Friday, January 30, 2009

३१ पांख पसारी चिड़कली

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-३१//२००९

मनोज कुमार स्वामी रो जलम ३१ मई, १९६२ नै सूरतगढ़ तहसील रै गांव सरदारपुरा खर्था मांय हुयो। राजस्थानी रा जाण्या-माण्या कथाकार। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर सूं पुरस्कृत। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश मंत्री। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी - ओ खास लेख।


पांख पसारी चिड़कली

-मनोज कुमार स्वामी

कैबा चालती, 'बेटी जाई रै जगन्नाथ, ज्यां रा हेठी आया हाथ।' पण अबै बा बात कोनी रैयी। बेट्यां बेटां सूं दो पांवडा आगै बध'र घर-परवार अर देस-समाज री सेवा करै। लारला दिनां रेडियो पर एक कवि रो दूहो सुण्यो। म्हनै याद रैयग्यो। बांचो-
पांख पसारी चिड़कली, झाड़ी सारी धूळ।
लाडां कोडां लाडली, पढण चली स्कूल।।
बेटी पगां चालण लागै उण बगत सूं ई आपरी मां रो स्हारो बणज्यै। जद कै बेटो तो बीस बरसां रो हुयां ई स्हारो बणै का ना बणै पुख्ता कोनी। जिका मां-बाप बेटी रै जलम नै माड़ा भाग मानै, बां मा-बापां रै, अबखी वेळा में बेट्यां ई आडी आवै। राजस्थान रो तो इतियास भी बेट्यां री सबळाई री जबरी साख भरै। हाड़ी राणी री बराबरी आखै जगत में कुण करै? जद हाड़ी राणी जलमी उण वेळा पी'र मांय थाळ तो नीं बाज्यो, पण सैनाणी मांय आपरो माथो बाड'र थाळ मांय मेल्यो तो कांसी रो थाळ टंणकार उठ्यो। नाथूसिंह महियारिया रो ओ दूहो इण बात री साख भरै-
पीहर थाळ न बाजियो, हाडी यण अंहकार।
थाळ बजायो सासरै, सिर कट खटकी धार।।
खेजड़ी गांव मांय इमरता देवी, रूंखां री रिछपाळ करतां थकां आपरो सीस कटायो अर उणां रै साथै घणां आपरी ज्यान दरख्तां सारू निछावर कीनी। आज पर्यावरण सारू आखो संसार रोळो मचावै, पण है कठै ई इसी मिसाल? पन्नाधाय रो बलिदान अर आपरी लाज बचावण सारू जौहर री ज्वाळा मांय कूदण रा छै'ला काम राजस्थान री बेट्यां कर्या है। जिणा पर आखो देस गुमेज करै। आज देस रै सिरै पद पर देस री बेटी है। पण इण आधुनिक जुग मांय एक मसीन आई जिकी रो नांव 'अल्ट्रासाउण्ड' है। अर इण रै पाण बेट्यां रा बेरी बांनै गरभ मांय ई मारण लागग्या। रामस्वरूप किसान एक दूहै रै मिस लिखै-
बेटी बोली बाप सूं, तड़फ, डागदर मेज।
दु:ख माय नै क्यूँ दियो, सोयो क्यूँ तूं सेज।।
बडेरा कैवै कै संसार मांय धरती अर नारी दो ई सैं सूं धीरा है अर आं दोनूंवा बिना मिनख जमारो नरक बरोबर। बेट्यां नै गरभ मांय मारण रा घणा माड़ा नतीजा आपणै सामी है। तीस सूं लेय'र पचास तक रा छड़ा मक्कू हरेक गाम अर सै'र मांय आपां देख सकां।
बेट्यां नै बचावण री दरकार है। बां नै पढावण री दरकार है। बां नै सनमान देवणो है। इण सारू गांव-गांव अर ढाणी-ढाणी अलख जगावणी है। तो आओ, आपां सगळा रळ'र संकळप करां कै बेटी नै बचावणी है। आज कोई भी क्षेत्र मांय ऐ चिड़कल्यां लारै नीं है। आपां नै आं रो सांचै मन सूं मान करणो चाइजै। छेकड़ म्हैं आपरै साम्हीं ओ सवाल छोडूं- 'बेटी नीं जामोगा तो थे कियां जामोगा?'
ताऊ शेखावाटी आपरी कविता में इण बात नै इण भांत मांडी है-
क्यूं जग में हर कोई नै ईं, बेटी री चिंत्या खा'री है।
क्यूं बेटां स्यूं बेटी धन री, कीमत कम आंकी जा'री है।।

आज रो औखांणो
बेटा सूं बेटी भली जे कोई होय सपूत।
यहां सपूत से मतलब गुणी इंसान से है। भले मानुस से है। वह चाहे पुरुष हो, चाहे स्त्री। यदि बेटी के लक्षण उत्तम हैं तो वह बेटे से बेहतर है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- www.aapnibhasha.blogspot.com

राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

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