Monday, May 4, 2009

4 मई - राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- //२००९

राजस्थानी राखियां,

रहसी राजस्थान



-मनोज कुमार स्वामी, सूरतगढ़


भेदभाव तो सदियां सूं चालतो आयो। पण राजस्थानी भाषा साथै कीं बेसी। राजस्थान रा रैवासी आपरी भाषा री मानता री लड़ाई लड़ै, पण गांधीवादी ढंग सूं। कुरसी बिराज्या नेता बां री अरज सुणै कोनी। वोटां वगत तो लुळ-लुळ हाथ जोड़ै। पगां पड़ै। इलाकै रै विकास री बातां करै। पण चुणाव जीततां पाण गधै रै सींगां ज्यूं अदीठ व्है जावै। चुणाव री वगत मीठी गोळी देवै। पण पछै भाषा अर भाषा रा हेताळुवां नै भूल जावै। दीनाजपुर (बंगाल) मांय सन् 1944 मांय अखिल भारतीय राजस्थानी सम्मेलन नांव सूं बडो जलसो हुयो। तद सूं लेय'र अजे तक ओ आंदोलन लगोलग चाल रैयो है। पण अजे पार कोनी पड़ी। दुनिया रो कोई इस्यो देस कोनी जठै रै लोगां नै आपरी भाषा सारू इत्तो लाम्बो आंदोलन चलावणो पड़्यो हुवै। कोई इसी भाषा कोनी दुनिया में जिकी री इत्ती बेकदरी होयी हुवै। मां सूं आछो कीं नीं हुवै जगत में। भाषा ई तो आपणी मां है। मायड़भाषा रो मान करणो भूल बैठ्या अठै रा वासी। पण फेर ई लखदाद है बां हेताळुवां नै जका लगोलग मायड़भाषा नै मान दिरावण री लड़ाई लड़ै। लड़ता थकै कोनी। मायड़भाषा सनमान जातरा जकी श्रीगंगानगर सूं 21 फरवरी, 2003 नै सरू हुय'र राजस्थान रा उगणीस जिलां नै पार करती 4 मार्च, 2003 नै दिल्ली पूगी। भाषा नै लेय'र आ एक अनूठी जातरा ही। इसी मिसाल और कठै ई नीं मिलै।
संविधान री आठवीं अनुसूची में सामल होवण रा सगळा मापदण्ड राजस्थानी भाषा पूरा करै। पण नेतावां नै दीसै कोनी। लाखूं ग्रंथ ग्रंथागारां में हाथां लिख्योडा पड़्या है। जे ना जचै तो जाय'र आपरी आंख्यां सूं पड़तख देखल्यो। पण देखल्यै कुण? ऐ तो जाण-बूझ'र कानां में कोइया लेवै। जींवतां नै तळै नाखै। दिल्ली जाय'र ओळमो देवो तो खाणै ऊंठ ज्यूं सीधा आवै। धिरकार है मायड़ रै इस्यै कपूतां नै, जका आपरी मां-भाषा रो मान नीं करै। नेतावां री अणदेखी रै बावजूद राजस्थानी आपरो रुतबो कायम राख्यो है। आठवीं अनुसूची मांय भेळी हुयां बिना केन्द्रीय साहित्य अकादेमी सूं मान्यता है। बोर्ड, विश्वविद्यालयां अर यू.जी.सी. रै पाठ्यक्रमां मांय सामिल है। मतलब 11 वीं सूं लेय'र एम.ए. तांईं री पढ़ाई राजस्थानी विषय लेय'र करी जा सकै। यू.जी.सी. रै नेट में राजस्थानी है। टी.वी. अर रेडियो पर राजस्थानी समाचारां रा बुलेटिन आवै। राजस्थानी कलाकारां री दुनियां में न्यारी पिछाण है। सैकड़ूं पत्र-पत्रिकावां छपै। राज्य री राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी है। आ भाषा जण-जण रै काळजै रची-बसी है। तो पछै कांईं कमी है? कमी है तो बस आठवीं अनुसूची में सामल होवणै री। म्हारो नेतावां सूं सवाल है कै जे आप राजस्थानी री मानता री बात नीं करो अर राजस्थानी नै भाषा ई नीं मानो तो पछै राजस्थानी रै नांव पर ऐ ऊपर लिखी बातां क्यूं? ओ सवाल भी काळजै में बार-बार हूक-सी उठावै कै जद 22 भाषावां नै राज मानता तो पछै राजस्थानी साथै ओ दुभांत क्यूं? अमरीका सरकार जिकी भाषा नै सनमान बगसै बीं नै भारत सरकार क्यूं कोनी मानै? जालोर रा लालदासजी राकेश लिखै-

ओ जीवण तो जावसी, दे माथो रख मान।
राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान।।
आजादी आई अठै, ताळा जड़्या जुबान।
राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान।।

आज रो औखांणो

गुण अवगुण जिण गांव, सुणै न कोई सांभळै।
उण नगरी विच नांव, रोही आछी राजिया।।

कवि किरपाराम खिड़िया लिखै कै जिण ठोड़, गुण-अवगुण री पैचाण नीं व्है, वीं जागां सूं तो जंगळ मांय रैवणो ई ठीक है।

1 comment:

  1. बात तो घणी खरी खरी कइ है. पर हिम्‍मत हारयां भी तो गाडी कौनी चाळे ... हौसलो तो राखणो ही पड़सी जद ई कीं बात बणसी ...
    - पृथ्‍वी

    ReplyDelete

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?