तारीख- ७/३/२००९
रूठे मिलते हैं यार होली में
होळी हाजर। च्यारूं कूंटां हरख ई हरख। रंग-गुलाल गालां चढण सारू त्यार। खेती हिलोरा मारै। रंग अर उच्छब री ईं बेळा प्रेम रंग सैं सूं गाढो। मनमुटाव मिटै। मेळजोळ बधै। होळी री रामास्यामां रा दिन। बधाइयां देवै। नूंत मनावै। मनवार करै। सागै जीमै। टाबरां सूं बडेरां तक, सगळां री रग-रग नाचै। आंगण सूं गुवाड़, गुवाड़ सूं गळी, गळी-गळी सूं गाम-गाम अर सै'र-सै'र, रंग ई रंग, मस्ती ई मस्ती। लोग इणनै हिंदुवां रो त्यूंहार बतावै। पण इणनै तो मुसळमान अर सिक्ख भी मनावै।
आपणै देस रा मुसळमानां रो भी होळी में सांगोपांग सीर। हिंदु अर मुसळमान दोनूं कोमां एक दूजै रा तिंवार घणै हरख-उमाव सागै मनावै। इतिहास में ऐड़ी बातां भरी पड़ी है। होळी री रंगीनी, मस्ती अर राग-रंग सूं रीझ'र मुगल बादस्यावां आपरै दरबार में होळी मनावण री परम्परा सरू करी। राज-म्हैल में दिन रा रंग रमण री छूट अर रात नै गाणां री मेहफलां जु़डती। अकबर रै साही दरबार में सरू कियोड़ी होळी कई पीढियां तांईं बराबर मनाईजती रैयी। बहादुरशाह जफर री बणायोड़ी होळी संबंधी रचनावां घणी चावी हुई-
एक दूजै मुसळमान शायर कैयौ कै-
आपणै देस रा मुसळमानां रो भी होळी में सांगोपांग सीर। हिंदु अर मुसळमान दोनूं कोमां एक दूजै रा तिंवार घणै हरख-उमाव सागै मनावै। इतिहास में ऐड़ी बातां भरी पड़ी है। होळी री रंगीनी, मस्ती अर राग-रंग सूं रीझ'र मुगल बादस्यावां आपरै दरबार में होळी मनावण री परम्परा सरू करी। राज-म्हैल में दिन रा रंग रमण री छूट अर रात नै गाणां री मेहफलां जु़डती। अकबर रै साही दरबार में सरू कियोड़ी होळी कई पीढियां तांईं बराबर मनाईजती रैयी। बहादुरशाह जफर री बणायोड़ी होळी संबंधी रचनावां घणी चावी हुई-
' क्यूँ मोरे रंग की मारी पिचकारी
देखो कुंवर जी म्हैं दूंगी गारी।'
औरंगजेब जिसै कट्टर बादस्या रै बगत में ई होळी मनाईजती। उणरै सेनापति शाइस्तखां रो होळी रमतां रो चितराम दिल्ली रै राष्ट्रीय संग्रहालय में मौजूद है। काशी रै हाकम मीर रूस्तम अली 'बुढवा मंगळ' रै संगीत मेहफल री सरूआत करी। उणरै कैद होयां गणिकावां गायो-देखो कुंवर जी म्हैं दूंगी गारी।'
'कहां गये मेरे होली खिलैया?
सिपाही रूस्तम अली बांके सिपहैया।'
मुसळमान कवियां होळी माथै घणी कलम चलाई। फरहती री एक रचना इण भांत है-सिपाही रूस्तम अली बांके सिपहैया।'
'खेलत बसंत पिया प्यारी संग
भर-भर पिचकारी मारत अंग
केसर रंग छिटकत अंग-अंग।'
भर-भर पिचकारी मारत अंग
केसर रंग छिटकत अंग-अंग।'
एक दूजै मुसळमान शायर कैयौ कै-
'मिंया तू हमसे न रख गिवार होली में
कि रूठे मिलते हैं यार होली में।'
कि रूठे मिलते हैं यार होली में।'
आज रो औखांणो
प्रीत पलकां सूं झांकै।
प्रीत पलकों से झलकती है।
प्रेम शब्दों या वाणी का मोहताज नहीं होता। वह तो आंखों में झलक उठता है।
प्रीत पलकां सूं झांकै।
प्रीत पलकों से झलकती है।
प्रेम शब्दों या वाणी का मोहताज नहीं होता। वह तो आंखों में झलक उठता है।
Bhai satyanryan,vinod sawmi,
ReplyDeleteRuthya milye hai yar holi mai,Holi teyohar ristta nai nuva kern kahtir huve.theye ian khe sako ki o teyohar ristta nai navinkern kern kahtier hai.e teyohar su mal milap badye.aur man rangin ho jaye holi re rang ki terh.
E hloi mai preet pelka su jhake hai.
THARI BAAT SACHHI HAI.
NARESH MEHAN