आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ११/१/२००९
आपणै राजस्थान में पाणी री घणी तंगी। कई इलाकां में नहरां आवणै सूं पाणी रा ठाठ हुया है। पण फेर ई राजस्थान रो घणकरो इलाको आज भी तिसायो है। पाणी बचावण री तरकीब अठै रै लोगां सूं बेसी कुण जाणै। पाणी अठै घी री तरियां बरतीजतो रैयो है। इण वीर भू पर खून सस्तो पण पाणी मूंघो री बातां चालै। दूहो है-
एकर दोय लुगायां एक गांव सूं दूजै गांव जावै ही। मारग कच्चो हो अर आंतरो घणो। मारग में एक जोहड़ी आई। देख्यो, जोहड़ी सूकी। पण, जोहड़ी री चोभी में चळू एक पाणी हो। बस, इत्तो कै एक छोटै जिनावर री तिस बुझै। पाणी रै लोवै एक हेरण अर एक हेरणी मर्या पड़्या हा। जद पैली लुगाई दूजी नै पूछै-
तारीख- ११/१/२००९
जळ थोड़ो नेह घणो
आपणै राजस्थान में पाणी री घणी तंगी। कई इलाकां में नहरां आवणै सूं पाणी रा ठाठ हुया है। पण फेर ई राजस्थान रो घणकरो इलाको आज भी तिसायो है। पाणी बचावण री तरकीब अठै रै लोगां सूं बेसी कुण जाणै। पाणी अठै घी री तरियां बरतीजतो रैयो है। इण वीर भू पर खून सस्तो पण पाणी मूंघो री बातां चालै। दूहो है-
पाणी रो कांईं पियै, रगत पियोडी रज्ज।
संकै मन में आ समझ, घण ना बरसै गज्ज।।
कवि चंद्रसिंह भी आपरी 'लू' काव्यकृति मांय पाणी री तंगी रा घणा बखाण कीन्हा है।संकै मन में आ समझ, घण ना बरसै गज्ज।।
भर चौघड़ चालै घरां, जठै तिसाया जीव।
लातां-लातां नीवड़ै, बरतै जळ ज्यूं घीव।।
जळ थोड़ो है तो कांईं हुयो, अठै नेह तो मोकळो है। ल्यो सुणो नेह-भरी एक बात-लातां-लातां नीवड़ै, बरतै जळ ज्यूं घीव।।
एकर दोय लुगायां एक गांव सूं दूजै गांव जावै ही। मारग कच्चो हो अर आंतरो घणो। मारग में एक जोहड़ी आई। देख्यो, जोहड़ी सूकी। पण, जोहड़ी री चोभी में चळू एक पाणी हो। बस, इत्तो कै एक छोटै जिनावर री तिस बुझै। पाणी रै लोवै एक हेरण अर एक हेरणी मर्या पड़्या हा। जद पैली लुगाई दूजी नै पूछै-
खड़्यो न दीखै पारधी, लग्यो न दीखै बांण।
म्हैं तनै बूझूं ऐ सखी, किण विध तजिया पिराण।।
म्हैं तनै बूझूं ऐ सखी, किण विध तजिया पिराण।।
तो दूजी लुगाई जवाब दियो-
जळ थोड़ो नेह घणो, लग्यो प्रीत रो बांण।
तूं पी तूं पी कैवतां, दोनूं तजिया, पिरांण।।
नेह आपणै मौकळो है अर पांणी बचावण रा जतन भी आपां जाणां। पण फेर ई आपां नै खेती-पाती में पांणत रा आधुनिक तौर-तरीका अपणाय'र बेसी सूं बेसी बचत काढणी है। अर ल्यो, अब सुणो ताऊ शेखावाटी रो ओ सोरठो-तूं पी तूं पी कैवतां, दोनूं तजिया, पिरांण।।
पाणी प्राणी प्राण, बूंद-बूंद राखो बचा।
पाणी मोल पिछाण, बिरथ गवां मत बावळा।।
पाणी मोल पिछाण, बिरथ गवां मत बावळा।।
आज रो औखांणो
जळ जठै जगदीस
जहां जल वहां जगदीश।
जल ही जीवन है और जल ही ईश्वर है।
(पारधी- शिकारी)
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
जळ जठै जगदीस
जहां जल वहां जगदीश।
जल ही जीवन है और जल ही ईश्वर है।
(पारधी- शिकारी)
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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ReplyDeleteAtul Kanakk