मावठ री जे सूत बैठज्या,
भर-भर ल्यावै बोरा
हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के गांवों में ओलावृष्टि और मावठ के मौसम पर राजस्थानी भाषा के साहित्यकार परलीका निवासी रामस्वरूप किसान का लेख-पढ़ें आपणी भाषा-आपणी बात स्तंभ में। -कीर्ति राणाभर-भर ल्यावै बोरा
रामस्वरूप किसान रो जलम १४ अगस्त, १९५२ नै परलीका मांय हुयो। राजस्थानी रा सिमरथ लिखारा। साहित्य अकादेमी समेत मोकळा पुरस्कारां रा विजेता। कहाणियां अर कवितावां री सात पोथ्यां छप चुकी। आपरी रचनावां रा अंग्रेजी, हिन्दी, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मलयालम अर मराठी भाषा में अनुवाद भी हुया है। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।
आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १९/१/२००९
मावठ री जे सूत बैठज्या,
भर-भर ल्यावै बोरा
-रामस्वरूप किसान
माध वूठै तो मावठ। वूठै मतलब बरसै। मावठ रो अरथ-माघ-वृष्टि। माह रो मेह। आपणै हर म्हीनै मेह रा न्यारा-न्यारा नांव। चैत में चिड़पिड़ाट। कैबा है- चैत चिड़पिड़ो तो सावण निरमळो। लोक मानता है- चैत रो चिड़पिड़ाट सावण री बिरखा नै लीलज्यै। जेठ में मिरग-पीया। जेठ लागतै रै मेह नै मिरग पीया घालणा कैवै। साढ़ में सरवांत। सावण-भादवै में झड़ी। आसोज-काती में टांडातोड़। मिंगसर रो झारो। पो-माह री मावठ। अर फागण में आड़ंग।भर-भर ल्यावै बोरा
-रामस्वरूप किसान
अठै सियाळै रै मेह नै मावठ कैवै। सियाळै री खेती पर मावठ करै इमरत रो काम। कैबा चालै-
टीबा-टेचरी, दोमट माटी, मधरा-मधरा धोरा,
लीला घोड़ा, लाल काठी, ऊपर गबरू गोरा,
मावठ री जे सूत बैठज्या, भर-भर ल्यावै बोरा।
मतलब चीणां री खेती मामूली टीबा-टेचर्यां, मधरै-मधरै धोरां अर गदर-सी जमीन में हुवै। चीणै रै बूंटै नै लीलो घोड़ो, फूलां नै लाल काठी अर घेघरियां मतलब चीणां री फळियां नै गोरा गबरू री उपमा दिरीजी है। मावठ री जे सूत बैठज्या तो इण भोम में चीणां रो कांइं लेखो! लोग बोरा भर-भर खेतां सूं ल्यावै।लीला घोड़ा, लाल काठी, ऊपर गबरू गोरा,
मावठ री जे सूत बैठज्या, भर-भर ल्यावै बोरा।
बिरानी खेती सारू मावठ सरजीवण बूंटी। चीणां अठै री बिरानी खेती। कम पाणी सूं नीपजै। चीणो ऊंडी आल नै मानै। ऊंडी आल अर ऊपर भरळ। चीणै री जड़ां खासी लाम्बी। दो फुट तळै सूं आलीड़ो खींचै। चीणो थोड़े मेह में पाकणआळी खेती। पण मावठ री अणूंती दरकार। मावठ बिना चीणो नीं होवै। मावठ भावूं थोड़ी होज्यै, चीणै री खेती खाली नीं जावै।
मावठ हाड़ी री गारंटी। हाड़ी री खेती पर मावठ री मो'र लागै। दाणां रा बोरा भर-भर आवै आगै। इणी सारू किरसां नै मावठ री उडीक रैवै। कैवणै में आवै-'मेह री सी उडीक।' मेह री उडीक सैं सूं तकड़ी। जद तांई बिरखा नी हुवै, किरसां रै डील पर मकड़ी-सी चढबो करै। दिन-रात एक ई रट- 'मावठ कोनी होई। बादळिया मंडै तो है। पांच आंगळ करद्यै तो न्ह्याल हो ज्यावां। अजे तांई तो हाड़ी सांगोपांग खड़ी है। रामजी सुणल्यै तो दाणां में सीर होज्यै।' अर जद रामजी सुणल्यै तो किरसां रै हरख रो पार नीं रैवै। रग-रग नाचण लागै। चैरां चेळको बापरज्यै। बतळावै- 'न्ह्याल कर दिया। सांवरियै आछी सुणी। बड़ै मौकै री मावठ होयी। मरयोड़ा नै जिवा दिया। मेह नीं जीवण बरस्यो है। ऐ दस आंगळ छांट तीस आंगळ रो काम करसी।' सियाळै रो मेह सूकै कोनी। यूं कै म्हीनै तांइं धंवर पड़सी। जकी सियाळै री खेती सारू रामबाण। धंवर खेती नै सिनान करावै। पाळै सूं बचावै। अर पत्तां पर पड़ी पाणी री बूंद इमरत रो काम करै। आ धंवर ई मावठ बिना नीं आवै। मावठ धंवर री मां।
किरसै रो सो कीं मावठ पर ई है। एक भैण सारू भाई रा बोल- भैण भात नूंतण आई। काळां सूं टूट्योड़ा भाई। भिणभिणा बैठ्या। भैण देख'र गळगळी होयी। बडोडो भाई सिर पळूंसतो बोल्यो- 'आंसू मत ल्यावै म्हारी लाडेसर! पचास बीघा में हाड़ी है। चीणां में सुसिया दुबकै। जे मावठ होयगी तो बंट काढ देस्यां भात में। नीं तो टीको कढावण तो आ ही जास्यां।
आज रो औखांणो
मेह बाबो मोकळो, ढकणी में ढोकळो।
बालक-बालिकाएं मूसलाधार पानी बरसने के बाद खुशियां मनाते हुए नाचते हैं। बार-बार यह उक्ति दोहराते हैं। अर्थात् मेह बाबा ठाट से बरसा तो अब सारे ठाट पूरे हो जाएंगे।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका। ईमेल- aapnibhasha@gmail.com Blog- www.aapnibhasha.blogspot.com
मेह बाबो मोकळो, ढकणी में ढोकळो।
बालक-बालिकाएं मूसलाधार पानी बरसने के बाद खुशियां मनाते हुए नाचते हैं। बार-बार यह उक्ति दोहराते हैं। अर्थात् मेह बाबा ठाट से बरसा तो अब सारे ठाट पूरे हो जाएंगे।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका। ईमेल- aapnibhasha@gmail.com Blog- www.aapnibhasha.blogspot.com
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