आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २/१/२००९
पै'ली आपणी भासा मुड़िया लिपि में लिखीजती। मुड़िया नै 'महाजनी' अर 'बाणियावटी' नावं सूं भी जाणता। पछै मुड़िया रो संवरे़डो रूप बरतीजण लाग्यो, देवनागरी। हिन्दी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, मैथिली, नेपाली, मणिपुरी अर डोगरी री लिपि भी देवनागरी है। इण वास्तै आपां नै वर्णमाळा सीखण में घणी खेचळ नीं करणी पड़ै। राजस्थानी में स्वर नै 'बिलाठी' अर व्यंजन नै 'कक्को" कैवै। हिन्दी अर राजस्थानी रा बिलाठी मतलब स्वर ध्वनियां एकसी है, पण ए, ऐ नै अे, अै लिख्या जावै। कक्को मतलब व्यंजन ध्यनियां भी लगैटगै एकसी है। आजकाल क-कबूतर, ख-खरगोस, ग-गमला बोलां, पण पै'ली कक्को कोडरो, खख्खो खाजूलो, गग्गो गोरी गाय बोलता। राजस्थानी में 'ल' रै पछै 'ळ' ध्वनि भी लिखीजै। 'श' अर 'ष' रो उच्चारण राजस्थान में नीं होवै। राजस्थानी में श, ष, स तीनूं ध्वनियां 'स' सूं ई लिखीजै। 'ष' पै'ली लिखता, पण बोलता 'ख'। जियां लिख्याेडो होवतो 'भाषा' बोलता 'भाखा'।
'ळ' रो उच्चारण राजस्थानियां री खासियत है। बरवाळी, बिरकाळी, धोळीपाळ आद बोल्या तो जावै पण लिख्याेडा नीं दिखै। आं री जिग्यां बरवाली, बिरकाली, धोलीपाल लिख्याेडा लाधै। अपरोगा तो घणा ई लागै, पण कांईं जोर चालै। म्हारै भी समझ में नीं आवै कै चावळी नै चावली अर तोळाराम नै तोलाराम क्यूँ लिखै? आपां आपणी भासा सीखंाला तो अै नांव भी सही लिखंाला।
ल्यो ऐक बात सुणो, जाबक साची!
बीकानेर रा महाराजा गंगासिघजी राज री नौकरी मांय पै'ल हमेसां देसी लोगां री राखता। नौकरी सारू टाळती वगत महाजन राजा हरिसिंघजी इन्टरव्यू मांय बैठता अर उमेदवार नै ओ दूहो बांचण सारू कैवता-
तारीख- २/१/२००९
कक्को कोडरो, खख्खो खाजूलो
पै'ली आपणी भासा मुड़िया लिपि में लिखीजती। मुड़िया नै 'महाजनी' अर 'बाणियावटी' नावं सूं भी जाणता। पछै मुड़िया रो संवरे़डो रूप बरतीजण लाग्यो, देवनागरी। हिन्दी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, मैथिली, नेपाली, मणिपुरी अर डोगरी री लिपि भी देवनागरी है। इण वास्तै आपां नै वर्णमाळा सीखण में घणी खेचळ नीं करणी पड़ै। राजस्थानी में स्वर नै 'बिलाठी' अर व्यंजन नै 'कक्को" कैवै। हिन्दी अर राजस्थानी रा बिलाठी मतलब स्वर ध्वनियां एकसी है, पण ए, ऐ नै अे, अै लिख्या जावै। कक्को मतलब व्यंजन ध्यनियां भी लगैटगै एकसी है। आजकाल क-कबूतर, ख-खरगोस, ग-गमला बोलां, पण पै'ली कक्को कोडरो, खख्खो खाजूलो, गग्गो गोरी गाय बोलता। राजस्थानी में 'ल' रै पछै 'ळ' ध्वनि भी लिखीजै। 'श' अर 'ष' रो उच्चारण राजस्थान में नीं होवै। राजस्थानी में श, ष, स तीनूं ध्वनियां 'स' सूं ई लिखीजै। 'ष' पै'ली लिखता, पण बोलता 'ख'। जियां लिख्याेडो होवतो 'भाषा' बोलता 'भाखा'।
'ळ' रो उच्चारण राजस्थानियां री खासियत है। बरवाळी, बिरकाळी, धोळीपाळ आद बोल्या तो जावै पण लिख्याेडा नीं दिखै। आं री जिग्यां बरवाली, बिरकाली, धोलीपाल लिख्याेडा लाधै। अपरोगा तो घणा ई लागै, पण कांईं जोर चालै। म्हारै भी समझ में नीं आवै कै चावळी नै चावली अर तोळाराम नै तोलाराम क्यूँ लिखै? आपां आपणी भासा सीखंाला तो अै नांव भी सही लिखंाला।
ल्यो ऐक बात सुणो, जाबक साची!
बीकानेर रा महाराजा गंगासिघजी राज री नौकरी मांय पै'ल हमेसां देसी लोगां री राखता। नौकरी सारू टाळती वगत महाजन राजा हरिसिंघजी इन्टरव्यू मांय बैठता अर उमेदवार नै ओ दूहो बांचण सारू कैवता-
पळळ पळळ पावस पड़ै, खळळ खळळ नद खाळ।
भळळ भळळ बीजळ भळै, वाह रे वाह बरसाळ।।
इण दूहै नै बोलतां राजस्थान सूं बारला मिनख 'खलल खलल' करण लागता। तद वां नै जवाब दिरीजतो-''अठै रा लोग फ गत राजस्थानी जाणै अर समझै अर म्हांनै वां सूं ई काम पड़ै, इण वास्तै राजस्थानी रा जाणकार लोगां नै ई इण राज मांय नौकरी मिलसी, दूजां नै नीं।''भळळ भळळ बीजळ भळै, वाह रे वाह बरसाळ।।
आज रो औखांणो
कक्का री लगमात ई नीं जांणै अर नांव ग्यानचंद।
ककहरे की मात्रा तक नहीं जाने और नाम ज्ञानचंद। जो व्यक्ति बातें तो ऊंची बघारे और जाने कुछ भी नहीं।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
कक्का री लगमात ई नीं जांणै अर नांव ग्यानचंद।
ककहरे की मात्रा तक नहीं जाने और नाम ज्ञानचंद। जो व्यक्ति बातें तो ऊंची बघारे और जाने कुछ भी नहीं।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
ष' पै'ली लिखता, पण बोलता 'ख'।
ReplyDelete- साची बात आ है कै आपां ष नीं ख इज लिखता हा. गुजराती भासा राजस्थानी सूं निकळी है, आपणी मुड़ीया लिपी, पंजाबी री गुरुमुखी अर अबार री गुजराती सब री पुराणी राजस्थानी लिपी ही. महाजनी पंजाबी भासा री ईं एक खास लिपी ही. भोजपुरी अर दूजी बिहार री भासा लिखण मांय वापरीजती एक लिपी ही, जिणनै कैथी केवता.
इण सब लिपीयां रौ अध्ययन कर्या ठा पड़ै कै आपणी भासा मांय ख अबार री देवनागरी रै ष रै ज्यूं लिखीजतौ.
मराठी भासा लिखण मांय मोड़ी लिपी वापरता हा. म्हे अजय नै मोड़ी लिपी रा सेंपल भेज चुक्यौ हूं, अगर आप देखनै म्हनै बता सकौ कै राजस्थानी अर मोड़ी लिपी मांय कांई समानता ही, आ आपणी मुड़िया लिपी तौ नीं है, क्युं कै म्हारी जाणकारी प्रमाणे मुड़िया लिपी महाजनी रौ सुद्द रुप है जिणमांय मात्रावां रौ उपयोग करीजतौ.