Thursday, January 15, 2009

१६ लोकगीत ऐ प्रांण, आपणी संस्क्रति रा

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख-१६/१/२००९
लोकगीत ऐ प्रांण,
आपणी संस्क्रति रा
आपरी संस्कृति अर परम्परा रै पांण राजस्थान री न्यारी पिछाण। रणबंका वीरां री आ मरुधरा तीज-तिवारां में ई आगीवांण। आं तीज-तिवारां नै सरस बणावै अठै रा प्यारा-प्यारा लोकगीत। जीवण रो कोई मौको इस्यो नीं जद गीत नीं गाया जावै। जलम सूं पैली गीत, आखै जीवण गीत अर जीवण पछै फेर गीत। ऐ गीत इत्ता प्यारा, इत्ता सरस कै गावणिया अर सुणणियां रो मन हिलोरा लेवण लागै।
लोकगीतां रो लिखारो कुण है, इण बात रो ठाह किणी नै नीं। लोकगीत तो आम जनता री भाषा। खासतौर सूं ऐ लोकगीत लुगायां रै हिवड़ै री उपज। लुगायां रा गीत न्यारा। मिनखां रा गीत न्यारा। रजवाड़ी गीत न्यारा। राजस्थान में भोत-सी गायक जातियां हैं जकी गायन नै आपरो हीलो बणायो। ऐ जातियां हैं- लगां, मांगणियार, भोपा-भोपी, फदाली, कळावन्त, गंधर्व, राणा, मिरासी, ढोली, ढाढी, नगारची, दमामी, जांगड़, नट, पातर, कंचनी, गेला, खारे़ड, देधड़ा, बोघर, बाबर, डगाधोला, थईम, डोसावसी, गुणसार, फुलवाणी, बोमणियां, भटि्टका अर जीण। हरेक गीत में मिनखां रै हिवड़ै री किलोळ परगट हुवै। गांव-गळी अर घर-परवार में गाया जावण वाळा गीतां रो तो कोई छे़डो नीं, पण राजस्थानी लोकगायक जिका गीत गावै वां रा कीं नांव बांचो- विनायक, ईण्डुणी, ओळूं, कागलियो, उमराव, काजळियो, केसरिया बालम, कुरजां, कलाली, काछबो, कूकड़ो, केसर, कोयलड़ी, कामण, गणगौर, गोरबंद, तीज, बिच्छु़डो, घु़डलो, घोड़ी, चटणी, चरखो, चिरमी, बन्नो, बन्नी, जलाल, जंवाई, जल्लो, जीरो, झालो, झूटणियो, डिगीपुरी का राजा, ढोला, तारां री चूंदड़ी, तेजो, तोरणियो, दळ-बादळी, बिछियो, निहालदे, नींबू़डो, धरती धोरां री, पणिहारी, पौदीनो, पटेल्यो, पींपळी, बियाणा, रसिया, बालम, बायरियो, बीरो, बाजू़डै री लूम, पंछीड़ो, मरवण, माहेरो, मूमल, मोरियो, मेथी, मैन्दी, घूमर, मींझर, राइको, रायधण, रुपीड़ो, रुमाल, चंग, पपइयो, लांगुरिया, सुपनो, सूवटियो, सूंठ, सोरठ, हिंडोळो, हंजामारू, हळदी, हिचकी, हींडो। और घणा ई नांव है।
लोकगीतां बावत अस्तअलीखां मलकांण रो एक छप्पय छंद इण भांत है-
लोकगीत ऐ प्रांण, आपणी संस्क्रति रा।
उघड़ै बै चितरांम, जनजीवण री क्रति व्रति रा।।
आं गीतां रै मांय, आपणो जीवण बोलै।
पड़ै बोल जद कान, जाण बो इमरत घोळै।।
जीवण निजू प्रगट हुवै, आं ई गीतां रै पांण।
अतीत रो दरसण हुवै, पुरखां पांण-आपांण।।
आज रो औखांणो
लोक-वांणी सो देव-वांणी।
जो जनता की वाणी है, जनार्दन की वाणी है।
अनेक लोगों की राय ही ईश्वर की राय है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

2 comments:

  1. थ्यारो यो पोस्ट "manchsamachar.blogspot.com" पर कियो है। साभार।
    -शम्भु चौधरी

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग पर आकर और राजस्थानी भाषा के विकास के बारे में आपके ,विनोद स्वमि और सत्यनारायण सोनी के प्रयास को देख कर अति प्रसन्ता हुई.
    आप सब को साधुबाद!!!

    -राजीव महेश्वरी

    ReplyDelete

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?