आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ७/२/२००९
फागण बदी तेरस वि.सं. २००३ नै काळू (बीकानेर) में जलम्या डॉ. किरण नाहटा रो नांव राजस्थानी साहित्य रा समालोचकां में सिरै। एक निबंधकार रै रूप में भी आपरी अलायदी पिछाण। त्रैमासिक पत्रिका 'राजस्थानी गंगा' रा संपादक। राजस्थानी रा पर्याय डॉ। नाहटा अबार 'आचार्य तुलसी राजस्थानी शोध संस्थान' (गंगाशहर) में मानद निदेशक अर 'राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित-प्रन्यास' (बीकानेर) रा अध्यक्ष हैं। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी - ओ खास लेख।
आसा रुड़ियै रो मतलब है- अब गांव घणो दूर कोनी। आ थळी खेतर री जूनी परम्परा कै गांव री च्यारूं दिसावां में जठै भी मारग बैवै बठै किणी एक खेजड़ी नै आसा रुड़ियै रूप में थाप देवै। आंवतो-जांवतो बटोही, खेत जांवती भतवारण इणरै कनै दो-एक तिणकला नांखता जावै। यूं करतां इणरै ओळै-दोळै तिणकलां रो बाड़ोटियो बण जावै। कई-कई भतवारण्यां बीं नै पाणी रो लोटो ढाळै अर चूरमै रो भोग भी लगावै। कोई भी मिनख इणरा लूंग नीं तोड़े । लोगां में आ खेजड़ी आसा रुड़ियै रै नांव सूं ओळखीजै। लुगायां इणरी धोक खावै अर आ अरदास करै-
मरुभोम, अथाह रेत रो समंदर। इणरै मांय यूं भी मारग री ओळखाण सोरै सांस नीं हुवै। उनाळै री खैंखाट करती आंध्यां चालै तो राम ई मालिक। एड़ी हालत में मारग री ओळखाण रो आसा रुड़ियै सूं मोटो आधार और कांईं हुय सकै है। साची पूछो जणां तो आसा रुड़ियो उण जूनै समाज रो मारग-दर्शक नक्शो हो। एक एडो नक्शो जिणरी भासा अबोध सूं अबोध मिनख भी बांचल्यै।
तारीख- ७/२/२००९
फागण बदी तेरस वि.सं. २००३ नै काळू (बीकानेर) में जलम्या डॉ. किरण नाहटा रो नांव राजस्थानी साहित्य रा समालोचकां में सिरै। एक निबंधकार रै रूप में भी आपरी अलायदी पिछाण। त्रैमासिक पत्रिका 'राजस्थानी गंगा' रा संपादक। राजस्थानी रा पर्याय डॉ। नाहटा अबार 'आचार्य तुलसी राजस्थानी शोध संस्थान' (गंगाशहर) में मानद निदेशक अर 'राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित-प्रन्यास' (बीकानेर) रा अध्यक्ष हैं। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी - ओ खास लेख।
आसा रुड़िया आस देई,
गायां-भैंस्यां घास देई।
-डॉ. किरण नाहटा
जेठ रो म्हीनो। धरती आग ऊगळै। आभो लाय बरसावै। भातै रो बगत। रिंधरोही। ओठी अर ऊंठ दोनूं आकळ-बाकळ। विकल बटोही पलाण रै टांग्योड़ी लोटड़ी सूं दो घूंट पाणी रा पीवै। रीती लोटड़ी पूठी ही पीलाण रै आगै टांगै। अर कनलै धोरै री टोकी चढनै सांमै दूर-दूर ताईं निजर पसारै। खेतवा दो एक दूर उणनैं एक खास खेजड़ी निगै आवै। उणनै देखतां ही तो ओठी रै कुम्हळायोड़े मुंडे माथै हरख री लहर दोड़ जावै।क्यूंकै सांमली खेजड़ी साधारण खेजड़ी नीं। ओ तो 'आसा रुड़ियो' है। इणरै च्यारूं कानी तिणकलां रो जको बाड़ोटियो निगै आवै है, आ ही इणरी पिछाण।गायां-भैंस्यां घास देई।
-डॉ. किरण नाहटा
आसा रुड़ियै रो मतलब है- अब गांव घणो दूर कोनी। आ थळी खेतर री जूनी परम्परा कै गांव री च्यारूं दिसावां में जठै भी मारग बैवै बठै किणी एक खेजड़ी नै आसा रुड़ियै रूप में थाप देवै। आंवतो-जांवतो बटोही, खेत जांवती भतवारण इणरै कनै दो-एक तिणकला नांखता जावै। यूं करतां इणरै ओळै-दोळै तिणकलां रो बाड़ोटियो बण जावै। कई-कई भतवारण्यां बीं नै पाणी रो लोटो ढाळै अर चूरमै रो भोग भी लगावै। कोई भी मिनख इणरा लूंग नीं तोड़े । लोगां में आ खेजड़ी आसा रुड़ियै रै नांव सूं ओळखीजै। लुगायां इणरी धोक खावै अर आ अरदास करै-
आसा रुड़िया आस देई, गायां-भैंस्यां घास देई।
खाटी मोळी छाछ देई, तेल री तिल्लोड़ी देई।
घी री घील्लोड़ी देई, नुई पुराणी बाजरी देई।
कान्ह कंवर-सो बीरो देई, राई-सी भोजाई देई।
म्हैल-माळिया सासरो देई, सासु-सुसरा साळा देई।
घर देई सांकड़ो, पंथ देई मोकळो।
दाळ-फलकै रो जीमण देई, ऊपर सबको भात रो।
पुरसण आळी इसी देई जाणै फूल गुलाब रो।
लीलो-लीलो घोड़ो देई, ऊपर जीण बनात रो।
ओछै पायां ढोलियो देई, ढोलियो रंग राज रो।
आसा रुड़ियै रो ओ गीत सरल अर निश्छल लोगां रै हिड़दै री सांची अरदास। इणरै लारै बां री द्रिढ आस्था। साची तो आ है, जीवण रो सैं सूं मोटो आधार आसा ही तो हुवै। विषम मरु-देस रा वासी इण आस रै भरोसै ही तो साल सवाया पड़ता काळ-दुकाळां सूं जूझै-जीवै।खाटी मोळी छाछ देई, तेल री तिल्लोड़ी देई।
घी री घील्लोड़ी देई, नुई पुराणी बाजरी देई।
कान्ह कंवर-सो बीरो देई, राई-सी भोजाई देई।
म्हैल-माळिया सासरो देई, सासु-सुसरा साळा देई।
घर देई सांकड़ो, पंथ देई मोकळो।
दाळ-फलकै रो जीमण देई, ऊपर सबको भात रो।
पुरसण आळी इसी देई जाणै फूल गुलाब रो।
लीलो-लीलो घोड़ो देई, ऊपर जीण बनात रो।
ओछै पायां ढोलियो देई, ढोलियो रंग राज रो।
मरुभोम, अथाह रेत रो समंदर। इणरै मांय यूं भी मारग री ओळखाण सोरै सांस नीं हुवै। उनाळै री खैंखाट करती आंध्यां चालै तो राम ई मालिक। एड़ी हालत में मारग री ओळखाण रो आसा रुड़ियै सूं मोटो आधार और कांईं हुय सकै है। साची पूछो जणां तो आसा रुड़ियो उण जूनै समाज रो मारग-दर्शक नक्शो हो। एक एडो नक्शो जिणरी भासा अबोध सूं अबोध मिनख भी बांचल्यै।
आज रो औखांणो
आस रै थांभै असमांन टिक्योड़ो ।
आशा के खम्भे पर आकाश टिका हुआ है।
मनुष्य के लिए आशा से बड़ा कोई संबल नहीं। किसी भी दु:ख में मनुष्य को आशा नहीं छोड़नी चाहिए।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
आस रै थांभै असमांन टिक्योड़ो ।
आशा के खम्भे पर आकाश टिका हुआ है।
मनुष्य के लिए आशा से बड़ा कोई संबल नहीं। किसी भी दु:ख में मनुष्य को आशा नहीं छोड़नी चाहिए।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
asa rudiya ree bat banch'r harakh huyo. lekhak ar bhaskar ne badhai-Dr Madan Gopal Ladha
ReplyDeleteBhai satyanarayn,
ReplyDeleteBhai viond,
payro so nemeskar,sage Ajay soni nai asirbad,Aapni bhasa. Aapni bat mai legatar ped reheo hun. gheno hi achho lage.
Rajasthani sanskirti or prempera ro bhut sari jankariya mil rehi hai.
mai web site per bhi bete ajay soni nai bhi pedto rehoon.tharo o pedolikho govon hai .toi itna kam hove.
Thane ghani ghani badhia.or subhkamnai.
Tharo bhai
NARESH MEHAN
Bhai satyanaryan,
ReplyDeleteBhai vinod, Dilsu nameskar,
Dr. kiran nahta,ro assa rudio ass dei, khejri ro bhut hi payro chitren kio hai .ian lege jian dhoro nai hero bhero ker dio ho.nahta ji nai geramin lok senskirti nai phir sun jivet kern ro achho pryas kiyo hai.khejri mahari lok senskirti mai bhut hi peviter sethan rekhe hai .khejri eklo rukhn hi koni preyvern ri ek vicher bhi hai. nahta ji thik hi likho hai rudio mahre khatir ek marg re pehchan bhi hai
Nahta ji nai mahri terf sun ghani -ghani subhkamnya.
Thane bhi, Aas re thambhe esman tikyorro.
NARESH MEHAN