आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३०/४/२००९
इणरै अलावा पाकिस्तान में डिंगळ सैली रो साहित्य बड़ी मात्रा में रचीजियो जको क्रम आज भी जारी है। लोक-साहित्य भी भांत-भांतीलो अर बड़ी मात्रा में है। चारणां, सोढां, राजपूतां, मेघवाळां अर दूजी जातियां में राजस्थानी री मारवाड़ी बोली रो चलण है। उमरकोट सोढा राजपूतां री रियासत रीवी है। ओ सांच है कै राजनीतिक सीमांकन सांस्कृतिक कड़ियां नीं तोड़ सकै।
तारीख- ३०/४/२००९
पाकिस्तान में राजस्थानी
राजनीतिक सीमांकन सांस्कृतिक कड़ियां नीं तोड़ सकै।
-डॉ. राजेन्द्र बारहठ, उदयपुर।
कानाबाती- 09829566084
पाकिस्तान रा एक बड़ा हिस्सा में आज भी राजस्थानी भाषा चलै। पाकिस्तान रा प्रसिद्ध आलोचक अर सिरजक बाग अली सौक री पोथी 'राजस्थानी जबान ओ अदब' नाम सूं उरदू में छपी। इणी रा एक अध्याय 'आधुनिक राजस्थानी साहित्य री पिछाण' सूं कीं जाणकारी 'माणक' रा जनवरी 1994 रा अंक में छपी। पाकिस्तान रा राजस्थानी साहित्यकारां रो दल 1994 में 'माणक' रा दफतर में जोधपुर आयो। इणां रो घणो मान करीजियो। बाग अली सौक रा सबदां में- पाकिस्तान में राजस्थानी साहित्य रो इतिहास घणो जूनो। सिंध-पंजाब री सीमा रा इलाका में तो इणरो घणो असर। थारपारकर अर आं जागावां में राजस्थानी लोकगीत अणूंता प्रसिद्ध। जलालो, चनेसर, मटयारो, सावणी तीज, करहो, अम्रलो, पटयारी, मरवण, मूमल, रायधण अर घौंसळो इत्याद खास। कराची में सिलावट बिरादरी रा कीं मोट्यारां मिल'र सन् 1955 में 'अंजुमन मारवाड़ी सोअरा' नाम री संस्था गठित करी। इण संस्था कई जगां उरदू अर राजस्थानी कवि-सम्मेलन राखिया। इण संस्था रा संस्थापक अर कवियां मैसूस करियो कै उरदू री लिपी में राजस्थानी लिखणो संभव नीं। इण सारू स्व. यार मोहम्मद रमजान 'नसीर' इत्याद कवि लिपि में सुधार कर'र लिखण री कोसीस करी। आ सरूआती कोसीस गति पकड़ी। सन् 1955 सूं 1965 तक जका कवि आगै आया, वां में कीं खास नाम है- मास्टर अब्दुल हमीद जैसलमेरी, यार मो. चौहान 'ताहिर', बाग अली सौक जैसलमेरी, मो. रमजान 'नसीर', ओरंगजेब 'जिया', असरफ अली 'अफसोस', कुरबान अली चौहान अर महमूद दार कस्मीरी। पछै 'सिलावट वेलफेयर स्टूडेन्ट फैडरेसन' री तरफ सूं सालीणा इनामी कवि-सम्मेलनां री सरूआत व्ही। ऐ कवि-सम्मेलन घणा चावा व्हिया 'यूथ प्रोग्रेसिव कॉन्सिल' नाम री संस्था इणां कवि सम्मेलनां रो इंतजाम करती। विण वगत जका कवि आगै आया वां में युनुस नीर, युनुस राही, लियाकत अली 'दीपक', निसार 'तालिब', जियाऊदीन 'परवाज', इकबाल 'बर्क', लियाकत 'राज', अब्दुल मजीद 'चिंगारी', बसीर अहमद 'बसीर' अर मो. हनीफ काळू खास हा। भारत-पाक जुद्ध (1971) रै कीं बरसां पछै 1976 में 'राजस्थानी अदब सभा' री नींव राखीजी। इणरी तरफ सूं खेलिजियो पैलो नाटक 'एनात-अपूजी बात' घणो नांमी व्हियो। डोढ-दो बरसां री लगोलग कोसीसां रै पछै राजस्थानी भाषा री व्याकरण त्यार करीजी अर राजस्थानी व्याकरण री कीं खास-खास बातां तै व्ही। ओ काम सैयद सिब्तै हसन पार पटकियो। वै पाकिस्तान रा अंग्रेजी दैनिक 'डॉन' में राजस्थानी नै लेय'र लेख भी लिखिया। आ सभा ब्याव-सादी रा संस्कार गीतां रा कैसिट गुलाम अली री धुनां माथै त्यार कराया। राजस्थानी नाटकां रो सिलसिलो पण सरू व्हियो। राजस्थानी रचनावां रा उरदू, सिंधी, बलोची अर पंजाबी में अनुवाद कराया। खास कर'र 'गोल्डन-जुबली' इत्याद अवसरां पर कवि चावा व्हिया। जकां में सरदार अली चौहान, फारूक आजम फरीद, रजब अली 'गम' अर फिरोज अली 'फिरोज' खास। करांची में 1904 ई. में जलम्या श्री अब्दुल हमीद 'हमीद' राजस्थानी में सांतरै सिरजण सारू आज भी घणा मान सूं याद करीजै।-डॉ. राजेन्द्र बारहठ, उदयपुर।
कानाबाती- 09829566084
इणरै अलावा पाकिस्तान में डिंगळ सैली रो साहित्य बड़ी मात्रा में रचीजियो जको क्रम आज भी जारी है। लोक-साहित्य भी भांत-भांतीलो अर बड़ी मात्रा में है। चारणां, सोढां, राजपूतां, मेघवाळां अर दूजी जातियां में राजस्थानी री मारवाड़ी बोली रो चलण है। उमरकोट सोढा राजपूतां री रियासत रीवी है। ओ सांच है कै राजनीतिक सीमांकन सांस्कृतिक कड़ियां नीं तोड़ सकै।
आयां नै आदर घणो, नैणां बरसै नेह
29 जनवरी, 2006 सूं 7 फरवरी, 2006। पूर्व विदेश मंत्री जसवंतसिंह जसोल आपरी इष्ट देवी हिंगळाज माता री जातरा माथै गया। पाकिस्तान रै बलूचिस्तान प्रांत में माता रो मोटो धाम। फगत हिन्दू ई नीं, मुसळमानां में भी मौकळी मानता। कुळ-परम्परा मुजब हर जात-समाज रा लोग जसोल सा रै जत्थै में भेळा। कुल 86 जणा हा। म्हारा जी सा कानदानजी बारहठ भी साथै। वां बतायो कै जत्थै रो पाकिस्तान में जिग्यां-जिग्यां मौकळो आव-आदर व्हियो। डॉ. अरबाब अली मलिक मीरपुर खास में जबरो सतकार कीनो। सब जातरुआं नै टोपी पैराय'र शाल पण औढाया। हरेक जातरू नै दोय-दोय दूहा फारसी लिपि रै साथै देवनागरी लिपि में भी लिख परा भेंट कीना। दूहा इण भांत हा-आयां नै आसण धरूं, मस्तक धराऊं मौड़।
जसवंत रा जौड़, फेर पधारज्यो परांमणां।।
आयां नै आदर घणो, नैणां बरसै नेह।
साथीड़ां, फेर पधारज्यो, देख हमारो सनेह।।
जसवंत रा जौड़, फेर पधारज्यो परांमणां।।
आयां नै आदर घणो, नैणां बरसै नेह।
साथीड़ां, फेर पधारज्यो, देख हमारो सनेह।।
लेखक अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश महामंत्री हैं।
आज रो औखांणो
कांट-कंटीली झाड़की, लागै मीठा बोर।
कोई व्यक्ति जबान से कटु पर दिल का उदार हो तो यह कहावत कही जाती है।
कांट-कंटीली झाड़की, लागै मीठा बोर।
कोई व्यक्ति जबान से कटु पर दिल का उदार हो तो यह कहावत कही जाती है।
Bhai ji,
ReplyDeleteSh Satynaryan Soni
Sh Vinod sawmi
Ram-Ram sa,
Aaj Dr.Rajander Bareth.ro lekh vancchiyo.Pakistan mai Rajasthani.or Rajasthani ra likhar ro Nam vanchiyo.
Rajasthani or mahari mayer Bhasha itee mithi hai Aa to aapni mithas re karn purye visev mai ho jasi.
Rajasthan re sare lagta jita bhi govn hai sara mai mayer bhasha hi boli javye hai.lakin seema re sara jika govn hai bethye pedya -likh kam hi hai E karn mayer bhasha ra LIKHRA Pakistna mai thora kam hi hai.lakin mayer bhasha boli ghani hi payer su hai.
Rajasthani Bhasha pure visev mai boli javye hai.
NARESH MEHAN
9414329505
म्हारा खासा दोस्त पाकिस्तानी है. सबसूं पैली म्हारी दोस्ती सुकुर रै एक मेघवाळ दोस्त सूं व्ही अर आज म्हारै दोस्तां री लिस्ट मांय थारपारकर सूं लेय’र कराची तांई रा सोढा अर राठोड़ राजपुत है. म्हां सगळा गुगल टोक मांय घणी वार बात-चीत करां हां. अर एक दुजा नै ओनलाईन भजन सुणावां हां, कदै गोगोजी, पाबुजी राठोड़ रा भजन अपलोड करण री फरीयाद ई करै है.
ReplyDeleteआपणा भजन-संगीत सगळा पाकिस्तान मांय घणा चावा है अर खासी मांग राखै है, भासा नै मानता नीं मिलण सूं बोलण मांय घणी वार एकरुपता रौ अभाव आवै पण कोसिश कर नै एक-दूजा नै समझण री कोशिश करां हां.
पाकिस्तान मांय राजस्थांनी नै फारसी लिपी मांय लिखै, राजस्थांन मांय देवनागरी अर गुजरात रै कुछेक हिस्सा मांय गुजराती लिपी मांय ईं लिखीजै है.
भासा नै मान्यता नीं हुवण सूं आपां आपणी गणीत भुल चुक्या, आपणी मुळ लिपी महाजनी, मुड़िया अर मुड़ी लिपी ई दुर जाती रह्यी है,
हाल ईं मान्यता नीं मिळी तौ घणौ मोड़ौ हु जासी, भीख नहिं इब तौ हक री लड़ाई लड़णी पड़सी भारत सामी.
सोनी जी, एक अरज है, आप अठै लिख्यौड़ै कोई बात रौ जवाब तौ भेजता कोनीं :
ReplyDeleteइयूं हू सकै कै पाकिस्तान मांय लिख्यौड़ा राजस्थांनी लेख अर कवितावां रा नै देवनागरी मांय इण ब्लोग पर राख सकौ हौ कांई ?
दूझी बात, आप म्हनै अगर राजस्थांनी लिपी (देवनागरी) रै साथै साथै राजस्थांनी अंक (१,२,३...) भेज सकौ हौ ?
क्य़ूं कै राजस्थांनी मांय आपां मराठी री गिणती वापरां हां, दूजौ आपा ए नै ऎ लिखौ हौ, म्हारी एक कंपनी रै साथै बात हुयी है वै आपांनै युनीकोड में राजस्थांनी फोंट बणा’र देवैला.
बाकी अगर आप रै कन्नै महाजनी, मुड़िया अर कोई दूजी जुनी राजस्थांनी लिपी हुवै तौ वा ई भेजण री किरपा करजो सा
@राजपुरोहितजी - मुझे आपको यह बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मोडी/मुडिया/वाणीयावटी लिपी का युनिकोड फाँट तयार हो चुका है । अब यह केवल युनिकोड काँसोर्शीयम की मान्यता मिलने की प्रतिक्षा में है । यह अब एक महिने के भितर हो जाएगा । इसके पश्चात राजस्थानी और मराठी बडे हर्षोल्ल्हास से और अभिमान से इंटरनेट पर इसका उपयोग कर सकते हैं । अपितु, मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि कितने ऐसे जानकार है जो मुडिया लिपी जानते है, लिख सखते हैं और पढ भी सकते ताकि जब हम मोडी युनिकोड सबको उपलब्ध करायेंगे तो इसका लाभ राजस्थानी भी उठायें ।
ReplyDeleteअब तक हमने ३ मोडी लिपी के फाँट बनाएं हैं जिसका उपयोग कम्प्युटर पर लोग कर रहे हैं । इन ३ फाँट के नाम Hemadree, ModiGhate और Khilari 2 है और यह इंटरनेट पर डाऊंलोड के लिए उपलब्ध है । Hemadree औरे Khilari 2 फाँट यह TTF (true type fonts) और ModiGhate यह OTF (open type font) है ।
मै मोडी लिपी विशेषज्ञ हूँ और जो भी मोडी लिपी सिखना चाहे उनकी मैं सहायता कर सकता हूँ । वर्तमान समय महाराष्ट्र में लगभग १०,००० मोडी लिपी जानकार है । युनिकोड फाँट के आने से यह संख्या तेजी से बढ जायेगी । इसी प्रकार राजस्थानी के लिए भी ज्यादा से ज्यादा लोगोंने इस में रूचि दिखा कर शिघ्रही सिख लेना चाहिए । यदि सिखेंगे नहीं तो वह करोडो दस्तावेज जिनमें अब भी राजस्थान का वह अप्रकाशित इतिहास छिपा है वह बाहर आयेगा कैसे ? मैंने इंटरनेट पर कई जगह पर पढा है - "राजस्थानी 12 करोड़ राजस्थानियां री मायड़ भाषा है, अर राजस्थानी री लिपि मुडिया है । इणमें लिख्या थकां लाखो हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहालयां में पडया है ।" तो यह पढेगा कौन और कब ?
राजस्थान से निरंतर दस्तावेज मुंबई, पुणे, नाशिक में आते हैं लिप्यंतर कराने के लिए । इन्हें राजस्थान में ही क्यों नहीं किया जा सकता ? इसीलिए, अब केवल इन्टर्नेट पर खेद प्रकट न कर के अधिकाधिक लोग आगे आ कर इसे सिखें ।
राजेशजी, इस खुशखबरी के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद. मैं हमेशा से देवनागरी की जगह हमारी मुल लीपी को पुन: जिवीत करने के पक्ष में रहा हूं. आपके द्वारा बतायीगयी लिपीयों मे ”हेमाद्री” को मैं तकरिबन ४ सालों से उपयोग में ले रहा हूं. पहले पहले मैने कुछ कागजातों में इसे उप्योग मे लिया परंतु कोई समझ नहीं पा रहा था इसके कारण आगे मैने बंद कर दिया.
ReplyDeleteमेरी फेसबुक से एक लिंक दे रहा हुं. सायद आपही कि बेबसाईट का पेज है :
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=182186015158840&set=a.158388687538573.32218.100001023292439&type=1
मैने इंटर्नेट पर मोडी को तो देखा परंतु जब मोडी - मुडिया और महाजनी को आपस में कंपेयर करने लगा तो मुझे एसा प्रतीत हुया तीनो अलग लिपीयां है. मोडी और महाजनी तो पल्ले नहिम पड़ी परंतु उस वेबसाईट के कारण मोड़ी काफी समझ मे आयी. आशा करता हूं आप मेरे इस डाउट को क्लियर करने कि कोशिश करेंगे कि मोडी और मुडीया अलग है या एक और क्या महाजनी भी मुडिया से अलग है ?
गुजराती महाजनी से बनी और पंजाबी कि गुरुमुखी भी. गुजराती मे और राजस्थानी मे ”अ” पर मात्रा लगाने से ”ए” बनता है परंतु मराठी में एसा नहीं है. बाकी मराठी और राजस्थानी के अंको ”१,२,३” में भी काफी फर्क है... मराठी का ९ और ८ राजस्थानी मे अलग होते है.