ऊंट और भैंस से पूछना चाहता था-
क्या तुम भी कहानी-कविता लिखते हो?
क्या तुम भी कहानी-कविता लिखते हो?
अचानक ही परलीका जाने का कार्यक्रम बन गया। कुछ घंटे वहां बिताए तो लगा कि राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का यह छोटा-सा गांव महाराष्ट्र की साहित्य राजधानी पुणे की तरह ही है। जिससे भी सोनी जी, विनोद जी ने मिलवाया वह किसी न किसी बहाने राजस्थानी साहित्य की सेवा में जुटा हुआ था। मायड़ भाषा आंदोलन से जु़डे नरम या गरम दल के नेता हों या कार्यकर्ता, परलीका तो उनके लिए उसी तरह पुण्य भूमि है जैसे कुछ किलोमीटर दूर गोगामे़डी स्थान जहां विभिन्न जाति-धर्म, समाज के लाखों श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने की इच्छा लेकर प्रतिवर्ष आते हैं। पता नहीं लोक देवताओं के चमत्कार वाले इस प्रदेश के लोगों की राजस्थानी भाषा को मान्यता वाली मन्नत कब पूरी होगी। मैं गया तो था परलीका में अपने लोगों से मिलने, लेकिन जैसे गाय का पोटा जमीन से धूलकण लेकर ही उठता है, वैसे ही मैं इस यात्रा को शब्द चित्र के रूप में लिखने का मोह नहीं छोड़ पाया।
परलीका में विनोद स्वामी के घर की ओर जाने वाले कच्चे मार्ग की दाँई तरफ मैदान में पे़ड के नीचे तीन-चार भैंसे बैठी थीं और उनके समीप पेड़ से बंधा ऊंट अपना मुंह ऊंचा उठाए जुगाली इस तरह कर रहा था मानो श्रोताओं को रचना सुना रहा हो।
राजस्थानी भाषा आंदोलन में परलीका वाया गोगामड़ी, गांव का स्थान ठीक वैसा ही कहा जा सकता है जैसे अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का वह गांव-घर जहां आजादी आंदोलन के काकोरी कांड की साजिश रची गई थीं। भाषा आंदोलन के लिए इस गांव के लोगों में जो लगन नजर आती है वही इस गांव के हर घर में एक साहित्यकार होने जैसी स्थिति का कारण भी है।
भादरा से नोहर के लिए जाते वक्त मैंने परलीका रुकने और मायड भाषा आंदोलन के साथियों से मेल मुलाकात का शायद सही निर्णय ही लिया। सत्यनारायण सोनी का मकान हो या विनोद स्वामी का, दोनों जगह एक बात समान थी बस अंतर था तो इतना कि विनोद के यहां तीनों अमर शहीद के फोटो थे तो सोनी जी के यहा एक। इन घरों में लगे नेताजी सुभाष, भगतसिंह और चंद्रशेखर के चित्र यह भी संदेश देते हैं कि देश को आजाद कराने का जो जज्बा इन शहीदों में रहा वहीं जुनून परलीका के लोगों में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए भी है। वैसे तो मायड़ भाषा आंदोलन पूरे प्रदेश में चल रहा है लेकिन पुण्य की जड़ पाताल में होने की तरह इस आंदोलन की जड़ तलाशी जाए तो परलीका के इन्हीं घरों में मिलेगी।
यहां के घरों में विनोद की बू़ढी मां हो या उनके शिक्षक हेतराम खीचड़, चर्चा भी करेंगे तो चुनाव, सोनिया, आडवानी, मनमोहन की नहीं भाषा कहावतों और लोकगीतों की। सोनी जी जब कहते हैं कि आपणी भाषा कॉलम के लिए हमें तो गांव के ये बड़े-बुजुर्ग ही रॉ मटेरियल उपलब्ध कराते हैं, तो एक पल के लिए अचरज होता है। इस अचरज के समाधान में विनोद राधा-कृष्ण के हास-परिहास के उस लोकगीत का (हिंदी में अर्थ समझाते हुए) गायन करते हैं। जिसे माताजी ने सुनाया और सोनी जी ने लिपिबद्ध किया। गीत का भाव है कि कृष्ण जी को पंखा झलते-झलते अचानक राधाजी के हाथ से पंखा गिर जाता है। परिहास करते हुए कृष्ण कहते हैं राधा तुम्हें नींद का झोंका आ गया था या मेरे श्याम रंग की अपेक्षा शिशुपाल के गोरे रंग की याद आ गई थी।
जवाब में राधा कहती है नहीं श्री कृष्ण तुम्हारे अलावा मुझे और किसी का ध्यान कैसे आएगा। वैसे भी तुम तो मेरे माथे का मोड़ (मुकुट) हो और वो शिशुपाल तो मेरे पैरों की जूती के समान है। गीत में श्री कृष्ण फिर चुटकी लेते हुए कहते हैं राधा वो मोड़ वाला साज शृंगार तो छठे-चौमासे, वार-त्यौहार ही किया जाता है। जूती तो रोज साथ रहती है पैरों में।
कृष्ण के इस व्यंग्य से लजाई-सकुचाई राधा अपनी सखी-सहेलियों को सुनाते हुए सीख भी देती है इन पुरुषों की कंटीली बातों का कोई भरोसा नहीं। मेरी तरह तुम कोई ऐसी गलती मत कर बैठना, जो बोलो, सोच-समझ कर ही बोलना।
विनोद का गीत खत्म होता है और सोनी जी कहते हैं ये गीत मासी जी (विनोद की मां) ने हमें सुनाया, कितनी अनूठी बात और राधा-कृष्ण के बीच का कितना मधुर हास-परिहास है। हमारी चर्चा चलती रहती है। इस बीच गांव के लोग आते-जाते रहते हैं। सतपाल नामक युवक से सोनी जी परिचय कराते हैं, यह शोध कर रहा है कहानियों पर। युवक संदीप राजस्थानी आंदोलन में अग्रणी है। समीप बैठे बुजुर्ग शिक्षक खीचड़ जी से विनोद परिचय कराते हैं पांचवीं में था मैं, गुरु जी ने मार-मार कर मुझसे पहली बार स्कूल में सभी के बीच गीत गवाया। आज कविता पढ़ने-लिखने और मंचों पर गाने में जो अवसर मिल रहे हैं, वह सब गुरुजी के उस प्यार और मार का ही फल है। कमर दर्द से परेशान रहने वाले विनोद की मजबूरी है, ज्यादा देर बैठ नहीं सकते लेकिन जैसे ही मायड़ भाषा की बात, कविता की चर्चा शुरु होती है, चारपाई पर फिर उठकर बैठ जाते हैं। 'आंगन देहरी और दीवार' किताब के कुछ पन्ने पलटते हैं और छोटी-छोटी कविताएं भी सुनाते हैं। ये किताब मुझे भेंट करते हैं, सोनी जी भी लादू दादा के पेड़ प्रेम वाली पुस्तिका, बालगीत और करणीदान बारहठ की किताब सहित किसान जी की चर्चित किताब 'हिवड़ै उपजी पीड़' की फोटो प्रति भेंट करते हैं।
कस्सी और कलम दोनों एक साथ चलाने वाले रामस्वरूप किसान परलीका के उस बू़ढे बरगद की तरह हैं, जिसकी जटा सोनी जी, स्वामी जी जैसे लेखकों के रूप में परलीका में अब बरगद बनती जा रही हैं। बाबा नागार्जुन, मुक्तिबोध को पढ़ने, उनका लिखा समझ पाने जितनी अकल तो मुझमें नहीं है, लेकिन रामस्वरूप किसान जी के साथ बैठकर उनकी बातों को सुनकर लगता है कि नागार्जुन, मुक्तिबोध का लेखन क्या है। जल, जंगल, जमीन की बात तो काफी हाउस में बैठकर भी की जा सकती है, लेकिन आप जब परलीका में इन लोगों के साथ बैठें तो लगेगा सर्वहारा का दर्द जानने-समझने और उसे व्यक्त करने वाले असली लोग तो यहां हैं।
विनोद के काव्य पाठ के बाद सोनी जी का आग्रह था कि आइए कुछ देर किसान जी के खेत पर हो आएं। मैंने कहा कोई भरोसा नहीं किसान जी के बैल थककर सुस्ता रहे हों और किसान जी हमें बैलों की जगह जोत दें, फिर कभी चलेंगे।
परलीका हमारे शेड्यूल में नहीं था। भादरा से सीधे हमें नोहर जाना था, लेकिन भादरा से गोगामे़डी में दर्शन पश्चात अरविंद मिश्रा (एसएमडी मैनेजर, दैनिक भास्कर) से अनुरोध किया था मिश्रा जी परलीका में 'आपणी भाषा' कॉलम के एसएन सोनी, विनोद स्वामी से मिलते चलेंगे। मिश्रा जी तैयार हो गए तो मैंने सोनी जी को एसएमएस कर दिया। उधर से उनका आग्रह भरा एसएमएस आया कि भोजन यहीं करना होगा। अब फिर मिश्राजी को सारी स्थिति बताई। उन्होंने कहा सर बाकी तो सभी जगह शिकवा-शिकायत सुनना-सुनाना है। चलें सर हमें भी अच्छा लगेगा। अब मैंने सोनी जी को एसएमएस किया, हम तीन लोग हैं, खाने में मूंग की दाल, रोटी और मिठाई में सीरा (हलुवा) खाएंगे।
खाना खाते वक्त मैंने सोनी जी से मजाक में कहा ऐसे मेहमान भी आपने कम ही देंखे होंगे, जो खाने का मेनू भी बताएं कि हम यह खाएंगे। सोनी जी ने विनम्रता से कहा यही तो अपनापन है। ऐसे ही ओंकारसिंह जी लखावत भी हैं। गोगामे़डी आ रहे थे, मुझे वहां आने का प्रयोजन बताया, साथ ही निर्देश दिए, खाना आपके घर ही खाऊंगा, मूंग की दाल-रोटी बनवाना।
हम लोग खाना खाने बैठे। मेरे साथ किसान जी, मिश्रा जी के साथ सोनी जी, कमर दर्द का इलाज करा रहे विनोद परहेज के कारण खाने तो नहीं बैठे, लेकिन यह ध्यान जरूर रख रहे थे किसकी थाली में रोटी नहीं है, दाल किसे चाहिए और फोगले वाले रायते की मनुहार भी करते जा रहे थे। राजस्थानी भोजन परंपरा के बारे में बता रहे थे जब सगे-संबंधी एक साथ खाने बैठते हैं, तब पहला कोर दोनों एक-दूसरे को खिलाते हैं। अरविंद मिश्रा ने कहा आप पहले बताते तो हम भी ऐसा कर लेते। मैंने मिश्राजी से कहा कोई बात नहीं वैसा न भी कर पाए तो क्या, हम एक ही थाली में एक साथ खाना खा तो रहे हैं।
सोनी जी के परिवार के बाकी सदस्य हलवा, सलाद, तली मिर्च, रोटी लाने में लगे हुए थे, इस सब के साथ आत्मीयता तो पानी के जग की तरह लबालब थी ही। खाने के बाद मैंने चाहा कि इस ऐतिहासिक अवसर की यादें सहेज लूं। मोबाइल का एक अच्छा सुख यह भी है कि कैमरे की कमी नहीं खटकती।
ख्याली सहारण के गांव में हुए कवि सम्मेलन में बउवा बाढ़ पुरस्कार से सम्मानित प्रमोद (सोनी जी के छोटे पुत्र) को मोबाइल थमाया तो उसके चेहरे पर हल्की सी झिझक देखी फोटो कैसे खींचू? उसे फंक्शन की जानकारी समझाने की देरी थी की धड़ाधड़ फोटो खींचने लगा, कुछ फोटो विनोद जी ने भी लिए। राजस्थानी भाषा आंदोलन की गतिविधियों, आपणी भाषा संबंधी मैटर के साथ ही सोनी जी की कहानियों की पहली इंटरनेट बुक जारी करने वाले उनके बड़े पुत्र अजय ने इसी बीच मोबाइल के माइक्रो कार्ड को लेकर वो सारे फोटो अपने कंप्यूटर में डाउनलोड कर लिए। इक्कीसवीं सदी की ये अच्छाइयां परलीका जैसे छोटे से गांव में भी देखने को मिली।
घरेलु आत्मीय वातावरण में भोजन करके हम बाहर निकले, इरादा तो नोहर की ओर रवाना होने का ही था, लेकिन विनोद स्वामी ने आग्रह कर लिया थोड़ी देर मेरे यहां रुकें, चाय पीकर जाएं। मैंने फिर मिश्रा जी की तरफ देखा इतनी देर में मिश्रा जी भी बनारस, महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, बनारस की संकरी गलियों, विद्या निवास मिश्र जी सहित वहां के साहित्यिक वातावरण वाले अन्य प्रसंगों के कारण हमारी मंडली के ही सदस्य हो गए थे, लिहाजा विनोद जी के यहां चाय पीने पर सहमति हो गई। इसी बीच सोनी जी ने अपने पिता जी से परिचय करवाया। सुनारी कार्य में माहिर पिता जी ने ओलम्बा दिया, कभी हमारा नाम भी आपके अखबार में छापें। सोनी जी ने उम्र बताई की 75 से अधिक के हो गए हैं, लेकिन अपने काम में मुस्तैद हैं। मैंने सोनी जी को सुझाव दिया कि आप इन सहित परलीका के बुजुर्गों के फोटो और संस्मरण 'हमारे बुजुर्ग' कॉलम के लिए भिजवाएं।
रास्ते में विनोद जी और सोनी जी हमारे पद-कद के संदर्भ में कहते चल रहे थे। परलीका में आप लोगों का आगमन हमारे लिए बड़ी बात है। उनके इस कथन में बनावटीपन जरा भी नहीं था, क्योंकि रास्ते में चाहे उनका डाक्टर भतीजा(श्रवण) मिला या कोई और उन सभी से इसी तरह परिचय भी कराते चल रहे थे।
विनोद जी के साथ मैं आगे चल रहा था, पीछे किसान जी कहते चले आ रहे थे, बहुत बड़ी बात है कि भास्कर के संपादक आए हैं। विनोद बड़ी सहजता से कह रहे थे, इससे पहले जब मेरा दोस्त कार लेकर गांव आता था तब मैं उसके साथ आगे की सीट पर आधी कोहनी बाहर निकालकर गांव का चक्कर जरूर लगाता था और जिन लोगों का ध्यान मेरी तरफ नहीं होता, उन्हें भी नाम पुकार कर जोर से राम-राम करता था। ताकि उन्हें बता सकूं देख लो आज मैं कार में बैठा हूं। आज मुझे उससे ज्यादा खुशी हो रही है। पीछे सोनी जी-किसान जी इसी तरह की बातों से हमारे आगमन की सार्थकता बताने का प्रयास कर रहे थे। मुझे मन ही मन ख्याल आ रहा था कि बड़े लोग कितने विनम्र और सहज होते हैं। ताज्जुब हो रहा था किसान जी जैसे कबीर श्रेणी के कवि-लेखक पर कि ये आदमी खेत में हल चलाते हुए लिखता है, चलते-चलते लिखता है और इनके पिता 72 वर्ष की उम्र में लिखना शुरू करते और 75 वर्ष में ढाई हजार दोहे लिख चुके हैं और पंजाबी में भी लिखते हैं। सोनी जी और विनोद को मैंने सलाह दी है कि उन पर संडे स्टोरी बना कर भेजे।
विनोद के घर की ओर बढ़ते हुए मेरी नजर दांई तरफ पे़ड के नीचे बैठी भैंसों और उनके समीप जुगाली करते ऊंट की तरफ पड़ती है दूसरे ही पल ख्याल आता है जैसे यह ऊंट इस श्रोता समूह को अपनी रचना सुना रहा है और सोनी जी बस परिचय कराने ही वाले हैं कि इस गांव के ऊंट-भैंस भी साहित्यकर्म से जु़डे हैं।
बाहर हम कुछ दूर आ गए थे मैंने सोनी जी से कहा अरे अच्छे भोजन के लिए धन्यवाद देना तो भूल गए। सोनी जी ने कहा आप इन सब बातों का बड़ा ख्याल रखते हैं। मैंने भाभीजी से कहा मैं आपके अच्छे भोजन के लिए धन्यवाद देना जरूरी समझता हूं। अगली बार कभी आना हो और सोनी जी भोजन का आग्रह कर लें तो मुझे भूखा न लौटना पड़े।
गांव वाले जनभागीदारी और कारसेवा की ठान ले तो कीचड़-गंदगी के इन बारहमासी दृश्यों से राहत मिल सकती है। गांव के लोग 'नया दौर' जैसा कुछ करें तो खुदाई से नालियां गहरी की जा सकती हैं। उन पर लोहे की जालियां या फर्शियां लगाई जा सकती हैं। इस चेतना के लिए यहां के साहित्यकारों का तो असर इसलिए नहीं होगा, क्योंकि गांव में कोई घर ऐसा नहीं जहां लिखने-पढ़ने वाले न हों। अच्छा भी है खूबसूरत चांद को भी तो दाग साथ में दिए हैं, राजस्थान के ऐसे चिंतनशील गांव में ऐसा न हो तो दिया तले अंधेरा वाली कहावत कौन याद रखेगा।
परलीका में विनोद स्वामी के घर की ओर जाने वाले कच्चे मार्ग की दाँई तरफ मैदान में पे़ड के नीचे तीन-चार भैंसे बैठी थीं और उनके समीप पेड़ से बंधा ऊंट अपना मुंह ऊंचा उठाए जुगाली इस तरह कर रहा था मानो श्रोताओं को रचना सुना रहा हो।
राजस्थानी भाषा आंदोलन में परलीका वाया गोगामड़ी, गांव का स्थान ठीक वैसा ही कहा जा सकता है जैसे अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का वह गांव-घर जहां आजादी आंदोलन के काकोरी कांड की साजिश रची गई थीं। भाषा आंदोलन के लिए इस गांव के लोगों में जो लगन नजर आती है वही इस गांव के हर घर में एक साहित्यकार होने जैसी स्थिति का कारण भी है।
भादरा से नोहर के लिए जाते वक्त मैंने परलीका रुकने और मायड भाषा आंदोलन के साथियों से मेल मुलाकात का शायद सही निर्णय ही लिया। सत्यनारायण सोनी का मकान हो या विनोद स्वामी का, दोनों जगह एक बात समान थी बस अंतर था तो इतना कि विनोद के यहां तीनों अमर शहीद के फोटो थे तो सोनी जी के यहा एक। इन घरों में लगे नेताजी सुभाष, भगतसिंह और चंद्रशेखर के चित्र यह भी संदेश देते हैं कि देश को आजाद कराने का जो जज्बा इन शहीदों में रहा वहीं जुनून परलीका के लोगों में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए भी है। वैसे तो मायड़ भाषा आंदोलन पूरे प्रदेश में चल रहा है लेकिन पुण्य की जड़ पाताल में होने की तरह इस आंदोलन की जड़ तलाशी जाए तो परलीका के इन्हीं घरों में मिलेगी।
यहां के घरों में विनोद की बू़ढी मां हो या उनके शिक्षक हेतराम खीचड़, चर्चा भी करेंगे तो चुनाव, सोनिया, आडवानी, मनमोहन की नहीं भाषा कहावतों और लोकगीतों की। सोनी जी जब कहते हैं कि आपणी भाषा कॉलम के लिए हमें तो गांव के ये बड़े-बुजुर्ग ही रॉ मटेरियल उपलब्ध कराते हैं, तो एक पल के लिए अचरज होता है। इस अचरज के समाधान में विनोद राधा-कृष्ण के हास-परिहास के उस लोकगीत का (हिंदी में अर्थ समझाते हुए) गायन करते हैं। जिसे माताजी ने सुनाया और सोनी जी ने लिपिबद्ध किया। गीत का भाव है कि कृष्ण जी को पंखा झलते-झलते अचानक राधाजी के हाथ से पंखा गिर जाता है। परिहास करते हुए कृष्ण कहते हैं राधा तुम्हें नींद का झोंका आ गया था या मेरे श्याम रंग की अपेक्षा शिशुपाल के गोरे रंग की याद आ गई थी।
जवाब में राधा कहती है नहीं श्री कृष्ण तुम्हारे अलावा मुझे और किसी का ध्यान कैसे आएगा। वैसे भी तुम तो मेरे माथे का मोड़ (मुकुट) हो और वो शिशुपाल तो मेरे पैरों की जूती के समान है। गीत में श्री कृष्ण फिर चुटकी लेते हुए कहते हैं राधा वो मोड़ वाला साज शृंगार तो छठे-चौमासे, वार-त्यौहार ही किया जाता है। जूती तो रोज साथ रहती है पैरों में।
कृष्ण के इस व्यंग्य से लजाई-सकुचाई राधा अपनी सखी-सहेलियों को सुनाते हुए सीख भी देती है इन पुरुषों की कंटीली बातों का कोई भरोसा नहीं। मेरी तरह तुम कोई ऐसी गलती मत कर बैठना, जो बोलो, सोच-समझ कर ही बोलना।
विनोद का गीत खत्म होता है और सोनी जी कहते हैं ये गीत मासी जी (विनोद की मां) ने हमें सुनाया, कितनी अनूठी बात और राधा-कृष्ण के बीच का कितना मधुर हास-परिहास है। हमारी चर्चा चलती रहती है। इस बीच गांव के लोग आते-जाते रहते हैं। सतपाल नामक युवक से सोनी जी परिचय कराते हैं, यह शोध कर रहा है कहानियों पर। युवक संदीप राजस्थानी आंदोलन में अग्रणी है। समीप बैठे बुजुर्ग शिक्षक खीचड़ जी से विनोद परिचय कराते हैं पांचवीं में था मैं, गुरु जी ने मार-मार कर मुझसे पहली बार स्कूल में सभी के बीच गीत गवाया। आज कविता पढ़ने-लिखने और मंचों पर गाने में जो अवसर मिल रहे हैं, वह सब गुरुजी के उस प्यार और मार का ही फल है। कमर दर्द से परेशान रहने वाले विनोद की मजबूरी है, ज्यादा देर बैठ नहीं सकते लेकिन जैसे ही मायड़ भाषा की बात, कविता की चर्चा शुरु होती है, चारपाई पर फिर उठकर बैठ जाते हैं। 'आंगन देहरी और दीवार' किताब के कुछ पन्ने पलटते हैं और छोटी-छोटी कविताएं भी सुनाते हैं। ये किताब मुझे भेंट करते हैं, सोनी जी भी लादू दादा के पेड़ प्रेम वाली पुस्तिका, बालगीत और करणीदान बारहठ की किताब सहित किसान जी की चर्चित किताब 'हिवड़ै उपजी पीड़' की फोटो प्रति भेंट करते हैं।
कस्सी और कलम दोनों एक साथ चलाने वाले रामस्वरूप किसान परलीका के उस बू़ढे बरगद की तरह हैं, जिसकी जटा सोनी जी, स्वामी जी जैसे लेखकों के रूप में परलीका में अब बरगद बनती जा रही हैं। बाबा नागार्जुन, मुक्तिबोध को पढ़ने, उनका लिखा समझ पाने जितनी अकल तो मुझमें नहीं है, लेकिन रामस्वरूप किसान जी के साथ बैठकर उनकी बातों को सुनकर लगता है कि नागार्जुन, मुक्तिबोध का लेखन क्या है। जल, जंगल, जमीन की बात तो काफी हाउस में बैठकर भी की जा सकती है, लेकिन आप जब परलीका में इन लोगों के साथ बैठें तो लगेगा सर्वहारा का दर्द जानने-समझने और उसे व्यक्त करने वाले असली लोग तो यहां हैं।
विनोद के काव्य पाठ के बाद सोनी जी का आग्रह था कि आइए कुछ देर किसान जी के खेत पर हो आएं। मैंने कहा कोई भरोसा नहीं किसान जी के बैल थककर सुस्ता रहे हों और किसान जी हमें बैलों की जगह जोत दें, फिर कभी चलेंगे।
परलीका हमारे शेड्यूल में नहीं था। भादरा से सीधे हमें नोहर जाना था, लेकिन भादरा से गोगामे़डी में दर्शन पश्चात अरविंद मिश्रा (एसएमडी मैनेजर, दैनिक भास्कर) से अनुरोध किया था मिश्रा जी परलीका में 'आपणी भाषा' कॉलम के एसएन सोनी, विनोद स्वामी से मिलते चलेंगे। मिश्रा जी तैयार हो गए तो मैंने सोनी जी को एसएमएस कर दिया। उधर से उनका आग्रह भरा एसएमएस आया कि भोजन यहीं करना होगा। अब फिर मिश्राजी को सारी स्थिति बताई। उन्होंने कहा सर बाकी तो सभी जगह शिकवा-शिकायत सुनना-सुनाना है। चलें सर हमें भी अच्छा लगेगा। अब मैंने सोनी जी को एसएमएस किया, हम तीन लोग हैं, खाने में मूंग की दाल, रोटी और मिठाई में सीरा (हलुवा) खाएंगे।
खाना खाते वक्त मैंने सोनी जी से मजाक में कहा ऐसे मेहमान भी आपने कम ही देंखे होंगे, जो खाने का मेनू भी बताएं कि हम यह खाएंगे। सोनी जी ने विनम्रता से कहा यही तो अपनापन है। ऐसे ही ओंकारसिंह जी लखावत भी हैं। गोगामे़डी आ रहे थे, मुझे वहां आने का प्रयोजन बताया, साथ ही निर्देश दिए, खाना आपके घर ही खाऊंगा, मूंग की दाल-रोटी बनवाना।
हम लोग खाना खाने बैठे। मेरे साथ किसान जी, मिश्रा जी के साथ सोनी जी, कमर दर्द का इलाज करा रहे विनोद परहेज के कारण खाने तो नहीं बैठे, लेकिन यह ध्यान जरूर रख रहे थे किसकी थाली में रोटी नहीं है, दाल किसे चाहिए और फोगले वाले रायते की मनुहार भी करते जा रहे थे। राजस्थानी भोजन परंपरा के बारे में बता रहे थे जब सगे-संबंधी एक साथ खाने बैठते हैं, तब पहला कोर दोनों एक-दूसरे को खिलाते हैं। अरविंद मिश्रा ने कहा आप पहले बताते तो हम भी ऐसा कर लेते। मैंने मिश्राजी से कहा कोई बात नहीं वैसा न भी कर पाए तो क्या, हम एक ही थाली में एक साथ खाना खा तो रहे हैं।
सोनी जी के परिवार के बाकी सदस्य हलवा, सलाद, तली मिर्च, रोटी लाने में लगे हुए थे, इस सब के साथ आत्मीयता तो पानी के जग की तरह लबालब थी ही। खाने के बाद मैंने चाहा कि इस ऐतिहासिक अवसर की यादें सहेज लूं। मोबाइल का एक अच्छा सुख यह भी है कि कैमरे की कमी नहीं खटकती।
ख्याली सहारण के गांव में हुए कवि सम्मेलन में बउवा बाढ़ पुरस्कार से सम्मानित प्रमोद (सोनी जी के छोटे पुत्र) को मोबाइल थमाया तो उसके चेहरे पर हल्की सी झिझक देखी फोटो कैसे खींचू? उसे फंक्शन की जानकारी समझाने की देरी थी की धड़ाधड़ फोटो खींचने लगा, कुछ फोटो विनोद जी ने भी लिए। राजस्थानी भाषा आंदोलन की गतिविधियों, आपणी भाषा संबंधी मैटर के साथ ही सोनी जी की कहानियों की पहली इंटरनेट बुक जारी करने वाले उनके बड़े पुत्र अजय ने इसी बीच मोबाइल के माइक्रो कार्ड को लेकर वो सारे फोटो अपने कंप्यूटर में डाउनलोड कर लिए। इक्कीसवीं सदी की ये अच्छाइयां परलीका जैसे छोटे से गांव में भी देखने को मिली।
घरेलु आत्मीय वातावरण में भोजन करके हम बाहर निकले, इरादा तो नोहर की ओर रवाना होने का ही था, लेकिन विनोद स्वामी ने आग्रह कर लिया थोड़ी देर मेरे यहां रुकें, चाय पीकर जाएं। मैंने फिर मिश्रा जी की तरफ देखा इतनी देर में मिश्रा जी भी बनारस, महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, बनारस की संकरी गलियों, विद्या निवास मिश्र जी सहित वहां के साहित्यिक वातावरण वाले अन्य प्रसंगों के कारण हमारी मंडली के ही सदस्य हो गए थे, लिहाजा विनोद जी के यहां चाय पीने पर सहमति हो गई। इसी बीच सोनी जी ने अपने पिता जी से परिचय करवाया। सुनारी कार्य में माहिर पिता जी ने ओलम्बा दिया, कभी हमारा नाम भी आपके अखबार में छापें। सोनी जी ने उम्र बताई की 75 से अधिक के हो गए हैं, लेकिन अपने काम में मुस्तैद हैं। मैंने सोनी जी को सुझाव दिया कि आप इन सहित परलीका के बुजुर्गों के फोटो और संस्मरण 'हमारे बुजुर्ग' कॉलम के लिए भिजवाएं।
रास्ते में विनोद जी और सोनी जी हमारे पद-कद के संदर्भ में कहते चल रहे थे। परलीका में आप लोगों का आगमन हमारे लिए बड़ी बात है। उनके इस कथन में बनावटीपन जरा भी नहीं था, क्योंकि रास्ते में चाहे उनका डाक्टर भतीजा(श्रवण) मिला या कोई और उन सभी से इसी तरह परिचय भी कराते चल रहे थे।
विनोद जी के साथ मैं आगे चल रहा था, पीछे किसान जी कहते चले आ रहे थे, बहुत बड़ी बात है कि भास्कर के संपादक आए हैं। विनोद बड़ी सहजता से कह रहे थे, इससे पहले जब मेरा दोस्त कार लेकर गांव आता था तब मैं उसके साथ आगे की सीट पर आधी कोहनी बाहर निकालकर गांव का चक्कर जरूर लगाता था और जिन लोगों का ध्यान मेरी तरफ नहीं होता, उन्हें भी नाम पुकार कर जोर से राम-राम करता था। ताकि उन्हें बता सकूं देख लो आज मैं कार में बैठा हूं। आज मुझे उससे ज्यादा खुशी हो रही है। पीछे सोनी जी-किसान जी इसी तरह की बातों से हमारे आगमन की सार्थकता बताने का प्रयास कर रहे थे। मुझे मन ही मन ख्याल आ रहा था कि बड़े लोग कितने विनम्र और सहज होते हैं। ताज्जुब हो रहा था किसान जी जैसे कबीर श्रेणी के कवि-लेखक पर कि ये आदमी खेत में हल चलाते हुए लिखता है, चलते-चलते लिखता है और इनके पिता 72 वर्ष की उम्र में लिखना शुरू करते और 75 वर्ष में ढाई हजार दोहे लिख चुके हैं और पंजाबी में भी लिखते हैं। सोनी जी और विनोद को मैंने सलाह दी है कि उन पर संडे स्टोरी बना कर भेजे।
विनोद के घर की ओर बढ़ते हुए मेरी नजर दांई तरफ पे़ड के नीचे बैठी भैंसों और उनके समीप जुगाली करते ऊंट की तरफ पड़ती है दूसरे ही पल ख्याल आता है जैसे यह ऊंट इस श्रोता समूह को अपनी रचना सुना रहा है और सोनी जी बस परिचय कराने ही वाले हैं कि इस गांव के ऊंट-भैंस भी साहित्यकर्म से जु़डे हैं।
मैं साड़ी को प्रणाम करता हूं
राजस्थान में पर्दा प्रथा का आलम क्या है यह परलीका में भी देखने को मिला। सोनी जी के यहां भोजन पश्चात हम रसोईघर के सामने से गुजर रहे थे कि सोनी जी ने मुझे एक पल के लिए रोक लिया। कक्ष में आवाज लगाई सुनो ये हैं कीर्ति राणा जी। भाभी जी (सावित्री) मु़डी, गेट की तरफ आने लगीं, सोनी जी ने अनुरोध किया घूंघट हटा ले। कक्ष में या बाहर आस-पास अन्य कोई बुजुर्ग भी नहीं था। सोनी जी के अनुरोध के बाद भी उन्होंने घूंघट से ही नमस्कार किया। मैंने सोनी जी से जब कहा- मैंने भी साड़ी को प्रणाम कर लिया है, तो उनका ठहाका गूंज उठा।बाहर हम कुछ दूर आ गए थे मैंने सोनी जी से कहा अरे अच्छे भोजन के लिए धन्यवाद देना तो भूल गए। सोनी जी ने कहा आप इन सब बातों का बड़ा ख्याल रखते हैं। मैंने भाभीजी से कहा मैं आपके अच्छे भोजन के लिए धन्यवाद देना जरूरी समझता हूं। अगली बार कभी आना हो और सोनी जी भोजन का आग्रह कर लें तो मुझे भूखा न लौटना पड़े।
आपने तो खूब नाम कर दिया
विनोद जी के यहां भी यहीं हाल था। भास्कर में छपी खबर के कारण शृंगार सामग्री की दुकान चलाने वाली उनकी पत्नी राज बाला को बस से गिरा दस हजार का सामान मिल गया था। विनोद जी ने उनसे परिचय कराया तो घूंघट के साथ ही उन्होंने प्रणाम किया और बोली भास्कर में छपी खबर से तो मेरा खूब नाम हो गया।साहित्य की गंगा वाले गांव में गटर गंगा
समाज की विसंगतियों पर कलम के जरिए चोट करने की ताकत के मामले में पूरे राजस्थान में परलीका की विशेष पहचान है, लेकिन जब आप परलीका जाएं तो शायद मेरी तरह आप को भी यह बात खटकेगी कि इस गांव में घरों के सामने से गुजरने वाले मार्गों पर बीचो-बीच गंदे पानी की निकासी का इंतजाम है। कच्चा मार्ग तो पक्का बन गया, लेकिन नालियां गहरी नहीं हुई। लिहाजा गंदा पानी घरों के सामने बारहों महीने यहां-वहां फैला रहता है।गांव वाले जनभागीदारी और कारसेवा की ठान ले तो कीचड़-गंदगी के इन बारहमासी दृश्यों से राहत मिल सकती है। गांव के लोग 'नया दौर' जैसा कुछ करें तो खुदाई से नालियां गहरी की जा सकती हैं। उन पर लोहे की जालियां या फर्शियां लगाई जा सकती हैं। इस चेतना के लिए यहां के साहित्यकारों का तो असर इसलिए नहीं होगा, क्योंकि गांव में कोई घर ऐसा नहीं जहां लिखने-पढ़ने वाले न हों। अच्छा भी है खूबसूरत चांद को भी तो दाग साथ में दिए हैं, राजस्थान के ऐसे चिंतनशील गांव में ऐसा न हो तो दिया तले अंधेरा वाली कहावत कौन याद रखेगा।
Hi, it's a very great blog.
ReplyDeleteI could tell how much efforts you've taken on it.
Keep doing!
Ranaji aapri Parlika yatra vritant dekhyo.bhot chokha likho ho the.Ganwa ra to thaat hi nyara hai.Athe ishque pyar ra charcha kam hai,ghoonghat ra jalwa anupam hai!Ratan Jain, PARIHARA-331505
ReplyDeleteRanaji aapri Parlika yatra padhi.Ganwa ra thaat nyara hi hai.yahan ishque pyar ke charche kam hai, ghoonghat ke jalwe anupam hai.Ratan Jain Parihara(churu)
ReplyDeleteराम-राम सा. आपणी भाषा आप लगोलग बांच रैया हो. आप सब गुणी जनां रो प्यार म्हानै दुगुनै उत्साह सूं काम करण रो बळ प्रदान करै. ओ स्तम्भ आज आपरा एक सौ लेख पूरा कर रेयो है. आपसूं अर्ज है कै आप- आपरा बेसी सूं बेसी विचार म्हारे तक पूगता करो. ओ स्तम्भ आपणी मायड़ भाषा राजस्थानी नै साचो मान दिरावन सारू चाल रैयै आन्दोलन रो हिस्सों है. भास्कर अखबार अर खास कर राणा जी रो जितरो प्यार अर आशीर्वाद मिल्यो बो भुलायो नी जाय सकै. मूल रूप सूं मध्यप्रदेश रा वासी अर राजस्थानी सूं इतरो हेत! लखदाद है राणाजी नै.... राजस्थानी साथै मौसी- भानजे रो रिस्तो बतावता बै घणो गुमेज करै...
ReplyDeleteranaji,
ReplyDeletekotish badhai..!
parlika ke gali-kuncho ke rang lekar
chali aapki lekhni gajab kar gai.!!
sach..man pulkit ho utha.
-Rajuram Bijarnia 'Raj'
Loonkaransar
9414449936
हुकम, राष्ट्रकवी कन्हैयालालजी सेठिया रै धरती धोरां री रौ औ हिस्सौ बांचौ :
ReplyDeleteईं सूं नहिं माळवौ न्यारौ,
मोबी हरियाणौ है प्यारौ ... ..
मिळतौ तीन्यां रौ उणीयारौ ....
मतलब ए तीन तौ एक इज भासा ग्रुप वाळा राज्य है सा...
अर वै केवै है:
ईडर पालपुर (गुजरात) है ईं रा,
सागी जामण जाय वीरा,
ऐ तौ टुकड़ा मरू रै जी रा
पालनपुर अर ईडर आपणै राजपुतानै रा अभीन्न अंग हा... मध्यप्रदेश रा ई कुछेक भाग हा... सरदार पटेल अर भारत सरकार री राजस्थांन सूं सैं किं खोसवा री नीती रै कारण राजस्थान सूं ए हिस्सा दुर हुय ग्या.
आ बात तौ जगचावी है कै सरदार पटेल राजस्थांन रै कश्मिर आबू नै गुजरात मांय लेवण री घणी कोशीश करी पण छेल्ले जाता जात अंबाजी ताईं गुजरात मांय ले ग्यौ अर उणरौ देवलोक हुय ग्यौ....
आपां, राजस्थांनी, माळवा, गुजरात, हरियाणा सांस्क्रतिक अर भासा री द्रष्टी सूं एक हौ अर हमेश एक रेवांला.
जै राजस्थांन! जै राजस्थांनी!!
Prem Serdhy,
ReplyDeleteSh Kirti Rana ji,
Nameskar,
Aap ko pdha or dekha dono hi achha lega.Perlika ek govn hi nahi hai.Ek sampurn mayer sankirti or sampurn bhasha hai.yeh ek bhasa ki insitute hai.janha per aap bhasa, sanskirti, prempera ke bhut hi nezdik sai dersen ker sektye hai.Aap sobhageysali hai jo es paviter mitti ka annand le ker aa rehye hai.
Aap ko is paviter vicharo ke liye sadu bad.
NARESH MEHAN
aap ka kalam bahut accha hai...tarun sharma
ReplyDeletesoniji,
ReplyDeleteparlika yatra par eak baithak me eak sath itna likha jana, muje to yah parlika ki mitti, paani, hawa, prem ras aur waha ki sanskriti ka hi chamtkar lagta hai.
fir kabhi parlika yatra ka moka mila to muze lagta hai chowk me jugali karta wah oot aur uske aas-paas baithi bhese muzse isharo-isharo me jaroor kahengi gogamedi se sati yah punybhoomi ka hi pratap hai ki parlika par likhne wale ko bhi khoob maan milta hai.
me aap ke blog ke jariye parlika yatra par tippni karne wale mayad bhasha premiyo ka bhi aabhar vyakta karna chahta hu. rajsthan me nahi raha to bhi muze yah santosh rahega ki satiyo aur veero ke is rangile rajsthan me rahte huye namak ka karz chukane ke kuch to prayas kiye.
..kirti rana
बहुत सुंदर वर्णन किया है, मन को छू लेने वाला ..
ReplyDeleteपृथ्वी, दिल्ली
अपनी यात्रा का ऐसा जीवन्त वर्णन कोई विरला ही लेखक कर पाता है. आपके अभिव्यक्ति कौशल का कायल हुआ मैं.
ReplyDelete-सत्यनारायण सोनी
soniji,
ReplyDeletekoyal ke zund me rahkr kowwa bhi koho-koho karna seekh jata hai.
aap ne tareef ki , baki logo ne bhi sarahna ki un sabi ke prati aabhar.ajay ko kahe wah ise baki blog par bhi dal de, me jara is mamle me 'G'gobar ka hu.
...kirti rana
राणाजी, आपकी परलीका यात्रा का शब्द चित्र काबिले-तारीफ है. हर अनुभव को इतने सात्विक तरीके से जुबान देना हर किसी के वश की बात नहीं. आपने जिस समस्या की ओर इशारा किया है हम परलीका वासी उसे दूर करने का यत्न करेंगे. शुक्रिया.
ReplyDelete-संजू बिरट, परलीका. 9001832259
aachha log aachho blog
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