आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ७/१/२००९
पण जुवानां रो हाल ई सूं उल्टो। बां नै ओ पाळो मीठो लागै। मिसरी रै उनमान। नूंवो खून। पाळै नै कांई दिवाळ। बै तो कोढियै रट्ठ सूं आणंद काढणो जाणै। सांप रै फण सूं मिण काढणी आवै बां नै। ई सारू बै इण पाळै रो मजो लेवै। सियाळै री लाम्बी रात रो सुख लूटै।
सियाळो जोरावर रो साथी पण निजोरै रो बैरी। कैबा है- गरीबियै री गरमी, सिमरथ रो सियाळो। पाळै में गरीब में फोडा। ढंगसिर गाबो जु़डै नीं। जूती जु़डै नीं। अर ना सोवण नै बिछावण। पाळै रो असली दु:ख तो पोह री रात में फुटपाथ पर सूत्या जाणै बापड़ा। पण इण में पाळै रो कांई दोस! ओ दोस तो है जिकां रो ई है। पाळो तो पाळो ई है बापड़ो। परकरती रो लाडलो। जकै रो एक न्यारो ई फुटरापो हुवै। ओ रुत रो पातस्या नीं तो बजीर जरूर है। ई रुत में खाणै-पीणै अर पै'रणै-औढणै रो न्यारो ई सुवाद। लोग जमावणो जमावै। पींडिया खावै। खोवो काढै। गाजर-पाक बणावै। घी-दूध खाणै रो ई ईं रुत में मजो है।
आ रुत मरु रै सांवळै गात नै गौरो कर नाखै। उन्याळै अर चौमासै में तलीज्योडो आदमी रुत ईं में टंवरा काढण लागै। उण रै हाडां चामड़ी आवै। क्यूँ के ना गरमी ना तावड़ो। ना ऊमस ना झळ। सो' कीं सीतळ ई सीतळ। जकै में ना माखी ना माछर। ईं वास्तै नां चिरमिराट ना झरळाट। ना खुजली ना खाज। अर ना ई आवै पसेव। डील पड़्यो रैवै पोथी जिसो। अर ओ पोथी जिसो डील पाळै री लुज्जत लूटै। गाबां में गुरक होय'र चूंतरियां पर हथाई करै। होका सुरड़ै। बातां रा बडका पाड़ै। मुंह री भाप बारै काढै। अर घणो पाळो हुवै तो धुंई बाळै। जकी रै च्यारूंमेर बैठ हथाई जोड़े। यूं? पाळै रा है नीं मजा। अर सोवण बगत सोड़ियै-रिजाई में बड़'र बां नै ताता करै। रिजाई नै च्यारूंमेर सूं दाब'र भीतर रो मौसम मन-माफक बणाल्यै। अर पछै लेवै मीठा-मीठा सुपना।
अर अबार बांचो पोह-माह म्हींनै सारू लोक चलत रा ऐ दोय दूहा-
तारीख- ७/१/२००९
गरीबियै री गरमी,
सिमरथ रो सियाळो
सिमरथ रो सियाळो
-रामस्वरूप किसान
धोरां री धरती पर पाळो उतर्यो। गे़ड चढ्यो। बूढै-बडेरां रा हाड कांप्या। आठूं पौर एक ई रट। आज तो भोत रट्ठ पड़ै। कोझी रीळ चालै। उतरादी डांफर है। बंचगे रईयो टाबरो! पण टाबर तो कूदता फिरै। बां रो तो पाळो बकरिया चरै। माल्ला तो बूढियां रै मंडग्या। खड़्यै दिन रिजाई में बड़ै अर भातै जाय'र किरड़ै री भांत नाड़ बारै काढै। पाळै में किरड़ै अर बूढै री एक गत। चौमासै रो सतरंगो किरड़ो पाळै में इकरंगो बणै। काळो मूराड़। सत बायरो। लकड़ी में घाल किन्नै ई बगाद्यो भांवूं। हालै ई कोनी। फगत आंख काढ़बो करै हंगायै पाडै दांई। एन ओ ही हाल बोदियां रो। कैबा चालै- टाबर नै म्हैं पालूं कोनी, जुवान मेरो भाई, बूढियै नै छोडूं कोनी, भावूं ओढै सात रिजाई।पण जुवानां रो हाल ई सूं उल्टो। बां नै ओ पाळो मीठो लागै। मिसरी रै उनमान। नूंवो खून। पाळै नै कांई दिवाळ। बै तो कोढियै रट्ठ सूं आणंद काढणो जाणै। सांप रै फण सूं मिण काढणी आवै बां नै। ई सारू बै इण पाळै रो मजो लेवै। सियाळै री लाम्बी रात रो सुख लूटै।
सियाळो जोरावर रो साथी पण निजोरै रो बैरी। कैबा है- गरीबियै री गरमी, सिमरथ रो सियाळो। पाळै में गरीब में फोडा। ढंगसिर गाबो जु़डै नीं। जूती जु़डै नीं। अर ना सोवण नै बिछावण। पाळै रो असली दु:ख तो पोह री रात में फुटपाथ पर सूत्या जाणै बापड़ा। पण इण में पाळै रो कांई दोस! ओ दोस तो है जिकां रो ई है। पाळो तो पाळो ई है बापड़ो। परकरती रो लाडलो। जकै रो एक न्यारो ई फुटरापो हुवै। ओ रुत रो पातस्या नीं तो बजीर जरूर है। ई रुत में खाणै-पीणै अर पै'रणै-औढणै रो न्यारो ई सुवाद। लोग जमावणो जमावै। पींडिया खावै। खोवो काढै। गाजर-पाक बणावै। घी-दूध खाणै रो ई ईं रुत में मजो है।
आ रुत मरु रै सांवळै गात नै गौरो कर नाखै। उन्याळै अर चौमासै में तलीज्योडो आदमी रुत ईं में टंवरा काढण लागै। उण रै हाडां चामड़ी आवै। क्यूँ के ना गरमी ना तावड़ो। ना ऊमस ना झळ। सो' कीं सीतळ ई सीतळ। जकै में ना माखी ना माछर। ईं वास्तै नां चिरमिराट ना झरळाट। ना खुजली ना खाज। अर ना ई आवै पसेव। डील पड़्यो रैवै पोथी जिसो। अर ओ पोथी जिसो डील पाळै री लुज्जत लूटै। गाबां में गुरक होय'र चूंतरियां पर हथाई करै। होका सुरड़ै। बातां रा बडका पाड़ै। मुंह री भाप बारै काढै। अर घणो पाळो हुवै तो धुंई बाळै। जकी रै च्यारूंमेर बैठ हथाई जोड़े। यूं? पाळै रा है नीं मजा। अर सोवण बगत सोड़ियै-रिजाई में बड़'र बां नै ताता करै। रिजाई नै च्यारूंमेर सूं दाब'र भीतर रो मौसम मन-माफक बणाल्यै। अर पछै लेवै मीठा-मीठा सुपना।
अर अबार बांचो पोह-माह म्हींनै सारू लोक चलत रा ऐ दोय दूहा-
उगमियो उतराध रो, नवजोबन संजोग।
पोस महीनै गोरड़ी, कदै न छंडै लोग।।
पोस महीनै गोरड़ी, कदै न छंडै लोग।।
माघ महीनै सी पड़ै, तिण रुत चलै बलाय।
ऊंडै पड़वै पोढबो, कामण कंठ लगाय।।
ऊंडै पड़वै पोढबो, कामण कंठ लगाय।।
आज रो औखांणो
पोह-खालड़ी खोह, माह-कांबळ वाह।
पूस, चमड़ी खोस। माघ, कंबल फेंक।
पूस महीने में अत्यधिक सर्दी पड़ती है। शीत लहरें चलती हैं। चमड़ी फट जाती है। होंठ फट जाते हैं। माघ महीना इतना सर्द नहीं होता। सुबह व रात के अलावा कंबल की जरूरत नहीं रहती।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
पोह-खालड़ी खोह, माह-कांबळ वाह।
पूस, चमड़ी खोस। माघ, कंबल फेंक।
पूस महीने में अत्यधिक सर्दी पड़ती है। शीत लहरें चलती हैं। चमड़ी फट जाती है। होंठ फट जाते हैं। माघ महीना इतना सर्द नहीं होता। सुबह व रात के अलावा कंबल की जरूरत नहीं रहती।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
No comments:
Post a Comment
आपरा विचार अठै मांडो सा.