आपणी भाषा-आपणी भाषा
तारीख- ३/५/२००९
लोगां री निगै भेड़ सूं जादा ऊन पर रैवै। इण कारण आपां पैली ऊन मुजब जाण लेवां तो ठीक। बियां भी भेड़ तो भेड़ ई हुवै। बिण रै मुजब आपां नै घणो जाण'र लेणो भी कांईं। स्याणा लोग पैली कै' चुक्या है-'मोल करो तरवारि का पड़ी रहन द्यो म्यान!' कांईं करणो है रूंख गिण'र! आप तो आम खाओ अर चालता बणो। आपरै रूंख गिणणै सूं कैड़ो पर्यावरण-क्षरण थमै। गिणती तो लोगां शेर-बघेरां री भी घणी करी। कागदां में घणा ई शेर है। पण मौजूद में बिणां रा पगल्यां रा निसान ई कोनी लाध्या। आप तो पर्यावरण रै विषय नै जे नीं छेड़ो तो ई ठीक है। पर्यावरण रै मामलै में तो आप भेड़ री हाँ में हाँ मिलाओ। पर्यावरण नै सुधारण तांईं आपणै अफसरां अर नेतावां इतरां रूंख लगाया है (फाइलां में) कै बिणां री हरियाळी सूं बिणां रा घर-परिवार हरियाळी सूं लै'लावै।
भेड़ एक सीधो अर भोळो जिनावर। पण आजकाल कीं नूंई नसल री भेड़ा रै कारण चोखो फरक आ चुक्यो है। पुराणै नसल री भे़डां कैवणै-सुणणै में तावळी आ ज्यांती पण आजकाल कम आवै। देसी अर पुराणी नसल री भे़डां अब भी मिलै जिणां नै जात, धरम अर संप्रदाय रै नांव पर बरगलाई जा सकै। नूंई भे़डां नै मूंडणै घणा सावधान रैवै जद कै पुराणा मालक तो बस कई बरसां सूं एकर आंवता अर पछै बै जावै-बै जावै। ऊन उतार्यां पछै बै भे़डां में रुक'र आप रो बखत क्यां तांईं खोटी करै! आजकाल तो आप रो स्थायी मालिकाणो हक राखणै तांईं भे़डां नै कदै-कदास संभाळणी पड़ै। पै'ली सूं अब गफलत कम होगी कै खोड़ में छोड़दी अर आपै चरती रैंवती। साहित्य में चाये गजगामण अर हंसगामण नायिकावां मशहूर है पण लोक में तो भे़ड चाल ई मशहूर है अर जादा प्रचलन में भी रैयी है। कई लोगां नै ऊन रो ओ बोपार घणो रास आयो है। बिणां री दूजी-तीजी पीढ़ी इण बोपार में है। राजनीति में भणाई-लिखाई रो इतरो महत्त्व कोनी। आप बी.एड. कर्यां बिना स्कूल मास्टर नीं बण सको पण सांसद या विधायक बण'र देस चला सको। प्रजातंत्र में आपरै लारै अगर जनता है तो फेर क्यां री चिंता। एकर एक गवाळियो विधायक बणग्यो अर बीं री आप रै प्रति प्रतिबद्धता देख'र मुखमंत्री जी बिण नै शिक्षामंत्री बणा दियो। बिणां सूं पत्तरकारां एक सवाल पूछ्यो तो जबाब में बिणां कैयो-
तारीख- ३/५/२००९
भेड़ अर ऊन
-डॉ. मंगत बादल
भेड़ री ऊन तो उतरणी ई उतरणी। ऐ उतारै चाये बै। भेड़ नै इण सूं कीं सरोकार कोनी। हालांकि कैई बर भेड़ भी चावै कै बिण रो मन पसंद मालक ई बिणरी ऊन उतारै पण आगै चाल'र चक्कर पड़ ज्यावै। भेड़ तो एकर आप रो मालक चुणल्यै पण बा ओ तै करण वाळी कुण है? ओ तो मालक लोग मिल'र तै करै कै अबकाळै ऊन कुण उतारैलो? कई बर जद मालक बदळ ज्यावै तो भेड़ खुद नै ठगेड़ी-सी मै'सूस करै। जियां धनुष सूं छूटेड़ो तीर अर मूंडै सूं कैयोड़ी बात पाछी नीं आ सकै। बियां ई दियोड़ो वोट भी पाछो कोनी हो सकै। एकर बट्टण अगर गळत दबग्यो तो पांच बरसां तक ऊन उतारणै सूं बिणां नै कुण रोक सकै? असल में तो बात आई'ज है कै ऊन चाये भेड़ री हुवै पण बिण पर हक दूजां रो है।-डॉ. मंगत बादल
लोगां री निगै भेड़ सूं जादा ऊन पर रैवै। इण कारण आपां पैली ऊन मुजब जाण लेवां तो ठीक। बियां भी भेड़ तो भेड़ ई हुवै। बिण रै मुजब आपां नै घणो जाण'र लेणो भी कांईं। स्याणा लोग पैली कै' चुक्या है-'मोल करो तरवारि का पड़ी रहन द्यो म्यान!' कांईं करणो है रूंख गिण'र! आप तो आम खाओ अर चालता बणो। आपरै रूंख गिणणै सूं कैड़ो पर्यावरण-क्षरण थमै। गिणती तो लोगां शेर-बघेरां री भी घणी करी। कागदां में घणा ई शेर है। पण मौजूद में बिणां रा पगल्यां रा निसान ई कोनी लाध्या। आप तो पर्यावरण रै विषय नै जे नीं छेड़ो तो ई ठीक है। पर्यावरण रै मामलै में तो आप भेड़ री हाँ में हाँ मिलाओ। पर्यावरण नै सुधारण तांईं आपणै अफसरां अर नेतावां इतरां रूंख लगाया है (फाइलां में) कै बिणां री हरियाळी सूं बिणां रा घर-परिवार हरियाळी सूं लै'लावै।
भेड़ एक सीधो अर भोळो जिनावर। पण आजकाल कीं नूंई नसल री भेड़ा रै कारण चोखो फरक आ चुक्यो है। पुराणै नसल री भे़डां कैवणै-सुणणै में तावळी आ ज्यांती पण आजकाल कम आवै। देसी अर पुराणी नसल री भे़डां अब भी मिलै जिणां नै जात, धरम अर संप्रदाय रै नांव पर बरगलाई जा सकै। नूंई भे़डां नै मूंडणै घणा सावधान रैवै जद कै पुराणा मालक तो बस कई बरसां सूं एकर आंवता अर पछै बै जावै-बै जावै। ऊन उतार्यां पछै बै भे़डां में रुक'र आप रो बखत क्यां तांईं खोटी करै! आजकाल तो आप रो स्थायी मालिकाणो हक राखणै तांईं भे़डां नै कदै-कदास संभाळणी पड़ै। पै'ली सूं अब गफलत कम होगी कै खोड़ में छोड़दी अर आपै चरती रैंवती। साहित्य में चाये गजगामण अर हंसगामण नायिकावां मशहूर है पण लोक में तो भे़ड चाल ई मशहूर है अर जादा प्रचलन में भी रैयी है। कई लोगां नै ऊन रो ओ बोपार घणो रास आयो है। बिणां री दूजी-तीजी पीढ़ी इण बोपार में है। राजनीति में भणाई-लिखाई रो इतरो महत्त्व कोनी। आप बी.एड. कर्यां बिना स्कूल मास्टर नीं बण सको पण सांसद या विधायक बण'र देस चला सको। प्रजातंत्र में आपरै लारै अगर जनता है तो फेर क्यां री चिंता। एकर एक गवाळियो विधायक बणग्यो अर बीं री आप रै प्रति प्रतिबद्धता देख'र मुखमंत्री जी बिण नै शिक्षामंत्री बणा दियो। बिणां सूं पत्तरकारां एक सवाल पूछ्यो तो जबाब में बिणां कैयो-
म्हारी अक्ल रो तो ओ ई गेड़ है
कै मूंडै सूं टर्र-टर्र करो, हाथ में डांग राखो
ऊन उतारो अर बेचो, समझल्यो-जनता ई भेड़ है।
राज-काज रो ओ ईज मूल मंतर है
म्हूं चाये पैली भे़ड्यां चरांवतो,
पण आज जाणूं कांईं प्रजातंतर है।
देश गुड़ री भेली है, खावणियां कीं जजमान कीं पंडा है,
कीं है बांदरा, जिकां रै हाथां में डंडा है।
कै मूंडै सूं टर्र-टर्र करो, हाथ में डांग राखो
ऊन उतारो अर बेचो, समझल्यो-जनता ई भेड़ है।
राज-काज रो ओ ईज मूल मंतर है
म्हूं चाये पैली भे़ड्यां चरांवतो,
पण आज जाणूं कांईं प्रजातंतर है।
देश गुड़ री भेली है, खावणियां कीं जजमान कीं पंडा है,
कीं है बांदरा, जिकां रै हाथां में डंडा है।
आज रो औखांणो
भेड़ माथै ऊन कुण छोडै?
गरीब रो सोसण करण सूं कुण चूकै।
भेड़ माथै ऊन कुण छोडै?
गरीब रो सोसण करण सूं कुण चूकै।
आपां राजस्थांनीयां री हालत ईं किणी भेड़ (घेटा) सूं ओछी कोनीं. लारला 60 बरसां मांय भारत सरकार राजस्थांनीयां नै पुरै-पुरा भेड़ बणा दिया है. ज्यौ आपांनै पुरसै उणमें आपांनै संतोख करणौ पड़ै.
ReplyDeleteआपणी राजस्थांनी नै भारत रै संविधान भासा मानण सूं ईं इनकार कर दियौ, आपां री मायड़ भासा नै नुंवी जलमियौड़ी हिंदी री बोली बणा दी पण, आपणै राजस्थांन री रईयत घेटा री दांई सैं किं देखती रह्यी अर आपणी मजबुरी कै नसीब समझ नै स्वीकार करती रह्यी.
घण्करा राजस्थांनी तौ औ मान लियौ कै साचै ईं आपणी कोई भासा कोनी अर आपणी मायड़भासा (so called मातृभाषा) तौ हिंदी है... क्यूं कै वै स्कूलां (पोसाळां) मांय औ इज बाचै है.
राजस्थांन (राजपुतानौ) कदै घेटौ (भेड़) नीं हौ, आपा तौ नाहर हां, शेर हा, जिणरी एक दहाड़ सूं आखौ संसार धुजतौ...
आपांनै घेटापणौ छोड’र शेर बणनौ पड़सी नहिं तौ भारत सरकार एक दिन राजस्थांन अर राजस्थांनी रौ वजुद समाप्त कर देवैला.
Bhai ji,
ReplyDeleteDr.Mangat Badal.
Ram-Ram sa
Tharo veyeng vanchiyo Bher or uyn, ghano hi chokho lageyo.Aaj ri rajniti re upper cherkaro veyeng ho
Thanye e khatir sadhu-bad.
NARESH MEHAN