Wednesday, January 7, 2009

४ गग्गा गोरी गाय

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ४/१/२००९

गग्गा गोरी गाय

आजकाल तो टाबर हिन्दी में क-कबूतर, ख-खरगोश अर अन्ग्रेज़ी में ऐ फोर एप्पल, बी फोर बुक बोलै। पण पै'ली राजस्थानी में एक खास अंदाज में भारणी बोलता। आपणै गांवां में अब भारणी रा पूरा जाणकार तो ढूंढ्या ई लाधै। कई बडेरां सूं बंतळ करी तो 'कक्को' इण भांत पकड़ में आयो-
कक्को कोड रो, खख्खो खाजूलो, गग्गा गोरी गाय, घघ्घा घोट पिलांणै जाय, नन्यावाळो द्वाळ्यो, चिड़ा-चिड़ी री चांच, छछियो पिचियो पोटाळो, जज्जो जेर बावन्यूं, झझायां री घींसाडी, नन्यो खांडो चंदरमा, कुटका भे़डी खुटकड़ी, ठट्ठो घी घिलोड़ियो, डड्डो डावड़ गांठोडी, ढड्ढो पूंछड़ पूंछे़डी, राणा थारी तीन रींगटी, ततो तम्बोळी तांबो, तांत मार्यो थांबो, दद्दो देळ्यां दीवटियो, धधो धणख छोड्यां जाय, आगै नन्नो भाग्यो जाय, पापा पाटकड़ी, पप्पो फैलांत रो, बब्बो बाड़ी बैंगण्यां, भाभजी भटारको, मम्मा मात आगळो, आयो जाडा पेट रो, रर्रो राव राखोली, लल्लो लाव संवांरै, वव्वो वैंगण वासदे, सस्सो फलारो, हाहा हींडोळो।
सुणो भाई बांचणियो, आपरै आसै-पासै भी भारणी रा जाणकार लोग अब भी मौजूद हुसी। आपणी विरासत नै ठावी राखणी आपणो फरज बणै। ल्यो सुणो एक हांसणियो-
एम फॉर ममू़डी
अंगरेजी रो एक मास्टर प्रौढ शिक्षा रै त्हैत गांव वाळां नै अंगरेजी सिखावण री तेवड़ी। गांव रा बूढा-बडेरा ' फोएप्पल' नीं सीख सकैला, इण बात नै ध्यान राख'र बण एक तरकीब काढी- ऐ फॉर अबू़डी, बी फॉर बबू़डी सूं लेय'र एम फॉर ममू़डी तां पूगग्यो। पछै जद बो डब्ल्यू पढावण लाग्यो तो बोर्ड माथै डब्ल्यू लिखतां ई एक डोकरो बोल्यो- ''अरै ओ माट साब! ओ कां करियो? एम फॉर ममू़डी नै ऊंधी कियां लटकायदी?
आज रो औखांणो
बारह कोसां बोली पलटै, वनफळ पलटै पाकां।
बरस छत्तीसां जोबन पलटै, लखण नीं पलटै लाखां।।
प्रति बारह कोस पर बोली बदल जाती है। पकने पर पे़डों के फ ल बदल जाते हैं। छत्तीस वर्ष की आयु होने पर यौवन बदल जाता है। पर अच्छे-बुरे लक्षण जो भी पड़ जाते हैं, वे नहीं बदलते।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

No comments:

Post a Comment

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?