Thursday, May 21, 2009

२२ बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा

आपणी भाषा-आपणी बात तारीख-२२//२००९

बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा


विनोद कुमार सहू रो जलम जुलाई 1984 में नोहर तहसील रै उज्जळवास गांव मांय हुयो। आजकाल 4 एमएसआर सरदारगढ़िया मांय अध्यापक। राजस्थानी में लिखण-पढ़ण रो डाडो कोड। पत्र-पत्रिकावां मांय रचनावां छपती रैवै।

-विनोद कुमार सहू
कानाबाती-9460191607

पणी धरती में मोत्यां-रतनां री कमी नीं। अठै कण-कण में सोनै अर सुगंध रो वास। इण धरती पर जद सावण री काळी बादळी गरजै-बरसै तो हरियाळी मुळकै। सावण री फुहारां साथै ई खेतां में बीजारो पड़ज्यै। थोड़ै दिनां में ई खेतां में गुंवार, बाजरी, मूंग, मोठां रै साथै ई काकड़िया-मतीरां री रळक पड़ै। आ हराळ देख किरसाण रो काळजो ठण्डो होज्यै। जीवण में सुख-स्यांति-सी बापरज्यै।
मतीरो धोरां रो अमरफळ। दिनूगै पैलां ईं री लाल-लाल गिरी रो भोग लगावां तो देवतावां रै मूंडै ई लाळ पड़ण लागै। कई ग्यानी मिनख मतीरै रो रंग देख'र ई बीं रो हाल बताद्यै कै बो काचो है'क पाको। बडै मतीरै नै फोड़'र खपरिया बणाइज्यै जिकै नै चीर'र सिफळिया बणावै। छोटा टाबर सिफळिया खावै तो बडोड़ा खपरिया सूंतै। कैबा चालै-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा
बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा।।
आपणै अठै एक कैबा और है कै गादड़ै री उंतावळ सूं मतीरो नीं पाकै। गादड़ अर मतीरै रो जूनो नातो। कई भोळा मिनख जिका मतीरै रो मोल नीं पिछाणै, बै ईं नै गादड़ रो खाजो कैवै। पण स्याणा मिनख मतीरै नै चोखा दिनां ताईं राखण सारू तू़डी में दबा'र राखै। जद दीवाळी रो त्यूंहार आवै, इण मतीरै री गिरी निकाळ'र इण में बेजका कर देवै अर रात रै टेम टाबर इण में दीवो मेल'र गळी-गळी अर घर-घर फिरै। दीवै में तेल घलावै। दुआ देवै- घालो तेल, बधै थारी बेल। रात नै ओ मतीरो बिजळी सूं जगमगाट करतो हवामहल-सो लागै। पण आजकाल इस्या नजारा देखण नै कम ई मिलै। मतीरो बारामासी राखीजै। होळी मंगळावै जद ईं नै होळी री झळ मांखर काढै। मानता है कै इयां कर्यां आगलै साल जमानो चोखो होवै।
जको मतीरो खेत में बिना बीज्यां ई पणपै, बीं नै अड़क मतीरो कैवै। जिकै नै अड़क मतीरो खाण री बाण पड़ज्यै बीं रो तो राम ई रुखाळो। कैबा चालै, हिली-हिली गादड़ी अड़क मतीरा खाय। मतीरो इतणो मीठो अर स्यान री निशानी हुवै कै ईं नै लेय'र राजघराणां मांय भी राड़ छिड़गी। बीकानेर अर नागौर राजघराणै बीच 1544 ई. में एक मतीरै नै लेय'र तलवारां खिंचीजगी, इस्या हवाला मिलै।
मतीरै रै साथै-साथै इण रा नाती काकड़िया अर टींडसियां री लंगाटेर होवै। मतीरै रै काचै फळ नै लोइयो कैवै अर ईं री सबजी घणी सवाद बणै। मतीरै रा बीज भूंद-भूंद'र खाइज्यै। गिरी मिनख खावै तो खुपरी पसुवां रो सांतरो खाजो। आपणी ईं धोरां री धरती में और भी इसी भोत-सी चीजां दबियोड़ी है जकी नै आपां जबान नीं दे सकां। आं रै मोल नै सबदां में बांधणो ओखो काम। मतीरै रै मोल रो अंदाजो इण बात सूं लगायो जा सकै कै जद कोई सांतरै मिनख का कोई सांतरी चीज रो अचाणचक ठाह पड़ै तो कैइज्यै, 'भाई, ओ तो बूरे़डो मतीरो लाधग्यो।'

आज रो औखांणो
मतीरो भांणा में आयां पछै सासरा में मती-रो।
मतीरा थाल में आ जाय तो फिर ससुराल में मत रहो।
कहावत है कि जब दामाद के थाल में मतीरा आ जाय तो उसे वहां नहीं रहना चाहिए। सामंती शासन में जिस व्यक्ति को सेवामुक्त करना होता उसे मतीरा थमा दिया जाता। वह तुरंत सोच लेता कि उसे नौकरी से निकालने का आदेश मिल गया है।


2 comments:

  1. मतीरा पर आपरौ आलेख पढ़ न बहुत चोखो लाग्यो ! और मतीरा रा बारे में इं बात री आज पेली बार जानकारी हुई क "मतीरो भांणा में आयां पछै सासरा में मती-रो।"

    ReplyDelete
  2. घणो मीठो लाग्यो सा वीनोद जी रो आलेख

    ReplyDelete

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?