Wednesday, January 7, 2009

१ राजस्थानी कम नईं

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- //२००९

राजस्थानी कम नईं

कम नीं राजस्थान।

, आपां आपणी भासा सीखां। अब सवाल ओ है कै आपां तो आपणी भासा जाणा हां, फेर सीखण री कांई दरकार? सवाल सांचो है सा! पण आजादी सूं पै'लां तो आपणै स्कूलां में मायड़भासा राजस्थानी रे मारफत ई भणाई होवती ही। स्कूल नै आपणी राजस्थनी में पोसाळ कैवै। पोसाळां में राजस्थानी ही, राजकाज में राजस्थानी ही। पण अब नां पोसाळ में, नां राजकाज में। आजादी पछै री तीन पीढियां आपरी मायड़भासा नीं भण सकी। घणा ई सबद, मुहावरा अर ओखांणा (कहावतां) लोप होग्या। आपणी विरासत गमती जावै। पण आपां नै गमण को देवणी नीं, बचावणी है। आपां नै आपणी भासा सीखणी है, टाबरां नै सिखाणी है।
एक बात और, कई मायत आपरै टाबरां सागै आपणी भासा बोलता संको करै, खुद नै हीणा समझै। हिन्दी अर अंग्रेजी बोलण में बडाई मानै। ऐ भासावां तो आपां रेडियो, टेलिविजन, अखबारां, किताबां अर स्कूलां में सीखता ई रैवां हां। पण आंगण में तो आपां नै आपणी भासा सीखणी-सिखाणी चाइजै। भासा आपणी पिछाण है, आ पिछाण गमगी तो समझो आपां गमग्या। आजादी मिल्यां पछै आपणी भासा नै पढ़ाई-लिखाई सूं बारै करदी। बोलचाल में तो आज भी आपणी भासा चालै पण पढ़ाई में कोनी। अखबारां में कोनी।
आपणी भासा भोत बड़ी है। भोत तकड़ी है। भासा वैग्यानिक मानै कै दुनियाभर री भासावां में इणरो नम्बर सोळवों अर भारत री भासावां में सातवों है। फेर आपां नै आपणी भासा री बेकदरी नीं करणी चाइजै। आओ, आपां आज सूं आपणी भासा री कदर करणी सीखां। जिको आदमी आपरी मां-भासा री कदर करै बो दुनिया री सगळी भासावां री कदर करै, पण जिको आपरी भासा री कदर नीं करै बो किणी भासा री नीं करै। जिको आपरी मां री कदर नहीं करै बो मौसी, भुआ, काकी, ताई री कदर कांईं करसी? आपणै टाबरां नै बेसी सूं बेसी भासावां सिखाओ। बां रो भासा-ग्यान बधाओ पण बां नै आपरी मां-भासा सूं नां काटो। मां-भासा सूं कटणो आपणी सस्कृति अर संस्कारां सूं कटणो है। कवि रामस्वरूप किसान रो दूहो है-
भासा अपणी बोलिया, जे चावो थे मान।
राजस्थानी कम नईं, कम नीं राजस्थान।।
तो मायड़भासा बोलतां-लिखतां अर बांचतां आपां नै संको नीं करणो। गुमेज करणो, मतलब गर्व करणो। तो सुणो भई बांचणियो! आज सूं 'दैनिक भास्कर' आपां नै आपणी भासा सिखावणी सरू करै। आपां रोज इणीज पानै पर इणीज ठाड आपणी भासा सीखण री खेचळ करस्यां। आपरै मन में भी इण बावत कई बातां होसी। बै बिझझक मांडो अर संपादकजी रै ठिकाणै पूगती करो।
आज रो औखांणो
बोल भलाई साथै चालै।
बोलने से ही तौल बंधता है। जबान से ही इंसान का मूल्यांकन होता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

2 comments:

  1. bhai satynaryan soni ar vinod swami ri aa baat gani dai aai sa k jad aapaa aapni mayadbhasa ro maan nee karala to kya saaru to rista ar kya ra risedaar kavi ram swaroop kisaan ro ao duho sarthak lage hu in main aa kevano chau
    rajastani ro sevro,
    ao PRALIKA dhaam
    jai Rajasthan jai rajasthani

    ReplyDelete
  2. thari aa bat mhane ghani mithi laghe aar rajsthani saru tharo o prayas mhane ghano day aayo hai ini bhant jai rajasthani thare jeda panch chau or minak lag jave to rajasthani ne manyata milan su koi nirok sake hai .

    ReplyDelete

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?