Wednesday, January 21, 2009

२२ आंगण-आंगण चरखलो ढाणी-ढाणी ढेरियो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २२/१/२००९
आंगण-आंगण चरखलो
ढाणी-ढाणी ढेरियो

राजस्थान रा गांव निराळा तो अठै रा मिनख भी निराळा। निराळी अठै री रीत-पांत तो निराळी अठै री जिनसां। आं जिनसां रा नांव नूंवी पीढी भूलती जावै। आपणी भासा छीजती जावै। आपां आं जिनसां सूं जु़डी हर बात, हर सबद सूं जाणीजाण हुवण रा जतन करता रैस्यां। आं जिनसां में एक निराली जिनस है, ढेरियो। इं नै ढेरो भी कैवै। कैबा चालै, आंगण-आंगण चरखलो, ढाणी-ढाणी ढेरियो। गांव, गळी, चौपाल, अर खेत-खळै तांइं इं रो पगफेरो।
ढेरियो भोत काम री चीज। आं दिनां तो इं री तार आ जावै। गांवां में तो घणकरा लोग तावड़ो करता, हथायां करता, राह बगता ढेरियो कातता दिखै। ढेरियै पर कोई सूत कातै तो कोई लोगड़। कोई कातर कातै तो कोई जट्ट। कताई पछै आं री रास, जेवड़ी, जेवड़ा, लाव, तांगड़, मांचा, पीढा, मोरखिया, बोरा अर इण भांत री कई दूजी चीजां बणै। जिकी घर अर खेत में पग-पग पर काम आवै। खेती अर ढेरियै रो गहरो नातो। जूनो सम्बंध। मै'णती मिनख रै औसाण में ढेरियो एक पंथ दो काज करै। खेत जाय'र नीरणी ले आवै अर साथै एक ढेरो सूत कात ल्यावै।
ढेरियो इतणा काम करै पण खुद री काया किसी'क? ढेरियै में बिलांत-बिलांत री दोय लकड़ी होवै। बां रै बिचाळै मोरखा होवै। आं मोरखां में डेढ पाव रै सिरियै री करीब डेढ बिलांत लाम्बी एक छड़ घालीजै। आ छड़ काठ री भी होय सकै। आपणी भासा में आं दो लकड़ियां नै गाही अर छड़ नै मझेरू कैवै। मझेरू रै ऊपरलै पासै घुंडी होवै। घुंडी में सूत नै अटकाय'र बंट लगाइजै। काठ रै मझेरू में घुंडी री जागा कील्ली होवै।
कातै जको कतारो। कतारो आपरी कांख में लाम्बी बादी रो एक झोळो राखै। जिकै में सूत, जट्ट या कातर घाल्यां राखै। कातण सूं पै'ली सूत सुळझाणो पड़ै। तार-तार काढनै मोइया बणाइजै। कतारो मोइयां रा तार एक-दूजै सूं जोड़तो अर बंट लगावतो जावै। बंट डावो अर जीवणो जियां ढब बैठै बियां लगा सकै। सूत नै दोलड़ो कर'र दूसर कातै तो डावै काते़डै रै जीवणो अर जीवणै रै डावो बंट लागै। चोखो कतारो एक दिन में कई ढेरा कात देवै। पण अमूमन दोय ढेरा उतरै। काचै सूत रै इं ढेरै रो भार पाइयै सूं लेय'र आध सेर तक होवै। ईं सूं बेसी वजन रो ढेरो कातणो ओखो मानीजै। दोय काचै ढेरां नै एक साथै पळेटण सूं गेडी बणै। गेडी नै फेरूं ढेरै पर कातण सूं पींडी बणै। ईं पींडी नै जद मांचा-पीढा बणावण सारू काम लेइजै तो बो बांण बजै। जे इंर् बाण रा रास, जेवड़ा, मोरखिया का तांगड़ बणावणा होवै तो तांतो बजै। तांतो बांण रो बो रूप है जिकै में बांण कई लड़ो बंटीजै। बांण रो तांतो बणावण सूं पै`ली सूत री पींडी निंदोळणी पड़ै। पींडी नै पाणी में भेवण रो नांव निंदोळणो है। निंदोळण पछै बांण सुखाइजै। पछै तांतो बणाइजै।
ढेरियै री आपरी रुत। डोकरा बतावै कै उन्हाळै में बैसाख-जेठ अर सियाळै में पौह-माह में ढेरियो बेसी कतै। यूं कै आं दिनां खेतां सूं औसाण होवै। ढेरियो इत्तो काम करै। मिनख री पग-पग पर इमदाद करै। फेर ई कई जिग्या ईं नै सुभ कोनी मानै। बिरखा रा दिनां में अर बरसतै में ढेरियो कातणो असुभ मानीजै। ब्याव-सगाई अर दूजा ऐढां-मेढां पर ई ढेरियै नै आपरा हाथ-पग थामणा पड़ै। कई तो कतारै नै टोक ई देवै, '' यूं बंट चढावै, तेरै और काम कोनी कांईं ?'' आपणै 'बंट चढाणो अर 'बंट काढणो' मुहावरा भी चलण में है।
ढेरियै सूं कई और ई फायदा होवै। कैबा चालै, बे'लै नै बदमासी सूझै। ढेरियै सू बेला'ई में काम मिल जावै। ढेरियो कातण सूं डील कई भांत री कसरत करै जिणसूं काया निरोग रैवै अर मन ई को भटकै नीं। गांवां में आज भी ढेरियै री कदर घणी। नूंवी पीढी रै हाथां में जठै बैट-गींडी दीख जावै बठै ई चूंतरियां पर तावड़ो करता भोत-सा जवान ढेरियो कातता भी दीखै।
अर ल्यो, अबार सुणो कन्हैयालालजी सेठिया रो एक गळगचियो-
मिनख कयो- उलझयोड़ी जेवड़ी, म्हैं तनै सुळझा'र थारो कत्तो उपगार करूं हूं! जेवड़ी बोली- तूं किस्यो'क उपगारी है, जको म्हारै सूं छानूं कोनी। कोई और नै उळझाणै खातर म्हनै सुळझातो हुसी!
आज रो औखांणो
कमावै थोड़ो खरचै घणो, पै'लो मूरख उणनै गिणो।
कमाए कम, खर्च करे ज्यादा, बेजोड मूरख का यही लबादा।
आय से अधिक खर्च करने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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