Wednesday, January 7, 2009

३ आओ बोलां भारणी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३/१/२००९

आओ बोलां भारणी

बडेरा बतावै कै राजस्थानी में पढ़ाई सोखी अर चोखी होवती। आ पढ़ाई राग में होवती। हरेक दिन पढ़ाई पछै करीब एक क घंटा तांईं मुहारणी बोलता। मुहारणी नै भारणी भी कैवता। मुहारणी में बिलाठी, कक्का, बारखड़ी, इकावळी अर पावड़ा होवता। इकावळी नै आजकाल गिणती अर पावड़ा नै पहाड़ा कैवै। बिलाठी नै आजकाल हिन्दी में स्वर कैवै अर कक्का नै व्यंजन। भारणी में बिलाठी इण भांत बोलीजती-
आइड़ा दो भाइड़ा, बडै भाई काना, इडी इडी दो बैनां, बडी बैन चोटियां, उडा-ऊडा दो छोटा-मोटा ऊंटिया, ऊंटां लदी कतार, अेक अेको अेकलो, अेका ऊपर लाकड़ी, ओ बैठो ओठीड़ो, दो दो मात औरणिया।
आ पढ़ाई आजकाल चलण में कोनी अर राजस्थानी बांचण सारू आं री जरूरत भी कोनी, पण फेर ई आपां नै आपणी परम्परा रो ग्यान होवणो चाइजै। भणाई री बाकी बातां करता रैस्यां। पण आज सुणो आ बात-
सवाल पूछणा ई सीख्यो है
गांव रै प्रौढ शिक्षा केन्द्र में एक छोरो पढ़ांवतो। एकर एक अफसर जांच करण आयो। बडेरां नै पूछण लाग्यो- ''ओ छोरो कीं पढावै है'क फोकट री तनखा लेवै।"
बडेरा बोल्या, ''नां जी छोरो कामल है। लारलै दो म्हीनां में अण म्हानै सगळा जोड, बाकी, गुणा अर भाग सिखा दिया।''
अफ सर एक चोखै बडेरै कानी आंगळी कर'र बोल्यो- ''तो ताऊ जी, थे बताओ नीं, रामलाल रै खेत में दस भेड चरै ही, बां में सूं दोय भेड चुन्नीलाल रै खेत में बड़गी, लारै कित्ती रैयी?''
बूढ़ियो बोल्यो- ''एक ई कोनी रैयी।''
अफसर थोडो तुणक्यो अर बोल्यो- ''ईत्तो सोरो-सो सवाल कोनी आवै जद दो म्हीनां में कांईं सीख्यो ताऊ जी?''
ताऊ बोल्यो- ''अफसर, सवाल पूछणा ई सीख्यो है, भेड चाल जाणसी जिकै दिन ठा पड़सी।''
आज रो औखांणो
भणिया करतां गुणिया वत्ता।
शिक्षित की बजाय अनुभवी बेहतर है। शिक्षा औपचारिक विद्या है, ऊपरी चीज है पर अनुभव तो वास्तविक ज्ञान है। भीतर का उजाला है। शैक्षणिक योग्यता के साथ यदि अनुभव की थाती जु़ड जाय तो सोने में सुहागा मिल जाय।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।



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