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तारीख- ५/४/२००९
राजस्थानी मांय राम-भगतीमूलक पैली रचना- गोस्वामी तुलसीदास री रामचरित मानस रै सिरजण सूं ई कोई 56 साल पैलां हुयी। श्रीडूंगरगढ़ तहसील रै भोजास गांव में मेहोजी गोदारा संवत् 1575 में 'रामायण' नांव सूं एक काव्य लिख्यो। राजस्थानी जनजीवण अर लोक-परम्परावां रो सांतरो वरणन इण रामायण मांय मिलै। इणसूं पैलां पृथ्वीराज रासो में कई ठोड़ रामकथा रै प्रसंगा रो जिक्र मिलै। वि।सं. 1664 में भगतकवि माधोदास दधवाड़िया 'रामरासौ' रचै। 1087 छंदां में सिमटियोड़े इण ग्रंथ नै राम-भगतीमूलक रचनावां मांय पैलो महाकाव्य कैयो जा सकै। पृथ्वीराज राठोड़ आपरी अमर रचना वेलि क्रिसण रुक्मणी री' रै अलावा रामभगती रा 54 दूहा 'दसरथ देवउत' नांव सूं भी लिख्या। संवत् 1700 में विश्नोई संत सुरजनदास पूनिया रो 'रामरासौ' अर जसनाथी संत सरवण भूकर री लोक-रामायण 'सीत-पुराण' आपां साम्हीं आवै। जसनाथी संप्रदाय रा अगनी-निरतक इण गाथा रा गायक हुवै। नायक जाति रा गायक भी इणनै माट वाद्य माथै सुणाया करै। रतजगै री वेळा लुगायां भी गावै। वि.सं. 1795 में मुहंता रुघनाथ 'रुघरास' नांव सूं मनमोवणो खंडकाव्य रच्यो। संवत् 1733 में रचित बारहठ नरसिंहदासजी रै 'अवतार-चरित' मांय चौबीस अवतारां रो वरणन है, जिणमें राम रै अवतार री कथा सगळा अवतारां सूं सांवठी। संवत् 1787 में कविया करणीदानजी 'सूरजप्रकास' नांव सूं एक वंशावली ग्रंथ लिख्यो, जिणमें भी रामकथा रो सांतरो वरणाव आवै। कविराजा ठाकुर बुधसिंहजी संवत् 1955 में 'देवीचरित' रो सिरजण कर्यो। इणमें कवि री मौलिकता रै कारण भगवान राम रो चरित अनूठै ई रूप में साम्हीं आवै।
राजस्थानी रा तीन लाक्षणिक ग्रंथा में ई रामकथा रो प्रभाव। संवत् 1610 सूं लेयनै 1618 रै बिचाळै जैसलमेर रा कुंवर हरराज 'पिंगल शिरोमणि' रो सिरजण कर्यो। इणमें उदाहरण रूप में जका छंदां रो प्रयोग करीज्यो है, बां में रामकथा रा प्रसंगां नै मोतियां री माळा दांईं सजाया गया है। संवत् 1863 में मनसाराम सेवग 'रघुनाथ रूपक गीतां रो' ग्रंथ रच्यो। ग्रंथ रै नांव सारू कवि कैवै-
आधुनिक कवियां मांय श्रीमंतकुमार व्यास रामकथा रा च्यार काव्य सन् 1947 में 'रामदूत', 1989 में 'कैकयी', 1994 में 'जानकी' अर 'मांडवी' काव्य सिरज्या। विश्वनाथ शर्मा 'विमलेश' री 'रामकथा', नानूराम संस्कर्ता रो 'लंकाण-धणी' अम्बू शर्मा री 'अम्बू रामायण', महावीर प्रसाद जोशी री 'राजस्थानी रामायण', अमृतलाल माथुर री 'गीत रामायण', संत हनुवंत किंकर री 'किंकर रामायण', शंभुसिंह राठोड़ री 'सीतायण' राम-भगतीमूलक साहित्य सिरजण रा सांवठा प्रमाण।
राजस्थानी में गद्य रामकथावां रो सिरजण भी हुयो। बावजी चतरसिंहजी री गद्य रामकथा 'मानवमित्र रामचरित्र' अर भूराभानू नांव रै कथावाचक री 'रामकथा' भी उल्लेखजोग। स्व. ठाकुर कर्नल श्यामसिंहजी रो करियोडो मानस रो राजस्थानी अनुवाद भी गद्य रामकथा री दीठ सूं राजस्थानी राम-भगतीमूलक साहित्य रै मान में बधेपो करण वाळो है।
तारीख- ५/४/२००९
राजस्थानी मांय राम-भगतीमूलक सिरजण
डॉ. मदन सैनी रो जलम 3 मई, 1958 नै श्रीडूंगरगढ़ में हुयो। 'राजस्थानी काव्य में रामकथा' पर पी-एचडी। चावा कथाकार। एक दर्जन पोथ्यां छपी। राजस्थानी अकादमी समेत मोकळै संस्थानां सूं पुरस्कृत। कई कहाणियां हिंदी, अंग्रेजी, मलयालम, कन्नड़ अर पंजाबी में अनूदित। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अर विश्वविद्यालय रै पाठ्यक्रम में भी आपरी रचनावां। रामपुरिया महाविद्यालय, बीकानेर मांय हिंदी रा व्याख्याता।-डॉ. मदन सैनी
आदिकवि वाल्मीकि पैलपोत भगवान राम रै पावन चरित माथै 'रामायण' नांव सूं काव्य-सिरज्यो। उणरै साथै ई आखै भारत में रामभगती रो श्रीगणेश हुयो। रामायण ईसा सूं छह सौ साल पैली रचित आदिकाव्य। इणी सूं प्रेरणा लेयनै हजारूं रामकाव्य रचीज्या।राजस्थानी मांय राम-भगतीमूलक पैली रचना- गोस्वामी तुलसीदास री रामचरित मानस रै सिरजण सूं ई कोई 56 साल पैलां हुयी। श्रीडूंगरगढ़ तहसील रै भोजास गांव में मेहोजी गोदारा संवत् 1575 में 'रामायण' नांव सूं एक काव्य लिख्यो। राजस्थानी जनजीवण अर लोक-परम्परावां रो सांतरो वरणन इण रामायण मांय मिलै। इणसूं पैलां पृथ्वीराज रासो में कई ठोड़ रामकथा रै प्रसंगा रो जिक्र मिलै। वि।सं. 1664 में भगतकवि माधोदास दधवाड़िया 'रामरासौ' रचै। 1087 छंदां में सिमटियोड़े इण ग्रंथ नै राम-भगतीमूलक रचनावां मांय पैलो महाकाव्य कैयो जा सकै। पृथ्वीराज राठोड़ आपरी अमर रचना वेलि क्रिसण रुक्मणी री' रै अलावा रामभगती रा 54 दूहा 'दसरथ देवउत' नांव सूं भी लिख्या। संवत् 1700 में विश्नोई संत सुरजनदास पूनिया रो 'रामरासौ' अर जसनाथी संत सरवण भूकर री लोक-रामायण 'सीत-पुराण' आपां साम्हीं आवै। जसनाथी संप्रदाय रा अगनी-निरतक इण गाथा रा गायक हुवै। नायक जाति रा गायक भी इणनै माट वाद्य माथै सुणाया करै। रतजगै री वेळा लुगायां भी गावै। वि.सं. 1795 में मुहंता रुघनाथ 'रुघरास' नांव सूं मनमोवणो खंडकाव्य रच्यो। संवत् 1733 में रचित बारहठ नरसिंहदासजी रै 'अवतार-चरित' मांय चौबीस अवतारां रो वरणन है, जिणमें राम रै अवतार री कथा सगळा अवतारां सूं सांवठी। संवत् 1787 में कविया करणीदानजी 'सूरजप्रकास' नांव सूं एक वंशावली ग्रंथ लिख्यो, जिणमें भी रामकथा रो सांतरो वरणाव आवै। कविराजा ठाकुर बुधसिंहजी संवत् 1955 में 'देवीचरित' रो सिरजण कर्यो। इणमें कवि री मौलिकता रै कारण भगवान राम रो चरित अनूठै ई रूप में साम्हीं आवै।
राजस्थानी रा तीन लाक्षणिक ग्रंथा में ई रामकथा रो प्रभाव। संवत् 1610 सूं लेयनै 1618 रै बिचाळै जैसलमेर रा कुंवर हरराज 'पिंगल शिरोमणि' रो सिरजण कर्यो। इणमें उदाहरण रूप में जका छंदां रो प्रयोग करीज्यो है, बां में रामकथा रा प्रसंगां नै मोतियां री माळा दांईं सजाया गया है। संवत् 1863 में मनसाराम सेवग 'रघुनाथ रूपक गीतां रो' ग्रंथ रच्यो। ग्रंथ रै नांव सारू कवि कैवै-
इण ग्रंथ मो रघुनाथ गुण अत भेद कविता भाखियो।
इण हीज कारण नाम ओ 'रघुनाथ रूपक' राखियो।।
संवत् 1881 में चारण किसना आढ़ा 'रघुवर जस प्रकास' सिरज्यो। राम भगती में डुबकी लगावतो एक ठोड़ कवि कैवै-इण हीज कारण नाम ओ 'रघुनाथ रूपक' राखियो।।
तोटो केम रहै घर त्यांरै।
राम धणी मोटो ज्यांरै।।
किशनगढ़ रा महाराजा सांवतसिंह, जका 'नागरीदास' नांव सूं नांमी, संवत् 1806 में 'रामचरितमाळा' रची। संवत् 1918 में अलवर रा महाराज विनयसिंहजी री राणी रूपदेवी भगवान राम री मधुरा-भगती रो महताऊ ग्रंथ 'रामरास' लिख्यो। जैन रामकाव्यां री एक लूंठी परंपरा भी राजस्थानी साहित्य मांय। पद्मचरित (विनयसमुद्र), सीता चउपई (समयध्वज), सीता चरित्र (हेमरत्न सूरि), राम-सीता रास (नगर्षि), रघुनाथ विनोद (श्रीसार), सीता-विरह लेख (इमरचंद), लव-कुश रास (राजसागर), जैन रामायण (जिनराजसूरि), सीताराम चौपई (समयसुंदर), रामयशोरसायन या रामायण ढाळ (मुनि केशराज), सीता आलोयणा (कुशल कवि), रामचरित (रिषी चौथमल), रामरासो (रिषि शिवलाल) इत्याद मोकळा जैन कवि जैन-परंपरा री दीठ सूं रामकाव्यां रो सिरजण कर्यो।राम धणी मोटो ज्यांरै।।
आधुनिक कवियां मांय श्रीमंतकुमार व्यास रामकथा रा च्यार काव्य सन् 1947 में 'रामदूत', 1989 में 'कैकयी', 1994 में 'जानकी' अर 'मांडवी' काव्य सिरज्या। विश्वनाथ शर्मा 'विमलेश' री 'रामकथा', नानूराम संस्कर्ता रो 'लंकाण-धणी' अम्बू शर्मा री 'अम्बू रामायण', महावीर प्रसाद जोशी री 'राजस्थानी रामायण', अमृतलाल माथुर री 'गीत रामायण', संत हनुवंत किंकर री 'किंकर रामायण', शंभुसिंह राठोड़ री 'सीतायण' राम-भगतीमूलक साहित्य सिरजण रा सांवठा प्रमाण।
राजस्थानी में गद्य रामकथावां रो सिरजण भी हुयो। बावजी चतरसिंहजी री गद्य रामकथा 'मानवमित्र रामचरित्र' अर भूराभानू नांव रै कथावाचक री 'रामकथा' भी उल्लेखजोग। स्व. ठाकुर कर्नल श्यामसिंहजी रो करियोडो मानस रो राजस्थानी अनुवाद भी गद्य रामकथा री दीठ सूं राजस्थानी राम-भगतीमूलक साहित्य रै मान में बधेपो करण वाळो है।
आज रो औखांणो
रामजी रो नांव सदा मिसरी, जद चाखै तद गूंद-गिरी।
रामजी का नाम सदा मिश्री, जब चखे तब गोंद-गिरी।
रामजी रो नांव सदा मिसरी, जद चाखै तद गूंद-गिरी।
रामजी का नाम सदा मिश्री, जब चखे तब गोंद-गिरी।
guruji,
ReplyDeleteaapro lekh ghano santro.!
badhai..!!
-Rajuram Bijarnia 'Raj'
Loonkaransar
9414449936
अचूंभा री बात है, राम-भगतीमुलक, री रचना अवधी मांय रचित राम चरित्र मानस सूं 56 बरस पैली हुय़ी. पण आपणै आखै राजस्थान मांय राम चरित्र मानस नै सगळा ओळखै अर राम-भगतीमुलक नै कोई नीं जाणतौ. इण बात सूं आ बात साबित हुवै कै आपां आपणी भासा रै प्रती घणा लापरवाह हुवता ग्या हौ.
ReplyDeleteओम जै जगदिश वाळी आरती अर दुजी कोई ई आरती आपां उत्तर प्रदेश री बोलीयौ मांय गावौ हौ. पण जद गुजरात अर महाराष्ट्र कांनी जावां तौ सगळी आरतीयां अर कथावां बठा री भासा मांय मिळै.
आपणी लापरवाही रै कारण एक दो आरतीयां नै छोड़’र (रामापीर री - पिछम धरां) सगळी आरतीयां हिंदी री आ चुकी है.
म्हे गुजरात मांय देख्यौ है, सगळी आरतीयां आपणी कोपी कर्यौड़ी है, पण आपणै कन्नै है इज कोनीं.
साचे चेतण री जरुरत है, आपणा सगळा संस्कार, रिती रिवाज, आरतीयां, व्रत, कथावां सगळा राजस्थानी मांय हुवणा चावै.
और हां इण हिंदी भासा नै आपणै पगां री जुती रै बराबर ईं नी समझणी, आ आपणी कांई होड़ कर सकै... कठै राजा भोज अर कठै गंगु तेली