आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ६/२/२२०९
चारण अणजाण। भैरजी नै औळख्यो कोनी। पडूत्तर दियो- 'म्हैं अठै लूंग तोड़ लेस्यूं अर आगै भैरै भाटी कनै सूं ऊंट मांग लेस्यूं।'
भैरजी बोल्या- 'जे बठै ऊंट नीं मिळै तो?' इतरी सुण'र चारण ओ दूहो कह्यो-
तारीख- ६/२/२२०९
पंडित तो कथतो भलो,
स्रोता भलो सुजांण
मिनख तो जावै ई जावै, बातां रह जावै। आपणै आसै-पासै बूढा-ठेरां री हथायां में जूनै जुग रै मौजीज मिनखां री चावी-ठावी बातां पकायंत ई चालै। वै बातां आपणो मन-बिलमाव करै अर साथै ई आपां नै भांत-भांत री सीख देवै। ल्यो, आज अठै बांचो कीं इसी ई बातां-स्रोता भलो सुजांण
जे भैरो भाटी नटै
जैसळमेर रा भैरजी भाटी बड़ा दानी हुया। एकर एक चारण जांटी चढ्यो लूंग तोड़ै हो। भैरजी ऊंट चढ्या आया अर चारण नै पूछ्यो- 'तेरै कनै ऊंट तो आथ कोनी पछै तूं लूंग क्यूं तोड़ै?'चारण अणजाण। भैरजी नै औळख्यो कोनी। पडूत्तर दियो- 'म्हैं अठै लूंग तोड़ लेस्यूं अर आगै भैरै भाटी कनै सूं ऊंट मांग लेस्यूं।'
भैरजी बोल्या- 'जे बठै ऊंट नीं मिळै तो?' इतरी सुण'र चारण ओ दूहो कह्यो-
छीर समंदर नां घटै, गोरख घटै न ग्यांन।
जे भैरो भाटी नटै, तो टूट पड़ै असमांन।।
इतरी सुणतां ई भैरजी आपरो ऊंट चारण नै देय'र खुद पाळा ई बठै सूं वहीर हुयग्या।जे भैरो भाटी नटै, तो टूट पड़ै असमांन।।
भीमा तूं भाठोह
उदैपुर रा महाराणा भीमसिंघजी री सवारी निकळी जद एक बारठजी जिणां नै भेंट कोनी मिळी ही, महाराणा नै सुणावता जोर सूं बोल्या-भीमा तूं भाठोह, मोटो मगरां मायलो।
महाराणा ओ सुणतां ई बारठजी नै भेंट दीवी। भेंट मिळियां बारठजी पाछी बात परोटता आगै बोल्या-कर राखूं काठोह, संकर ज्यूं सेवा करूं।।
हिन्दू चढ़िया हाथियां
दिल्लीपत अकबर चितोड़ पर चढ़'र आयो। जद जैमल अर पत्तो भौत वीरता दिखाई। अकबर वैरी रा घाव सरावणियो हो। चितोड़ जीत'र अकबर आपरी राजधानी आगरै आयो तद दरवाजै माथै दोय हाथी बणवाया अर वां माथै जैमल अर पत्तै री दोय आदम कद मूरतियां री थरपणा करवाई। उण वगत रो दूहो घणो चलन में है-जैमल बड़तां जीवणो, पत्तो डावै पास।
हिन्दू चढ़िया हाथियां, अड़ियो जस आकास।।
हिन्दू चढ़िया हाथियां, अड़ियो जस आकास।।
आज रो औखांणो
विद्या तो वापरती भली, भरतो भलो निवांण।
पंडित तो कथतो भलो, स्रोता भलो सुजांण।।
विद्या की आमद होना, खाली जगह का भरना, विद्वान व्यक्ति का कहते रहना और उसके समक्ष सुज्ञानी का श्रोता होना भला होता है। सुखद संयोग के प्रसंग में भी यह कहावती दूहा कहा जाता है।
विद्या तो वापरती भली, भरतो भलो निवांण।
पंडित तो कथतो भलो, स्रोता भलो सुजांण।।
विद्या की आमद होना, खाली जगह का भरना, विद्वान व्यक्ति का कहते रहना और उसके समक्ष सुज्ञानी का श्रोता होना भला होता है। सुखद संयोग के प्रसंग में भी यह कहावती दूहा कहा जाता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
bahut bahut badhaian.
ReplyDeleteek aise stambha ki bahut kami thi.
aise stambha se mayad bhasha ko manyata dilane
main madad milegi.
sushil
aapni bhasha aapni baat bahut pasand aaya.
ReplyDeleteaapni bhasha rajasthani khatar ab aapa ne hindi ro virod kerno padsi .lata ra bhoot bata su kadai ni mane .aapa ne rajasthani manyata saru ahinsa su vinti karta bhut time ho giyo ab aapa ne sarkar ne aam admi ne jagaveno padsi ar sagla rajasthan ra M.P ne juta ri mala peravani padsi . in lekh saru bhout bhout badai. lagyoda ravo. jai rajasthani (HARIRAM BISHNOI)MOTYAR PARISAD BIKANER.
ReplyDelete