Friday, March 13, 2009

१४ घाघरै में अलार्म घड़ी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १४//२००९

घाघरै में अलार्म घड़ी

बैजनाथ पंवार राजस्थानी रा ख्यातनांव साहित्यकार। जलम सावण सुदी सात्यूं वि.सं. 1981 नै रतननगर, जिला-चूरू में। राजस्थानी रा चर्चित कथाकार। मोकळी पोथ्यां अर मोकळा मान-सनमान। आजकाल चूरू बसै। आं रा छोटा-छोटा संस्मरण घणा प्यारा अर असरदार। बांचो एक बानगी।

-बैजनाथ पंवार

न् 1954 री बात है। म्हैं भादरा तहसील रै एक गांव री स्कूल में अध्यापक हो। स्कूल में झाड़ा-बुहारी अर पाणी रा घड़िया लावण सारू एक दादी ही। बीं रो एक बेटो ग्राम पंचायत रो चपरासी हो। बो भी कणाई-कणाई स्कूल आ'र आपरी मां नै काम में सा'रो लगा दिया करतो। म्हैं शिक्षा विभाग री मंजूरी सूं ग्राम पंचायत में सैकेटरी रो काम भी करिया करतो।
स्कूल में म्हारी एक निजी अलार्म घड़ी ही। कई बार भादरा जावणो पड़तो तद अलार्म लगा'र सोंवतो। स्कूल रै टेम पर घंटी भी अलार्म नै देख'र ई बजाया करता। ठेसण जावणियां भी गाडी रो टेम बूझ लिया करता। बां दिनां आजकाल री दांई हर कोई रै कनै घड़ी कोनीं हुया करती।
एक दिन स्कूल री छुट्टी रै दिन म्हारी अलार्म घड़ी गायब हुयगी। म्हैं स्कूल रै दोनूं-तीनूं कमरां में देखली। टाबरां नै बूझ्यो, पण को मिली नीं। म्हारै घणी गिरगिराटी हुई। उजाड़ री समाई भी हुवणी दो'री। बीं बगत दादी स्कूल री झाड़ा-बुहारी कर'र निसरण लागी तो चाणचूकै अलार्म री घंटी सुणीजी। म्हैं अठीनै-बठीनै जोयो तो कठैई कीं को सूझ्यो नीं। म्हैं घणो ध्यान लगा'र सुण्यो अर देख्यो तो अलार्म घड़ी तो दादी रै घाघरै में बाजै। दादी आपरै घाघरै नै घणोई दाबै पण अलार्म किसी ढबज्या। छेकड़ दादी शर्मींदी हुय'र बैठगी। अणपढ़ लुगाई। घड़ी री अलार्म बंद करणी आवै नीं। छेकड़ अलार्म री चाबी खतम हुवणै सूं घंटी भी ढबगी। म्हनैं अचंभो हुयो अर सागै-सागै हाँसी भी आवै। दादी री फोटू देखण लायक ही। म्हैं बूझ्यो, दादी आ बात अयां कीकर हुई?
दादी नीचै धूण घाल्यां बोली, अलमारी में घड़ी पड़ी देख'र म्हारो मन चालग्यो। राम निसरग्यो। घड़ी उठाली, पण लुकावण नै जगां को लादी नीं, जद नाड़ै सूं बांध'र घाघरै में लटकाली। म्हनै कांईं ठाह इणमें कांईं बला ही, जकी आयां अयां रोळो करसी। म्हैं दादी नै हिंवळास बधांवतो बोल्यो- जा, थारै घरै जा। म्हैं आ बात कोई नै को बताऊं नीं।
दादी आपरै घाघरै रै नाड़ै सूं घड़ी खोल'र म्हनै सम्हळाई। गोडां पर हाथ टेक'र उठी अर धीरै-धीरै आपरै घर कानी रिगसगी। अब भी जद-जद घड़ी रै अलार्म देवूं तो दादी वाळी बात याद आवै अर साथै हाँसी आए बिना भी को रैवै नीं।

आज रो औखांणो

मन तो देवां रा ई डिगै।

मन तो देवताओं के भी डिगते हैं।

मन की चंचलता के लिए मनुष्य को दोषी नहीं मानना चाहिए, जबकि देवताओं का मन भी चंचल हो जाता है।



2 comments:

  1. Bhai Stayanaryan,Vinod,
    Nameskar,
    Aaj ro Bejanth panwer.ro lekh pedyo bhut hi nirasa jnek ho.eya lage rehyo hai ki Bhasa aur prempera or sanskirti aas-pas hi koni.theye e kolam ro stter kuye su bhi nichhye le aaya.mai baat kera dhorye or khejari su bhi unchhi. mai aapnye comments mai bhi bikye sirsek ko sewad koni likh saku.keyoki era pathak sagla verg hai.Isaa chutkala likhna hai to bhut bherya pedya hai mahri mayed bhasha mai.
    Kirpya isaa lekh chutkal walla dobara ne diyo to ie kalam kahatir bhut aachyo hai.Mhanye sewesth or paviter lekh hi chayie.
    Mai ki jayda hi likh diyo hai inhe mahsus na kerya aa mharye dil ri baat hi
    NARESH MEHAN
    9414329505

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  2. jordar hansi ri bat batai in saru thane mokla rang
    isa lekh pedne su pathak roo man khush hoy jave.
    giriraj upadayay
    9828911121 bikaner

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