आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २९/१/२००९
अतुल कनक रो जलम १६ फरवरी १९६७ नै रामगंज मंडी (कोटा) में हुयो। राजस्थानी रा चावा-ठावा मंचीय कवि। तीन पोथ्यां छपी। राजस्थानी, हिन्दी अर अंग्रेजी मांय सात हजार सूं बेसी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपी। आकाशवाणी अर दूरदर्शन सारू मोकळो लेखन। हाड़ौती राजस्थानी भासा री घणी प्यारी बोली। आपरी भासा में हाड़ौती बोली री सांगोपांग रळक आवै। आओ, आज आं रै इण लेख में आपणी भासा री हाड़ौती बोली रो स्वाद चाखां।
तारीख- २९/१/२००९
अतुल कनक रो जलम १६ फरवरी १९६७ नै रामगंज मंडी (कोटा) में हुयो। राजस्थानी रा चावा-ठावा मंचीय कवि। तीन पोथ्यां छपी। राजस्थानी, हिन्दी अर अंग्रेजी मांय सात हजार सूं बेसी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपी। आकाशवाणी अर दूरदर्शन सारू मोकळो लेखन। हाड़ौती राजस्थानी भासा री घणी प्यारी बोली। आपरी भासा में हाड़ौती बोली री सांगोपांग रळक आवै। आओ, आज आं रै इण लेख में आपणी भासा री हाड़ौती बोली रो स्वाद चाखां।
हाड़ौती बोली में राजस्थानी री बात
-अतुल कनक
भासान् का मसला पे आपणां राजनीतिक स्वारथ साधबा की जुगत सुतंतर भारत बेई कोय नुई बात कोय न्हं। स्वारथ का रथ पे असवारी करतां-सतां जिम्मेदार मनख्यां ने जठी नरी भासान् के तांई ऊ मुकाम भी बख्श्यो, जीं की वे सांच्या ही हकदार न्हं छी (म्हूँ नांव अर नजीर दे'र कोय विवाद न्हं पनपाबो चावूं), उठी ही राजस्थानी जशी तागतवर भासा सूं सौतेलो बर्ताव भी कर्यो। म्हां ईं बात को निर्णय बगत के माथै छोड़ भी द्यां के आज़ादी का अतना बरस पाछै भी राजस्थानी नै संवैधानिक मानता न्हं मिलबा देबा का जिम्मेदार कुण छै, तो भी या टीस तो रह रह'र साळै ई छै के राजस्थानी अबार भी संविधान की आठवीं अनुसूची में आपणो मुकाम न्हं पा सकी।
लारला दनां राजस्थानी भासा नै संवैधानिक मानता न्ह मिल पाबा को दरद काळज्या में ऊँ बग़त फेर साळ्यो, जद लगै-टगै सोळह विधायकां विधायक पद की आन बेई राजस्थानी भासा में शपथ लेणी चाही, पण वे ईं लेखे आपणी इच्छा न्ह पूर सक्या। क्यूं के राजस्थानी नै संविधान की आठवीं अनुसूची में भैळै न्हं करयो गयो। कांई यो लोकतंत्र का मूळ भाव की आड़ी स्वारथ की राजनीति की चींगण्या कोय न्हं के राजस्थान प्रदेस की विधानसभा में एक विधायक चाह्वै तो कोंकणी अर नेपाली जशी भासान् में तो शपथ ल्ये सकै छै पण राजस्थानी में शपथ न्हं ल्ये सकै?
पण ईं चींगण्यां का महताऊ पख भी छै। या घटना वां लोगां के तांई बग़त को ऊथळो छै जे ये कह'र मानता की मांग की मुहिम की आड़ी सूं उदासीन हो ज्यावै छै के मानता मिलबा सूं भासा की साख में सुरखाब का पाँखड़ा न्ह लाग ज्यावैगा। या घटना आम आदमी के तांई भी स्यात् ईं बात को अहसास करा सकै के मायड़ भासा नै मानता न्हं मिलबो जूण नै कशी-कशी अबखायां सूं दो-च्यार करा सकै छै।
भारत सरकार को गजट भी मानै छै के देस में जे भासावां सैं सूं बेसी बापरी ज्यावै छै, राजस्थानी वां मं सूं एक छै। न्हं जाणै कितणी जगत पोसाळां में राजस्थानी पढ़ाई ज्यावै छै। पाकिस्तान सूं ले'र नेपाल अर रूस तांई राजस्थानी की भासाई रंगत का दरसाव होवै छै। जीं राजस्थानी की महताऊ पोथ्यां सूं राष्ट्रभासा हिन्दी की थरपना मानी ज्यावै छै अबार भी जीं राजस्थानी में मांडबा हाळां की एक पूरी पांत छै। जे ऊ ही राजस्थानी आपणी मानता सूं बरज दी ज्यावै तो ओछोपण भासा को न्हं, मानता देबा हाळां को साबित होवै छै।
एक मसलो हमेस राजस्थानी की मानता के आड़े फरै छै। नरा लोग क्है छै के राजस्थानी में एकरूपता कोय न्हं अर मानता देती बग़तां कश्या रूप नै मानता द्यां! यो सवाल जबर हो ज्यावै छै। यो सवाल खड़्यो करबा हाळा स्यात् भासान् का चरित्तर न्हं पहचाणै। संसार की सगळी सामरथवान भासान् का घणकरा रूप चलन में होवै छै। न्हं अंग्रेजी ईं को अपवाद छै। नाळी-नाळी बोलियां अर उपबोलियां तो भासा को प्राणतत्त्व होवै छै। कांईं बिहार में बापरबा हाळी हिन्दी अर मुंबई में बोली जाबा हाळी हिन्दी एक स्यारकी छै।
म्हूं मानूं छूं के एकरूपता की दीठ सूं महताऊ जतन बग़त की दरकार छै। पण ये एकरूपता पोथियां के पांण अर बुद्धिजीवियां के बेई ही हो सकै छै। लोक में जीवती रहबा हाळी भासावां अर बोलियां लोकचलन की गति-गैल सूं ही चालै छै। राजस्थानी की मानता के आड़े एकरूपता को मसलो रळकाबा हाळा अर 'कशी राजस्थानी' को सवाल खड़ो करबा हाळा भी ईं सांच ने प्हैचाणै छै। पण ज्यां को मकसद ई कुचमाद करबो होवै, वां ने गाल बजाबा सूं कुण बरज सकै छै?
न्हं तो आप बताओ, यो सवाल ऊं बगत खड़ो क्यूं न्हं होयो जीं बग़त केन्द्रीय साहित्य अकादेमी ने भारत की मोकळी भासान् के लारै राजस्थानी भासा पे भी सालीणो ईनाम देबो सरू कर्यो? पच्चीस बरस सूं राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी, बीकानेर में काम कर रही छै अर कशी राजस्थानी को सवाल न्हं उठ्यो। पाठ्यक्रमां में राजस्थानी पढ़ाई ज्यावै छै अर वां में सगळा राजस्थान का रचनाकारां की रचनावां छै तो फेर कशी राजस्थानी को सवाल कठी सूं उठ्यो? पच्चीस बरस की आपणी कवि-सम्मेलनी जातरा में म्हंनै पायो छै के राजस्थानी का नरा लाडेसर अर मानीता कवि राजस्थान में ही न्हं राजस्थान सूं बारे भी चाव सूं सुण्या अर गुण्या जावै छै। फेर 'कशी राजस्थानी' को सवाल फगत कुचमाद कोय न्हं तो कांई छै?
नाळा-नाळा रूपां में बापरबा जाबा हाळी राजस्थानी आपणां प्राणतत्त्व में एक छै। ईं बात को एक बड़ो प्रमाण तो यो ही छै के ईं बेर विधानसभा का प्हैला सत्र में विधायक पद की शपथ राजस्थानी में लेबा की मांग करबा हाळा जनप्रतिनिधि राजस्थान का सगळा अंचलां सूं जीत'र विधानसभा में पूग्या छै। राजस्थानी भासा की बोलियां अर उपबोलियां तो गंगा की अशी धारां की नांई छै, जे देस का नाळा-नाळा हिसान् सूं माटी की सौरम समेट गंगा में खमावै छै अर ऊं ईं पापधोवणी बणावै छै।
लारला दनां राजस्थानी भासा नै संवैधानिक मानता न्ह मिल पाबा को दरद काळज्या में ऊँ बग़त फेर साळ्यो, जद लगै-टगै सोळह विधायकां विधायक पद की आन बेई राजस्थानी भासा में शपथ लेणी चाही, पण वे ईं लेखे आपणी इच्छा न्ह पूर सक्या। क्यूं के राजस्थानी नै संविधान की आठवीं अनुसूची में भैळै न्हं करयो गयो। कांई यो लोकतंत्र का मूळ भाव की आड़ी स्वारथ की राजनीति की चींगण्या कोय न्हं के राजस्थान प्रदेस की विधानसभा में एक विधायक चाह्वै तो कोंकणी अर नेपाली जशी भासान् में तो शपथ ल्ये सकै छै पण राजस्थानी में शपथ न्हं ल्ये सकै?
पण ईं चींगण्यां का महताऊ पख भी छै। या घटना वां लोगां के तांई बग़त को ऊथळो छै जे ये कह'र मानता की मांग की मुहिम की आड़ी सूं उदासीन हो ज्यावै छै के मानता मिलबा सूं भासा की साख में सुरखाब का पाँखड़ा न्ह लाग ज्यावैगा। या घटना आम आदमी के तांई भी स्यात् ईं बात को अहसास करा सकै के मायड़ भासा नै मानता न्हं मिलबो जूण नै कशी-कशी अबखायां सूं दो-च्यार करा सकै छै।
भारत सरकार को गजट भी मानै छै के देस में जे भासावां सैं सूं बेसी बापरी ज्यावै छै, राजस्थानी वां मं सूं एक छै। न्हं जाणै कितणी जगत पोसाळां में राजस्थानी पढ़ाई ज्यावै छै। पाकिस्तान सूं ले'र नेपाल अर रूस तांई राजस्थानी की भासाई रंगत का दरसाव होवै छै। जीं राजस्थानी की महताऊ पोथ्यां सूं राष्ट्रभासा हिन्दी की थरपना मानी ज्यावै छै अबार भी जीं राजस्थानी में मांडबा हाळां की एक पूरी पांत छै। जे ऊ ही राजस्थानी आपणी मानता सूं बरज दी ज्यावै तो ओछोपण भासा को न्हं, मानता देबा हाळां को साबित होवै छै।
एक मसलो हमेस राजस्थानी की मानता के आड़े फरै छै। नरा लोग क्है छै के राजस्थानी में एकरूपता कोय न्हं अर मानता देती बग़तां कश्या रूप नै मानता द्यां! यो सवाल जबर हो ज्यावै छै। यो सवाल खड़्यो करबा हाळा स्यात् भासान् का चरित्तर न्हं पहचाणै। संसार की सगळी सामरथवान भासान् का घणकरा रूप चलन में होवै छै। न्हं अंग्रेजी ईं को अपवाद छै। नाळी-नाळी बोलियां अर उपबोलियां तो भासा को प्राणतत्त्व होवै छै। कांईं बिहार में बापरबा हाळी हिन्दी अर मुंबई में बोली जाबा हाळी हिन्दी एक स्यारकी छै।
म्हूं मानूं छूं के एकरूपता की दीठ सूं महताऊ जतन बग़त की दरकार छै। पण ये एकरूपता पोथियां के पांण अर बुद्धिजीवियां के बेई ही हो सकै छै। लोक में जीवती रहबा हाळी भासावां अर बोलियां लोकचलन की गति-गैल सूं ही चालै छै। राजस्थानी की मानता के आड़े एकरूपता को मसलो रळकाबा हाळा अर 'कशी राजस्थानी' को सवाल खड़ो करबा हाळा भी ईं सांच ने प्हैचाणै छै। पण ज्यां को मकसद ई कुचमाद करबो होवै, वां ने गाल बजाबा सूं कुण बरज सकै छै?
न्हं तो आप बताओ, यो सवाल ऊं बगत खड़ो क्यूं न्हं होयो जीं बग़त केन्द्रीय साहित्य अकादेमी ने भारत की मोकळी भासान् के लारै राजस्थानी भासा पे भी सालीणो ईनाम देबो सरू कर्यो? पच्चीस बरस सूं राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी, बीकानेर में काम कर रही छै अर कशी राजस्थानी को सवाल न्हं उठ्यो। पाठ्यक्रमां में राजस्थानी पढ़ाई ज्यावै छै अर वां में सगळा राजस्थान का रचनाकारां की रचनावां छै तो फेर कशी राजस्थानी को सवाल कठी सूं उठ्यो? पच्चीस बरस की आपणी कवि-सम्मेलनी जातरा में म्हंनै पायो छै के राजस्थानी का नरा लाडेसर अर मानीता कवि राजस्थान में ही न्हं राजस्थान सूं बारे भी चाव सूं सुण्या अर गुण्या जावै छै। फेर 'कशी राजस्थानी' को सवाल फगत कुचमाद कोय न्हं तो कांई छै?
नाळा-नाळा रूपां में बापरबा जाबा हाळी राजस्थानी आपणां प्राणतत्त्व में एक छै। ईं बात को एक बड़ो प्रमाण तो यो ही छै के ईं बेर विधानसभा का प्हैला सत्र में विधायक पद की शपथ राजस्थानी में लेबा की मांग करबा हाळा जनप्रतिनिधि राजस्थान का सगळा अंचलां सूं जीत'र विधानसभा में पूग्या छै। राजस्थानी भासा की बोलियां अर उपबोलियां तो गंगा की अशी धारां की नांई छै, जे देस का नाळा-नाळा हिसान् सूं माटी की सौरम समेट गंगा में खमावै छै अर ऊं ईं पापधोवणी बणावै छै।
आज रो औखांणो
मां री गाळियां, घी री नाळियां।
मां की गालियां, घी की नालियां।
मां ललकारती-फटकारती है तो संतान के भले की खातिर। उसके मन में दूर-दूर तक कोई दुर्भावना नहीं रहती। मां की गालियां ममता का ही दूसरा रूप है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email-aapnibhasha@gmail.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
मां री गाळियां, घी री नाळियां।
मां की गालियां, घी की नालियां।
मां ललकारती-फटकारती है तो संतान के भले की खातिर। उसके मन में दूर-दूर तक कोई दुर्भावना नहीं रहती। मां की गालियां ममता का ही दूसरा रूप है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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