आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १८/५/२००९
म्हारा एक साथी गोरधनजी इंदोरिया, सिद्धमुख वाळां बतायो कै जद बै कोई पैली-दूसरी कलास में पढ्या करता, तद बांनै घर वाळां एक-दो पीसा रोजीना भूंगड़ा-मूंगफळी सारू दिया करता। बां दिनां एक रुपियै में चौसठ पीसा हुया करता। भूंगड़ा अर मूंगफळी एक रुपियै री सोळा सेर आंवती। बै स्कूल रै कनै ईज दूकान में आधी छुट्टी में एक पीसै री कदैई मूंगफळी अर कदैई भूंगड़ा ले लिया करता।
एक दिन बै एक पीसै री मूंगफळी लिरावण दूकान में गया। दूकान पर घणी भीड़ ही। जद गोरधनजी दूकानदार सूं एक पीसै री मूंगफळी मांगी तो दूकानदार दूजै ग्राहकां नैं सलटांवतो बोल्यो, 'जा! दूकान रै आगलै खण में बोरी भरी पड़ी है। तूं जा'र ले आ।'
गोरधनजी म्हनैं बतायो कै मूंगफळ्यां सूं भरियोड़ी बोरी देख'र म्हारो मन बस में नीं रैयो। म्हैं म्हारी टोपी में जित्ती मूंगफळी समाई, भर'र टोपी ओढली। बां बरसां में कोई पढेसरी नागै सिर कोनीं रैंवतो। आपरी ईमानदारी दिखाणै सारू एक पीसै री जित्ती मूंगफळी आंवती धोबै में भर'र दूकान सूं बारै आंवतो दूकानदार नैं धोबो दिखांवतो बोल्यो, 'ताऊ! इत्ती मूंगफळी लायो हूं।'
दूकानदार बोल्यो, 'जा लेयज्या, बळ्यो बाळण जोगो तेरो टोपो!' कै'र मजाक में उण होळै-सी म्हारी टोपी रै चपत लगाई। चपत लगातां ईज म्हारी टोपी अर मूंगफळ्यां दूकान आगै खिंडगी। म्हैं डरतो म्हारै धोबै वाळी मूंगफळी भी बठैई गेर'र घर कानीं तैतीसा मनाया। ना टोपी उठाई अर ना मूंगफळी। दूकान पर ऊभा लोगड़ा कई ताळ दांत काढता रैया।
तारीख- १८/५/२००९
बळ्यो बाळण जोगो तेरो टोपो
-बैजनाथ पंवार
-बैजनाथ पंवार
म्हारा एक साथी गोरधनजी इंदोरिया, सिद्धमुख वाळां बतायो कै जद बै कोई पैली-दूसरी कलास में पढ्या करता, तद बांनै घर वाळां एक-दो पीसा रोजीना भूंगड़ा-मूंगफळी सारू दिया करता। बां दिनां एक रुपियै में चौसठ पीसा हुया करता। भूंगड़ा अर मूंगफळी एक रुपियै री सोळा सेर आंवती। बै स्कूल रै कनै ईज दूकान में आधी छुट्टी में एक पीसै री कदैई मूंगफळी अर कदैई भूंगड़ा ले लिया करता।
एक दिन बै एक पीसै री मूंगफळी लिरावण दूकान में गया। दूकान पर घणी भीड़ ही। जद गोरधनजी दूकानदार सूं एक पीसै री मूंगफळी मांगी तो दूकानदार दूजै ग्राहकां नैं सलटांवतो बोल्यो, 'जा! दूकान रै आगलै खण में बोरी भरी पड़ी है। तूं जा'र ले आ।'
गोरधनजी म्हनैं बतायो कै मूंगफळ्यां सूं भरियोड़ी बोरी देख'र म्हारो मन बस में नीं रैयो। म्हैं म्हारी टोपी में जित्ती मूंगफळी समाई, भर'र टोपी ओढली। बां बरसां में कोई पढेसरी नागै सिर कोनीं रैंवतो। आपरी ईमानदारी दिखाणै सारू एक पीसै री जित्ती मूंगफळी आंवती धोबै में भर'र दूकान सूं बारै आंवतो दूकानदार नैं धोबो दिखांवतो बोल्यो, 'ताऊ! इत्ती मूंगफळी लायो हूं।'
दूकानदार बोल्यो, 'जा लेयज्या, बळ्यो बाळण जोगो तेरो टोपो!' कै'र मजाक में उण होळै-सी म्हारी टोपी रै चपत लगाई। चपत लगातां ईज म्हारी टोपी अर मूंगफळ्यां दूकान आगै खिंडगी। म्हैं डरतो म्हारै धोबै वाळी मूंगफळी भी बठैई गेर'र घर कानीं तैतीसा मनाया। ना टोपी उठाई अर ना मूंगफळी। दूकान पर ऊभा लोगड़ा कई ताळ दांत काढता रैया।
आज रो औखांणो
टाबरपणै सिख्योड़ो लोह री लकीर।
बालपन के संस्कार बड़े स्थाई होते हैं। बच्चे के कोमल अंतस में बैठी बात जीवन भर नहीं मिटती।
टाबरपणै सिख्योड़ो लोह री लकीर।
बालपन के संस्कार बड़े स्थाई होते हैं। बच्चे के कोमल अंतस में बैठी बात जीवन भर नहीं मिटती।
राजस्थानी में अच्छा ब्लाग है। आप ने बहुत अच्छा काम आरंभ किया है।
ReplyDeleteआपरो ब्लोग सांतरो, आदरजोग बेजनाथजी पंवार रो लेख सांतरो
ReplyDeleteमोकली मोकली बधाई
मदन गोपाल लढा
मुकेश रंगा
महाजन