Tuesday, June 30, 2009

३० लुगायां, लाठी ल्याओ ऐ, गूदड़ै में डोरा घालां

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३०//२००९

लुगायां, लाठी ल्याओ ,

गूदड़ै में डोरा घालां


-ओम पुरोहित कागद

राजस्थानी लोकसाहित्य जग में सिरै। राजस्थानी लोक साहित्य में बात, ओखांणा, कैबतां अनै आड्यां अजब-गजब। साहित्य अजब-गजब तो कथणियां बी अजब-गजब। एड़ा ई अजबधणी हा भूंगर कवि। भूंगर कवि बेमेळा सबदां री भेळप सूं बेअरथी कविता लिखता। ऐ कवितावां आज भी भूंगर रा घेसळा सिरैनांव सूं लोक में भंवै। भूंगर रो जलम कद अर कठै हुयो, इण रो कोई परवाण नीं। कई विद्वान उण नै अमीर खुसरो रै बगत रो बतावै। भूंगर रो ठिकाणो कई लोग बीकानेर डिवीजन रै नोखा या रतनगढ़ नै बतावै तो कई बतावै कै भूंगर नागौर रै साठिका या भदोरै गांव रा हा। खैर कद रा या कठै ई रा हा, पण हा राजस्थान रा ई। बां आपरै घेसळां सूं राजस्थान अर राजस्थानी भाषा रो जस चौगड़दे पुगायो।
अब आप पूछस्यो कै घेसळो कांई हुवै? घेसळो हुवै बोरटी री अणघड़ जाडी अर बांकी-बावळी लकड़ी सूं बणायोड़ो चलताऊ सौटौ जकै सूं खळै में बाजरी रै सिट्टां नै कूट'र दाणा काढ़्या करै। इण नै रेरू, खोटण या घेसळो कैवै। भूंगर रा घेसळा बी इण भांत ई बांका-बावळा अर बेअरथा हुवै। हिन्दी में अमीर खुसरो, घासीराम अर वासूजी ई घेसळां माफक ढकोसळा लिख्या। इण भांत रै बेअरथै छंद नै हिन्दी में ढकोसला, परसोकला या झटूकला कैईज्यौ। आं सगळां में सिरै पण भूंगर रा घेसळा ई थरपीज्या। इणी रै पाण भूंगर नै राजस्थानी लोक साहित्य में बो मुकाम मिल्यो जकौ अमीर खुसरो नै हिन्दी साहित्य में मिल्यो।
भूंगर राजस्थानी भाषा में हंसावणियां अर बेअरथा घेसळा लिखता। आं घेसळां री खास बात आ है कै आं में बेमेळा सबद है अर छेकड़ली तुक नीं मिलै। घेसळा बेतुका होंवता थकां बी रसाल है। भूंगर नै किणी री फटकार ही कै थारी कविता में जकै दिन लारली तुक मिलसी उण दिन थारी मौत हुयसी। मौत तो हरेक नै आवै। भूंगर नै बी आवणी ई ही। पण भूंगर री मौत फटकार नै साची करगी।
एक दिन री बात। भूंगर सांढ माथै गांवतरौ करै हा। गेलै में एक सुन्नो कुओ आयो। कुए मांय कोई कूकै हो। बचाओ-बचाओ। भूंगर कुऐ में देख्यो तो एक माणस टिरै। भूंगर नै दया आयगी। माणस नै काढ़ण री जुगत बैठाई। उण सांढ नै कुओ डकावण सारू तचकाई। सांढ लखायो ही, इण सारू ताती अर बेगवान ही। सांढ एक फाळ में ई कुओ डाकगी। सांढ रै डाकतां थकां भूंगर कुए में टिरतै माणस री टांग पकड़ली। सांढ तो परलै पार पण भूंगर धै कुए में। अब भूंगर बी माणस टांग थाम्योड़ो कुए में टिरै। कवि मन इण विपदा में ई कविता कर दी जको कोठै सूं होटै आयगी- ''डाकणी ही सांढ, डाकगी कुओ। एक तो हो ई, एक और हुओ।'' बीं नै अचाणचक चेतै आई कै आज तो कविता में हुओ री तुक कुओ सूं मिलगी। आज आयगी दिखै मौत। पण उण नै लखायो कै फटकार बेअसर होयगी दिखै। फटकार रो असर होंवतो तो मर नीं जांवतो? बण इणी खुसी में ताळी बजाई कै धर'र'र-धम्म कुए रै पींदै जा पड़्यो। कुए में पड़तां ई भूंगर रो हंसलो उडग्यो। इयां निभी फटकार। भूंगर री लोक सूं विदाई हुई पण उण रो साहित्य आज बी लोक में भंवै। आओ बांचां भूंगर रा कीं घेसळा-
(1)
बरसण लाग्या सरकणा, भीजण लागी भींत।
ऊंठ सरिसा बैयग्या, दाळ रो सुवाद आयो ई कोयनीं।।

(2)
गुवाड़ बिचाळै पींपळी, म्हे जाण्यो बड़बोर
लाफां मार्यो घेसळो, छाछ पड़ी मण च्यार।
लुगायां, कांदा चुगल्यो , चीणां री दाळ-सा।।

(3)
भूंगर चाल्यो सासरै, सागै च्यार जणां।
भली जिमाई लापसी, वा रै कस्सी डंडा।।

(4)
भिड़क भैंस पींपळ चढी, दोय भाजग्या ऊंठ।
गधै मारी लात री, हाथी रा दोय टूक।
लुगायां, लाठी ल्याओ , गूदड़ै में डोरा घालां।।

(5)
चूल्है लारै के पड़्यो, म्हे जाण्यो लड़लूंक।
पूंछ ऊंचो कर'र देखां, तो टाबरां री माय।।

(6)
चरड़-चरड़ फळसो करै, फळसै आगै दो सींग।
आगै जाय'र देखूं तो, कुतड़ी पाल्लो खाय।
चरणद्यो बापड़ी नै, गाय री जाई है।।

(7)
गुवाड़ बिचाळै गोह पड़ी, म्हैं जाण्यो गणगौर।
पूंछड़ो ऊंचो कर'र देखूं तो, दीयाळी रा दिन तीन ही है।।

आज रो औखांणो

मूंड मुंडायां तीन गुण, मिटी टाट री खाज।
बाबा बाज्या जगत में, खांधै मैली लाज।।

Monday, June 22, 2009

२३ - गाज्यो-गाज्यो जेठ-असाढ कंवर तेजा रे!

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
- २३//२००९

गाज्यो-गाज्यो जेठ-असाढ

कंवर तेजा रे!


-रामस्वरूप किसान

तेजोजी राजस्थान रा घणा चावा लोकदेवता। जकां री लोकगाथा एक लाम्बै गीत रै रूप में गाइज्यै। इण गाथा नै 'तेजो' कैइज्यै। तेजो अठै रा हाळी गावै। इण वास्तै गीत खेतीखड़ां अर हाळियां रो बाजै। गाथा मुजब ग्यारवीं सताब्दी में मारवाड़ रै नागाणै देस रै नागौर परगनै खरनाळ गांव में धोळिया जाट वंशज सरदार मोहितराव राज करता। मोहितराव रै बेटै थिरराव रै छठै बेटै रै रूप में संवत 1010 री भादवा सुद दसम नै तेजोजी जलम्या। मोहितराव खुद खरनाळ रा शासक होवता थकां आपरो घरू करसाणी काम खुद करता अनै आपरै बेटा-पोतां सूं करवाता। तेजोजी भी हाळी हा। कर्नल टॉड रै मुजब जाट एक जूझारू कौम है जकै खेती रै साथै-साथै आपरी वीरता रा प्रमाण दिया है। तेजो एक ड़ो चरितर है जको बहादुरी रै कारण मरुभोम रो लोकनायक अर पछै लोकदेवता बणग्यो। वीर, सच्चो, सीधो अर भोळो हुवै। बो चालतो भोभर में पग देद्यै। पराई लाय में कूद पड़ै। सांच नै पार लंघावण सारू उधारी लेयल्यै। सांच रै पाणै में लाठी लेय' कूद पड़ै। अर सुभ काम में बो मौको-बेमौको, नफो-नुकसान, जगां-बेजगां अर वेळा-कुवेळा कोनी देखै। साच री जीत सारू जूझणो वो आपरो धेय मानै। क्यूँकै वीर री फितरत में खुद रो उजाड़' दूजां रो बसावण री खासियत हुवै। कैबा है कै कायरां सूं जुग बसै पण जोधां री तो गाथा चालै। इसो एक जोधो हो तेजो, जको लावण तो गयो आपरी नुंवी-नकोर बीनणी, जकी बरसां सूं उणरी बाट जोवै ही अर बीड़ो चाब बैठ्यो लाछां गूजरी रो। जकी री गायां नै गुवाळियां सूं झांप' धाड़वी ले ज्यांवता। लाछां गळगळी होय' इमदाद मांगी। पछै देर क्यांरी! जोम अर जोस सूं तेजै रा गाबा फाटण लागग्या। गायां री वार चढ्यो। देखतां-देखतां खांडो लेय' धाड़वियां में कूद पड़्यो। सैंकड़ूं डाकुआं रा रुंड-मुंड उडाय' गायां नै आजाद कराई। पण घायल इसो हुयो कै तिंवाळो खाय' जमीं पर पड़ग्यो अर सदां-सदां सारू मरुभोम रै कण-कण में रळग्यो। सुरीली राग बण' हाळियां रै कंठां बसग्यो। जठै बसणो चइयै हो बठै बसग्यो। हां, बहादुरां रा घर तो दो जिग्यां हुवै। का कंठां में, का दिलां में। दूहो है-

बसणो दो'रो है दिलां, बसणो सो'रो चांद।
जे सुख चावै बास में, तो दिलां टापरो बांध।।

लोगां रै दिलां में बसणो सै सूं अबखो काम। पण तेजो बसग्यो। बो जमीं पर घर नीं बसा सक्यो। जमीं पर घर तो कायर बसावै। तेजो आपरी अखन कंवारी अर अबोट बीनणी नै चिता पर बिठाय'र साथै ई लेयग्यो। पण जद जेठ उतरै। असाढ लागै। पैली बिरखा रै साथै ऊंट रै राखड़ी बांध किरसो हळोतियै रो पैलो खूड ल्यावै। तो तेजो आपरी जोड़ायत रो हाथ थाम हवळै-हवळै आभै सूं खेतां में आय ऊतरै। हाळियां रै कंठां सूं राग बण निसरै-

गाज्यो-गाज्यो जेठ-असाढ कंवर तेजा रे!
लागतो ई गाज्यो है सावण-भादवो

धरती रो मंडाण मेह कंवर तेजा रे!

आभै री मांडण चमकै बीजळी

सुतो सुख भर नींद कंवर तेजा रे।

थारो
ड़ा साईनां बीजै बाजरो.....

ओ एक लांबो गीत है जकै में तेजै री छोटै रूप में गाथा है। आ गाथा भोत ई रोमांचक लोक सुर में गाईजी है। बियां ई लोकगीत में भोत ताकत हुवै। लोकगीत धरती रा प्राण हुवै। कुदरत नै देखण री आंख हुवै लोकगीत। प्रकृति जद गीतां में ढळै तो उणरो नुंवै सिरै सूं रचाव हुवै। गीत ई कुदरत में रस भरै। उण नै मीठी बणावै। अर गीत ई उणनै फुटरापो देय'र देखणजोग बणावै। इण अरथ में जद तेजो किरसाणां रै कंठां ढळै तो खेत संगीतमय बणज्यै। रेत रो कण-कण गांवतो-सो लखावै।

आज रो औखांणो

जरणी जणै तो रतन जण, कै दाता कै सूर।
नींतर रहजै बांझड़ी, मती गमाजै नूर।।

Monday, June 1, 2009

२ - मरुधर महिमा मोकळी, वरणन करी न जाय

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-//2009
मरुधर महिमा मोकळी,

वरणन करी जाय


-ओम पुरोहित 'कागद'

राजस्थानी भाषा बातां री धिरयाणी। बातां में बातां। पण बातां में तंत। तंत बी इत्तो कै अंत नीं। बोल्यां मूंडै मिठास। अंगेज्यां उच्छाब। अर बपरायां हिमळास। पण बोलण में सावचेती री दरकार। दुनिया में राजस्थानी ड़ी भाषा जकी में हरेक क्रिया सारू निरवाळा सबद। संज्ञावां रा न्यारा विशेषण। क्रिया अर संज्ञा सबदां री आपरी कांण। कांण राख्यां सरै। नींस अरथ रो अनरथ होय जावै।
राजस्थानी भाषा में फूल नै पुहुप कैइजै। जे आप कैवो कै म्हैं फूल ल्यायो हूं। तो बडेरो मिनख टोकसी कै फूल ल्या बडेरां रा। तो पुहुप का पुस्ब है। पटाखो फूटै नीं, छूटै। बंदूक बी चालै नीं, छूटै। भांडा साफ नीं करीजै, मांजीजै। फूस बुहारीजै अर झाड़ू काढीजै। मोती चमकै नीं, पळकै। ढोल ढमकै। बाजा बाजै। बंदोरो कढै नीं, नीसरै। विदाई नीं, सीख दिरीजै का लिरीजै। नेग दिरीजै-लिरीजै।
जिनावरां री बोली रा बी सबद न्यारा-न्यारा। डेडर डर-डर। चीड़ी चीं-चीं का चींचाट करै। कागलो कांव-कांव। घोड़ो हींसै। गा ढांकै। गोधो दड़ूकै। ऊंठ आरड़ै-गरळावै। भैंस रिड़कै। गधियो भूंकै। कुत्तो भूंसै। सांढ झेरावै। बकरियो बोकै।
जिनावरां रै बच्चियां रा नांव भी निरवाळा। कुत्तै रो कुकरियो, हूचरियो का कूरियो। सांढ रो टोडियो-तोडियो। भैंस रो पाडियो। भेड रो उरणियो। गा रो बछड़ियो, टोगड़ियो, लवारियो, केरड़ो। आं रा स्त्रीलिंग- कूरड़ी-हुचरड़ी, टोडकी-तोडकी, पाडकी, बछड़ती। डांगरां रा नांव ओज्यूं है। गा-बैडकी। भैंस-पाडी, झोटी। सांढ-टोरड़ी। घोड़ी-बछेरी।
पसुवां रै गरभ धारण करण रा बी पाखती नांव। भेड तुईजै। सांढ लखाइजै। गा हरी होवै। धीणै होवै, दूध रळै, नूंई होवै, कामल होवै, साखीजै, गोधै रळाइजै, गोधै भेळी करीजै। भैंस गड़ीजै। पाडो छोडीजै। पाळै आवै। घोड़ी ठाण देवै। आं नै काबू करण रा नांव भी न्यारा-न्यारा तरीका, न्यारा-न्यारा नांव। गा रै नाजणो-न्याणो। भैंस रै पैंखड़ो। घोड़ी रै लंगर। ऊंठ रै नोळ बीडणी। घोड़ी रै नेवर। बळधां रै दावणा देईजै।
राजस्थानी में उच्छबां रा। तीज-तिंवारां रा। मेळां-मगरियां रा। रीत-परम्परा सारू आपरा सबद। बनड़ो गाइजै। जल्लो गाइजै। चंवरी मंडै। हथळेवो जु़डै। घोड़ो घेरीजै। बारणो रोकीजै। सामेळो-समठूणी करीजै। तागा तोड़ीजै। पागा पूजीजै। ढूंढ माथै तेड़ीजै। जच्चा गाइजै। भाषा भाखीजै। कूंत करीजै। झाळ अर तिरवाळा आवै। होळी मंगळाइजै। बीनणी बधारीजै। कूं-कूं चिरचीजै। धोक लगाइजै। पगां पड़ीजै। जात लगाइजै। फेरी देइजै। झड़ूलो उतारीजै। चेजो चिणाइजै। माल-बस्त मोलाइजै। गांवतरो करीजै। खळो काढीजै। रळी आवै। चे़डा आवै। भूत बड़ै। बायरियो बाजै। पून चालै आंधी आवै।
इण बात माथै बांचो धोंकळसिंह चरला रो दूहो-
धन धोरा धन धोळिया, धन मरुधर माय।
मरुधर महिमा मोकळी, वरणन करी जाय।।

आज रो औखांणो

मीठो बोल्यां मन बधै, मोसौ मार्यां बैर।

मीठा बोलने से मन बढ़ता है, ताना मारने से बैर।

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?