Wednesday, April 8, 2009

८ खेजड़लो -कन्हैयालाल सेठिया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- //२००९

कविता
खेजड़लो

-कन्हैयालाल सेठिया

म्हारै मुरधर रो है सांचो,
सुख दुख साथी खेजड़लो।
तिसां मरै पण छयां करै है,
करड़ी छाती खेजड़लो।।


आसोजां रा तप्या तावड़ा,
काचा लोही पिळघळग्या,
पान फूल री बात करां के,
बै तो कद ही जळबळग्या,
सूरज बोल्यो छियां न छोडूं,
पण जबरो है खेजड़लो,
सरणै आय'र छियां पड़ी है,
आप बळै है खेजड़लो।।


सगळा आवै कह कर ज्यावै,
मरु रो खारो पाणी है,
पाणी क्यां रो तो आंसू,
खेजड़लै ही जाणी है,
आंसू पीकर जीणो सीख्यो,
एक जगत में खेजड़लो,
सै मिट ज्यासी अमर रवैलो,
एक बगत में खेजड़लो।।


गांव आंतरै नारा थकग्या,
और सतावै भूख घणी,
गाडी आळो खाथा हांकै,
नारां थां रो मरै धणी,
सिंझ्या पड़गी तारा निकळ्या,
पण है सा'रो खेजड़लो,
'आज्या' दे खोखां रो झालो,
बोल्यो प्यारो खेजड़लो।।


जेठ मास में धरती धोळी,
फूस पानड़ो मिलै नहीं,
भूखां मरता ऊंठ फिरै है,
तकलीफां झिलै नहीं,
इण मौकै भी उण ऊंठां नै,
डील चरावै खेजड़लो,
अंग-अंग में पीड़ भरी पण,
पेट भरावै खेजड़लो।।

म्हारै मुरधर रो है सांचो,
सुख दुख साथी खेजड़लो,
तिसां मरै पण छयां करै है,
करड़ी छाती खेजड़लो।।


('मींझर' कविता संग्रै सूं साभार)

आज रो औखांणो

खोखा व्है तो खावां, गीत व्है तो गावां।

जैसी परिस्थिति हो उसी के अनुसार चलना चाहिए।




3 comments:

  1. कन्हैया लाल जी तो राजस्थान रा सिरमौर कवि है । बांरी कविता मै राजस्थान री माटी री सुगन्ध आवै है । आ कविता पढ़ अर घणो आनन्द आयो । इ रै वास्ते आपरो खूब खूब आभार ।

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  2. Bhai,
    Sh Satyanaryn,Vinod,
    Nameskar.
    Ghani hi payri kavita di hai Sethiya ji ri.Sethiya ji Khejrli mai kyee bar vanch chukyo hu. her bar dubra vachen ro ji kerye hai.Khejri or Ma ri pida ek jisi huvye hai.Mhanye to khejri mahri Ma lagye hai.Aaj thye Ma nai phir jivet ker diyo hai.E Khejri khatir sethiya ji dil su serdhnjali.
    Thanye Aasirbad or gheno saro payer.Dil su.mahri khejri khatir.
    NARESH MEHAN
    09414329505

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  3. कविता पढ़ अर घणो आनन्द आयो

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