आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २८/१/२००९
तारीख- २८/१/२००९
झगड़ बिलोवणो खाटी छा:
-रामस्वरूप किसान
-रामस्वरूप किसान
जनकवि कन्हैयालाल सेठिया मरुभोम री घणी बडायां कीन्ही। 'धरती धोरां री' में ओळ्यां है-
'इण रा फल-फुलड़ा मन भावण,
इण रै धीणो आंगण-आंगण,
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण।'
इण रै धीणो आंगण-आंगण,
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण।'
इण बड़ भागण धरती पर धीणै रा ठाठ ई ठाठ। मौज-मजा। कैबा चालै- जांका घर दोझा, वां का घर सोझा। जकै घर में धीणो-धापो, बो घर सूझ-बूझ आळो बाजै। जकै घर में धीणो। बीं घर में भांत-भांत री चीजां, भांत-भांत रा ठाम चाइजै। आं ठामां में ठावो ठाम- बिलोवणो। दही बिलोवण रो ठाम। जकै नै कुम्हार काची माटी रो बणावै। अर न्ह्याई में पकावै। पछै ओ बिलोवणो कुहावै। धीणै आळै घरां बिलोवणो होवणो जरूरी। जकै रै खूंटै धीणे़डी। उणरी बेवणी में बिलोवणो।
धीणे़डी दो टेम दूजै। दिनगै-आथण। दिनगै आळो दूध कढावणी में घलै। हारै में तातो टिकै। पूरो आंच कढावणी नै मिलतो रैवै, बारै नीं जावै। इं सारू हारै पर दबणो देणो पड़ै। दबणो माटी रो बण्यो हारै रो ढक। जको हारै रै आंच नै दपट'र राखै। हारै में थेपड़ी अर छाणां रो आंच। थेपड़ी अर छाणा जुगती सूं जचा'र कु़डछी भर आग नाखीजै। जकै सूं छाणा थेपड़ी सिलगण लागै। इण पूरै काम नै हारो घालणो कैवै। हारो घाल'र उणमें दूध री कढावणी टेकीजै। जकै नै दूध टेकणो कैवै। दिन छिपे तक ओ दूध उकळ'र लाल होज्यै। जकै नै कढेरो दूध कैवै। इण दूध पर रोटै बरगी जाडी मळाई आज्यै। सांझ नै जीमण बगत घर धिराणी आ कढावणी उतारै। अराई पर धरै। अराई सिणियै रो गूंथ्योरो एक अडेखण, जको कढावणी नै थिर राखै। पछै इण कढावणी नै बिलोवणै में ओथावै। मळाई समेत कढावणी रो ऊपरलो-ऊपरलो दूध बिलोवणै में घालणै नै ओथावणो कैवै। पछै धीणे़डी नै आथण दूवै। इण दूध रो आधो हिस्सो बिलोवणै में अर आधो कढावणी में घलै। कढावणी आळो दूध खाणै-पीणै में बरतीजै। पछै सोवण बगत कढावणी रो ऊबरेडो दूध बिलोवणै में घाल'र छाछ रो छींटो देय'र दूध नै जमा दियो जावै। इण काम नै दूध में जावण गेरणो कैवै। जावण लाग्यां दूध जमै। दूध जम'र दही में बदळ ज्यावै। जावण देणै में ई जाणकारी चइयै। जे तातै दूध में जावण लागज्यै तो दही खाटो जमै। अर जे ठंडै में लगा बैठै तो का तो दूध जमै ई कोनी का फेर अधजम्यो रैयज्यै। इण सारू बिलोवणै रै मसरोड़ लगावणी पड़ै। इण काम में जावण लगाय'र बिलोवणो नै एक जाडै गाबै सूं ढकियो जावै। जकै सूं दूध नै वाजिब गरमास मिलती रैवै अर मीठो अर सवाद दही जमै। दिनगै उठतां पांण दही भरियो ओ बिलोवणो बिलोवण सारू ने'ड़ी रै नजीक बेवणी में मेल्यो जावै। ने'ड़ी भींत रै सारै रोप्योडी कैर री लकड़ी। अर बेवणी ने'ड़ी सूं चिपतो एक छोटो-सो खाडो। जकै में बिलोवणो पूरो-पूरो टिक सकै। ना हालै ना गु़डै। अब बिलोवणै में झेरणो डुबोय'र ने'ड़ी अर झेरणै नै मिलांवता ऊपर-नीचै रा दोय सींखळा घाल्या जावै। एक सींखळो ने'ड़ी अर झेरणै में घल'र झेरणै नै ऊपर सूं काबू राखै अर दूजो नीचै सूं। अब झेरणै में घलै नेतरो। अर बिलोवणै सारै ढळै पीढो। पीढै पर बैठै बिलोवणो करणियो। जकै रै एक हाथ में नेतरै रो एक सिरो अर दूजै में दूजो। अब दोनूं हाथां सूं नेतरै रा दोनूं सिरा बारी-बारी खींच्या जावै। अर झेरणो गे़ड चढ'र दही बिलोवै। झगड़-झूं, झगड़-झूं रै संगीत साथै बिलोवणो चालतो रैवै। इण बगत री एक लोककविता खासी चलण में है-
बिलोवणै करणै में घणी बिद्या तो कोनी पण फेर ई कीं न कीं जाणकारी चाइजै। बिलोवणै री तासीर रो ग्यान जरूरी है। ठंडै-तातै रो ग्यान। ना ठंडै पर घी मंडै नां तातै पर। ठंडै पर झाग अर तातै पर मिरमिरी। घी जद ई मंडै जद बिलोवणो ना ठंडो होवै ना तातो। समान तापक्रम चावै बिलोवणो।
'झगड़ बिलोवणो खाटी छा:।
आओ ऐ लुगाइयो घालां छा:।।'
जद बिलोवणो पूरो बिलोइज जावै तो दही छाछ में अर छांछ पर चूंटियै रो थरको जमै। पछै बिलोवणै नै खांगो कर'र चूंटियै रो लोधो एक ठाम में काढ्यो जावै। छाछ बरतीज जावै जद बिलोवणो उकसणी सूं रगड़-रगड़'र धोइजै। उकसणी डचाभ री जड़्यां सूं बण्यो एक बुरछ होवै। पछै बिलोवणै नै तावड़ो लगाइज्यै, जको बिलोवणो बांसै ना। कढावणी री खुरचण साफ करण सारू खुरचणो चाइजै।आओ ऐ लुगाइयो घालां छा:।।'
बिलोवणै करणै में घणी बिद्या तो कोनी पण फेर ई कीं न कीं जाणकारी चाइजै। बिलोवणै री तासीर रो ग्यान जरूरी है। ठंडै-तातै रो ग्यान। ना ठंडै पर घी मंडै नां तातै पर। ठंडै पर झाग अर तातै पर मिरमिरी। घी जद ई मंडै जद बिलोवणो ना ठंडो होवै ना तातो। समान तापक्रम चावै बिलोवणो।
आज रो औखांणो
दूध-दही रा पांवणां, छाछ नै अणखावणा।
जब दूध-दही खाने वालों को छाछ भी नसीब नहीं होती।
बड़ी चीज के हकदार को जब तुच्छ चीज भी प्राप्त नहीं होती तो विवशता दरसाते हुए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
दूध-दही रा पांवणां, छाछ नै अणखावणा।
जब दूध-दही खाने वालों को छाछ भी नसीब नहीं होती।
बड़ी चीज के हकदार को जब तुच्छ चीज भी प्राप्त नहीं होती तो विवशता दरसाते हुए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
mokali badhai
ReplyDeletemhari bhaskar su araj hai ke in stambh ne aakhai rajasthan me chhapo sa
dr madan gopal ladha
mahajan
JAI RAJASTHAN JAI RAJASTHANI - THARI AA BATT JIKI THE LIKHI HAIN MHANE KHANI DAY AAYI HAIN RAJASTHANI MANYATA SARU THARO O BATHELDO KHANO HI SANTRO HAINMHARI KADEI JARURAT HUVE TO BATAYA . HARI RAM BISHNOI (MOTYAR PARISAD) BIKANER.9214164455
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