आपणी भाषा-आपणी बात तारीख- १९/२/२००९
रामदास बरवाळी राजस्थानी रा चावा गीतकार अर लोकगायक। आपरो जलम हनुमानगढ़ जिलै रै बरवाळी गांव में सन १९७८ ने होयो। आपरी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपै। आकाशवाणी सूं प्रसारित हुवै। आपरी लिख्योड़ी सैकड़ूं धमाळां जन-जन रै कंठां पूगी। लोकगीतां रा कई ऐलबम बाजार में आया अर चावा हुया। आज बांचो आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।
मस्त महीनो फागण रो। घणो सुहावणो। मन-मोवणो। आखी जीयाजूण करै किलोळ। टाबर-टीकर। बूढा-ठेरा। लुगायां-पतायां। पसु-पंखेरू। जीव-जिंदावर। मुळक-मुळक मारै दूहा-
मुझे लगता है भाषा को मान्यता के आंदोलन की सफलता के मार्ग में हमारी सोच ही सबसे बड़ी परेशानी भी बनी हुई है। चार कोस पर पानी और आठ कोस पर वाणी बदल जाने के बाद भी लोग दबी-जुबान से इस भाषा को संवैधानिक दर्जा देने की बात तो करते हैं लेकिन अपने जिले, समाज, संगठन की सीमा में प्रवेश करते ही उन सभी के स्वर बदल भी जाते हैं। मेवाड़, मारवाड़, शेखावाटी आदि क्षेत्रों में जिस दिन मायड़ भाषा के लिए 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' गीत वाला भाव नजर आने लगेगा उस दिन मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
रामदास बरवाळी राजस्थानी रा चावा गीतकार अर लोकगायक। आपरो जलम हनुमानगढ़ जिलै रै बरवाळी गांव में सन १९७८ ने होयो। आपरी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपै। आकाशवाणी सूं प्रसारित हुवै। आपरी लिख्योड़ी सैकड़ूं धमाळां जन-जन रै कंठां पूगी। लोकगीतां रा कई ऐलबम बाजार में आया अर चावा हुया। आज बांचो आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।
मस्त महीनो फागण रो
-रामदास बरवाळी
-रामदास बरवाळी
मस्त महीनो फागण रो। घणो सुहावणो। मन-मोवणो। आखी जीयाजूण करै किलोळ। टाबर-टीकर। बूढा-ठेरा। लुगायां-पतायां। पसु-पंखेरू। जीव-जिंदावर। मुळक-मुळक मारै दूहा-
हरी-भरी बणराय में, फागण रा रमझोळ।
किरसा मुळकै खेत में, पाळी चढर्या छोळ।।
सरस्यूं ओढ्यो पीळियो, माखी करै मजाक।
चूसै फूलां गालड़ी, भूंड बजावै काख।।
चिड़ी-कमेड़ी-कागला, उडै अधर बण झ्याज।
चूसा नाचै धोरियै, ऊपर नाचै बाज।।
कोयल नाचै बाग में, पाळां नाचै मोर।
मारू नाचै पीसती, चाकी तळै रतोर।।
नाचै सांप-सळीटिया, फिरै कूदती गोह।
सगळां रै मन-भावणो, फागणियै रो मोह।।
मो'वै जीयाजूण नै, फागण रो सिणगार।
बतळावै घण हेत सूं, पणघट में पणिहार।।
रांग-रंगीली मोवणी, आई, फूल्लर दूज।
ब्याव मंडै घण गामड़ां, पतड़ै बिना, अबूझ।।
फुलरिया दूज रो दिन। घणो मोवणो। सावां रो भंडार। गांव री गळी में होवै रंग-चाव। बाखळ, आंगणै, चूंतरी, उगाड़। उमड़ै मस्ती रा टोळ। कठैई भात गाईजै- 'म्हैं तो बगड़ भुवार आई ए.... कै भाती आवैगा। मेरो चूंडो फरकै ए... कै चूंदड़ ल्यावैगा।' कठैई डीजे, ढोल, डंफ बाजै। बराती नाचै। कठैई ढुकाव। कठैई फेरा हुवै। गावै- 'होळै-होळै चाल लाडो म्हारी, तनै हाँसैली सहेलड़ी ए.... कड़बी-सी मत काट लाडो म्हारी, तनै हाँसैली सहेलड़ी ए...।' कठैई चूंतरियां पर छोरियां गावै- 'होळी खेलो रे कन्हैया, रुत फागण री।' नाचै-गावै। ताळी-पटका करै। उगाड़ मांय घलै धींगड़। जमै फागण रो रंग।किरसा मुळकै खेत में, पाळी चढर्या छोळ।।
सरस्यूं ओढ्यो पीळियो, माखी करै मजाक।
चूसै फूलां गालड़ी, भूंड बजावै काख।।
चिड़ी-कमेड़ी-कागला, उडै अधर बण झ्याज।
चूसा नाचै धोरियै, ऊपर नाचै बाज।।
कोयल नाचै बाग में, पाळां नाचै मोर।
मारू नाचै पीसती, चाकी तळै रतोर।।
नाचै सांप-सळीटिया, फिरै कूदती गोह।
सगळां रै मन-भावणो, फागणियै रो मोह।।
मो'वै जीयाजूण नै, फागण रो सिणगार।
बतळावै घण हेत सूं, पणघट में पणिहार।।
रांग-रंगीली मोवणी, आई, फूल्लर दूज।
ब्याव मंडै घण गामड़ां, पतड़ै बिना, अबूझ।।
आज रो औखांणो
होळी पछै धाबळो, मार खसम रै सिर में।
हर वस्तु की उपयोगिता समय सापेक्ष होती है। समय बीतने पर उसकी उपयोगिता नहीं रहती।
धाबळो- एक प्रकार का मोटा ऊनी वस्त्र जो स्त्रियां कटि के नीचे पहनती हैं। बड़ा घेरदार व सुंदर होता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
कानांबाती-09602412124, 09829176391
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
होळी पछै धाबळो, मार खसम रै सिर में।
हर वस्तु की उपयोगिता समय सापेक्ष होती है। समय बीतने पर उसकी उपयोगिता नहीं रहती।
धाबळो- एक प्रकार का मोटा ऊनी वस्त्र जो स्त्रियां कटि के नीचे पहनती हैं। बड़ा घेरदार व सुंदर होता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
कानांबाती-09602412124, 09829176391
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
व्हाइट हाउस ने तो मान
बढ़ा दिया मायड़ भाषा का
बढ़ा दिया मायड़ भाषा का
-कीर्ति राणा
मायड़ भाषा को व्हाइट हाउस में तो सम्मान मिल गया। बराक ओबामा की इस पहल से निश्चय ही सारा राजस्थान और मायड़ भाषा के मान-सम्मान की वर्षों से लड़ाई लड़ रहे रणबांकुरे खुश होंगे। ऐसा सम्मान हमारी संसद से कब मिलेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह काम जितनी आसानी से किया है काश उतनी ही सरलता से भारतीय संसद भी यह कर दिखाए तो मायड़ भाषा को मान्यता दिलाने के लिए संघर्षरत लक्ष्मणदान कविया, राजेन्द्र बारहठ, विनोद स्वामी, सत्यनारायण सोनी, हरिमोहन सारस्वत, रामस्वरूप किसान सहित इस भाषा के साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी आत्मग्लानि के बोझ से मुक्त हो जाएं।मुझे लगता है भाषा को मान्यता के आंदोलन की सफलता के मार्ग में हमारी सोच ही सबसे बड़ी परेशानी भी बनी हुई है। चार कोस पर पानी और आठ कोस पर वाणी बदल जाने के बाद भी लोग दबी-जुबान से इस भाषा को संवैधानिक दर्जा देने की बात तो करते हैं लेकिन अपने जिले, समाज, संगठन की सीमा में प्रवेश करते ही उन सभी के स्वर बदल भी जाते हैं। मेवाड़, मारवाड़, शेखावाटी आदि क्षेत्रों में जिस दिन मायड़ भाषा के लिए 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' गीत वाला भाव नजर आने लगेगा उस दिन मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
(भास्कर संपादक श्री कीर्ति राणा के 'पचमेल' से) www.pachmel.blogspot.com
Bhai Ramdas bervali,
ReplyDeletemest mehino fagen ro pedyo . Fagen ro geet bhi itno hi mest ho .Fagen ro mehino prkrti ro srengar ro mehino hove. thye prkrti per bhut hi payri kaviya llikhi hai.
Thane e payri si kavita khatir. ghano hi asirbad.
NARESH MEHAN