Tuesday, May 12, 2009

१३ जोर की ललकार सूं म्हे, आज बोलां छां

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १३//२००९

जोर की ललकार सूं म्हे,

आज बोलां छां


-हीरालाल शास्त्री

(राजस्थान रा पैला मुख्यमंत्री)

यपुर रै जोबनेर मांय 24 नवंवर 1899 नै जलम्या पं। हीरालाल शास्त्री स्वतंत्रता-आंदोलण में जनता रो पथ-प्रदरसण अर दिसा-नियंत्रण करण वाळा सेनानी रैया। स्वतंत्रता रै पछै राजस्थान रै एकीकरण री जिम्मेदारी निभावणिया शास्त्री जी विशाल राजस्थान रा पैला मुख्यमंत्री बण्या। सन् 1929 में शास्त्री जी नवै ग्राम समाज री रचना रै त्हैत वनस्थळी में 'जीवन-कुटीर' नांव री संस्था री थरपणा करी अर सन् 1935 में 'वनस्थली विद्यापीठ' रै रूप में 'श्री शांताबाई शिक्षा' री। शास्त्री जी राजस्थानी अर हिंदी दोनूं ई भाषावां में काव्य-सिरजण कर्यो। सन् 1974 रै दिसम्बर महीनै में आपरो सुरगवास हुयो।
आज बांचां, आपरी एक कविता। इण कविता में कवि जनमानस में उठतै आक्रोश नै वांणी दीनी। शासकां अर चाकरशाहां नै ललकारतां कवि कैवै कै ऊंचै सुर में बौकारता म्हे आज बोलां हां। अब तांईं चुप रैया अब नीं रैवांला। दुख भुगतता म्हे थकग्या हां। जनता धापगी है। अबै चोरी अर सीनाजोरी नीं चालण देवांला। पगां हेटै पीसीजती माटी भी सिर चढ'र बोलण लाग जाया करै। म्हे तो मिनख हां इण खातर आज बोलां हां। म्हारी बिखरियोड़ी ताकत नै तोल'र बोलां हां। थे संभळ जावो नीं तो पछतावोला। सत्ता पलटैला अर थां माथै भी लोग राज करैला। म्हारी चेतावणी सुण लेवो, म्हे आज बोलां हां अर आकरै सुर में बोलां हां।

दुखभरी आवाज सूं म्हे, आज बोलां छां।
जोर की ललकार सूं म्हे, आज बोलां छां।।
बोल्या-बोल्या ठेठ सूं म्हे, सारी रचना देख ली।
देखता म्हे धापगा जद, आज बोलां छां।।
पिसतां-पिसतां आज तांईं, म्हां को चुरकट हो लियो।
फाटगो यो काळजो जद, आज बोलां छां।।
मांयली तो मांय म्हां कै, बारली बारै रही।
कळ्ळावै या आतमा जद, आज बोलां छां।।
टर्रकटम ऊपरलो बोल्यो, बिचलां कै तो खुशी न गम।
निचला छां सो 'दबे तो हम' म्हे, आज बोलां छां।।
जूती सूं चिंथ जावै जद तो, माटी भी माथै चढै।
आखर तो छां आदमी म्हे, आज बोलां छां।।
चोरी अर सिरजोरी थांकी, सारी दुनियां देखली।
थांका हिया की फूटगी सो, आज बोलां छां।।
चोखा छां अर भोत सारा, ताकत पण बिखरी हुई।
ताकत को अंदाज कर म्हे, आज बोलां छां।।
चाली जतरै चाल लीनी, अब नहीं या चालसी।
दीखै कोनी चालती जद, आज बोलां छां।।
भोत होगी भोत होगी, अब थे आंख्यां खोलल्यो।
नांतर थे पछतावस्यो म्हे, आज बोलां छां।।
उल्टैली अर थांका माथा, ऊपर होकर जायली।
सुणल्यो या चेतावणी म्हे, आज बोलां छां।।

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