सेवा रो व्रत लियो है। धन है म्हांरै देश रा नेता! कर्मचारियां रै रिटायरमैंट री उम्र तो है पण नेतागण तो मुसाणां में जाय'र ई रिटायर हुवै।
बिहार, उत्तरप्रदेश आद प्रदेशां में जठै आप री तागत में भरोसो राखणिया वीर नर हा, बै नोटां रै अलावा जूतै रै बल-बूतै चुणाव जीत्या करता। जूतै में ऐड़ो जादू हुवै कै बिण नै दिखायां भी वोट मिल सकै। वोटर नै जूत दिखाओ अर वोट आपरो! जूतां रो राजनीति में प्रयोग पैली बार करणै रा प्रमाण रामायण में मिलै। बड़ै लोगां रै पगां रै बजाय चरण हुवै अर बिणां में पादुकावां सुशोभित हुवै। राम री पादुकावां सूं भरत चौदह बरसां तक अयोध्या पर राज कर्यो। बिण भांत आज परतख रूप में तो जूतो कोनी चाल सकै क्यूं कै प्रजातंतर है। पण निराकार रूप में जूतो सगळा काम करै।
राजनीति में 'जूतम पैजार' कोई नूंई बात कोनी। लारलै दिनां जूतै नै काफी मशहूरी मिली जद एक पत्रकार जार्ज बुश पर जूतो फेंक्यो। बिणी स्टायल में चिदंबरम् पर भी जूतो फेंक्यो गयो। चिदंबरम् पर जूतो फेंकण वाळै पत्रकार नै इतरो फायदो कोनी हुयो जितरो बुश पर फेंकण वाळै नै हुयो। खैर! इतरो फर्क तो अमरीकी नेता अर भारतीय नेता रै स्टैंडर्ड में होणो ई चायजै। भारतीय नेतावां रा तो आपस में संसद या विधान सभावां में जूता चालणो कोई नूंईं बात कोनी। अबकाळै ओ जूत फेंकणियों पत्रकार हो! पत्रकार अगर रोजमर्रा री जिनगी में 'पीत पत्रकारिता' नीं कर इण नेतावां री इण भांत ई खबर लेंवता रैवै तो ऐ दिन देखणा ई नीं पड़ै।
नोट, वोट अर जूत री इण चर्चा नै म्हूं अठै ई विराम द्यूं क्यूं कै कोई आचार संहिता तो म्हां पर भी लागू हुवै।

आज रो औखांणो

मतलब री मनवार, न्यूत जिमावै चूरमो।
मतलब बिन मनवार, राब न पावै राजिया।।


संसार में सगळा काम-व्योपार स्वारथ सूं रीयोड़ा है।
मतलब हुवै तो न्यूंत नै चूरमो जिमावै अर मतलब नीं हुवै तो कोई राबड़ी तक रो भी नीं पूछै।

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गोगामे़डी में चुनावी सभा

राजस्थानी रै मुद्दे पर खुल'र बोल्या मुख्यमंत्री

परलीका(हनुमानगढ़)। सोमवार नै गोगामे़डी में चुनावी सभा नै संबोधित करतां थकां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थानी भाषा री मान्यता रै मुद्दे खुलनै बोल्या। आपरै भाषण में करीब पांच मिनट तक बै इण मुद्दे माथै ई बोलता रैया। वां खुशी प्रगट करी कै अठै रा लोग मायड़भाषा रो मोल समझै अर आपरी भाषा रै प्रति प्रतिबद्ध है। गहलोत कैयो कै पचास साल में कोई सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पारित नीं कर सकी। क्यूंकै केन्द्र में भाषा नै तद ई मान्यता मिलै जद राज्य सरकार संकळप प्रस्ताव पारित करै। हरेक मुख्यमंत्री कोसीसां करी पण एक राय नीं बण सकी। वां कैयो कै म्हनै ओ कैवतां घणो गुमेज हुवै कै लारली दफा जद म्हैं मुख्यमंत्री हो, तद संकळप प्रस्ताव सर्व सम्मति सूं पारित करवायो। अब केन्द्र सरकार लोकसभा अर राज्यसभा में इणनै पारित करवावै इण सारू म्हैं आपनै भरोसो दिराऊं कै रफीक मंडेलिया समेत पार्टी रा सगळा सांसद इण मांग नै लोकसभा अर राज्यसभा में उठावैला। वां भाषा रै मुद्दे माथै साथ देवण रो वायदो करियो अर कैयो कै भारत विविधता में एकता वाळो देश है। अठै दूजी भाषावां री दांईं राजस्थानी नै भी संविधान री आठवीं अनुसूची में शामिल करी जावणी चाइजै। इणसूं राजस्थानी कलाकारां, साहित्यकारां, पत्रकारां अर आमजण रो सम्मान बढ़ैला अर राजस्थान री पिछाण कायम हुवैला।
इणसूं पैलां क्षेत्रीय विधायक जयदीप डूडी, राजस्थानी मोट्यार परिषद रा हनुमानगढ़ जिला महामंत्री संदीप मईया, संरक्षक सतवीर स्वामी समेत मायड़भाषा आंदोलन सूं जुड़िया थका कई कार्यकर्त्ता मुख्यमंत्री सूं मिल्या अर राजस्थानी मान्यता री मांग रो ज्ञापन सूंपतां थकां इण मुद्दे माथै आपरो मत परगट करण री अरज कीनी।

Sunday, April 19, 2009

२० सै'त सुधारै राबड़ी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२०//२००९

सै'त सुधारै राबड़ी, मेटै सगळा खोट

लोक रै रूं-रूं रा सांचा रंगरेज, बुजुर्ग कवि राजेराम बैनीवाळ रो जलम वि. सं. 1990 में परलीका गांव में हुयो। घरां ई आंकां री पिछाण करणी सीखी। पण खास बात आ कै 72 बरस री उमर में सिरजण सरू कर्यो। 75 बरस री उमर में भी लगोलग लिखै। राजस्थानी में अजे तक ढाई हजार दूहा मांड्या है। पंजाबी में भी मांड्या। पत्र-पत्रिकावां में भी मोकळा छप्या। कवि छंद रा जाणकार कोनी, पण जिकै भाव में अर जिकै अंदाज में बात कैवै, बा हरेक बांचणियै-सुणनियै रो मन मोह लेवै। आज बांचो, आं रा कीं दूहा-

-राजेराम बैनीवाळ

अब आळी औलाद नै मिलै कोनी ल्हासी।
कूकर बणै जवान , लूखी रोटी खासी।।

रोज बणावै राबड़ी, पूरो राजस्थान।
जाणै ईं नै नांव स्यूं, पूरो हिंदुस्तान।।

कोरी होवै हांडकी, बीं में ठंडी रैवै राब।
सारै दिन पीवो चाये, होवै कोनी खराब।।

राबड़ी में टैस्ट हुवै, सुवाद भोत लागै।
पीयां पछै नीन आवै, जगायो कोनी जागै।।

सै'त सुधारै राबड़ी, मेटै सगळा खोट।
ईं नै इस्तेमाल करो, मांह गेरगे रोट।।

भरगे थाळ पी ले तूं, ओ गुण करैगो राबड़ो।
मां' मरोड़ले रोट तूं, भर्यो पड़्यो है छाबड़ो।।

पी ले धापगे राबड़ी, लागै कोनी तावड़ो।
आ चीज है काजबीज, पीणी चावै बटाऊड़ो।।

खाटो भेळै बूढळी, बीं गो बणै संगीत।
राबड़ी रै कोड में, गावण लागज्यै गीत।।

लूण गेरगे ल्हासी पीयां, आयबो करै स्यांत।
टैस्ट बणै टोपगो, पाटण लागज्यै आंत।।

चरकी रोटी चीणां गी, सागै मीठा प्याज।
जाड़ा नीचै बाजबो करै, फेर सूणो-सूणो साज।।

आज रो औखांणो

राबड़ी छोड सीरै में हाथ घालै तद राबड़ी रा ई जांदा पड़ जावै।

राब छोड़कर हलुवे में हाथ डाले तब राबड़ी से भी हाथ धोना पड़ता है।

अधिक लोभ करने का नतीजा अच्छा नहीं होता।


Saturday, April 18, 2009

१९ सण्डे स्टोरी- भैतर साल गो बूढ़ियो, करै है कमाल

दैनिक भास्कर
सण्डे स्टोरी
तारीख-१९//२००९

भैतर साल गो बूढ़ियो, करै है कमाल

परलीका के 75 वर्षीय बुजुर्ग राजेराम बेनीवाल ने 72 की उम्र में लिखना शुरू किया और अब तक ढाईहजार दोहे लिख चुके हैं। लिखने का क्रम बदस्तूर जारी है।
-विनोद स्वामी


परलीका(हनुमानगढ़) 75 वर्षीय राजेराम दिखने में साधारण बुजुर्ग लगते हैं। साफा, धोती-कुर्ता और पैरों में चप्पलें। सुनते ज्यादा हैं और बोलते कम। उनका बोला हर वाक्य किसी बड़े कवि की कविता या फिर कोई दार्शनिक का वक्तव्य-सा लगता है। मगर यह तो उनके बोलचाल का साधारण लहजा है। बिना स्कूली शिक्षा पाए घर पर ही अक्षरों की पहचान कर इन्होंने 72 बरस की उम्र में लिखना शुरू किया। लिखने की लगन ऐसी कि मीरां का प्रेम और कबीर का लहजा साथ नजर आए। राजस्थानी व पंजाबी भाषा में ढाई हजार से ज्यादा दोहे लिखकर इस बात को सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा व लगन के आगे उम्र व परिस्थितियां आड़े नहीं आती। अपनी पूरी जवानी खेतों में कठिन परिश्रम करके जब सुस्ताने की घड़ी आई तो ऐसी लगन लगी कि बस हर बात दोहे में दिखने लगी और कस्सी की जगह कलम पकड़ कविता का श्रम करने में जुट गए।
गांव में इस उम्र के बू़ढे-बडेरों का ज्यादातर समय एक ओर जहां हुक्का पीते हथाइयों में गुजरता है, वहीं राजेराम बैनीवाल निरंतर कुछ लिखने या सोचने में व्यस्त नजर आते हैं। उनकी रचनाओं में समाज की हर पीड़ा, दुख, असमानता व शोषण की सरल व सहज अभिव्यक्ति मिलती है। लिखने का अभ्यास न होने के कारण वे बहुत मुश्किल से अपनी भावनाओं को कागज पर दर्ज कर पाते हैं। उनका मानना है कि लेखक को अपने समय का सच लिखना चाहिए। उनकी रचनाओं में गांव, गरीबी, लाचारी और भ्रष्टाचार का ऐसा सजीव चित्रण मिलता है कि श्रोता सुनते व पाठक पढ़ते हुए डूब जाते हैं। इस उम्र में लिखने का कारण बताते हुए वे कहते हैं कि- 'लिखणो तो आवै कोनी। बांका-बावळा लीकलकोळिया करां। कोई बात जद ठीक ना लागै तो घरळमरळ-सी होवण लागज्यै। अर जद पैन-कापी लेय'र लिखण लागूं तो मांयलो उबाळ दोहां रै मिस कापी पर मंडज्यै। आज देस, दुनियां अर गांव-गळी री हालत चोखी कोनी रैयी। मैं तो दुनियां नै सूणी अर चोखी बणावण रा सपना देखूं।' उन्हें अपने चारों और ठीक होता नहीं लग रहा। जब कोई घर या देश ठीक नहीं चलता है तो उसकी चिंता हर किसी को होती है। पर समाधान सब के पास नहीं होता। बैनीवाल ने अपनी कलम से देश व दुनिया को ठीक करने का प्रयास किया है। उनकी तमन्ना है कि उनके जीते जी उनकी किताब छप जाए और उनका लिखा लोग पढ़ें जरूर।
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''राजेराम बैनीवाल के दोहों में उनका भोगा हुआ यथार्थ व देखी हुई दुनिया है। पोथियों में न पढ़ आंखों से देखकर रचना करने वाले इस क्षेत्र के सबसे विरल कवि हैं राजेराम बैनीवाल। उम्र के आखिरी पड़ाव में इतना अधिक लिखना उनके अनुभव संसार के विस्तार का प्रमाण है। कबीरी अंदाज में आज की व्यवस्था को धत्ता बताते उनके दोहे अपना गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।''
-रामस्वरूप किसान, प्रसिद्ध साहित्यकार।
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''इनको पढ़ते-सुनते हुए पाठक एक बच्चे के समान हो जाता है और रचना दादी-नानी की तरह। रचना के साथ ये रिश्ता निश्चय ही एक अच्छी दुनिया के निमार्ण का संकेत है। ताऊजी ज्यादा नहीं पढ़े, छंद को नहीं जाना, मगर इनकी रचना इतनी भावपूर्ण, लोकरंजक और मारक है कि छंद का टूटना लय में बाधक नहीं बनता।''
-सत्यनारायण सोनी, व्याख्याता (हिन्दी), परलीका।
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बानगी

भैतर साल गो बूढ़ियो, करै है कमाल।
दूहा लिखै जोरगा, होग्या कई साल।।


खारा धुंवा गिटै आदमी, किस्यो'क पड़ग्यो बैल।
साबण लगावै सरीर गै, भीतर लगावै मैल।।


सरपंची गो चुनाव लड़ै, दारू प्यावै गाम नै।
कूकर पूरो आवै गो तूं, इत्तै उलटै काम नै।।


किसान बराबर दुनिया में कोनी दूजो देव।
खेतां में फळ लटकावै, अंगूर-संतरा-सेव।।


किरसो कमाऊ देस गो, ईं पर है सो' बोझ।
अन्न बणावै एकलो, जीमै सगळी फौज।।
कई लगावै चौका और कै बांधै गा बीम।
गरीब लगावै जांटी, कै लगावै नीम।।


गरज बिना आदमी, गरब करै बोडी गो।
गरज होयां छोडै कोनी, पैंडो बेली ठोडी गो।।


उठतां पाण आदमी गै, जी में आवै बीड़ी गी।
तागै स्यूं टिपागे छोडै, खाल काढै कीड़ी गी।।


हुण तुसी दसो बेली! ऐ कै़डी है निरास्ता?
असमानता अखरदी है, रोकदी है रास्ता।।


परलीके जेड़ा पिंड कित्थे होर नहीं मिलदा।
ऐ तां लगदा है पिंड सानू, हिस्सा साडे दिल दा।।

१९ बाजरिया थारो खीचड़ो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-१९//२००९

बाजरिया थारो खीचड़ो

लागै घणो स्वाद

खीचड़ो आपणो खास खाजो। आखातीज नै खास तौर सूं घर-घर रंधै। स्वाद रो कांईं लेखो। मोठ-बाजरै रो खीचड़ो खांवता-खांवता को धापै नीं। खीचड़ै पर आपणी भाषा में मोकळा गीत। ओ लोकगीत भी घणो चावो। लिखारै रो नांव तो ठा कोनी पण आपणै तांईं मांड'र भेज्यो है सूरतगढ़ सूं भाई रोहित सारस्वत। बांचो सा!

बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।
लागै घणो स्वाद, लागै घणो स्वाद।।

टीबां बायो बाजरो, रेळां में बाया मोठ,
गौरी ऊभी खेत में, आ कर घूंघट की ओट।
बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।।

गेहूवां कै फलकां की म्हे तो, खावां जेटमजेट,
खीचड़ा कै दो चाटू सूं, भरज्या म्हां को पेट।
बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।।

खदबद हींजै खीचड़ो, नै फदफद हींजै खाटो,
ल्या ए छोरी सोगर खातर, बाजरियै रो आटो।
बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।।

घर आया जद पावणां, नै रांध्यो खीचड़ खाटो, खाटो,
इण खाटै नै देखनै बो आज जंवाई न्हाटो।
रै बाजरिया थारो खीचड़ो लागै घणो स्वाद।।

आज रो औखांणो

खीचड़ै री जितरी महिमा करी जावै कम। पण आम बोलचाल में जिका औखांणा चलै बै इणनै हळको अर हीणो गिणावै। जदी तो कोई निरभागी आदमी सारू आ कहावत कैवै-

करमहीण किसनियो, जान कठै सूं जाय।
करमां लिखी खीचड़ी, खीर कठै सूं खाय।।

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?