Wednesday, January 7, 2009

५ जै जै मां मरुवाणी जै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ५/१/२००९

जै जै मां मरुवाणी जै

वगत बदळै तो बात बदळै। बात बदळै पण भासा नीं बदळै, भासा रो रूप जरूर बदळ जावै। पण आपणै अठै आजादी आई। राज बदळ्यो। राजस्थान में राजकाज अर पढ़ाई-लिखाई री भासा बदळगी। पण जनता री भासा नीं बदळी। जनता री भासा राज री लाठी सूं नीं चालै।
आपणै स्कूलां में आज भी राजस्थानी माध्यम सूं गिणती-पहाड़ा पढ़ाया जावै। आप गौर करो, आपां इयां ई तो पढ़ता आया हां- 'एको एक, दूवो दोय, तीयो तीन, चोको च्यार, पांज्यो पांच, छीको छव, सातो सात, आठो आठ, नौको नव, एके मींडी दस।' पहाड़ां पर भी गौर फरमावो- 'एक दूणी दूणी दोय दूणी च्यार, तीन दूणी छव च्यार दूणी आठ।' पहाड़ां में 'पांज्यू़डी पच्चीस, छकड़ै रो छत्तीस' बोलतां कित्ता आणंद आवै। ऐ आणंद हमेस आपरी भासा में ई आया करै, ओपरी में नीं। गांधीजी समेत सगळा विद्वान प्राथमिक शिक्षा मायड़भासा में करावण री हिमायत करी। पण आ बात आपणै समझ में नीं आई। सरूआती पढ़ाई मायड़भासा में होवै तो टाबर रो ग्यान बधै अर पछै दूजी भासावां सीखण में भी घणी खेचळ नीं करणी पड़ै।
गांधीजी आपरी आत्मकथा में लिख्यो, 'जित्तो गणित, रेखागणित, बीजगणित, रसायनशास्त्र अर ज्योतिष सीखण में म्हनै च्यार बरस लाग्या, बित्तो ई म्हनै जे अंगरेजी री बजाय गुजराती मांय सिखाइजतो तो म्हैं एक ई बरस में सीख लेवतो।' बां एक जिग्यां आ बात भी लिखी, 'जका टाबर आपरी मायड़भासा री बजाय किणी दूजी भासा मांय शिक्षा पावै, बै आपघात ई करै है। मायड़भासा में विकास करणो वां रो जलमसिद्ध अधिकार है। मायड़भासा में शिक्षा नीं मिल्यां सूं टाबर रो विकास रुक जावै अर बो आपरै घर अर परिवार सूं अळगो पड़ जावै।'
जकी भी आपरी मायड़भासा है, आप उणरी कदर जरूर करो सा! राजस्थानी रो जूनो नांव 'मरुभासा' भी है। इणनै 'मरुवाणी' भी कैवै। आओ, आज बांचां चंद्रसिंह बिरकाळी री लिख्योडी 'मरुवाणी-वंदणा'-
मरुवाणी-वंदणा
जै जै मां मरुवाणी जै, नवरस पूरण वाणी जै
त्याग-दान बळिदान भरी, सुतंतरता री जणनी जै
अधरम-अपजस-कायरता, सकळ दासता हरणी जै
पद्मण-प्रथी-पत्तै-दुरगै, भामासा री भासा जै
मीरां-सहजो अर दादू, जै भगतां री भासा जै
नव करोड़ जण री आसा, भारत मां अभिलासा जै।
आज रो औखांणो
आपरी पाग आपरै हाथै, पगां राळो के राखो माथै।
अपनी पगड़ी अपने हाथ, पांवों में पटको या रखो माथ। मनुष्य को अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए बहुत सोच-समझकर चलना पड़ता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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