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तारीख- ३/२/२२०९
तारीख- ३/२/२२०९
माह मास री सातम वीखै,
सोळै स्राध वरसता दीखै।
सोळै स्राध वरसता दीखै।
-डॉ. राजेन्द्र बारहठ, उदयपुर।
लारलै दिनां आपां पोह अर माह म्हीनै सारू आपणी लोक-प्रचलित कहावतां बांची। आज भळै कीं और अंवेरनै लायाहां। बांचो सा!माह ज पड़वा ऊजळी, वादळ वावज होय।
तेल घी अर दूध सब, दिन दिन मूंघा जोय।।
अरथ- माह म्हीनै री चांनण पख री एक्यूं नै जे बादळा अर वायरो वाजै तो तेल, घी, दूध सब मूंघा हुवैला। दिनो-दिनमूंघिवाड़ो बधैला।तेल घी अर दूध सब, दिन दिन मूंघा जोय।।
माह उज्याळी तीज नै, वादळ विजळी देख।
गेंऊ, जव संचै करो, मूंघा होसी मेख।।
अरथ- माह म्हींनै रै चांनण पख री तीज नै जे बादळ अर बीजळी देखै तो गेहूं अर जौ कोठी मांय ही राखै, ऐ निस्चैही मूंघा हुयसी।गेंऊ, जव संचै करो, मूंघा होसी मेख।।
माह उज्याळी चौथ नै, मेह बादळा जांण।
पान अर नारेळ ऐ, मूंघा अवस बखांण।।
अरथ- माह री चांनणी चौथ नै जे वादळ अर वरसा हुवै तो निस्चै ही पान अर नारेळ मूंघा हुवैला।पान अर नारेळ ऐ, मूंघा अवस बखांण।।
माह पंचमी ऊजळी, वाजै उत्तर वाय।
तो जाणीजै भादवो, निरजळ कोरो जाय।।
अरथ- माह री चांनणी पांचम नै जे उतरादी हवा चालै तो जांण लेवणो, भादवो बिना बरस्यां सूखो ही जावैला।तो जाणीजै भादवो, निरजळ कोरो जाय।।
माह मास री सातम वीखै,
सोळै स्राध वरसता दीखै।
अरथ- माह री चांनणी सातम वरसै तो आगै सोळै स्राध वरसै। मतलब आसोज रो पूरो अंधार पख वरसैला।सोळै स्राध वरसता दीखै।
माह सुदी जो सप्तमी, सूरज निरमळ होय।
डक्क कहै, सुण भड्डली! जळ विण प्रिथमी जोय।।
अरथ- जे माह री चांनणी सातम नै सूरज निरमळो निजर आवै मतलब बादळा नीं हुवै तो पिरथी नै बिना पाणीदेखजो, बरसात नीं हुवैला।डक्क कहै, सुण भड्डली! जळ विण प्रिथमी जोय।।
माह सप्तमी ऊजळी, वादळ मेह करंत।
तो आसाढां भड्डली, मेह घणो वरसंत।।
अरथ- माह री चांनणी सातम नै जे वादळा बरसै तो असाढ म्हीनै में मेह खूब बरसैला।तो आसाढां भड्डली, मेह घणो वरसंत।।
माह ज सातम ऊजळी, आठम वादळ जोय।
तो असाढ गह मह करै, वरसै वरसा सोय।।
अरथ- माह री चांनणी सातम अर आठम नै जे बादळ वरसा हुवै तो असाढ में पाछो मेह वरसैला।तो असाढ गह मह करै, वरसै वरसा सोय।।
माह नवम्मी ऊजळी, वादळ करै वियाळ।
भादरवै वरसै घणो, सरवर फूटै पाळ।।
अरथ- माह म्हीना री चांनणी नम्यूं नै जे बादळा उमड़ै तो भादवा में खूब बरसैला, सरवरां री पाळां फूट जावैला।भादरवै वरसै घणो, सरवर फूटै पाळ।।
माह सुदी पूनम दिवस, चांद निरमळो जोय।
पसु बेचो कण संग्रहो, काळ हळाहळ होय।।
अरथ- माह म्हीनै री पूनम रै दिन जे चांद नै निरमळो देखो तो जानवरां नै बेच दो, धान रो संग्रै करो, जबरो काळपड़ैला।पसु बेचो कण संग्रहो, काळ हळाहळ होय।।
आज रो औखांणो
मौसम परवांण घी ई नरम अर काठो व्है।
मौसम के अनुसार घी भी नर्म और सख्त होता है।
जैसी स्थिति हो, वैसा ही रुख धारण करना चाहिए, जरूरत पड़े तो नर्म और जरूरत पड़े तो सख्त। जरूरत केअनुरूप मनुष्य को व्यवहार करना चाहिए, यही नीति सम्मत है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- www.aapnibhasha.blogspot.com
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
मौसम परवांण घी ई नरम अर काठो व्है।
मौसम के अनुसार घी भी नर्म और सख्त होता है।
जैसी स्थिति हो, वैसा ही रुख धारण करना चाहिए, जरूरत पड़े तो नर्म और जरूरत पड़े तो सख्त। जरूरत केअनुरूप मनुष्य को व्यवहार करना चाहिए, यही नीति सम्मत है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
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राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
ए ईसी केवता कम ही सुणणने अर बांचणने मीळे आज बांचणे से बोहत खुसी हुई
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