Saturday, February 7, 2009

८ छैल-भंवर रा नांव

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
- //२००९


छै-भं रा नां

-लक्ष्मीकुमारी चूंडावत

राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत रो जलम 24 जून, 2009 नै देवगढ़ ठिकाणै मांय हुयो। आप राजस्थानी रा नांमी साहित्यकार। भारत सरकार रा पद्मश्री अर सोवियत लैंड पुरस्कार समेत मोकळा मान-सनमान मिल्या। राजस्थान री राजनीति में भी आपरी सक्रिय भागीदारी रैयी है। आपरी रचनावां में राजस्थान रै कण-कण री आत्मा पळका मारै। मूळ रूप सूं रावतसर रा रैवासी राणी सा रो आजकाल जयपुर में रैवास।

मिनख अर लुगाई रै बीच जद आपसरी में प्रीत पनपै, तद वै एक दूजै नै नीं जाणै कांई-कांई कैवणां चावै। वां रै हिवड़ां मांय भांत-भंतीली भावनावां अर मनां मांय रंगरंगीली कल्पनावां उपजण लागै। तद वां री भासा आपरो न्यारो ई सरूप धारण कर लेवै। हीयपरसी भावनावां अर सुरंगी कल्पनावां जद सबदां मांय उतरै, तद भासा अपणै आप सैज ई काव्य रो रूप धारती लखावै।
पण, अंतस तणी आप-आपरी भावनावां अर चावनावां एक दूजै रै साम्ही परगट करण सूं पैलां दोनां नै ई एक दूजै सारू संबोधन री जरूरत हुवै। आ जरूरत इण वास्तै ई हुय जावै कै प्रेम साधारण संबोधनां सूं नीं धीजै, वो साधारण संबोधनां सूं हट'र कीं दूजा संबोधन चावै। ऐड़ा संबोधन जिका वां रै अंतस रै प्रेम नै भली-भांत उजागर करता थकां एक दूजै रै प्रति अटूट लगाव दरसावै। आ ईज वजै रैयी है कै चायै प्रेमी-प्रमिका हुवो चायै पति-पत्नी, एक दूजै नै संबोधित करतां भांत-भांत रा अनूठा विशेषण, भांत-भांत री मोवणी ओपमावां बरतै।
आ गरबजोग बात है कै राजस्थानी भासा मांय प्रेमी अर प्रेमिका सारू ऐड़ा-ऐड़ा अर इत्ता-इत्ता विशेषण बरतीजता आया है कै वां नै सुण'र या पढ'र आज आणंद रै साथै इचरज ई पैदा हुवै। तो प्रस्तुत है प्रेमी रा प्रेम संबोधन-

प्रेमी सारू संबोधन

अंतर कपटी, अंधारा घर रो चानणो, अड़बीलो, अचपळो, अनोखा कंवरजी, अलबेलो, अलवळियो, अळवळियो असवार, आंटीलो, आलीजो, आलीजो भंवर, ईसर, उछांछळो, उमराव, उळझ्यो रेशम, ऊगतो सूरज, कंथ, कंवरजी, कमधजियो, कामणगारो, केसर रो क्यारो, केसरियो, केसरियो बालम, कोडीलो, ख्यालीड़ो, गढपतिया, गाढा मारूजी, गायड़मल, गाहड़ रा गाडा, गुमानीड़ो, गौरी रो बालमो, गौरी रो सायबो, गौरी रो सूरज, घणजाण, घण हेताळु, घरमंड, घु़डला रो सिणगार, चतर, चतर सुजान, चित्तोड़ो, छैल भंवर, छैलो, जलामारू, जलाल, जलालो, बिलालो, जलो, जसलोभी, जालम जोध, जोड़ी रो जलो, जोड़ी रो जोधो, जोड़ी रा भंवरां, जोड़ी रो वर, झिलती जोड़ी रो, झुकतो बादळ, ढोलो, दिल जानी, दिन दूल्हो, दुनिया रो दीपक, दिसड़ी रो दिवलो, दुसमणां रो साल, देसोती, धणी, धणवाळो, धण रो सायबो, धव, धींगड़मल्ल, नटवरियौ, नणद रो वीर, नवल बनो, नैणां रो लोभी, नोखीलो, पना मारू, परणियो, परण्यो स्याम, पांवणा, पातळियो, पिया, पिव, पीतम, पीवल री प्यारी रा ढोला, प्यारौ, फहरती फौजां रा मांझी, फूटरमल, फूल गुलाब रा, फूलां रो भारो, फौजां रो लाडो, फौजां रो मांझी, बनो, बरसतो बादळ, बरसाळू बादळ, बांकड़ल्यां मूंछां रो, बांकड़ी मूंछां रो ढोलो, बाईजी रो वीर, बालमो, बिलालो, बींद, बींभलिया नैणां रो, भंवर, भरजोड़ी रो, भरतार, भालाळो, भोळी बाई रो वीर, भोळो भंवरो, मतवाळो, मदछकियो, मदवा मारूजी, मन-बसियो, मनभरियो, मनमेळू, मरद मूंछाळो, मस्ताना कंवरजी, मांटी, माणीगरो, माणेस, माथा रो मोड़, मान गुमानी ढोलो, मारूजी, मिजलस रो मांझी, मिजाजी ढोलो, मिरगानैणी रो बालमो, मिसरी रो कुंझो, मीठो मारू, मीठो मेमान, मुरधरियो, मूंघा राज, मूंछाळो, मेवाड़ो, मेवासी, मेवासी ढोलो, मोट्यार, मोटा राजवी, मौजी सायबो, रंगदूल्हो, रंगभीनो, रंगरसियौ, रंगीलौ, रजियो, रणरसियो, रणबंको, रसियो, राईवर, राज, राजकंवर, राजन, राजा, राजाणी, राजिंद, राजीड़ो, रायजादो, रावतियो, रीसाळू, रूड़ाराज, लळबळियो, लसकरियो, लहर लोभी, लाखां रो लोड़ाऊ, लाखां रो लहरी, लागणिया नैण रो, लाडो, लाल नणद रो वीर, वर, वादीलो, व्हालो, सरदार, सावण रो सिणगार, सांवणिया रो मेह, सांवळियो, सांवळियो सिरदार, साईनो, साजन, सायबो, सासू सपूती रा जोध, सासू सुगणी रा पूत, साहिबो, सिरदार, सिर रो सेवरो, सींगड़मल्ल, सुगणो, सुगणो साहिबो, सेजां रो सवादी, सेलाणी भंवरो, सैण, सैणां रो लोभी, सैणां रो सेवरो, सेणाळो, सैलीवाळो, सोजतियो सिरदार, स्याम, हंजा, हंजा मारू, हंसला, हाली रा ढोला, हगामी ढोलो, हठीलो, हरियाळो, हिवड़ा रो जिवड़ो, हेताळू, हेम जड़ाऊ।

आज रो औखांणो

प्रीत पुराणी ना हुवै, उत्तम जन सौं लग्ग। सौ बरसां जळ में रहै, पथरी तजै न अग्ग।।

भले आदमी से की हुई प्रीत कभी बासी या पुरानी नहीं पड़ती। वह हमेशा रोम-रोम में छिपी रहती है। जिस प्रकार चकमक पत्थर सौ बरस भी जल में पड़ा रहे तो वह अपने भीतर की आग छोड़ नहीं सकता। जब तक चकमक का अस्तित्व रहेगा, उसमें आग अवस्थित रहेगी।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com


राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

2 comments:

  1. i have been reading your column since its starting. its really good to serve our society by the promotion of our mother tounge. please keep it continue. jitendra kumar soni, lecturer[pol.sc.], gsss,nethrana contact-9785114110,9783561806

    ReplyDelete
  2. SONIJI,
    BHASHA ke maan sanmman ke sanghrsh me bhaskar ke vinmra prayas aur sn soni/vinod swami ki mehnat ko aap jaise pathak jitna pracharit karenge,jyada se jyada log judenge....kirti rana

    ReplyDelete

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?