Thursday, January 15, 2009

१५ गु़ड री घाळ, कुलड़ियै में घाल

आपणी भाषा- आपणी बात
तारीख-१५/१/२००९
गु़ड री घाळ,
कुलड़ियै में घाल
पां पैली भी बतळाया कै 'ळ' ध्वनि राजस्थानी री खास पिछाण है। इणरो उच्चारण राजस्थानियां री खासियत है। पण कई भाई 'ल' अर 'ळ' रो भेद नीं जाणै अर आं दोनुवां नै एक ई मानै। बै जद राजस्थानी में मांडण री आफळ मतलब कोसिस करै तो 'ल' नै 'ळ' मांड देवै। जियां लिखणो तो हुवै 'लाल' अर मांडै 'ळाळ'। आज आपां आं आखरां रो भेद समझण सारू कीं ओळ्यां बांचां-
तोलो अर तोळो
एक आदमी सुनार री दुकान पर आयो अर बोल्यो, सोनीजी, आ बूजली तोलो नीं!
सोनीजी तोली अर बोल्या, पूरी एक तोळो सा!
बोळो अर बोलो
एक हो बोळो। म्हैं बीं नै एक बात तीन बारी बता दी, फेर ई बो तो बोलतो जावै, बोलो, बोलो, बोलो तो!
पाळो अर पालो
-पाळो१ जबरो है सा!
-अरै, कोई आं टाबरां नै पालो२, पाळै में उघाड़ा फिरै।
-पाळो३ रै, कोई तो आं गायां नै पाळो भई, भूखां मरती अकूरड़ियां ऊपर पूर खावै।
-बोरड़ी रो पालो४ झाड़ बकरियां चरांवता।
-पाळो-पाळो५ चाल म्हैं तो पूग लियो सासरै।
घाळ अर घाल
गु़ड री घाळ, कुलड़ियै में घाल!
झाल अर झाळ
म्हारै हाथ सूं कळी फूटगी तो दादो सा नै घणी झाळ६ आई। म्हारो बाहु़डो झाल७ लियो, बोल्या- फोड़दी तो अब झाळ८ तूं ई लगवा।
खेल अर खेळ
खेल-खेल में गींडी खेळ में जा पड़ी।
गाळ अर गाल
गाळ काढै तो गाल पर थाप खासी।
आं सबदां नै बोलो अर सावळ बांचणा-मांडणा सीखो-
ढाल, ढाळ, खाल, खाळ, फाल, फाळ, भाल, भाळ, साल, साळ, टाल, टाळ, डोल, डोळ, ढोल, ढोळ।
दूहो सुणो सा!
अरै पपीहा बावळा, आधी रात न कूक।
होळै-होळै सिळगती, सो तैं डारी फूंक।।
आज रो औखांणो
टुकड़ा दे-दे बछड़ा पाळ्या, सींग बध्या जद मारण आया।
खिला-पिलाकर बछड़ों का पालन-पोषण किया, किंतु जब बड़े हुए तो पोषक को ही मारने लगे।
यह कहावत खासकर ऐसे कृतघन् पुत्रों के लिए कही जाती है जो बड़े होकर अपने मां-बाप पर रौब झाड़ने लगते हैं।
१. सरदी, २. रोको, ३. पालन-पोषण करो, ४. सूखा पत्ता, ५. पैदल, ६. रीस, ७. पकड़, ८. टांको।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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