Sunday, March 15, 2009

१६ तनै क्यांगो सांसो खाग्यो रे

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १६//२००९

तनै क्यांगो सांसो खाग्यो रे

छोरा रामधनिया

-सत्यनारायण सोनी

लोकजीवण में हाथ सूं काम रै साथै जबान सूं राम रटण री सांतरी परम्परा। आ परम्परा 'रामभणत' रै नांव सूं जाणीजै। लावणी री वेळा तो आ परम्परा पूरै जोबन पर होवै। इण परंपरा में लोकगीत अर लोकभजनां री गूंज होवै। पण नूवी पीढ़ी इण सूं अणजाण।
किरसाण रै जीवण में रामभणत री महताऊ ठोड़ । एक बगत हो कै लोग-लुगाई घर-बार, खेत-खळै, कुवै-बावड़ी माथै काम करता तो भगवान रो नांव नीं भूलता। दिनूगै मा-बैणां चाकी झोवती, दही बिलोवती अर फूस बुहारती भजन गुणगुणावती। खेतां में हाळी हळ चलावता, निनाण करता, लावणी करता, कुवै रा माळी माळीपो करता अर पाळी एवड़ चरावता 'रामभणत' करता सुणीजबो करता। जेठ-असाढ़ में बिरखा री झड़ी लागती। किरसाण बळदां-ऊंटां नै सिणगारता। खेतां में हळ जोड़ता अर गांवता-

लाग्यो-लाग्यो जेठ-असाढ़ कंवर तेजा रे
लगतोड़ो तो लाग्यो रे सावण भादवो।.....

इण वेळा गायीजण वाळा गीतां में एक गीत इण भांत भी है- 'आभो धरर्रायो ओ म्हारी लाल नणंद बाई गा बीरा आभो धरर्रायो.... किन्नै धरर्रायो ए म्हारी सदा सुरंगी नार, किन्नै धरर्रायो।' इणी भांत लावणी मतलब फसल कटाई करती वेळा थकेलो अर जोस भरण सारू सगळा मिलनै गावै। गावै तो काम में फुर्ती बापर जावै। गीतां सूं पैली लांबी राग में जोसीला दूहा बोलीजै जिणनै सिंधु़डो लगावणो कैयीजै। एक मिनख जीवणै कान में आंगळी घाल ऊंची राग में दूहो बोलै अर कमतर करता दूजा लोग 'स्याबास! स्याबास! बोलै। एक सिंधु़डो इण भांत है-

राम खुदाई रामसर, लिछमण बांधै पाळ।
सीता ढोवै टोकरी, है रामचंदर गी नार।।

अब राजा रामचंद्र रो परवार इतरो काम करै तो आपणै आंट काइं! एक जणो गीत गावै। दूजा लोग लारै-लारै बोलता काम करता जावै। झांझरकै सूं लेय'र सौपै तांईं इकलार चालै ओ रूणक-मेळो। फुर्ती अर जोस बधावै, मरता मिनखां नै जीवाड़ै गीत। ड़ो ई एक लोकगीत-

तेरी जोड़ी जुग में थोडी रे छोरा रामधनिया,
तेरी जोड़ी आछी मेळी रे छोरा रामधनिया,
तनै क्यांगो सांसो खाग्यो रे छोरा रामधनिया,
तूं काळो किण विध पड़ग्यो रे छोरा रामधनिया।

आं गीतां में भाभी-देवर री ठिसकोळ्यां भी चालै। भाभी आपरै देवर नै टूम घड़ावण सारू नीं कैवै। वा तो एक जबरो सो दांतियो घड़वावण री पुकार करै- 'भले, खे़डी गो घड़वा दे रे देवर मेरा असली दांतियो, बींडो तो लगवा दे चन्नण काठ गो, फूली तो लगवा दे रे देवर मेरा बीजळ सार गी, घुघरिया लगवा दे रे देवर रिमझिम-रिमझिम बाजणा।'
आथूणा संस्कारां अर रीति-रिवाजां सूं आंधो मोह लीलतो जावै आपणी प्यारी-प्यारी परम्परावां। खेती में मसीनां रै बधेपै सूं भी आज आ परम्परा मोळी पड़ती जावै। भलां ई आ परम्परा लोप व्हैती जावै पण इण परम्परा रो सांस्कृतिक अर सामाजिक मोल बिसारयो नीं जा सकै।


आज रो औखांणो

कमाऊड़ै नै घी, खाऊड़ै नै दुर छी!

कमाने वाले को घी, खाने वाले को छी-छी!

कमाने वाले का सर्वत्र सम्मान होता है और उड़ाने वाले को सभी अवज्ञा की नजर से देखते हैं।

5 comments:

  1. जै राजस्थानी
    आज ओ लेख बांच ऱ घणो हरख हुयो,घणा रंग थाने क थे आज याद करायो,अब तो रामभणत कठै ई सुणा ई कोनी।
    सन्तोष पारीक,मुम्बई

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  2. Bhai Stayanaryan,Vinod
    Bhai sayabs-sayabes.
    mahri prempera mai lok geeta mai ek taket hi or ek janoon ho kam kern ro.ab aa machina sara nai kha gayi.o vikas huyo hai ki prempera ro nuksan.thye aa geet or boll yaad rekhya jeesu bedyo mitho sa annand aaayo hai ji koi sant tibbye re upper beth ker koi taan chhed di ho. ek satsang ro annand a rehyo ho.
    Thanye e dil su likhedye lekh ghenyo- ghenyo dhanaybad.
    NARESH MEHAN

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  3. I GIVE HEARTLY THANKS TO ALL PERSON WHO CREAT THIS SITE FOR RAJASTHANI LEARNER,
    SUNIL KASNIA
    MBA-Agrculture

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  4. jordar lekh likhyo thane mokli badhai jarurat saru lekh milne su aakhi rajasthani ro balo husi aap jisa motyar lagya peche rajasthani ra beda jarur par lagsi
    jai rajasthani
    hari bishnoi
    9214164455

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  5. राजस्थानी भाषा रो तो कोई मुकाबलों कोनीं. मैं तो अति सम्रद्ध भाषा संसार में कोनी देखी

    लक्ष्मण बुरडक

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