Friday, January 16, 2009

१७ केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख-१७/१/२००९

केसरिया बालम आवो नीं
पधारो म्हारै देस
लोकगीत बित्ता ई जूना है जित्तो के मिनख। ऐ लोकगीत राजस्थानी जनमानस रै हिरदै रा साचा उद्गार है, जीवता-जागता चितराम है। घटती-बधती छिंयां अर तावड़ै रै उनमांन ई मानखै रा जीवण में सुख-दु:ख आवता-जावता रैवै। सुख, हरख, कोड, उछाव री घड़ियां में वो जिको मैसूस करै, वां अनुभूतियां री अभिव्यक्ति ई लोकगीतां रै जलम रो कारण बणै।
ल्यो आज बांचां नांमी लोकगीत, 'केसरिया बालम'। धणी नै सुहागण रो सिणगार मानीजै। बीं रो सगळो सिणगार, पैरवास, गैणा-गांठा पिव नै रिझावण सारू हुवै। पिव परदेस बसै तो जोड़ायत आपरा सगळा सिणगार ऐळा मानै। इण लोकगीत में प्राण-प्यारै पिव री उडीक में जोड़ायत री बिरह-बिथा प्रगट हुयी है। ओ एक रजवाड़ी गीत है अर खासतौर सूं मांड राग में गायो जावै। मसहूर लोक-गायिका अल्लाह जिलाई बाई अर गवरी देवी समेत राजस्थान रा हरेक लोक-गायक इण गीत नै घणै हरख सूं गायो है। राजस्थान 'पधारो म्हारै देस' अर 'पधारो सा' री संस्कृति वाळो प्रांत है। अठै आवण वाळा सैलानियां रै स्वागत में ओ गीत खासतौर सूं गायो जावै। इण गीत री घणी कड़ियां है। गायक आप-आपरै अंदाज में जरूरत मुजब गावै।
केसरिया बालम
केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस।।
सावण आवण कह गया सो कर गया कौल अनेक
गिणतां-गिणतां घस गई म्हारी लाल आंगळियां री रेख।।
थारी औळूं म्हे करां और म्हारी करै नां कोय
दूर-दूर पण करै सहेलियां और मु़ड-मु़ड देखै तोय।।
जो मैं एसो जाणती प्रीत कियां दु:ख होय
नगर ढिंढोरो पीटती प्रीत न करियो कोय।।
केसर सूं पगल्या धोवती भले पधारो पीव
और बधाई या करूं, पल-पल वारूं जीव।।
आंबां मीठी आमली चौसर मीठी सार
सेजां मीठी कामणी रणमीठी तलवार।।
मारू थारा देस में निपजै तीन रतन
इक ढोलो, दूजी मारवण, तीजो कसूमल रंग।।
साजन आया ऐ सखी और कांईं भेंट करांह
थाळ भरां गज मोतियां और ऊपर नैण धरांह।।
हो साजन आवत देखके सो तोड्यो नवलख हार
सै: जाणै मोती चुगै म्हैं झुक-झुक करूं जुहार।।
केसरिया बालम आवो नीं पधारो म्हारै देस।।
आज रो औखांणो
जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विष होय।
बोलण सूं ई ठा पड़ै, कागा कोयल दोय।।
जीभ में ही अमृत बसता है और जीभ में ही विष। कौए और कोयल का भेद बोलने पर ही मालूम होता है।
आदमी की काफी-कुछ प्रतिष्ठा वाणी पर निर्भर करती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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