Saturday, February 21, 2009

२२ सासू बिना किसो सासरो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२२/०२/२००९

सासू बिना किसो सासरो

अर मां बिनां किसो पी'


हाजन रा रैवासी श्रीमती स्वाति लढा अर्थशास्त्र में एमए है। मायड़भाषा मानता आंदोलन सूं गहरोजु़डाव। सामाजिक सरोकारां सूं जु़ड्या आपरा आलेख पत्र-पत्रिकावां में छपता रैवै। आज बाँचो, आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

-स्वाति ढा

पुराणै जमानै रा लोग जिकी बातां कैयग्या, बां रो सांच-मांच गैरो अर सही अरथ हुवै। जियां बात साव साची है- 'सासू बिना किसो सासरो अर मां बिनां किसो पी'' रामजी म्हाराज री किरपा सूं म्हारै तो सासू अर मां दोनूं है। अर भगवान सूं अरदास करूं कै दोन्यां री उमर लाम्बी करै।
जे सासू सा घरां रैवै तो डर अर संको रैवै। 'जिवड़ा, अबै तो उठ जावां, सासूजी जागग्या।' 'फलाणो काम बां भोळायो है जे नीं करस्यां तो लड़सी।' इसी बातां रो सगळै दिन डर खायां जावै। कैबा चालै- फोग आलो बळै अर सासू सूधी लड़ै। म्हारा सासू लड़ै तो है तो पण बां रै लड़णै में म्हारो हित है। बां रो हेत है। जे कीं नुकसाण हुय जावै तो घणो डर लागै। 'सासूजी लड़सी जे म्हारै सूं घी एक मिरकली ढुळग्यो तो।' 'गेऊं कोठी में घालां तो सावळ घालां, जे दाणा बिखरग्या तो लड़सी।' इसी बातां रो सगळै दिन डर खायां जावै। अबै कीं कैवैला! अबै कीं कैवैला! इण डर रै कारण घर रो नुकसाण नीं होवै। सावचेती राखीजबो करै। जे सासू थोड़ा दिनां वास्तै घर भळाय' आपरै पी' गया परा तो जणां पछै देखो। आज कुण कैवै- फलाणकी बहू, उठो, चाय बणाय' द्यो! आज तो कीं डर-भौ कोनी। मरजी आवै जणां उठो। मरजी आवै जियां करो। कुण चोखै काम करियोड़े नै सरावै अर कुण भूंडै नै बिसरावै? चालो, सगळो काम-काज निवे़ड' दोपार में घंटैक पड़ ज्यावां कमरै में जा'र। सासूजी घरां होवै तो बारलै कमरै में पोढ्या रैवै। कोई आवै-जावै तो बै जाणै। आज सगळो घर जाणै माथै आय पड़्यो। थोडीक देर में ठा पड़ी कै काकीजी आयग्या- 'सा, म्हानै फलाणी चीज उधार द्यो, काल-परस्यूं तांईं पाछी कर देस्यां।' किसीक तूमत! हां करी तो मरया अर नां करी तो मरिया। जे अबार सासूजी घरां हुवै तो म्हानै कांई मुतलब! बै जाणै बां रो राम जाणै। सांच-मांच सासूजी घरां नीं है तो किसीक गिरै आयगी है। लोगां साची कैयी है- 'सासू बिना किसो सासरो!'
अबै मां कानी अर पी' कानी देखल्यो। मां हुवै जणै आंख्यां फाड़' उडीकै- आज म्हारी लाडेसर घरां आवैली! जावां जणै- 'बाई तूं तो थकगी घणी। सावळ खाया-पीया कर। लै, तनै भावै तो बणा' द्यूं, बो बणा' द्यूं। भोजाई भलां उठो, मत उठो पण मां उठ' बणासी।
'मां, म्हैं फलाणी सहेली कनै जा' आऊं!' तो माऊ कैवै, काल तो आई है बाई, हाल तो बातां कोनी करी, सहेली कनै पछै जाज्यै।' 'मां, जावण द्यो नीं!' 'हां, थांनै घूमणो चोखो लागै, बाई, सासरै में कांईं निहाल करती हुवैला?' ल्यो, बिसरा दिया लाड करतां-करतां!
अर सासरै जावण रो दिन आवै जणै- 'थारै सागै मैलद्यूं, थारै सागै बो मैलद्यूं।' भाभी नै कैवै- फलाणो करो, ढीकड़ो करो बाई खातर।' भाई नै दोड़ावै- 'अबार रा अबार चीज ल्या' द्यो।' बापू नै कैवै- 'थांनै कीं ध्यान कोनीं! बाई सारू चीज ल्याणी है, बा चीज ल्याणी है।'
सो रामजी म्हाराज, आं दोन्यां री उमर बडी करज्यो। जणै सासरै अर पी' में भदरक है। क्यूँकै सासरै में सार नीं सासू बिना, अर पी'रै में प्यार नीं मां बिनां।

आज रो औखांणो

सासूजी थे सांस ल्यो, म्हैं कातूं थे पीसल्यो।
सास-मां तुम सांस लो, मैं कातूं तुम पीस लो।
जो चालाक व्यक्ति फुसलाकर दूसरों को तो भारी और कष्टप्रद काम सौंपने की चेष्टा करे और स्वयं हलके काम की जिम्मेवारी संभालना चाहे तो यह कहावत उस पर कटाक्ष के रूप में कही जाती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504

कानांबाती-9602412124, ९८२९१७६३९१
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सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
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blog- aapnibhasha.blogspot.com

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