Wednesday, May 6, 2009

७ मई टैगोर जयंती पर खास

टैगोर जयंती पर खास

भाषा रो विचार सूं अर

शिक्षा रो जीवण सूं मेळ जरूरी


-रवीन्द्रनाथ टैगोर

स्कू री जरूरी किताबां रै अलावा भी टाबर नै आपरी पसंद री और किताबां भी पढ़णै री छूट होणी चाहिजै। जे उण नै आ छूट नीं दी जावै, तो उणरो मानसिक विकास रुक सकै अर बो पूरो मिनख बणै जद तांईं उणरो टाबर रो सो ही दिमाग बण्यो रह सकै। इण देस में टाबर नै आपरै खातर भोत थोड़ो वगत मिलै। कम सूं कम वगत में उणनै एक विदेसी भाषा सीखणी पड़ै। कई परीक्षावां पास करणी पड़ै। उणरा मां-बाप अर गुरु लोग मनोरंजन री कोई पोथी पढ़'र उणनै आपरो कीमती वगत बरबाद कोनी करण देवै अर जे बै उणरै हाथ में इसी कोई पोथी देखल्यै तो फट खोसल्यै। लास में बैंच पर पतळी टांग लटकायां बैठ्यो बो टाबर म्हारी निजर में दुनिया रो सबसूं बदकिस्मत टाबर है।
आपणी पैली मुसकल तो भाषा री है। अंग्रेजी अर आपणी मातभाषा में व्याकरण अर वाक्य रचना संबंधी घणो फरक होणै रै कारण अंग्रेजी आपणै वास्तै एक बिल्कुल विदेसी भाषा है। अर फेर विषयवस्तु संबंधी मुसकल है, जिकी सूं अंग्रेजी री पोथी आपणै खातर दूणी विदेसी बण जावै। उणमें लिख्योड़े जीवण सूं एकदम अपरिचित होणै सूं आपां उण पोथी नै समझे बिना ही रटणै रै अलावा और कुछ नहीं कर सकां जिणरो नतीजो बिसो ई हुवै जिसो भोजन नै बिना चबायां ही गिटणै रो हुवै। परमात्मा मां-बापां रै हिरदां नै प्यार सूं इण वास्तै भर्या (भरिया) है कै टाबर उण नै धाप'र पी लेवै। मावां री छातियां मुलायम इण वास्तै बणाई है कै टाबर बां पर आराम कर लेवै। टाबरां रा छोटा-छोटा डील है, पण घर री खाली जगां में भी बै ढंगसर खेल को सकै नीं। आपां आपणा टाबरां रो टाबरपणो कठै बितावां हां? एक परदेसी भाषा रै व्याकरण अर कोसां में! अर स्कूल रै काम री उण तंग कैद में, जिकी उदास अर आनन्द रहित है। आपणै टाबरां नै टाबरपणै रा घणा सारा दिन तो एक विदेसी भाषा नै सीखणै में ही बीताणा पड़ै, जिकी इसा लोग सिखावै जकां नै सिखावणो आवै ई कोनी। आपणी शिक्षा रो आपणै जीवण सूं कोई भी सम्बंध कोनी। इण वास्तै जिकी भी पोथियां आपां पढ़ां, बां में न तो आपणा घरां रा साफ चित्राम मांड्योड़ा है अर न आपणै समाज रा आदमी री तारीफ ही बां में है। आपणी जमीन, आपणो आसमान, आपणा सुबै-साम, आपणा खेत अर आपणी नदियां भी बठै कोनी। इसी हालत में शिक्षा अर जीवण रो मेळ कदे भी कोनी बैठ सकै। आपणी शिक्षा री तुलना उण जगां पर पड़ी बरखा सूं करी जा सकै जिकी आपणी जड़ां सूं घणी दूर है।
आपणा विचार अर आपणी भाषा एकरस कोनी। इण आधारभूत बेमेळ रै कारण ही आपां न तो आपणा पगां पर खड़्या हो सकां, न चावां सो ले सकां। परमात्मा आपणै सामैं जरूरत री हर चीज मेली है, पण आपां ठीक वगत पर ठीक चीज कोनी ले सकां। इण वास्तै आपां भगवान सूं अरज करां कै बो भूखां हुवां जद आपां नै भोजन देवै अर ठंड लागै जद कपड़ा देवै। आपां प्रार्थना करां कै बो आपणी भाषा रो आपणै विचार सूं अर आपणी शिक्षा रो आपणै जीवण सूं मेळ करा देवै। ('टुवर्ड्ज दी यूनिवर्सल मैन' पोथी सूं)

राजस्थानी सारू

राजस्थानी भाषा रै साहित में जको एक भाव है, जको एक उद्वेग है, बो फगत राजस्थान सारू ई नीं सगळै देस वास्तै गुमेज री चीज है। -रवीन्द्रनाथ टैगोर

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