तारीख-३०/१/२२०९
रंग-रंगीला रंग
लारलै दिनां आपां रंगां रा नांव बांच्या। आपणै लोक मांय ठाह नीं कित्ता-कित्ता नांव बिखर्या पड़्या है। जरूरत है वां नै अंवेरण री। वां नै ठाया राखण री। आप भी आ सेवा कर'र आपरी हाजरी लगवा सको हो। आज कीं रंगां रा नांव और हाथ लाग्या है। बांचो सा!अब्बासी, आबी, आभासांईं, आभैवरणो, उन्नावी, कपासी, करजवी, काफरी, काही, किसमिसी, कुमैत, कोकई, कोकाकोला, कोच, कोढ़िया, क्रीमकलर, गेरूवरणो, चटणी रंग, चप, जंगाली, जमुरुदी, जाम्बू रंग, जीलानी, तांबल, तीतरवरणो, तूतिया, तूसी, दाड़मियां, दूधिया, नाफरमांनी, नीला, पिस्ताकी, पोपटी, फालसई, बादळवरणो, बादळसांईं, बुर्रा, भंवर, मजीठिया, रूपैलो, लाजवर्दी, सब्जकाही, समदरलैर, सरदई, सावरी, सिंगरफी, हरसिंगारी।
कीं गूढा रंगां सारू ऐ नांव लिया जावै-
उजळो बुराक, काळो किट्ट, काळो ध्राक, काळो भंवर, काळो मिट्ठ, धोळो धक्क, धोळो धट्ट, धोळो फट्ट, पीळो केसर, रातो चुट्ट, रातो चोळ, रातो लाल, लाल चुट्ट, लाल सुरंग, लीलो चैर, लीलो स्याह, सफेद झक्क, सफेद बुराक।आपणी भासा री बोलियां रा रंग ई निराळा। न्यारी-न्यारी बोली रा न्यारा-न्यारा ठाठ। शेखावाटी बोली में मजाक बड़ी जबरी औपै। ल्यो, आज बांचो-
मसखरी
(१)
गांव में एक लुगाई बुहारी निकाळ रैयी थी। चौक में उण रो धणी बैठ्यो थो। बा बुहारी काडती-काडती उणरै कनै आई तो बोली, 'परै सी सरकियो।'आदमी उठकै पौळी में आगो। लुगाई भी बुहारी काडती-काडती पौळी में आगी और धणी नै बोली, 'आगै नै सरकियो दिखां।'
आदमी बारलै चौक में आगो। थोड़ी ताळ पछै बठै भी आगै सरकणै की बात कैयी। बो उठकै घरां रै बारणै दरूजै पर आगो अर चबूतरै पर बैठगो। लुगाई बुहारती-बुहारती घरां कै बारै आई तो पति नै बोली, 'सरकियो दिखां।'
आदमी आखतो होय'र मुंबई चल्यो गयो। बठै सूं चिट्ठी लिखी- 'अब भी तेरै अड़ूं हूं कै और आगै सरकूं? आगै समंदर है, देख लिए।'
(2)
कंजूस लुगाई आपरै धणी नै जोर-जोर सूं धमका रैयी थी। पाड़ोसण पूछ्यो- 'कैयां गुस्सै हो'री है?'लुगाई बोली- 'म्हैं पतिदेव नै कैयी थी कै दो-दो सीढी एक सागै चढियो जिण सूं जूता कम टूटैंगा।'
पाड़ोसण बोली- 'पण ईं में नाराज होणै की के बात है। बै थारो कैणो मान्यो कोनी के?'
लुगाई बोली- 'कैणो तो मान लियो, पण बै दो-दो की जगां, च्यार-च्यार सीढी चढ़ बैठ्या, सो नूंई पैंट पड़वा ल्याया।'
आज रो औखांणो
संपत हुवै तो घर, नींतर भलो परदेस।
घर में सुख-शांति और चैन का अभाव हो तो परदेस जाकर बसना उचित है। संदेश यह है कि परिवार के सभी लोगों को हेल-मेल से रहना चाहिए।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
संपत हुवै तो घर, नींतर भलो परदेस।
घर में सुख-शांति और चैन का अभाव हो तो परदेस जाकर बसना उचित है। संदेश यह है कि परिवार के सभी लोगों को हेल-मेल से रहना चाहिए।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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