Thursday, July 22, 2010

मिलण पुकारै मुरधरा

मिलण पुकारै मुरधरा



खो मत जीवण, वावळी
डूंगर-खोहां जाय।
मिलण पुकारै मुरधरा
रम-रम धोरां आय॥

नांव सुण्यां सुख ऊपजै
हिवड़ै हुळस अपार।
रग-रग नाचै कोड में
दे दरसण जिण वार॥

आयी घणी अडीकतां
मुरधर कोड करै।
पान-फूल सै सूकिया
कांई भेंट धरै॥

आयी आज अडीकतां
झडिय़ा पान'र फूल।
सूकी डाळ्यां तिणकला
मुरधर वार समूल॥

आतां देख उंतावळी
हिवड़ै हुयो हुळास।
सिर पर सूकी जावतां
छूटी जीवण आस॥
-चंद्रसिं

Friday, July 16, 2010

एक आसरो वादळी

एक आसरो वादळी


आठूं पोर अडीकतां
वीतै दिन ज्यूं मास।
दरसण दे अब वादळी
मत मुरधर नै तास॥

आस लगायां मुरधरा
देख रही दिन रात।
भागी आ तूं वादळी
यी रुत वरसात॥

कोरां-कोरां धोरियां
डूंगां डूंगां डैर।
आव रमां अे वादळी
ले-ले मुरधर ल्हैर॥

ग्रीखम रुत दाझी धरा
कळप रही दिन-रात।
मेह मिलावण वादळी
वरस वरस वरसात॥

नहीं नदी नाळा अठै
नहिं सरवर सरसाय।
एक आसरो वादळी
मरु सूकी मत जाय॥

कविवर चंद्रसिं बिरकाळी री 'वादळी' सूं.....

Tuesday, July 13, 2010

वादळी-अढाई आखर

वादळी


राम-राम सा!
आज सूं आपां लगोलग बांचांला कविवर चंद्रसिं
बिरकाळी री 'वादळी'।
पैलपोत कवि रा 'अढाई आखर'।


अढाई आखर

मोर री 'पिहू', कोयल री 'कुहू', पपीहै री 'पी पिव' अर टीटोड़ी री 'टी टिव' आप रै रूप में पूरी रट है। ऐ आप-आपरी विसेसता न्यारी-न्यारी राखै है अर जी रा भाव पूरै जोर सूं परगट करै है। इण रट नै चावै आं रो सुभाव समझो चावै प्रकृति री दात, पण मिनख री विसेसता आं सगळां सूं न्यारी है। मिनख बुद्धि रै परभाव सूं दूसरां री भासा अथवा भावां पर रीझ वांनै आपरा वणाणै रो सांग भरै है पण जद जी छोळां चढ़ै, कोड में रग-रग नाचै, बैं मस्ती में मातृभाषा री गोद में ही मोद आवै। जद वड़ां री बात याद आवै 'मांग्यां घीयां किसा चूरमा' अथवा भारी दुख सूं जी में ठेस लगै तो चट मा ही याद आवै, मांगेड़ी धाड़ के ठारै? जद इसी बात है तो दूजा क्यूं जी दोरो करै।
वादळी मरुधर नैं प्राणां सूं प्यारी है। बैं रै चाव नै कुण पूगै। रात-दिन आंख्यां में रमै। जैं रो नाम सुण्यां सुख ऊपजै। वाळकपणै सूं जिण में ऊंट-घोड़ां री अनेक कल्पना करी जावै, जिण में इंद्रधनस अर जळेरी जी ललचावै, इसी प्यारी चीज रा गुण दूसरी भासा में गाऊं, आ सोचण री विरियां कैं नैं? झट मुंह सूं 'वरसे भोळी वादळी आयो आज असाढ़' निकळतां ही 'रम रम धोरां आव' री रट लागै। जठै जी खोल मिलणो हुवै, दूजो वीचविचाव किसो? आपरी भासा अर आपरै भावां पर भरोसो चाहिजै।
-चंद्रसिं

जीवण नै सह तरसिया बंजड़ झंखड़ वाढ।
वरसे, भोळी वादळी आयो आज असाढ॥

Monday, July 5, 2010

मायड भाषा रा दूहा

म्हारी मायड भाषा रा दूहा

राजस्थानी भाषा




राज बणाया राजव्यां,भाषा थरपी ज्यान ।
बिन भाषा रै भायला,क्यां रो राजस्थान ॥१॥

रोटी-बेटी आपणी,भाषा अर बोवार ।
राजस्थानी है भाई,आडो क्यूं दरबार ॥२॥

राजस्थानी रै साथ में,जनम मरण रो सीर ।
बिन भाषा रै भायला,कुत्तिया खावै खीर ।।३॥

पंचायत तो मोकळी,पंच बैठिया मून ।
बिन भाषा रै भायला,च्यारूं कूंटां सून ॥४॥

भलो बणायो बाप जी,गूंगो राजस्थान ।
बिन भाषा रै प्रांत तो,बिन देवळ रो थान॥५॥

आजादी रै बाद सूं,मून है राजस्थान ।
अपरोगी भाषा अठै,कूकर खुलै जुबान ॥६॥

राजस्थान सिरमोड है,मायड भाषा मान ।
दोनां माथै गरब है,दोनां साथै शान ॥७॥

बाजर पाकै खेत में,भाषा पाकै हेत ।
दोनां रै छूट्यां पछै,हाथां आवै रेत ॥८॥

निज भाषा सूं हेत नीं,पर भाषा सूं हेत ।
जग में हांसी होयसी,सिर में पड्सी रेत ॥९॥

निज री भाषा होंवतां,पर भाषा सूं प्रीत ।
ऐडै कुळघातियां रो ,जग में कुण सो मीत ॥१०॥

घर दफ़्तर अर बारनै,निज भाषा ई बोल ।
मायड भाषा रै बिना,डांगर जितनो मोल ॥११॥

मायड भाषा नीं तजै,डांगर-पंछी-कीट ।
माणस भाषा क्यूं तजै, इतरा क्यूं है ढीट ॥१२॥

मायड भाषा रै बिना,देस हुवै परदेस ।
आप तो अबोला फ़िरै,दूजा खोसै केस ॥१३॥

भाषा निज री बोलियो,पर भाषा नै छोड ।
पर भाषा बोलै जका,बै पाखंडी मोड ॥१४॥

मायड भाषा भली घणी, ज्यूं व्है मीठी खांड ।
पर भाषा नै बोलता,जाबक दीखै भांड ॥१५॥

जिण धरती पर बास है,भाषा उण री बोल ।
भाषा साथ मान है , भाषा लारै मोल ॥१६॥

मायड भाषा बेलियो,निज रो है सनमान ।
पर भाषा नै बोल कर,क्यूं गमाओ शान ॥१७॥

राजस्थानी भाषा नै,जितरो मिलसी मान ।
आन-बान अर शान सूं,निखरसी राजस्थान ॥१८॥

धन कमायां नीं मिलै,बो सांचो सनमान ।
मायड भाषा रै बिना,लूंठा खोसै कान ॥१९॥

म्हे तो भाया मांगस्यां,सणै मान सनमान ।
राजस्थानी भाषा में,हसतो-बसतो रजथान ॥२०॥

निज भाषा नै छोड कर,पर भाषा अपणाय ।
ऐडै पूतां नै देख ,मायड भौम लजाय ॥२१॥

भाषा आपणी शान है,भाषा ही है मान ।
भाषा रै ई कारणै,बोलां राजस्थान ॥२२॥

मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला,सूनो लागै थार ॥२३॥

जिण धरती पर जळमियो,भाषा उण री बोल ।
मायड भाषा छोड कर, मती गमाओ डोळ ॥२४॥

हिन्दी म्हारो काळजियो,राजस्थानी स ज्यान ।
आं दोन्यूं भाषा बिना,रै’सी कठै पिछाण ॥२५॥

राजस्थानी भाषा है,राजस्थान रै साथ ।
पेट आपणा नीं पळै,पर भाषा रै हाथ ॥२६॥

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?