आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १२/२/२००९
अपछर, अपछरा, अबला, अलपअहारी, अलबेली, अरधंगी, अस्तरी, आभा-बीजळी, आभा री बीज। कामणी, कामणगारी, किरत्यां रो झूमको, कूंझबच्चा, केळुकांब। खंजन नैणी। गिणगोर रो ईसर, गुण सागर, गुललजां, गुलहंजा, गेंद गुलाल, गौरी, गौरंगिया, गौरल। घर री नार। चंदमुखी, चंदावदनी, चाळागारी, चित-चोर, चित-हरणी, चित्राम री पूतळी, चीतालंकी, चू़डाहाळी। छंदगाळी, छोटा लाडी। जगमीठी, जगव्हाली, जुवती, जोरावर लाडी। झाीलां लंकी। डाबर नैणी, ढेल।
तिरिया, तीखा नैणा। दारा। धण। नखराळी, नवल बनी, नाजक बनी, नाजुकड़ी, नाजुकड़ी-सी नार, नाजो, नार, नानकड़ी नार, नारी, नितंबण, नेनकड़ी नाजू। पदमण, पदमणी, परणी, पराण पियारी, पातळड़ी, पातळ पेटी, पातू़डी, पिक बैणी, पूगळ री पदमणी, पून्यूं रो चांद, प्यारी। फूतळी, फूलवंती। बनी, बहू, बागां री कोयलड़ी, बादळ वरणी, बाला, बीनणी। भाम, भामण, भारज्या। मंदगत, महलां, माणणी, मारवण, मारवणी, मारू, मारूणी, मिजाजण गौरी, मिरगा नैणी, मिरगा लोचनी, मीठा बोली, मीठा मरवण, मूंध, मूमल, मेवासण, मोटा घर री नार, मोवनी।
रंगभीनी, रंगरेळी, रंगीली, रंभालाडी, रमणी, रायजादी। लाडी, लाडीसा, लुगाई। वनता, वलभा, वाम। सदा सुवागण, सांवणगढ री तीजणी, सांवण री तीज, सायधण, सायजादी, सारंग नैणी, सारंग बैणी, सुंदर, सुंदर गौरी, सुगणी नार, सुगणी सुवागण। हंजा, हंसहाळी, हरियाळी, हिरणाखियाँ ।
तारीख- १२/२/२००९
प्रांण प्यारी रा नांव
राजस्थानी लूंठी भासा। इणरी साख भरै आपणो सबद-भंडार। एक-एक सबद रा अलेखूं पर्याय। आज बांचां प्रेमिका सारू संबोधनां री आ लाम्बी फड़द। अंवेर करी है राणी सा श्रीमती लक्ष्मीकुमारी चूंडावत।अपछर, अपछरा, अबला, अलपअहारी, अलबेली, अरधंगी, अस्तरी, आभा-बीजळी, आभा री बीज। कामणी, कामणगारी, किरत्यां रो झूमको, कूंझबच्चा, केळुकांब। खंजन नैणी। गिणगोर रो ईसर, गुण सागर, गुललजां, गुलहंजा, गेंद गुलाल, गौरी, गौरंगिया, गौरल। घर री नार। चंदमुखी, चंदावदनी, चाळागारी, चित-चोर, चित-हरणी, चित्राम री पूतळी, चीतालंकी, चू़डाहाळी। छंदगाळी, छोटा लाडी। जगमीठी, जगव्हाली, जुवती, जोरावर लाडी। झाीलां लंकी। डाबर नैणी, ढेल।
तिरिया, तीखा नैणा। दारा। धण। नखराळी, नवल बनी, नाजक बनी, नाजुकड़ी, नाजुकड़ी-सी नार, नाजो, नार, नानकड़ी नार, नारी, नितंबण, नेनकड़ी नाजू। पदमण, पदमणी, परणी, पराण पियारी, पातळड़ी, पातळ पेटी, पातू़डी, पिक बैणी, पूगळ री पदमणी, पून्यूं रो चांद, प्यारी। फूतळी, फूलवंती। बनी, बहू, बागां री कोयलड़ी, बादळ वरणी, बाला, बीनणी। भाम, भामण, भारज्या। मंदगत, महलां, माणणी, मारवण, मारवणी, मारू, मारूणी, मिजाजण गौरी, मिरगा नैणी, मिरगा लोचनी, मीठा बोली, मीठा मरवण, मूंध, मूमल, मेवासण, मोटा घर री नार, मोवनी।
रंगभीनी, रंगरेळी, रंगीली, रंभालाडी, रमणी, रायजादी। लाडी, लाडीसा, लुगाई। वनता, वलभा, वाम। सदा सुवागण, सांवणगढ री तीजणी, सांवण री तीज, सायधण, सायजादी, सारंग नैणी, सारंग बैणी, सुंदर, सुंदर गौरी, सुगणी नार, सुगणी सुवागण। हंजा, हंसहाळी, हरियाळी, हिरणाखियाँ ।
राणी सा री इण अंवेर पछै कीं नांव भळै लाध्या। बांचो सा!
अगनी, अमर सवागण, अरधांगणी, अस्त्री, इस्त्री, औरत, ऊजळी, कांमकी, कांमण, कामदेव री धजा, काची कळी कचनार री, काळजियै री कोर, कुळबहू, केसर री क्यारी। गजगमणी, गजबण, गुणां री सागर, गुलनार, गुलबनड़ी, गोरड़ी, गोरांदे, गोरी धण, गोरी बाला, गौरजा, ग्रिहणी, घर-धरियांणी, घरणी, घर री राणी। चळा, चैत री चांनणी, छम्मक छल्लो, छैली, जीव री जड़ी, जीवण-संगणी, जोखा, जोखित, जोखिता, जोगण, जोड़ायत, जोरू, झमकू, टाबरां री मां, तनवंगी, तनूदरी, तरणि, तरुणी, तलप, तीजां, दारा, दारू री बत्तक, दिवांणी, दुलहण, देवी, धणियाणी, धरमपत्नी, धिराणी, नवलखी, पतिवरता, पत्नी, प्रमदा, प्रांण-प्रिया, फूलां री राणी, फूलां री बाड़ी, बनड़ी, बसंत री बीबी, बाला, बावळी, फुलवाड़ी, बागां मांयली चमेली, बुद्धि री आगार, बूढ सवागण, भांमा, भादवा री बादळी, भीरू, मनमोवणी, महिला, मारूदेस री मारवी, मुगधा, मैबूबा, मोहणी, म्रग लोचणी, रंगगा, रमणी, रसभरी, रसवंती, रांणी, रुकमणी, रूपां, रूपाळी, रूपाळी गिणगोर, ललणा, लाली, लिछमी, लैला, वामलोचणा, वाहेली, व्हाली, सजणिया, सजनां, सपन सुन्दरी, ससि बदनी, सहचरी, साथण, सिणगारी, सीमंतणी, सुंदरी, सूरवीर री समसेर, सोरठी, स्त्री। हिरणिया, हिवड़ै री रांणी, हिवड़ै री हार।दूहो सुणो सा!
साजन आया देखकर, तोड़ लियो गळहार।
सै जाणै मोती चुगै, लुळ-लुळ करां जुहार।।
आज रो औखांणो
प्रेम री बेल बुचकारयां पळै।
प्रेम की बेल पुचकारने से पलती है।
प्रेम की बेल पानी की अपेक्षा स्नेह से अधिक पनपती है। प्रेम आत्मीयता का मोहताज है, संपन्नता का नहीं।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email-aapnibhasha@gmail.com
blog-aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
सै जाणै मोती चुगै, लुळ-लुळ करां जुहार।।
आज रो औखांणो
प्रेम री बेल बुचकारयां पळै।
प्रेम की बेल पुचकारने से पलती है।
प्रेम की बेल पानी की अपेक्षा स्नेह से अधिक पनपती है। प्रेम आत्मीयता का मोहताज है, संपन्नता का नहीं।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email-aapnibhasha@gmail.com
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राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
vaah sa vaah..!Lakhdad hai thanai..!!
ReplyDeletekolam padh'r jeesoro hogyo sa.
mharo saiyog barabar raisee sa..!
-Rajuram Bijarnia 'RAJ'
Loonkaransar
9414449936