Monday, April 13, 2009

१४ रसना रा गुण

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १४//२००९

रसना रा गुण

अन्नाराम सुदामा रो जलम 23 मई, 1923 नै बीकानेर जिलै रै उदरामसर गांव मांय हुयो। राजस्थानी रा लूंठा लिखारा। उपन्यास, कहाणी, जातरा संस्मरण अर निबंध लेखन में सिरै। साहित्य अकादेमी पुरस्कार समेत मोकळा मान-सनमान मिल्या। 'मनवा थारी आदत नै' आपरो भावपूर्ण निबंध-संग्रै। आओ बांचां, इणी पोथी सूं आपरै एक निबंध रो अंस।

-अन्नाराम सुदामा

मिनख नै आपकानी खींचणआळी कीमियां अर काम री कोई चीज है तो खाली एक बोली ही, बाकी दळियै रो भार तो सगळां में एकसो है, कीं में ई पाव जादा अर कीं में ई पाव कम। नाक चावै कींरो ई सुवै री चांच-सो तीखो हुवै, चावै छांणै-सो फीडो, पण सरदी लाग्यां, सींढ सगळां में एकसो ही निकळै। आंख्यां चावै मटकाचर-सी मोटी हुवै कींरी ही, चावै बोरियै री गुठळी-सी गोळ अर छोटी, आछी-भूंडी किसी ही हुवै पण आछी-सी औळाथ री लाग्यां, टोपा अर तिरवाळा सगळां में एकसा आवै। दूखै जद गीड सगळां में एकसो अर चालै जद चैरा अर चभका एकसा, पण ईं जीभ री च्यारांगळ कातर नै देखो थे, जाम जायै रै एकसी, हू सकै बोली में अर्थ एकसो, पण मिठास सगळां में न्यारो-न्यारो, एक रो ही आपस में नहीं रळै, न मोथां रो अर न मोटै मिनखां रो। ओ ही तो ईं रो मजो, अर ओ ही ईं रो चमत्कार।
जीभ- एक नै सुण्यां ही जीसोरो, गुटका इमी रा, सुणनियों सोचै स्वाद ईं रो लेंवतो ही रहूं अर दूसरी इसी, निकळती ही खारी आक, चुभती अर चूंठिया बोढती, डील में टांटिया-सा लड़ै, खीरा ऊछळै अर बाड़ी इसी कै आपस में बटीड़ ऊपड़ता दीसै। भाग रो सुणनियों जे अगलै सूं हुवै जे कीं पोचो तो कानां में दे आंगळ्यां आपरो रस्तो लै, अर जे हुवै अगलै रै माथै बांधणजोगो, लखणां रो लाडो, दो चंदा बीं सूं कीं बेसी, सवायो अर सजोरो, तो पाछो दूसर कुसरो बोलै, बीं सूं पैलां हीं बोलणियैं रै भोड में सुंवै-बिचाळै गोळमटोळ नहीं ताबै आवै तो, लम्बो ही सही, तिलक इसो फूठरो काढै कै बीं सूं कूंकूं री टूंटी झरती ही दीखै, चावळ तो खैर बीं पर कुण चेपै, राख अर तूड़ो भलां ही दाबो, पण अगलो आगै सारू चेतो कांईं राखै, भळै मरै जितै बीं तिलक करणियैं नै न भूलै अर न रेजमाल रगड़्यां ही बीं रै तिलक रो सैनाण मिटै।

किरपारामजी रो सोरठो

उपजावै अनुराग, कोयल मन हरषित करै।
कड़वो लागै काग, रसना रा गुण राजिया।।

आज रो औखांणो

फूटियोड़ो बासण तो आवाज सूं पिछांणीजै।

फूटा बासन तो आवाज से पहिचाना जाता है।

बोलने पर ही भले-बुरे आदमी की पहिचान होती है।

बधाई

आपणी भाषा रो लेख आज भास्कर रै संपादकीय पानै पर

'आपणी भाषा-आपणी बात' स्तम्भ में 13 अप्रेल नै छप्यो रूपसिंह राजपुरी रो लेख आज भास्कर रै संपादकीय पानै पर पूरै प्रदेश में छप्यो है। राजपुरीजी नै बधाई। भास्कर रै संपादकीय पानै पर पैलां भी आपणी भाषा स्तंभ रा कई लेख राजस्थानी में छप्या है। भास्कर रा संपादक श्री कल्पेश याग्निक, जयपुर (9928199000) अर श्री कीर्ति राणा, श्रीगंगानगर (982990299) नै इण अनूठी पहल सारू घणा-घणा रंग। लखदाद भास्कर परिवार नै। आपणो नारो- भास्कर अखबार- आपणो अखबार। आपणै दिलां में बस्यो है, ओ अखबार। संपादकीय पानै पर राजस्थान री मायड़भाषा राजस्थानी में लेख छापण वाळो ओ पैलो अखबार है। कोई शूरवीर ई ऐड़ी पहल कर सकै। दूहो है-
लीक-लीक गाडी चालै, लीकां चलै कपूत।
लीक छोड़ तीन चलै, सायर-सिंघ-सपूत।।
आप भी कागद मांड'र, ईमेल कर'र, फोन कर'र इण अनूठै काम सारू लखदाद कैवो सा! मायड़ नै सांचो मान दिरावण में भास्कर आगीवाण बण्यो है। भास्कर रो मान बधाओ सा!





3 comments:

  1. जै राजस्थानी
    घणा घणा रंग अन्नाराम जी ने
    सन्तोष पारीक

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  2. Prem Srdhy,
    Sh Kelpesh yagnik,
    Nameskar,
    Aap ko is paviter or semanjank pehal ke liye sadu-bad.Aap nai sabhi mayer bhasi premiyo ke DIL Mai bhut hi gheri jeghy bena li hai.Aap ko sabhi mayer bhasi hamesa dil mai rekhye gye.
    NARESH MEHAN
    9414329505

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  3. Bhai,
    Stanaryan,Soni ji,
    Aaj Sh Annaram,sudma ji nai vanciyo.Boli ro gheno hi mitho chitren kerioy hai,Boli kiti mithi or khari huve hai o annaram ji gheno hi phuthro likhyo hai.
    AnnaRam ji mayer bhasha ra sirf likhra hi kini hai aapne -aap mai ek sensetha hai.
    Mahro banye bar-bar prnam.
    NARESH MEHAN
    9414329505

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